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श्रीराधाजी किनकी अवतार हैं?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबसबसे पहले जवाब दिया गया: राधा जी किसकी अवतार थीं?प्रश्नकर्ता जी, “त्वन्मुखे घृतशर्करा:” (आपके मुख मे घी-शक्कर)धन्यवाद उत्तम प्रश्न अनुरोध हेतु।“परमानन्दकन्द लीलापुरूषोत्तम श्रीकृष्ण ने एक बार देखा कि श्रीवृषभानुनन्दिनी श्रीराधिकारानी के हाथ मे एक ताज़ी चोट है , पूछने लगे- “यह चोट कब लगी?” कैसे लगी? कहॉं लगी?श्रीराधा ने हँसकर कहा:-“यह तो महीनों से है!”श्रीकृष्ण ने कहा :-“ यह तो ताज़ी है?”श्रीराधा ने कहा:- “इस पर आने वाली पपड़ी निकाल देती हुँ , इस प्रकार इसे ताज़ी रखती हुँ ।”श्रीकृष्ण ने कहा:- क्यों?श्रीराधा ने कहा:- “यह घाव बड़ा सुखद है, यह तुम्हारे नख लगने से हुआ है,तुम्हारा स्मरण दिलाया करता है ,इसलिये मै कभी इसे सुखने नही देती !”“ प्रियतम का दिया दु:ख भी सुखदायक होता है,इसीलिये कोई कष्ट,अभाव,चिन्तित नही करती, क्योंकि वह उसे प्रियतम का दिया दिखता है।”“एक बार श्यामसुन्दर, श्रीराधा के साथ बैठे थे, और वंशी बजा रहे थे , उनके मन मे इच्छा हुई कि प्रिया जी का वंशी वादन सुनना चाहिये ,पर यह बात कहें कैसे? एक उपाय सोच लिया , जान-बूझकर एक तान बजाने मे भूल कर दी , प्रियाजी से नही रहा गया,और उन्होंने उन्हें स्वयं बजाकर बतला दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण को अपने संगीत से अधिक आनन्द श्रीराधिकारानी के संगीत मे आता है।”“एक बार गोलोक में बडे़- बडे़ देवता , श्रीकृष्ण का दर्शन करने आये।श्रीकृष्ण सो रहे थे , और उनके रोम रोम से “राधा-राधा” निकल रहा था,श्रीराधा ने यह देखा तो सोचा- इतना अपार प्रेम है इनका मुझसे!वे “कृष्ण -कृष्ण” कहती हुई प्रेमावेश मे मूर्छित हो गयीं। श्रीकृष्ण जागे , और उन्होंने देखा कि प्रियाजी के रोम -रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है तो उन्हें अङ्क मे ले लिया और “राधे -राधे” बोलते मूर्छित हो गये , प्रेम मे।यह क्रम देर तक चलता रहा, एक चैतन्य हो,और दूसरे का प्रेम देखे तो मूर्छित हो जाये, दूसरा चैतन्य हो तो उसकी भी वही दशा हो।जब बहुत देर हुई तो श्रीराधिकारानी की परमसखी ललिता जी निकुञ्ज मे आयी ,उन्होंने यह अवस्था देखी तो चकित रह गयीं -“अङ्कस्थितेऽपि दयिते किमपि प्रलापम्।”संयोग मे वियोग का यह अद्भुत संवेदन!तात्पर्य है कि जिसे प्रेम प्राप्त होता है , उसे एकाङ्गी, अथवा वियोगात्मक-संयोगात्मक प्रेम नही मिलता। प्रेम का सामरस्य, सामञ्जस्य,ऐकरस्य, प्रेमी-प्रियतम दोनो के एक हुये बिना नही होता।ये प्रश्न क्या पूछा है ,ये उत्तर क्या लिख रहा है यही सोच रहे होंगें आप !अरे भई ! श्रीराधा जी से संबंधित प्रश्न हो और मै उनके प्रियतम और उनके प्रेम का कुछ भी वर्णन ना करूँ ? चलिये अब-मूल प्रश्न :- श्रीराधा जी किनकी अवतार है?पहले ये जान लेते है श्रीकृष्ण कौन है?कृष्ण:-“कृष्” भूवाचक है, भू माने सत्ता है, सत्ता माने भाव है , भाव माने स्थायी भाव है। और वह सत्ता महासत्तारूप है, जिसके बिना सब असत् है, उसी स्वप्रकाश सत् से सबकी सत्ता है, वही “कृष्ण “है। इसमें “ ण” कारनिर्वृति या आनन्द का द्योतक है वही श्री राधा है“आराधनं राधा” आराधना ही राधा है, श्री शब्द परमतत्त्व श्रीकृष्ण हेतु है।अवतार:-अव+तृ+ घञ्= अवतार।अवतार का अर्थ अवरोह अथवा उदय है।दार्शनिक धरातल पर निर्गुण का सगुण होना ,निराकार का साकार होना,अप्रमेय का प्रमाणगोचर होना, इन्द्रियातीत का इन्द्रियगोचर होना, “अवतार” है।