प्राण प्यारें कृष्ण चन्द , नेक काटो भव फंद ,हे सत चित आनंद , तेरे चरण में आई हूँ ।हौं मूढ़ मतिमंद , नित पाप करूँ स्वछन्द ,नैकु न नाम परमानंद , जिह्वा सो गई हूँ ।कान्ह काटे फरफंद , खोले भव द्वार बंद ,सुनि रसिक प्रेमी संत ,मन चरण में लाई हूँ ।प्यारें माधुर्य रस कंद , हे नाथ सच्चिदानंद ,दीजै चरण मकरन्द , मन मधुप बनायौ हूँ ।❤️❤️हे श्रीकृष्ण❤️❤️,
प्राण प्यारें कृष्ण चन्द , नेक काटो भव फंद ,हे सत चित आनंद , तेरे चरण में आई हूँ ।हौं मूढ़ मतिमंद , नित पाप करूँ स्वछन्द ,नैकु न नाम परमानंद , जिह्वा सो गई हूँ ।कान्ह काटे फरफंद , खोले भव द्वार बंद ,सुनि रसिक प्रेमी संत ,मन चरण में लाई हूँ ।प्यारें माधुर्य रस कंद , हे नाथ सच्चिदानंद ,दीजै चरण मकरन्द , मन मधुप बनायौ हूँ ।❤️❤️हे श्रीकृष्ण❤️❤️,
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