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#भक्त_का_मान_रखने_स्वयं_साक्षी_बनकर_आये 👍👌भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोपाल हैं जो साक्षी गोपाल नामक मन्दिर के रूप में प्रसिध्द है । इस मन्दिर का नाम साक्षी गोपाल कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा प्रचलित है, किसी समय यह मूर्ति वृन्दावन के एक मन्दिर में स्थापित थी। जिसके दर्शन के लिये एक बार दो ब्राह्मण, जिनमें एक वृद्ध और एक युवा, वृन्दावन की यात्रा पर निकले। यात्रा लम्बी थी और उन दिनों रेलगाड़ियाँ की व्यवस्था भी नहीं थीं, अतः यात्रियों को अनेक कष्ट उठाने पड़ते थे। वृद्ध व्यक्ति युवक का अत्यन्त कृतज्ञ था, क्योंकि युवक ने यात्रा के दौरान उनकी काफी सेवा की थी। जब वह वृध्दि व्यक्ति वृन्दावन पहुँचे तो उन्होंने कहा, हे युवक तुमने पूरे यात्रा के दौरान मेरी बहुत सेवा की है। मैं इसके लिए तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी इस सेवा के बदले में तुम्हें कुछ पुरस्कार दूँ।उस युवक ने कहा - आप वृद्ध हैं, मेरे पिता के समान हैं, आपकी सेवा करना मेरा कर्त्तव्य है। इसके लिए मुझे कोई पुरस्कार नहीं चाहिए।वृद्ध पुरुष हठ करने लगे नहीं, मैं तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, मैं तुम्हें पुरस्कार अवश्य दूँगा। तब उस वृद्ध ने उस युवक से अपनी पुत्री का विवाह करने का वचन दे दिया। वह वृद्ध पुरुष अत्यन्त धनी थे और वह युवक, विद्वान ब्राह्मण होते हुए भी अत्यन्त निर्धन था। यह सुन युवक ने कहा, आप यह वचन न दें, क्योंकि आपका परिवार इस बात पर कभी भी सहमत नहीं होगा। क्योंकि मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ, और आप इतने धनी परिवार से हैं, अतः यह विवाह संभव नहीं हो सकेगा। कृपया भगवान के श्रीविग्रह के समक्ष इस प्रकार वचन न दें।दोनों का यह वार्तालाप मन्दिर के भीतर भगवान गोपाल (कृष्ण) के श्रीविग्रह के समक्ष हो रहा था, और वह युवक चिन्तित था कि कहीं यह वचन पूरा न हो सका तो इससे श्रीविग्रह का अपमान न हो जाये। फिर भी उस युवक के तर्कों के बावजूद वृद्ध पुरुष विवाह की बात पर अड़े रहे, तथा दर्शन के पश्चात वृन्दावन में कुछ दिनों रहने के बाद वे दोनों घर लौट आये, और वह वृद्ध पुरुष ने यात्रा की सारी बात अपने ज्येष्ठ पुत्र से कहा और कहा कि तुम्हारी बहन का विवाह उस निर्धन ब्राह्मण युवक से करने का वचन दिया हूँ । यह सुन उनका ज्येष्ठ पुत्र अत्यन्त क्रोधित हो गया और कहा आपने मेरी बहन के लिए ऐसा दरिद्र पति क्यों चुना है यह विवाह नहीं हो सकता।यह सुन वृद्ध पुरुष की पत्नी भी आ गई और कहने लगी, यदि आप हमारी पुत्री का विवाह उस युवक से करेंगे, तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह सब सुनकर वृद्ध पुरुष बहुत उलझन में पड़ गये। कुछ समय बीतने के पश्चात उस ब्राह्मण-युवक को चिन्ता होने लगी कि कहीं वह वृद्ध पुरुष ने अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करने का वचन भगवान् के समक्ष दिया था। उसे पूरा करने क्यों नहीं आ रहे हैं? यह सोच वह युवक उस वृद्ध पुरुष को उनके वचन की याद दिलाने के लिए उनके पास गये।युवक ने कहा, आपने भगवान् गोपाल (कृष्ण) के समक्ष वचन दिया था, किन्तु अब आप उसे पूरा नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्यों यह सुन वृद्ध पुरुष मौन थे, और वह अपनी उस उलझन के सुलझाने के लिए भगवान कृष्ण से प्रार्थना करने लगे. क्योंकि वह अपनी पुत्री का विवाह इस युवक के साथ करके वह अपने परिवार में क्लेश पैदा करना नहीं चाह रहे थे। उसी समय उनका ज्येष्ठ पुत्र आ गया और वह उस ब्राह्मण युवक ऊपर दोषारोपण करने लगता है, तुमने तीर्थस्थान के बहाने मेरे पिता को मोहित कर लिया, और सारा धन लूटने के लिये मेरी सबसे छोटी बहन से विवाह करने का वचन ले लिया है।