उदाहरणार्थ:- जय -विजय द्वारा सनकादि ऋषियों को जानबूझकर क्रोधित कर उनसे शाप लेना।भगवान के संकल्प मात्र से अधर्मियों का नाश हो जाता है , फिर भगवान अवतार क्यों लेते है?ऐसे दुष्कृती ,जिन्होंने भगवान् के लिये ही दुष्कृत किया जानबूझकर ,ऐसे कौन? जय-विजय!उनके लिये तो अवतार की ही आवश्यकता थी।जय-विजय ,भगवान के भक्त थे, उन्होंने ताड़ लिया कि “भगवान के मन मे युद्ध चिकीर्षा (युद्ध करने की इच्छा ) है! परन्तु इनसे लडे़गा कौन ?यह माया तो उनकी ऑंखों के सामने ठहरती ही नही ,विलज्जित होकर, दूर से ही भाग जाती है, फिर भी अज्ञजन उस माया से ही विमोहित होकर ,“यह मै हुँ , यह मेरा है!” इस प्रकार अनर्गल प्रलाप करते रहते है!)माया तो प्रभु के सामने खड़ी होने मे शर्माती है , वो इनसे लडे़गी कैसे?और जितने भी दैत्य -दानव है वे तो इसी माया के बच्चे है , जब माया ही इनके सामने नही खड़ी हो सकती तो माया के बच्चे क्या लड़ेंगे ?प्रभु की युद्ध चिकीर्षा हमारे बिना और कौन पूरा कर सकता है?लेकिन ये तो हमारे नाथ- स्वामी है!इनके साथ कैसे युद्ध करेंगें?असुर बनकर ही युद्ध कर सकेंगें।सनकादि योगीश्वर दर्शन करने जा रहे थे, उन्होंने रोक दिया ,कहा:- बाबाजी खड़े रहिये (बाबाजी कहने का कारण :- इनकी उम्र बहुत अधिक है ,दिखते बस बालस्वरूप है)बाबाजी ने डाँटते हुये कहा:- भगवान् विष्णु सर्वान्तरआत्मा है, उनका दर्शन नही करने देता। हमें जाने से रोकता है, उन्हें छिपाता है।जाओ असुर हो जाओ।इस प्रकार जय-विजय ने “आ-बैल मुझे मार”की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुये जानबूझकर शाप ले लिया , क्योंकि बाबाजी को रोकने का पाप, भगवान की युद्ध चिकीर्षाको पूर्ण करने की भावना से ही किया था।इस प्रकार स्वयं सुकृती होते हुये भी , भगवान के लीला-परिकर होते हुये भी केवल भगवान की लीला को साङ्गोपाङ्ग बनाने के लिये दुष्कृत करते है,उन दुष्कृतों के उद्धार के लिये भगवान का अवतार होता है।१.साधु परित्राण २. धर्मसंस्थापन ३. और दुष्कृतियों का विनाश ।यह तीनों कार्य भगवान अवतार लेकर करते है।और जब भी भगवान विष्णु(नारायण) अवतार लेते है, तो उनके सङ्ग उनकी नारायणी (लक्ष्मीजी) भी अवतार लेती है।तो अंतत:प्रश्नकर्ता जी आपका उत्तर यह रहा।“श्रीराधाजी ,भगवन् नारायण की नारायणी- श्रीलक्ष्मीजी का अवतार है।”एक उत्तर पर इनबॉक्स मे एक महिला ने (बहिन/दीदी इसलिये नही कहा क्योंकि मैंने महिला को दीदी,बहिन कहना त्याग दिया है, क्योंकि यदि कहो तो समय आने पर भाई होने का दायित्व निभाना पड़ेगा जो मै नही कर सकता , + उनके मन मे आपके चरित्र की छवि क्या है? वो आपको किस सम्बन्ध की दृष्टि से देखती है ये तो नारायण जाने)साथ ही आप यह भी नही जान सकते कि वो अकाउण्ट कोई वास्तविक महिला उपयोग कर रही है? या कोई पुरूष?हॉं तो उन्होने पूछा था कि प्रेम और काम मे क्या अन्तर है? उसका उत्तर यहॉं बता रहा हुंप्रेम और काम सदैव निकट निकट रहते है, इनकी पहचान करना संसारी व्यक्ति के लिये बहुत कठिन है,एक परमविद्वान कहते थे कि “प्रेम और काम मे बाल बराबर अन्तर है!”प्रेम का मार्ग है :- प्रियतम को सुख पहुँचाना औरकाम का मार्ग है:- स्वयं सुख का उपभोग करना।क्रिया दोनो मे एक समान ही होती है। इतनी सार बात है यही समझ लीजिये।और हॉं एक प्रश्न और पूछा था कि सौपाधिक प्रेम क्या है?“कामवासना की पूर्ति तक ही रहने वाले प्रेम को सौपाधिक प्रेम कहते है।”उन महिला से अनुरोध है कृपया मुझे इनबॉक्स न करे। मुझे ऑउट ऑफ़ द बॉक्स ही रहने दे।धन्यवाद , अन्त तक समय देकर पढ़ने हेतु ।😊🙏🏻प्रणाम

