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, आज का भगवद चिंतन।यह काल कलिकाल है इसमें केवल नाम जप से ही मनुष्य के कल्याण का मार्ग बताया है।पिछले अंक से आगे।शुकदेवजी कहते है -सतयुग में विष्णु के ध्यान से,,त्रेता युग में यज्ञ से,द्वापर में विधिपूर्वक विष्णु पूजासे- जो फल मिलता था,वही फल कलियुग में भगवान के नाम कीर्तन से मिलता है। मृत्यु के समय परमेश्वर का ध्यान करनेसे जीवको अपने स्वरुप में समाहित कर देते है। शुकदेवजी राजाको अंतिम उपदेश देते है - हे राजन,जन्म और मृत्यु तो शरीर के धर्म है।आत्मा तो अजर अमर है। घट फूट जाने के पर उसमे समाया हुआ आकाश महाकाश से मिल जाता है। इसी प्रकार देहोत्सर्ग होने पर जीव ब्रह्ममय हो जाता है। राजन,आज तुम्हारा अंतिम दिन है। तक्षक नाग तुम्हे डंसेगा। वह तेरे शरीरको मार सकेगा पर तेरी आत्माको नहीं। आत्मा शरीर से अलग है। आत्मा परमात्मा का अंश है। अब अंत में तुम्हे महावाक्य का उपदेश देता हूँ। अहं ब्रह्म परं धाम ब्रह्मांड परम पदम् राजन- मै ही परमात्मा रूप ब्रह्म हूँ और परम पद रूप ब्रह्म भी मै ही हूँ।ऐसा सोचकर अपनी आत्मा को ब्रह्म से जोड़ लो। तक्षक-काल भी श्रीकृष्ण का ही अंश है। शरीर नाशवान है,आत्मा तो अमर है। अब तुम्हे कुछ और सुनने की इच्छा है? समय तो हो गया है,फिर भी अगर कोई इच्छा हो तो बोल। जब तक मै यहाँ हूँ तक्षक यहाँ नहीं आ सकता। परीक्षित- महाराज,आपने मुझे व्यापक ब्रह्म के दर्शन कराये है सो मै निर्भय हो गया हूँ। भागवत श्रवण के पाँच फल है। -(१) निर्भयता (२) निः सन्देहता (३) ह्रदय में प्रभुका साक्षात् प्रवेश (४) सभी में भगवद दर्शन (५) परम प्रेम परीक्षित कहते है-प्रभु- भागवत का प्रथम स्कन्ध सुनकर-परमात्मा के दक्षिण चरण के दर्शन हुए। द्वितीय स्कन्ध सुनकर वाम चरण के दर्शन हुए। तीसरे और चौथे स्कन्ध सुनकर दोनों हस्त-कमल के दर्शन हुए। पाँचवे और छठ्ठे स्कन्ध को सुनकर दोनों जंघा के,सातवें स्कन्ध के श्रवण से कटि भाग के दर्शन हुए। अष्टम और नवम स्कन्ध सुनकर प्रभु के विशाल वक्षःस्थल के दर्शन हुए।एकादश स्कन्ध सुनकर श्रीनाथजी का ऊपर उठा हुआ हस्त दिखाई दिया। बारहवें स्कन्ध के श्रवण से मुझे लग रहा है कि श्रीकृष्ण दोनों हाथों से मुझे बुला रहे है। अब तो मै प्रभु का ही ध्यान धर रहा हूँ। मै उनकी शरण में हूँ। मुझे सर्वत्र वे ही दिखाई दे रहे है। मै उनके पास जा रहा हूँ। वे मुझे बुला रहे है। मै कृतार्थ हो गया। महाराज,आपने मुझे प्रेम-रस पिलाया है,मुझे पवित्र बनाया है। आपने कथा नहीं की पर मुझे प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण के दर्शन कराये है। आपने बताया है कि सारा जगत ब्रह्मरूप है। तक्षक जगत से पृथक नहीं है,वह भी ब्रह्मरूप है। मै आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया।शेष अगले अंक में।(साभार:भगवद रहस्य)सुन्दर कथाओ के लिए Vnita पेज लाइक करे।,

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