इस प्रकार की बात कहकह कर बहुत शोरगुल करने लगा जिससे और लोग एकत्र होने लगे। वह युवक समझ गया कि वृद्ध पुरुष अब भी विवाह करने के लिये सहमत है, किन्तु उनके परिवार के लोग यह नहीं होने दे रहे हैं।यह देखा वह ब्राह्मण युवक भी उच्च स्वर में बोलने लगा कि वृद्ध पुरुष ने भगवान् श्रीगोपाल के समक्ष मुझे यह वचन दिया था, किन्तु अब परिवार के विरोध के कारण अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। तब उस वृद्ध पुरुष का पुत्र कहने लगता हैं तुम कहते हो कि भगवान् साक्षी हैं, तो ठीक है यदि भगवान् यहाँ आकर कहे कि वे साक्षी हैं कि मेरे पिता ने वचन दिया है, तो तुम मेरी बहन के साथ विवाह कर सकते हो।युवक ने कहा, हाँ, मैं भगवान श्रीगोपाल से कहूँगा कि वे साक्षी के रूप में आएँ। उसे विश्वास था कि भगवान् अवश्य आएँगे। सभी के समक्ष यह बात तय हुआ कि यदि वृद्ध पुरुष के वचन की साक्षी के लिए भगवान गोपाल (श्रीकृष्ण) यदि वृन्दावन से यहाँ आएँगे, तो कन्या का विवाह उस युवक से कर दिया जाएगा। वह ब्राह्मण युवक पुनः पैदल लौटकर वृन्दावन के लिये आता हैं, कुछ दिन यात्रा कर वृन्दावन पहुँचकर भगवान गोपाल (श्री कृष्ण) से प्रार्थना करने लगाता हैं, “हे भगवान्! आप तो साक्षी हैं आपके समक्ष उन्होंने मुझे वचन दिये थे इसलिए आपको मेरे साथ चलना होगा. वह इतना निष्ठावान भक्त था कि वह भगवान गोपाल से ऐसे बातें कर रहा था, जैसे किसी अपने मित्र से कर रहा हो। उसने यह नहीं सोचा कि यह गोपाल तो एकमात्र मूर्ति हैं। वह तो उन्हें साक्षात् भगवान् मान रहा था। अचानक मूर्ति से आवाज आई, तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ? मैं तो एक मूर्ति हूँ। मैं कहीं नहीं जा सकता।युवक ने बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया, यदि मूर्ति बोल सकती है, तो वह चल भी सकती है। इस प्रकार युवक के सविनय आग्रह को स्वीकार करते हुए श्रीविग्रह ने कहा, अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा, किन्तु एक शर्त है। तुम किसी भी दशा में मुझे पीछे मुड़कर देखना नहीं यदि देखे तो मैं वही स्थापित हो जाऊंगी, और आगे नहीं जाऊंगी वह युवक शर्त मान लेता हैं. भगवान कहते हैं मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चलूँगा तुम मेरे नूपुरों की ध्वनि से जान लेना कि मैं पीछे आ रहा हूँ।युवक भगवान की बात मान चलने लगता हैं आगे आगे युवक चलता है पीछे पीछे भगवान नूपुर की मधुर ध्वनि के साथ आते हैं। इसी प्रकार जब यात्रा पूरी होने वाली होती हैं और वह युवक जैसे ही गाँव में प्रवेश करने वाला होता हैं वैसे ही नूपुरों की ध्वनि सुनाई देनी बन्द हो गई। उस युवक को चिन्ता हुई कि गोपाल कहाँ चले गये और वह अधीर होकर जैसे ही पीछे मुड़कर देखने लगता हैं वह मूर्ति स्थिर हो जाती हैं। चूँकि उसने पीछे मुड़ कर देखा था, इसलिए अब मूर्ति आगे नहीं जाने वाली थी। इसलिये वह तुरन्त दौड़कर नगर में पहुँचा और लोगों से कहने लगा कि चल कर देखें कि गोपाल स्वयं साक्षी रूप में आये हैं। यह सुन लोग अचंभित हो गए कि इतनी बड़ी मूर्ति इतनी दूरी से चलकर कैसे आ गई। जैसे ही जाकर देखते है कि भगवान स्वयं साक्षी रूप में आये है तो उस युवक के भक्ति सभी प्रसन्न हो जाते हैं और वचन अनुसार उसका विवाह उस वृद्ध पुरुष की छोटी लड़की से कर दिया और श्रीविग्रह के सम्मान में उस स्थल पर एक मन्दिर बनवा दिया जिसे लोग भगवान् की पूजा साक्षी-गोपाल के रूप में करते हैं। यह स्थान जगन्नाथ पुरी से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और साक्षी गोपाल के नाम से विख्यात है। !हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण! !!हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे!!

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