प्रश्नकर्ता जी, “त्वन्मुखे घृतशर्करा:” (आपके मुख मे घी-शक्कर)

धन्यवाद उत्तम प्रश्न अनुरोध हेतु।

“परमानन्दकन्द लीलापुरूषोत्तम श्रीकृष्ण ने एक बार देखा कि श्रीवृषभानुनन्दिनी श्रीराधिकारानी के हाथ मे एक ताज़ी चोट है , पूछने लगे- “यह चोट कब लगी?” कैसे लगी? कहॉं लगी?

श्रीराधा ने हँसकर कहा:-“यह तो महीनों से है!”

श्रीकृष्ण ने कहा :-“ यह तो ताज़ी है?”

श्रीराधा ने कहा:- “इस पर आने वाली पपड़ी निकाल देती हुँ , इस प्रकार इसे ताज़ी रखती हुँ ।”

श्रीकृष्ण ने कहा:- क्यों?

श्रीराधा ने कहा:- “यह घाव बड़ा सुखद है, यह तुम्हारे नख लगने से हुआ है,तुम्हारा स्मरण दिलाया करता है ,इसलिये मै कभी इसे सुखने नही देती !”

“ प्रियतम का दिया दु:ख भी सुखदायक होता है,इसीलिये कोई कष्ट,अभाव,चिन्तित नही करती, क्योंकि वह उसे प्रियतम का दिया दिखता है।”

“एक बार श्यामसुन्दर, श्रीराधा के साथ बैठे थे, और वंशी बजा रहे थे , उनके मन मे इच्छा हुई कि प्रिया जी का वंशी वादन सुनना चाहिये ,पर यह बात कहें कैसे? एक उपाय सोच लिया , जान-बूझकर एक तान बजाने मे भूल कर दी , प्रियाजी से नही रहा गया,और उन्होंने उन्हें स्वयं बजाकर बतला दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण को अपने संगीत से अधिक आनन्द श्रीराधिकारानी के संगीत मे आता है।”

“एक बार गोलोक में बडे़- बडे़ देवता , श्रीकृष्ण का दर्शन करने आये।

श्रीकृष्ण सो रहे थे , और उनके रोम रोम से “राधा-राधा” निकल रहा था,

श्रीराधा ने यह देखा तो सोचा- इतना अपार प्रेम है इनका मुझसे!

वे “कृष्ण -कृष्ण” कहती हुई प्रेमावेश मे मूर्छित हो गयीं। श्रीकृष्ण जागे , और उन्होंने देखा कि प्रियाजी के रोम -रोम से कृष्ण नाम निकल रहा है तो उन्हें अङ्क मे ले लिया और “राधे -राधे” बोलते मूर्छित हो गये , प्रेम मे।

यह क्रम देर तक चलता रहा, एक चैतन्य हो,और दूसरे का प्रेम देखे तो मूर्छित हो जाये, दूसरा चैतन्य हो तो उसकी भी वही दशा हो।

जब बहुत देर हुई तो श्रीराधिकारानी की परमसखी ललिता जी निकुञ्ज मे आयी ,उन्होंने यह अवस्था देखी तो चकित रह गयीं -

“अङ्कस्थितेऽपि दयिते किमपि प्रलापम्।”

संयोग मे वियोग का यह अद्भुत संवेदन!

तात्पर्य है कि जिसे प्रेम प्राप्त होता है , उसे एकाङ्गी, अथवा वियोगात्मक-संयोगात्मक प्रेम नही मिलता। प्रेम का सामरस्य, सामञ्जस्य,ऐकरस्य, प्रेमी-प्रियतम दोनो के एक हुये बिना नही होता।

ये प्रश्न क्या पूछा है ,ये उत्तर क्या लिख रहा है यही सोच रहे होंगें आप !

अरे भई ! श्रीराधा जी से संबंधित प्रश्न हो और मै उनके प्रियतम और उनके प्रेम का कुछ भी वर्णन ना करूँ ? चलिये अब-

मूल प्रश्न :- श्रीराधा जी किनकी अवतार है?

पहले ये जान लेते है श्रीकृष्ण कौन है?

कृष्ण:-

“कृष्” भूवाचक है, भू माने सत्ता है, सत्ता माने भाव है , भाव माने स्थायी भाव है। और वह सत्ता महासत्तारूप है, जिसके बिना सब असत् है, उसी स्वप्रकाश सत् से सबकी सत्ता है, वही “कृष्ण “है। इसमें “ ण” कार

निर्वृति या आनन्द का द्योतक है वही श्री राधा है

“आराधनं राधा” आराधना ही राधा है, श्री शब्द परमतत्त्व श्रीकृष्ण हेतु है।

अवतार:-

अव+तृ+ घञ्= अवतार।

अवतार का अर्थ अवरोह अथवा उदय है।

दार्शनिक धरातल पर निर्गुण का सगुण होना ,निराकार का साकार होना,

अप्रमेय का प्रमाणगोचर होना, इन्द्रियातीत का इन्द्रियगोचर होना, “अवतार” है।

उदाहरणार्थ:- जय -विजय द्वारा सनकादि ऋषियों को जानबूझकर क्रोधित कर उनसे शाप लेना।

भगवान के संकल्प मात्र से अधर्मियों का नाश हो जाता है , फिर भगवान अवतार क्यों लेते है?

ऐसे दुष्कृती ,जिन्होंने भगवान् के लिये ही दुष्कृत किया जानबूझकर ,

ऐसे कौन? जय-विजय!

उनके लिये तो अवतार की ही आवश्यकता थी।

जय-विजय ,भगवान के भक्त थे, उन्होंने ताड़ लिया कि “भगवान के मन मे युद्ध चिकीर्षा (युद्ध करने की इच्छा ) है! परन्तु इनसे लडे़गा कौन ?

यह माया तो उनकी ऑंखों के सामने ठहरती ही नही ,विलज्जित होकर, दूर से ही भाग जाती है, फिर भी अज्ञजन उस माया से ही विमोहित होकर ,

“यह मै हुँ , यह मेरा है!” इस प्रकार अनर्गल प्रलाप करते रहते है!)

माया तो प्रभु के सामने खड़ी होने मे शर्माती है , वो इनसे लडे़गी कैसे?

और जितने भी दैत्य -दानव है वे तो इसी माया के बच्चे है , जब माया ही इनके सामने नही खड़ी हो सकती तो माया के बच्चे क्या लड़ेंगे ?

प्रभु की युद्ध चिकीर्षा हमारे बिना और कौन पूरा कर सकता है?

लेकिन ये तो हमारे नाथ- स्वामी है!इनके साथ कैसे युद्ध करेंगें?

