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*कान्हा बने बहुरानी* by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक बार बरसाने में एक ब्रजबासीन् के बेटे की विवाह हुआ। वो ब्रजबसिन् ने सबको बुलाया... पर श्रीराधा रानी जी को निमंत्रण देना भूल गयी। उसको विवाह के पहले स्मरण था, पर विवाह के समय ही भूल गयी। जब विवाह हो गयी और बहु घर में आ गयी, तब उसको स्मरण आया। हाय रे! श्रीराधा रानी जी को बुलाना तो भूल गयी। तब वो श्रीराधा रानी जी के पास गयी... बोली... श्रीराधा रानी क्षमा कर दो, आपको बुलाना तो भूल गयी मैं। श्रीराधा रानी बोली कोई बात नहीं भूल गयी तो भूल गई, पर आपने मुझे अपने दिल में तो रखा है। यही मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है।कितनी उदार हैं हमारी श्रीराधा रानी... कितनी करुणा शील है। हमलोग इस परिस्थिति में होते तो क्या करते,स्वयं विचार करें। श्रीराधा रानी बोलीं- नयी नवेली बहु कैसी है ? ब्रजबसिन् बोली अभी अपनी नयी बहु को बुला के लाती हुँ। जब श्रीराधा रानी जी से मिलने गयी थी तो वो अपनी बहु की रखवाली के लिए एक सखी को साथ छोड के गयीं थी बहु के पास। ब्रजवासिन् के आने से पहले ठाकुर श्यामसुंदर जी ने उसके घर गये... और हमारे ठाकुर जी तो हैं ही शरारती... तो उन्होने दुल्हन का श्रृंगार करके खुद बहु बनके घुंघट ओढ़ कर बैठ गए और बहू को घर में ही कहीं छुपा दिया।ब्रजबसिन् शीघ्रातिशीघ्र घर में आई और बोली बहु से :- श्रीराधा रानी तुझसे मिलना चाह रही, जल्दी चल। श्रीकृष्ण दुल्हन रूप में घूँघट के अंदर से बोले :- श्रीराधा रानी जी ने मुझे स्मरण किया ये मेरी परम सौभाग्य है... पर में घूँघट ओढ़ के ही जाउंगी उनके पास। दोनों जब महल पहुँची तो सास ने बहु से कहा :- ये ब्रज की रानी हैं हमारी श्रीराधा रानी ... और यहां श्रीकृष्ण घूँघट में शरमाते जा रहे थे। बहु जब किशोरी जू के पास पहुंची तो सास ने कहा बहु से किशोरी जू के चरण स्पर्श करो और उनका आशिर्वाद लो ।चरण स्पर्श की बात सुनते ही ठाकुर जी बहु रूप में पुलकित हो गये...नेत्र में अश्रु छलकने लगे... शरीर में कंपन हुआ... जब वो किशोरी जू के चरण स्पर्श करने लगे तो कुछ क्षण भावावेश में चले गये...पर तुरंत स्वयं को संभाल लिया... नहीं तो चोरी पकडा जायेगा। किशोरी जू ने बहु रुपी श्यामसुंदर जी को मंगल आशीर्वाद दिया.. अपने प्रियतम की हमेशा प्रिया रहो। बहुत आशीर्वाद देकर निहाल कर दिया बहु को... फिर सखी के हाथों बहुत से सुन्दर मणि, मोती, गहने, मेहंदी, 16 शृंगार सामग्री, नए बस्त्र मगांये दुल्हन के मुख दिखाई के लिए। और दुल्हन से कहा- ये तुम्हारा उपहार है.. अब अपना मुख दिखाओ।दुल्हन ने घूँघट में से सर को हिला के मना कर दिया… सारी सखियां, मंजरियाँ विस्मृत हो गयीं कि ये कैसी दुल्हन है जो किशोरी जू की आज्ञा का पालन नहीं करतीं। श्रीराधा रानी पुनः विनती की अपना मुख तो दिखाओ... हम बहुत अधीर हैं नयी बहु का मुख देखने को... लेकिन बहु ने और ज़ोर से सर हिला कर मना कर दिया । तभी सास बोली बड़ी बत्तमीज़ है दुल्हन.. श्रीराधा रानी की बात नहीं मानती । श्रीराधा रानी बोली :- मुख दिखाई का उपहार कम लग रहा हो तो और ज्यादा दे देंगी, जितना चाहे... पर अपनी मुख तो दिखा दे एकबार ।