पुत्र कितने प्रकार के होते हैं, औरस पुत्र किसे कहते हैं?सबसे पहले जवाब दिया गया: पुत्र कितने प्रकार के होते हैं, और पुत्र किसे कहते हैं? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब धन्यवाद अनुरोध के लिए। वनिता पंजाब ने बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन किया हैं।चित्र गूगल से प्राप्त है।औरस, क्षेत्रज, दत्तक, कृत्रिम्, गूढ़ोत्पन्न, अपविद्ध, कानीन, सहोढ, क्रीत, पौनर्भव, स्वयंदत्त और शौद्घ ।और शास्त्र में चार प्रकार के पुत्रों का वर्णन मिलता हैं। ऋणानुबंध पुत्र, शत्रु पुत्र, उदासीन पुत्र और सेवक पुत्र।सर्वप्रथम मनु द्वारा बताए १२ प्रकार के पुत्रों का वर्णन:प्रथम औरस पुत्र - विवाह के उपरांत पति पत्नी द्वारा जिस पुत्ररूपी संतान की उत्पत्ति होती हैं। उसे औरस पुत्र कहते हैं। औरस पुत्र ही मुख्य पुत्र होता हैं।दूसरा क्षेत्रज पुत्र - किसी कारणवश पति की मृत्यु, पागल हो जाने या अन्य कारणो से स्त्री के अन्य किसी भद्र पुरुष के नियोग से उत्पन संतान को क्षेत्रज पुत्र कहते हैं।तीसरा दत्तक पुत्र - किसी दूसरे के पुत्र को अगर गोद लिया जाय तो दत्तक पुत्र कहलाता हैं।चौथे कृत्रिम पुत्र - अच्छे गुणों से युक्त बालक को कोई पुत्र का स्थान दे, तो कृत्रिम पुत्र कहते हैं।पांचवा गूढ़ोत्पन्न पुत्र - घर के किसी सदस्य से उत्पन्न पुत्र जिसकी सटीक जानकारी न हो कि किसका पुत्र हैं। ऐसे पुत्र को मनु ने गूढ़ोत्पन्न पुत्र कहा हैं।छठा अपविद्ध पुत्र - किसी कारणवश माता पिता ने पुत्र का त्याग कर दिया हो। और किसी अन्य द्वारा पुत्र अपना लिया जाए तो अपनाने वाले के लिए ऐसा पुत्र अपविद्ध कहलाता हैं।संतवा कानीन पुत्र - कुंवारी कन्या से उत्पन्न पुत्र कानीन पुत्र कहलाता हैं।आठवां सहोढ पुत्र - गर्भवती स्त्री से विवाह करने पर, उस संतान की उत्पत्ति पर पति का वो सहोढ पुत्र कहलाएगा।नौवां क्रीत पुत्र - खरीदा गया या उचित मूल्य माता पिता को देकर लिया गया पुत्र क्रीत पुत्र कहलाता हैं।दसवीं पौनर्भव पुत्र - विधवा विवाह या तलाक शुदा स्त्री से उत्पन्न पुत्र को पौनर्भव पुत्र कहते हैं।ग्यारहवीं स्वयंदत्त पुत्र - जो माता पिता का त्याग कर स्वयं को किसी का पुत्र बन जाए तो स्वयंदत्त पुत्र होगा।बारहवां शौद्घ पुत्र - शुद्र स्त्री और ब्राम्हण से उत्पन्न पुत्र शौद्ध पुत्र होगा।इसके अलावा शास्त्रों में 4 तरह के पुत्र बताए गए हैं- ऋणानुबंध पुत्र, शत्रु पुत्र, उदासीन पुत्र और सेवक पुत्र।१ ऋणानुबंध जिस भी व्यक्ति से आपने पूर्व जन्म में कोई ऋण लिया हैं, और चुकाया नहीं हैं। वो इस जन्म में आपका पुत्र बनकर आएगा, और तब तक आपका धन बर्बाद करेगा,जब तक कि उसका ऋण चुकता नहीं हो जाता।२ शत्रु पुत्र पिछले जन्म में अगर किसी को दुखी किया हैं या किसी का बुरा किया हैं तो इस जन्म में शत्रु पुत्र बनकर वो जन्म लेगा और बदला लेगा।३ उदासीन पुत्र ऐसा पुत्र अपने माता पिता से लगाव नहीं रखते। उनके दुख सुख से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता। विवाह होते ही अपने माता पिता का त्याग कर देते हैं।४ सेवक पुत्र : यह पुत्र श्रेष्ठ होता हैं। पिछले जन्म में निःस्वार्थ भाव से किसी व्यक्ति या गौ सेवा करने पर , वह व्यक्ति इस जन्म में पुत्र रूप में जन्म लेकर आपकी भी सेवा करता हैं।