असुर बनकर ही युद्ध कर सकेंगें।

सनकादि योगीश्वर दर्शन करने जा रहे थे, उन्होंने रोक दिया ,

कहा:- बाबाजी खड़े रहिये (बाबाजी कहने का कारण :- इनकी उम्र बहुत अधिक है ,दिखते बस बालस्वरूप है)

बाबाजी ने डाँटते हुये कहा:- भगवान् विष्णु सर्वान्तरआत्मा है, उनका दर्शन नही करने देता। हमें जाने से रोकता है, उन्हें छिपाता है।

जाओ असुर हो जाओ।

इस प्रकार जय-विजय ने “आ-बैल मुझे मार”की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुये जानबूझकर शाप ले लिया , क्योंकि बाबाजी को रोकने का पाप, भगवान की युद्ध चिकीर्षाको पूर्ण करने की भावना से ही किया था।

इस प्रकार स्वयं सुकृती होते हुये भी , भगवान के लीला-परिकर होते हुये भी केवल भगवान की लीला को साङ्गोपाङ्ग बनाने के लिये दुष्कृत करते है,

उन दुष्कृतों के उद्धार के लिये भगवान का अवतार होता है।

१.साधु परित्राण २. धर्मसंस्थापन ३. और दुष्कृतियों का विनाश ।

यह तीनों कार्य भगवान अवतार लेकर करते है।

और जब भी भगवान विष्णु(नारायण) अवतार लेते है, तो उनके सङ्ग उनकी नारायणी (लक्ष्मीजी) भी अवतार लेती है।

तो अंतत:

प्रश्नकर्ता जी आपका उत्तर यह रहा।

“श्रीराधाजी ,भगवन् नारायण की नारायणी- श्रीलक्ष्मीजी का अवतार है।”

एक उत्तर पर इनबॉक्स मे एक महिला ने (बहिन/दीदी इसलिये नही कहा क्योंकि मैंने महिला को दीदी,बहिन कहना त्याग दिया है, क्योंकि यदि कहो तो समय आने पर भाई होने का दायित्व निभाना पड़ेगा जो मै नही कर सकता , + उनके मन मे आपके चरित्र की छवि क्या है? वो आपको किस सम्बन्ध की दृष्टि से देखती है ये तो नारायण जाने)साथ ही आप यह भी नही जान सकते कि वो अकाउण्ट कोई वास्तविक महिला उपयोग कर रही है? या कोई पुरूष?

हॉं तो उन्होने पूछा था कि प्रेम और काम मे क्या अन्तर है? उसका उत्तर यहॉं बता रहा हुं

प्रेम और काम सदैव निकट निकट रहते है, इनकी पहचान करना संसारी व्यक्ति के लिये बहुत कठिन है,एक परमविद्वान कहते थे कि “प्रेम और काम मे बाल बराबर अन्तर है!”

प्रेम का मार्ग है :- प्रियतम को सुख पहुँचाना और

काम का मार्ग है:- स्वयं सुख का उपभोग करना।

क्रिया दोनो मे एक समान ही होती है। इतनी सार बात है यही समझ लीजिये।

और हॉं एक प्रश्न और पूछा था कि सौपाधिक प्रेम क्या है?

“कामवासना की पूर्ति तक ही रहने वाले प्रेम को सौपाधिक प्रेम कहते है।”

उन महिला से अनुरोध है कृपया मुझे इनबॉक्स न करे। मुझे ऑउट ऑफ़ द बॉक्स ही रहने दे।

धन्यवाद , अन्त तक समय देकर पढ़ने हेतु ।

😊🙏🏻प्रणाम

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🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

*कालिदास बोले 😗 माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.*स्त्री बोली 😗 बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।*कालीदास ने कहा 😗 मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।*कालिदास ने कहा 😗 मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?.(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)*कालिदास बोले 😗 मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।*स्त्री ने कहा 😗 नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)*कालिदास बोले 😗 मैं हठी हूँ ।.*स्त्री बोली 😗 फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)*कालिदास ने कहा 😗 फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।.*स्त्री ने कहा 😗 नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)*वृद्धा ने कहा 😗 उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)*माता ने कहा 😗 शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।.कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।शिक्षा :-विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *अन्न के कण को* "और"*आनंद के क्षण को* 🙏Jai Mata Di🙏