बहु ने फिर ज़ोर से मना कर दिया सर हिला के। सास ने भी बहुत समझाया पर बहु नहीं मानीं मुख दिखाने को। श्रीराधा रानी बोलीं- मेंरे से प्रसादी अंलकार भी ले लो, और जो चाहो मांग लो, पर मुख दिखा दो... फिर भी बहु ने मना कर दिया...सास को अब गुस्सा आने लगा। श्रीराधा रानी बोली:- कोई कष्ट हो तो मुझे बता दो। सब सहचरी बोलीं बड़ी हठी है दुल्हन... यहां श्रीराधा रानी की अधीरता बढ़ती जा रही है। अपने गले का हार भी उपहार में दे दिया, पर बहु ना मानीं। श्रीराधा रानी बोलीं बहु से- में तुझे अपने साथ ही रख लूंगी अपनी सखी बनाकर , पर अपना मुख दिखादे एक बार मोको ।ये सुनते ही श्यामसुन्दर ज्यादा पुलकित हो गये… आज तो कृपा हो गयी... बरसाने का बास मिल गया। वो भी निज महल में जहां मैं नित बुहार लगाता हूँ अपने प्रिय पीताम्बर से । श्रीराधा रानी ने बचन दे दिया कि तोकु अपने निज महल में रख लूंगी। बस एक बार अपना मुख दिखादे। श्रीराधा रानी की अधीरता बढ़ती जा रही थी । सखी ललिता जी से देखी नहीं गयी किशोरी जू की अधीरता। ललिता बोली :- बहुत हठी है दुल्हन । अभी इसे बताती हुँ, हमारी किशोरी जू को काहे अधीर करे जा रही है ।दुल्हन के पास जाके बोली :- जब किशोरी जू तुझको परम आशीर्वाद दे दिया.. तुझे अपने साथ रख लेगी ऐसा सौभाग्य तो हमें भी कभी कभी मिलती है और तू आभार प्रगट करने की जगह एतरा रहि है ?... इतनी बड़ी कृपा तुझ को समझ नहीं आ रही है ?...चल दिखा अपना मुख किशोरी जी को। बहु ने घूँघट से कोई उत्तर नहीं दिया, पर घूँघट के आनंद पुलकाय मान हो गये । ललिता जी बोली :- तू ऐसे नहीं मानेगी, तुझे मैं बताती हूँ।और फिर बहु को पकड़ कर हाथ से घूँघट ऊपर उठा दिया, पर केवल एक क्षण ही बहु ने तुरंत ही घूंघट डाल दिया । घूँघट उठते ही महल में सन्नाटा छा गया.. सारी सखियाँ और मंजरी ओढनी मुख पर रख कर मंद मंद मुस्कुराने लगीं। किशोरी जू के आनंद की भी सीमा ना रही.. सब ने नयी बहु का ज़ोरदार स्वागत किया। चारों और नयी बहु की मंगल बधाई गा रही थी सखियां । श्यामसुन्दर लज्जा के मारे घूँघट दुबारा ओढ़ लिए... तब किशोरी जी नयी बहु के पास गयीं और उसका घूँघट थोडा उपर कर दिया। किशोरी जी बोली :- ऐसी नई बहु की मुख दिखाई में तो मैं त्रिभुन वार दूं। श्याम सुन्दर मन में बोले आज तो जीवन सफल हो गया मेरा.. कितने युगों से आस थी बरसाने महल के वास की.. वो आज पूरी हुई।कृपा देखो किशोरी जु की कि- वास भी बरसाने में कहां दिया ... निज महल में... निज संग मे । लाड़ली जी बोली :- आज से हम नयी बहु (हमारे लाल जी ) के साथ निज महल में नित विराजेंगे .. जो आज भी विराज मान हैं। बरसाने के लाडली महल में विराजित श्यामसुंदर संग श्रीराधा रानी। दरअसल सब सखीयां और श्रीराधा रानी जी श्यामसुंदर के रुपमाधुर्य से विमोहित हो गये...श्यामसुंदर इतने सुंदर लग रहे थे कि उमा,रमा भी लज्जित हो जायें। सखीगण,श्रीराधा रानी श्यामसुंदर जी के क्षणभर दर्शन से भाव में चली गईं...पर वे सब स्वयं को संभाल लिये... यदि वे भावावेश में चलीं जातीं तो श्यामसुंदर पकडे जाते... वे श्यामसुंदर को पकडवाना नहीं चाहतीं थीं...यही है प्रेममय रस... जो चखे, वही जानेकुंज बिहारी श्री हरिदास 🙏🏻🙏🏻,