धन्यवाद अनुरोध के लिए। वनिता पंजाब ने बारह प्रकार के पुत्रों का वर्णन किया हैं।
चित्र गूगल से प्राप्त है।
औरस, क्षेत्रज, दत्तक, कृत्रिम्, गूढ़ोत्पन्न, अपविद्ध, कानीन, सहोढ, क्रीत, पौनर्भव, स्वयंदत्त और शौद्घ ।
और शास्त्र में चार प्रकार के पुत्रों का वर्णन मिलता हैं। ऋणानुबंध पुत्र, शत्रु पुत्र, उदासीन पुत्र और सेवक पुत्र।
सर्वप्रथम मनु द्वारा बताए १२ प्रकार के पुत्रों का वर्णन:
प्रथम औरस पुत्र - विवाह के उपरांत पति पत्नी द्वारा जिस पुत्ररूपी संतान की उत्पत्ति होती हैं। उसे औरस पुत्र कहते हैं। औरस पुत्र ही मुख्य पुत्र होता हैं।
दूसरा क्षेत्रज पुत्र - किसी कारणवश पति की मृत्यु, पागल हो जाने या अन्य कारणो से स्त्री के अन्य किसी भद्र पुरुष के नियोग से उत्पन संतान को क्षेत्रज पुत्र कहते हैं।
तीसरा दत्तक पुत्र - किसी दूसरे के पुत्र को अगर गोद लिया जाय तो दत्तक पुत्र कहलाता हैं।
चौथे कृत्रिम पुत्र - अच्छे गुणों से युक्त बालक को कोई पुत्र का स्थान दे, तो कृत्रिम पुत्र कहते हैं।
पांचवा गूढ़ोत्पन्न पुत्र - घर के किसी सदस्य से उत्पन्न पुत्र जिसकी सटीक जानकारी न हो कि किसका पुत्र हैं। ऐसे पुत्र को मनु ने गूढ़ोत्पन्न पुत्र कहा हैं।
छठा अपविद्ध पुत्र - किसी कारणवश माता पिता ने पुत्र का त्याग कर दिया हो। और किसी अन्य द्वारा पुत्र अपना लिया जाए तो अपनाने वाले के लिए ऐसा पुत्र अपविद्ध कहलाता हैं।
संतवा कानीन पुत्र - कुंवारी कन्या से उत्पन्न पुत्र कानीन पुत्र कहलाता हैं।
आठवां सहोढ पुत्र - गर्भवती स्त्री से विवाह करने पर, उस संतान की उत्पत्ति पर पति का वो सहोढ पुत्र कहलाएगा।
नौवां क्रीत पुत्र - खरीदा गया या उचित मूल्य माता पिता को देकर लिया गया पुत्र क्रीत पुत्र कहलाता हैं।
दसवीं पौनर्भव पुत्र - विधवा विवाह या तलाक शुदा स्त्री से उत्पन्न पुत्र को पौनर्भव पुत्र कहते हैं।
ग्यारहवीं स्वयंदत्त पुत्र - जो माता पिता का त्याग कर स्वयं को किसी का पुत्र बन जाए तो स्वयंदत्त पुत्र होगा।
बारहवां शौद्घ पुत्र - शुद्र स्त्री और ब्राम्हण से उत्पन्न पुत्र शौद्ध पुत्र होगा।
इसके अलावा शास्त्रों में 4 तरह के पुत्र बताए गए हैं- ऋणानुबंध पुत्र, शत्रु पुत्र, उदासीन पुत्र और सेवक पुत्र।
१ ऋणानुबंध जिस भी व्यक्ति से आपने पूर्व जन्म में कोई ऋण लिया हैं, और चुकाया नहीं हैं। वो इस जन्म में आपका पुत्र बनकर आएगा, और तब तक आपका धन बर्बाद करेगा,जब तक कि उसका ऋण चुकता नहीं हो जाता।
२ शत्रु पुत्र पिछले जन्म में अगर किसी को दुखी किया हैं या किसी का बुरा किया हैं तो इस जन्म में शत्रु पुत्र बनकर वो जन्म लेगा और बदला लेगा।
३ उदासीन पुत्र ऐसा पुत्र अपने माता पिता से लगाव नहीं रखते। उनके दुख सुख से उन्हें कोई वास्ता नहीं होता। विवाह होते ही अपने माता पिता का त्याग कर देते हैं।
४ सेवक पुत्र : यह पुत्र श्रेष्ठ होता हैं। पिछले जन्म में निःस्वार्थ भाव से किसी व्यक्ति या गौ सेवा करने पर , वह व्यक्ति इस जन्म में पुत्र रूप में जन्म लेकर आपकी भी सेवा करता हैं।
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