जन्माष्टमी श्री कृष्ण जी मुख्य मेनू जन्माष्टमी By वनिता कासनियां पंजाबवार्षिक हिंदू त्योहार जो भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाता है भाषा PDF डाउनलोड करेंध्यान रखेंसंपादित करेंकृष्ण जन्माष्टमी, जिसे जन्माष्टमी वा गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है।[1] यह हिंदू चंद्रमण वर्षपद के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को भाद्रपद में मनाया जाता है । [2] जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त व सितंबर के साथ अधिव्यापित होता है।[3]जन्माष्टमीभगवान कृष्णआधिकारिक नामश्रीकृष्ण जन्माष्टमीअनुयायीहिन्दू,नेपाली, भारतीय, नेपाली और भारतीय प्रवासीप्रकारहिन्दू धार्मिकउद्देश्यभगवान कृष्ण के आदर्शों को स्मरण करना और ध्यान में लानाउत्सवप्रसाद बाँटना, भजन गाना इत्यादिअनुष्ठानश्रीकृष्ण की झाँकी सजाना व्रत व पूजनआरम्भअति प्राचीनतिथिश्रावण, Krishna, अष्टमीविशेषतासंपादित करेंयह एक महत्वपूर्ण त्योहार है, विशेषकर हिन्दू धर्म की वैष्णव परम्परा में। भागवत पुराण (जैसे रास लीला वा कृष्ण लीला) के अनुसार कृष्ण के जीवन के नृत्य-नाटक की परम्परा, कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि में भक्ति गायन, उपवास (व्रत), रात्रि जागरण (रात्रि जागरण), और एक त्योहार (महोत्सव) अगले दिन जन्माष्टमी समारोह का एक भाग हैं। [4]यह मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य सभी राज्यों में पाए जाने वाले प्रमुख वैष्णव और निर्सांप्रदायिक समुदायों के साथ विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में मनाया जाता है[4]। कृष्ण जन्माष्टमी के उपरान्त त्योहार नंदोत्सव होता है, जो उस अवसर को मनाता है जब नंद बाबा ने जन्म के सम्मान में समुदाय को उपहार वितरित किए।कृष्ण देवकी और वासुदेव आनकदुंदुभी के पुत्र हैं और उनके जन्मदिन को हिंदुओं द्वारा जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, विशेष रूप से गौड़ीय वैष्णववाद परम्परा के रूप में उन्हें भगवान का सर्वोच्च व्यक्तित्व माना जाता है। जन्माष्टमी हिंदू परंपरा के अनुसार तब मनाई जाती है जब माना जाता है कि कृष्ण का जन्म मथुरा में भाद्रपद महीने के आठवें दिन (ग्रेगोरियन कैलेंडर में अगस्त और सितंबर के साथ अधिव्यपित) की आधी रात को हुआ था।[5]कृष्ण का जन्म अराजकता के क्षेत्र में हुआ था। यह एक ऐसा समय था जब उत्पीड़न बड़े पैमाने पर था, स्वतंत्रता से वंचित किया गया था, बुराई सब ओर थी, और जब उनके मामा राजा कंस द्वारा उनके जीवन के लिए संकट था।भगवान कृष्ण की महानतासंपादित करेंकृष्ण जी भगवान विष्णु जी के अवतार हैं, जो तीन लोक के तीन गुणों सतगुण, रजगुण तथा तमोगुण में से सतगुण विभाग के प्रभारी हैं।[6] भगवान का अवतार होने की वजह से कृष्ण जी में जन्म से ही सिद्धियां मौजूद थीं। उनके माता पिता वसुदेव और देवकी जी के विवाह के समय मामा कंस जब अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुँचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई थी जिसमें बताया गया था कि देवकी का आठवां पुत्र कंस को मारेगा। अर्थात् यह होना पहले से ही निश्चित था अतः वसुदेव और देवकी को जेल में रखने के बावजूद कंस कृष्ण जी को नहीं मार पाया।[6]मथुरा की जेल में जन्म के तुरंत बाद, उनके पिता वसुदेव अानकदुन्दुबी कृष्ण को यमुना पार ले जाते हैं, ताकि माता-पिता का गोकुल में नंद और यशोदा नाम दिया जा सके। जन्माष्टमी पर्व लोगों द्वारा उपवास रखकर, कृष्ण प्रेम के भक्ति गीत गाकर और रात में जागरण करके मनाई जाती है। हालांकि श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार व्रत-उपवास तथा जागरण को शास्त्र विरुद्ध साधना कहा है ।अध्याय 6 का श्लोक 16(भगवान उवाच )न, अति, अश्नतः, तु, योगः, अस्ति, न, च, एकान्तम्, अनश्नतःन, च, अति, स्वप्नशीलस्य, जाग्रतः, न, एव, च, अर्जुन।हे अर्जुन! यह योग न तो बहुत खाने वाले का, न बिलकुल न खाने वाले का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है || 16 ||[6]मध्यरात्रि के जन्म के बाद, शिशु कृष्ण की मूर्तियों को धोया और पहनाया जाता है, फिर एक पालने में रखा जाता है। इसके बाद भक्त भोजन और मिठाई बांटकर अपना उपवास तोड़ते हैं। महिलाएं अपने घर के दरवाजे और रसोई के बाहर छोटे-छोटे पैरों के निशान बनाती हैं जो अपने घर की ओर चलते हुए, अपने घरों में कृष्ण के आने का प्रतीक माना जाता है।समारोहसंपादित करेंजन्माष्टमी उत्सवकुछ समुदाय कृष्ण की किंवदंतियों को मक्कन चोर (मक्खन चोर) के रूप में मनाते हैं।