*कान्हा बने बहुरानी*

By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

एक बार बरसाने में एक ब्रजबासीन् के बेटे की विवाह हुआ। वो ब्रजबसिन् ने सबको बुलाया... पर श्रीराधा रानी जी को निमंत्रण देना भूल गयी। उसको विवाह के पहले स्मरण था, पर विवाह के समय ही भूल गयी। जब विवाह हो गयी और बहु घर में आ गयी, तब उसको स्मरण आया। हाय रे! श्रीराधा रानी जी को बुलाना तो भूल गयी। तब वो श्रीराधा रानी जी के पास गयी... बोली... श्रीराधा रानी क्षमा कर दो, आपको बुलाना तो भूल गयी मैं। श्रीराधा रानी बोली कोई बात नहीं भूल गयी तो भूल गई, पर आपने मुझे अपने दिल में तो रखा है। यही मेरे लिए बहुत सौभाग्य की बात है।

कितनी उदार हैं हमारी श्रीराधा रानी... कितनी करुणा शील है। हमलोग इस परिस्थिति में होते तो क्या करते,स्वयं विचार करें। श्रीराधा रानी बोलीं- नयी नवेली बहु कैसी है ? ब्रजबसिन् बोली अभी अपनी नयी बहु को बुला के लाती हुँ। जब श्रीराधा रानी जी से मिलने गयी थी तो वो अपनी बहु की रखवाली के लिए एक सखी को साथ छोड के गयीं थी बहु के पास। ब्रजवासिन् के आने से पहले ठाकुर श्यामसुंदर जी ने उसके घर गये... और हमारे ठाकुर जी तो हैं ही शरारती... तो उन्होने दुल्हन का श्रृंगार करके खुद बहु बनके घुंघट ओढ़ कर बैठ गए और बहू को घर में ही कहीं छुपा दिया।

ब्रजबसिन् शीघ्रातिशीघ्र घर में आई और बोली बहु से :- श्रीराधा रानी तुझसे मिलना चाह रही, जल्दी चल। श्रीकृष्ण दुल्हन रूप में घूँघट के अंदर से बोले :- श्रीराधा रानी जी ने मुझे स्मरण किया ये मेरी परम सौभाग्य है... पर में घूँघट ओढ़ के ही जाउंगी उनके पास। दोनों जब महल पहुँची तो सास ने बहु से कहा :- ये ब्रज की रानी हैं हमारी श्रीराधा रानी ... और यहां श्रीकृष्ण घूँघट में शरमाते जा रहे थे। बहु जब किशोरी जू के पास पहुंची तो सास ने कहा बहु से किशोरी जू के चरण स्पर्श करो और उनका आशिर्वाद लो ।

चरण स्पर्श की बात सुनते ही ठाकुर जी बहु रूप में पुलकित हो गये...नेत्र में अश्रु छलकने लगे... शरीर में कंपन हुआ... जब वो किशोरी जू के चरण स्पर्श करने लगे तो कुछ क्षण भावावेश में चले गये...पर तुरंत स्वयं को संभाल लिया... नहीं तो चोरी पकडा जायेगा। किशोरी जू ने बहु रुपी श्यामसुंदर जी को मंगल आशीर्वाद दिया.. अपने प्रियतम की हमेशा प्रिया रहो। बहुत आशीर्वाद देकर निहाल कर दिया बहु को... फिर सखी के हाथों बहुत से सुन्दर मणि, मोती, गहने, मेहंदी, 16 शृंगार सामग्री, नए बस्त्र मगांये दुल्हन के मुख दिखाई के लिए। और दुल्हन से कहा- ये तुम्हारा उपहार है.. अब अपना मुख दिखाओ।