हिंदू जन्माष्टमी को उपवास, गायन, एक साथ प्रार्थना करने, विशेष भोजन तैयार करने और साझा करने, रात्रि जागरण और कृष्ण या विष्णु मंदिरों में जाकर मनाते हैं। प्रमुख कृष्ण मंदिर 'भागवत पुराण' और 'भगवद गीता' के पाठ का आयोजन करते हैं। कई समुदाय नृत्य-नाटक कार्यक्रम आयोजित करते हैं जिन्हें रास लीला या कृष्ण लीला कहा जाता है। रास लीला की परंपरा विशेष रूप से मथुरा क्षेत्र में, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे मणिपुर और असम में और राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय है। यह शौकिया कलाकारों की कई टीमों द्वारा अभिनय किया जाता है, उनके स्थानीय समुदायों द्वारा उत्साहित किया जाता है, और ये नाटक-नृत्य नाटक प्रत्येक जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले शुरू होते हैं।[7]महाराष्ट्रसंपादित करेंदही हंडीजन्माष्टमी (महाराष्ट्र में "गोकुलाष्टमी" के रूप में लोकप्रिय) मुंबई, लातूर, नागपुर और पुणे जैसे शहरों में मनाई जाती है। दही हांडी कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन हर अगस्त/सितंबर में मनाई जाती है। यहां लोग दही हांडी को तोड़ते हैं जो इस त्योहार का एक हिस्सा है। दही हांडी शब्द का शाब्दिक अर्थ है "दही का मिट्टी का बर्तन"। त्योहार को यह लोकप्रिय क्षेत्रीय नाम शिशु कृष्ण की कथा से मिलता है। इसके अनुसार, वह दही और मक्खन जैसे दुग्ध उत्पादों की तलाश और चोरी करते थे और लोग अपनी आपूर्ति को बच्चे की पहुंच से बाहर छिपा देते थे। कृष्ण अपनी खोज में हर तरह के रचनात्मक विचारों को आजमाते थे, जैसे कि अपने दोस्तों के साथ इन ऊँचे लटकते बर्तनों को तोड़ने के लिए मानव पिरामिड बनाना। यह कहानी भारत भर में हिंदू मंदिरों के साथ-साथ साहित्य और नृत्य-नाटक प्रदर्शनों की कई राहतों का विषय है, जो बच्चों की आनंदमय मासूमियत का प्रतीक है, कि प्रेम और जीवन का खेल ईश्वर की अभिव्यक्ति है।[8]महाराष्ट्र और भारत के अन्य पश्चिमी राज्यों में, इस कृष्ण कथा को जन्माष्टमी पर एक सामुदायिक परंपरा के रूप में निभाया जाता है, जहां दही के बर्तनों को ऊंचे डंडे से या किसी इमारत के दूसरे या तीसरे स्तर से लटकी हुई रस्सियों से ऊपर लटका दिया जाता है। वार्षिक परंपरा के अनुसार, "गोविंदा" कहे जाने वाले युवाओं और लड़कों की टीमें इन लटकते हुए बर्तनों के चारों ओर नृत्य और गायन करते हुए जाती हैं, एक दूसरे के ऊपर चढ़ती हैं और एक मानव पिरामिड बनाती हैं, फिर बर्तन को तोड़ती हैं। गिराई गई सामग्री को प्रसाद (उत्सव प्रसाद) के रूप में माना जाता है। यह एक सार्वजनिक तमाशा है, एक सामुदायिक कार्यक्रम के रूप में उत्साहित और स्वागत किया जाता है।समकालीन समय में, कई भारतीय शहर इस वार्षिक हिंदू अनुष्ठान को मनाते हैं। युवा समूह गोविंदा पाठक बनाते हैं, जो विशेष रूप से जन्माष्टमी पर पुरस्कार राशि के लिए एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। इन समूहों को मंडल या हांडी कहा जाता है और वे स्थानीय क्षेत्रों में घूमते हैं, हर अगस्त में अधिक से अधिक बर्तन तोड़ने का प्रयास करते हैं। सामाजिक हस्तियां और मीडिया उत्सव में भाग लेते हैं, जबकि निगम कार्यक्रम के कुछ हिस्सों को प्रायोजित करते हैं। गोविंदा टीमों के लिए नकद और उपहार की पेशकश की जाती है, और टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, 2014 में अकेले मुंबई में 4,000 से अधिक हांडी पुरस्कारों से लबरेज थे, और गोविंदा की कई टीमों ने भाग लिया था।[9]गुजरात और राजस्थानसंपादित करेंगुजरात के द्वारका में लोग - जहां माना जाता है कि कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था - दही हांडी के समान एक परंपरा के साथ त्योहार मनाते हैं, जिसे माखन हांडी (ताजा मथने वाले मक्खन के साथ बर्तन) कहा जाता है। अन्य लोग मंदिरों में लोक नृत्य करते हैं, भजन गाते हैं, कृष्ण मंदिरों जैसे द्वारकाधीश मंदिर या नाथद्वारा जाते हैं। कच्छ जिले के क्षेत्र में, किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाते हैं और सामूहिक गायन और नृत्य के साथ कृष्ण जुलूस निकालते हैं।वैष्णववाद के पुष्टिमार्ग के विद्वान दयाराम की कार्निवल-शैली और चंचल कविता और रचनाएँ, गुजरात और राजस्थान में जन्माष्टमी के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय हैं।[10]उत्तरी भारतसंपादित करेंजनमाष्टमी उत्सव के अवसर पर रूप धारण किया हुआ बालकजन्माष्टमी उत्तर भारत के ब्रज क्षेत्र में सबसे बड़ा त्योहार है, मथुरा जैसे शहरों में जहां हिंदू परंपरा कहती है कि कृष्ण का जन्म हुआ था, और वृंदावन में जहां वे बड़े हुए थे। उत्तर प्रदेश के इन शहरों में वैष्णव समुदाय, साथ ही अन्य राज्य राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमालयी उत्तर के स्थानों में जन्माष्टमी मनाते हैं। कृष्ण मंदिरों को सजाया जाता है और रोशनी की जाती है, वे दिन में कई आगंतुकों को आकर्षित करते हैं, जबकि कृष्ण भक्त भक्ति कार्यक्रम आयोजित करते हैं और रात्रि जागरण करते हैं।[11]भक्तजन मिठाई बांटते हैं।[12]त्योहार आम तौर पर वर्षा ऋतु में पड़ता है। फसलों से लदे खेतों और ग्रामीण समुदायों के पास खेलने का समय है। उत्तरी राज्यों में, जन्माष्टमी को रासलीला परंपरा के साथ मनाया जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "खुशी का खेल (लीला), सार (रस)"। इसे जन्माष्टमी पर एकल या समूह नृत्य और नाटक कार्यक्रमों के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिसमें कृष्ण से संबंधित रचनाएं गाई जाती हैं। कृष्ण के बचपन की शरारतें और राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। क्रिश्चियन रॉय और अन्य विद्वानों के अनुसार, ये राधा-कृष्ण प्रेम कहानियां दैवीय सिद्धांत और वास्तविकता के लिए मानव आत्मा की लालसा और प्रेम के लिए हिंदू प्रतीक हैं।[11]जम्मू में, छतों से पतंग उड़ाना कृष्ण जन्माष्टमी पर उत्सव का एक हिस्सा है।पूर्वी और पूर्वोत्तर भारतसंपादित करेंजन्माष्टमी व्यापक रूप से पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के हिंदू वैष्णव समुदायों द्वारा मनाई जाती है। इन क्षेत्रों में कृष्ण जन्माष्टमी को मनाने की व्यापक परंपरा का श्रेय १५वीं और १६वीं शताब्दी के शंकरदेव और चैतन्य महाप्रभु के प्रयासों और शिक्षाओं को जाता है। उन्होंने दार्शनिक विचारों के साथ-साथ हिंदू भगवान कृष्ण को मनाने के लिए प्रदर्शन कला के नए रूप विकसित किए जैसे कि बोर्गेट, अंकिया नाट, सत्त्रिया और भक्ति योग अब पश्चिम बंगाल और असम में लोकप्रिय हैं। आगे पूर्व में, मणिपुर के लोगों ने मणिपुरी नृत्य रूप विकसित किया, एक शास्त्रीय नृत्य रूप जो अपने हिंदू वैष्णववाद विषयों के लिए जाना जाता है, और जिसमें सत्त्रिया की तरह रासलीला नामक राधा-कृष्ण की प्रेम-प्रेरित नृत्य नाटक कला शामिल है। ये नृत्य नाट्य कलाएं इन क्षेत्रों में जन्माष्टमी परंपरा का एक हिस्सा हैं, और सभी शास्त्रीय भारतीय नृत्यों के साथ, प्राचीन हिंदू संस्कृत पाठ नाट्य शास्त्र में प्रासंगिक जड़ें हैं, लेकिन भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच संस्कृति संलयन से प्रभावित हैं।[13]जन्माष्टमी पर, माता-पिता अपने बच्चों को कृष्ण की किंवदंतियों, जैसे कि गोपियों और कृष्ण के पात्रों के रूप में तैयार करते हैं। मंदिरों और सामुदायिक केंद्रों को क्षेत्रीय फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है, जबकि समूह भागवत पुराण और भगवत गीता के दसवें अध्याय का पाठ करते या सुनते हैं।जन्माष्टमी मणिपुर में उपवास, सतर्कता, शास्त्रों के पाठ और कृष्ण प्रार्थना के साथ मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी के दौरान रासलीला करने वाले नर्तक एक उल्लेखनीय वार्षिक परंपरा है। मीतेई वैष्णव समुदाय में बच्चे लिकोल सन्नाबागेम खेलते हैं।[13]ओड़िशा और पश्चिम बंगालसंपादित करेंपूर्वी राज्य ओड़िशा में, विशेष रूप से पुरी के आसपास के क्षेत्र और पश्चिम बंगाल के नबद्वीप में, त्योहार को श्री कृष्ण जयंती या बस श्री जयंती के रूप में भी जाना जाता है। लोग आधी रात तक उपवास और पूजा कर जन्माष्टमी मनाते हैं। भागवत पुराण कृष्ण के जीवन को समर्पित एक खंड, १०वें अध्याय से पढ़ा जाता है। अगले दिन को "नंदा उत्सव" या कृष्ण के पालक माता-पिता नंदा और यशोदा का खुशी का उत्सव कहा जाता है। जन्माष्टमी के पूरे दिन भक्त उपवास रखते हैं। वे अपने अभिषेक समारोह के दौरान गंगा स्नान राधा माधव से पानी लाते हैं। आधी रात को छोटे राधा माधव देवताओं के लिए एक भव्य अभिषेक किया जाता है, जबकि 400 से अधिक वस्तुओं का भोजन (भोग) भक्ति के साथ उनके प्रभु को अर्पित किया जाता है।[14]दक्षिण भारतसंपादित करेंगोकुला अष्टमी (जन्माष्टमी या श्री कृष्ण जयंती) कृष्ण का जन्मदिन मनाती है। गोकुलाष्टमी दक्षिण भारत में बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है। [३९] केरल में, लोग मलयालम कैलेंडर के अनुसार सितंबर को मनाते हैं। तमिलनाडु में, लोग फर्श को कोलम (चावल के घोल से तैयार सजावटी पैटर्न) से सजाते हैं। गीता गोविंदम और ऐसे ही अन्य भक्ति गीत कृष्ण की स्तुति में गाए जाते हैं। फिर वे घर की दहलीज से पूजा कक्ष तक कृष्ण के पैरों के निशान खींचते हैं, जो घर में कृष्ण के आगमन को दर्शाता है। भगवद्गीता का पाठ भी एक लोकप्रिय प्रथा है। कृष्ण को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में फल, पान और मक्खन शामिल हैं। कृष्ण की पसंदीदा मानी जाने वाली सेवइयां बड़ी सावधानी से तैयार की जाती हैं। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण हैं सीदाई, मीठी सीदाई, वेरकादलाई उरुंडई। यह त्योहार शाम को मनाया जाता है क्योंकि कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। ज्यादातर लोग इस दिन सख्त उपवास रखते हैं और आधी रात की पूजा के बाद ही भोजन करते हैं।