दुल्हन ने घूँघट में से सर को हिला के मना कर दिया… सारी सखियां, मंजरियाँ विस्मृत हो गयीं कि ये कैसी दुल्हन है जो किशोरी जू की आज्ञा का पालन नहीं करतीं। श्रीराधा रानी पुनः विनती की अपना मुख तो दिखाओ... हम बहुत अधीर हैं नयी बहु का मुख देखने को... लेकिन बहु ने और ज़ोर से सर हिला कर मना कर दिया । तभी सास बोली बड़ी बत्तमीज़ है दुल्हन.. श्रीराधा रानी की बात नहीं मानती । श्रीराधा रानी बोली :- मुख दिखाई का उपहार कम लग रहा हो तो और ज्यादा दे देंगी, जितना चाहे... पर अपनी मुख तो दिखा दे एकबार ।

बहु ने फिर ज़ोर से मना कर दिया सर हिला के। सास ने भी बहुत समझाया पर बहु नहीं मानीं मुख दिखाने को। श्रीराधा रानी बोलीं- मेंरे से प्रसादी अंलकार भी ले लो, और जो चाहो मांग लो, पर मुख दिखा दो... फिर भी बहु ने मना कर दिया...सास को अब गुस्सा आने लगा। श्रीराधा रानी बोली:- कोई कष्ट हो तो मुझे बता दो। सब सहचरी बोलीं बड़ी हठी है दुल्हन... यहां श्रीराधा रानी की अधीरता बढ़ती जा रही है। अपने गले का हार भी उपहार में दे दिया, पर बहु ना मानीं। श्रीराधा रानी बोलीं बहु से- में तुझे अपने साथ ही रख लूंगी अपनी सखी बनाकर , पर अपना मुख दिखादे एक बार मोको ।

ये सुनते ही श्यामसुन्दर ज्यादा पुलकित हो गये… आज तो कृपा हो गयी... बरसाने का बास मिल गया। वो भी निज महल में जहां मैं नित बुहार लगाता हूँ अपने प्रिय पीताम्बर से । श्रीराधा रानी ने बचन दे दिया कि तोकु अपने निज महल में रख लूंगी। बस एक बार अपना मुख दिखादे। श्रीराधा रानी की अधीरता बढ़ती जा रही थी । सखी ललिता जी से देखी नहीं गयी किशोरी जू की अधीरता। ललिता बोली :- बहुत हठी है दुल्हन । अभी इसे बताती हुँ, हमारी किशोरी जू को काहे अधीर करे जा रही है ।

दुल्हन के पास जाके बोली :- जब किशोरी जू तुझको परम आशीर्वाद दे दिया.. तुझे अपने साथ रख लेगी ऐसा सौभाग्य तो हमें भी कभी कभी मिलती है और तू आभार प्रगट करने की जगह एतरा रहि है ?... इतनी बड़ी कृपा तुझ को समझ नहीं आ रही है ?...चल दिखा अपना मुख किशोरी जी को। बहु ने घूँघट से कोई उत्तर नहीं दिया, पर घूँघट के आनंद पुलकाय मान हो गये । ललिता जी बोली :- तू ऐसे नहीं मानेगी, तुझे मैं बताती हूँ।

और फिर बहु को पकड़ कर हाथ से घूँघट ऊपर उठा दिया, पर केवल एक क्षण ही बहु ने तुरंत ही घूंघट डाल दिया । घूँघट उठते ही महल में सन्नाटा छा गया.. सारी सखियाँ और मंजरी ओढनी मुख पर रख कर मंद मंद मुस्कुराने लगीं। किशोरी जू के आनंद की भी सीमा ना रही.. सब ने नयी बहु का ज़ोरदार स्वागत किया। चारों और नयी बहु की मंगल बधाई गा रही थी सखियां । श्यामसुन्दर लज्जा के मारे घूँघट दुबारा ओढ़ लिए... तब किशोरी जी नयी बहु के पास गयीं और उसका घूँघट थोडा उपर कर दिया। किशोरी जी बोली :- ऐसी नई बहु की मुख दिखाई में तो मैं त्रिभुन वार दूं। श्याम सुन्दर मन में बोले आज तो जीवन सफल हो गया मेरा.. कितने युगों से आस थी बरसाने महल के वास की.. वो आज पूरी हुई।