आंध्र प्रदेश में, श्लोकों और भक्ति गीतों का पाठ इस त्योहार की विशेषता है। इस त्यौहार की एक और अनूठी विशेषता यह है कि युवा लड़के कृष्ण के रूप में तैयार होते हैं और वे पड़ोसियों और दोस्तों से मिलते हैं। विभिन्न प्रकार के फल और मिठाइयाँ सबसे पहले कृष्ण को अर्पित की जाती हैं और पूजा के बाद इन मिठाइयों को आगंतुकों के बीच वितरित किया जाता है। आंध्र प्रदेश के लोग भी उपवास रखते हैं। इस दिन गोकुलनंदन चढ़ाने के लिए तरह-तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं। कृष्ण को प्रसाद बनाने के लिए दूध और दही के साथ खाने की चीजें तैयार की जाती हैं। राज्य के कुछ मंदिरों में कृष्ण के नाम का आनंदपूर्वक जप होता है। कृष्ण को समर्पित मंदिरों की संख्या कम है। इसका कारण यह है कि लोगों ने मूर्तियों के बजाय चित्रों के माध्यम से उनकी पूजा की जाती है।कृष्ण को समर्पित लोकप्रिय दक्षिण भारतीय मंदिर हैं, तिरुवरुर जिले के मन्नारगुडी में राजगोपालस्वामी मंदिर, कांचीपुरम में पांडवधूथर मंदिर, उडुपी में श्री कृष्ण मंदिर और गुरुवायुर में कृष्ण मंदिर विष्णु के कृष्ण अवतार की स्मृति को समर्पित हैं। किंवदंती कहती है कि गुरुवायुर में स्थापित श्री कृष्ण की मूर्ति द्वारका की है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह समुद्र में डूबी हुई थी।[14]भारत के बाहरसंपादित करेंनेपालसंपादित करेंनेपाल की लगभग अस्सी प्रतिशत आबादी खुद को हिंदू के रूप में पहचानती है और कृष्ण जन्माष्टमी मनाती है। वे आधी रात तक उपवास करके जन्माष्टमी मनाते हैं। भक्त भगवद गीता का पाठ करते हैं और भजन और कीर्तन करते हैं। कृष्ण के मंदिरों को सजाया जाता है। दुकानों, पोस्टरों और घरों में कृष्ण के रूपांकन हैं।[15]बांग्लादेशसंपादित करेंजन्माष्टमी बांग्लादेश में एक राष्ट्रीय अवकाश है। जन्माष्टमी पर, बांग्लादेश के राष्ट्रीय मंदिर, ढाकेश्वरी मंदिर ढाका से एक जुलूस शुरू होता है, और फिर पुराने ढाका की सड़कों से आगे बढ़ता है। जुलूस 1902 का है, लेकिन 1948 में रोक दिया गया था। जुलूस 1989 में फिर से शुरू किया गया था।[16]फ़िजीसंपादित करेंफिजी में कम से कम एक चौथाई आबादी हिंदू धर्म का पालन करती है, और यह अवकाश फिजी में तब से मनाया जाता है जब से पहले भारतीय गिरमिटिया मजदूर वहां पहुंचे थे। फिजी में जन्माष्टमी को "कृष्णा अष्टमी" के रूप में जाना जाता है। फ़िजी में अधिकांश हिंदुओं के पूर्वज उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु से उत्पन्न हुए हैं, जिससे यह उनके लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण त्योहार है। फिजी का जन्माष्टमी उत्सव इस मायने में अनोखा है कि वे आठ दिनों तक चलते हैं, जो आठवें दिन तक चलता है, जिस दिन कृष्ण का जन्म हुआ था। इन आठ दिनों के दौरान, हिंदू घरों और मंदिरों में अपनी 'मंडलियों' या भक्ति समूहों के साथ शाम और रात में इकट्ठा होते हैं, और भागवत पुराण का पाठ करते हैं, कृष्ण के लिए भक्ति गीत गाते हैं, और प्रसाद वितरित करते हैं।[17]रीयूनियनफ्रांसीसी द्वीप रीयूनियन के मालबारों में, कैथोलिक और हिंदू धर्म का एक समन्वय विकसित हो सकता है। जन्माष्टमी को ईसा मसीह की जन्म तिथि माना जाता है।[17]अन्यएरिज़ोना, संयुक्त राज्य अमेरिका में, गवर्नर जेनेट नेपोलिटानो इस्कॉन को स्वीकार करते हुए जन्माष्टमी पर संदेश देने वाले पहले अमेरिकी नेता थे। यह त्योहार कैरिबियन में गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका और पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश फिजी के साथ-साथ सूरीनाम के पूर्व डच उपनिवेश में हिंदुओं द्वारा व्यापक रूप से मनाया जाता है। इन देशों में बहुत से हिंदू तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं; तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और उड़ीसा के गिरमिटिया प्रवासियों

जन्माष्टमी जन्माष्टमी जय श्री कृष्ण जी jaमुख्य मेनू खोलें खोजें जन्माष्टमी By वनिता कासनियां पंजाब वार्षिक हिंदू त्योहार जो भगवान कृष्ण के जन्म का जश्न मनाता है भाषा PDF डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें कृष्ण जन्माष्टमी ,  जिसे  जन्माष्टमी  वा  गोकुलाष्टमी  के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो  विष्णुजी  के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है। [1]  यह हिंदू चंद्रमण वर्षपद के अनुसार, कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को  भाद्रपद  में मनाया जाता है ।  [2]  जो  ग्रेगोरियन कैलेंडर  के अगस्त व सितंबर के साथ अधिव्यापित होता है। [3] जन्माष्टमी भगवान कृष्ण आधिकारिक नाम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अनुयायी हिन्दू , नेपाली ,  भारतीय , नेपाली और भारतीय प्रवासी प्रकार हिन्दू धार्मिक उद्देश्य भगवान कृष्ण के आदर्शों को स्मरण करना और ध्यान में लाना उत्सव प्रसाद बाँटना, भजन गाना इत्यादि अनुष्ठान श्रीकृष्ण ...