कृपा देखो किशोरी जु की कि- वास भी बरसाने में कहां दिया ... निज महल में... निज संग मे । लाड़ली जी बोली :- आज से हम नयी बहु (हमारे लाल जी ) के साथ निज महल में नित विराजेंगे .. जो आज भी विराज मान हैं। बरसाने के लाडली महल में विराजित श्यामसुंदर संग श्रीराधा रानी। दरअसल सब सखीयां और श्रीराधा रानी जी श्यामसुंदर के रुपमाधुर्य से विमोहित हो गये...श्यामसुंदर इतने सुंदर लग रहे थे कि उमा,रमा भी लज्जित हो जायें। सखीगण,श्रीराधा रानी श्यामसुंदर जी के क्षणभर दर्शन से भाव में चली गईं...पर वे सब स्वयं को संभाल लिये... यदि वे भावावेश में चलीं जातीं तो श्यामसुंदर पकडे जाते... वे श्यामसुंदर को पकडवाना नहीं चाहतीं थीं...यही है प्रेममय रस... जो चखे, वही जाने
कुंज बिहारी श्री हरिदास 🙏🏻🙏🏻

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कैसे बन गए भगवान कृष्ण लड्डू गोपाल? जानिए इसके पीछे का रहस्य By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पास भगवान श्रीकृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा उनकी पूजा में ही लीन रहते थे। वह अपने प्रभु को कभी भी कहीं छोड़कर नहीं जाते थे।एक बार कुंभनदास के लिए वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने उस भागवत में जाने से मना कर दिया। परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे। इसके बाद वह भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह उनकी पूजा का नियम नहीं टूटेगा। कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझा दिया कि मैंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए भोग तैयार कर दिया है। तुम बस ठाकुर जी को भोग लगा देना और इतना कहकर वह चले गए।कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे विनती की कि वह आएं और भोग लगाएं। रघुनंदन मन ही मन ये सोच रहा था कि ठाकुरजी आएंगे और अपने हाथों से खाएंगे जैसे सभी मनुष्य खाते हैं। कुंभनदास के बेटे ने कई बार भगवान श्रीकृष्ण से आकर खाने के लिए कहा, लेकिन भोजन को उसी प्रकार से देखर वह निराश हो गया और रोने लगा। उसने रोते-रोते भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान आकर भोग लगाइए। उसकी पुकार सुनकर ठाकुर जी ने एक बालक का रूप रखा और भोजन करने के लिए बैठ गए। जिसके बाद रघुनंदन के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वृंदावन से भागवत करके जब कुंभनदास घर लौटा तो उसने अपने बेटे से प्रसाद के बारे में पूछा। रघुनंदन ने अपने पिता से कहा ठाकुरजी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा कि अभी रघुनंदन नादान है। उसने सारा प्रसाद खा लिया होगा और डांट की वजह से झूठ बोल रहा है। अब रोज कुंभनदास भागवत के लिए जाते और शाम तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था।कुंभनदास को लगा कि अब उनका पुत्र कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने लगा है, लेकिन उनका पुत्र ऐसा क्यों कर रहा है? यह देखने के लिए कुंभनदास ने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रख दिए और दूर से छिपकर देखने लगे। रघुनंदन ने रोज की तरह ठाकुर जी को आवाज दी और ठाकुर जी एक बालक के रूप में कुंभनदास के बेटे के सामने प्रकट हुए। रघुनंदन ने ठाकुरजी से फिर से खाने के लिए आग्रह किया। जिसके बाद ठाकुर जी लड्डू खाने लगे। बाल वनिता महिला आश्रमकुंभनदास जो दूर से इस घटना को देख रहे थे, वह तुरंत ही आकर ठाकुर जी के चरणों में गिर गए। ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू और दूसरे हाथ का लड्डू मुख में जाने वाला ही था, लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर स्थिर हो गए।. तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप की पूजा की जाने लगी और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाए जाने लगे.

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