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हिरण्यकशिपु के वंश में सुंद और उपसुन्द नाम के दो भयानक दैत्य हुए। दोनों भाई एक-दूसरे की परछाई की तरह थे। उन्होंने त्रिलोकों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से विंध्याचल पर्वत पर जाकर वर्षों ब्रह्मदेव की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अमर होने का वरदान माँगा। जब ब्रह्मदेव ने कहा की ऐसा वर देना सृष्टि के नियमों के विपरीत है तो उन्होंने वरदान माँगा की उनकी मृत्यु एक-दूसरे के हाथों ही हो। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबऐसा वरदान मिलने पर दोनों दैत्य और भी ज्यादा उत्पात करने लगे और तीनों लोकों के वासियों पर अत्याचार करने लगे। सभी देवगणों ने ब्रह्मदेव के पास जाकर उनसे मुक्ति का उपाय पूछा तो ब्रह्मदेव ने विश्वकर्मा को आदेश देकर एक अलौकिक सुंदरी बनाने को कहा। विश्वकर्मा जी ने सारे संसारों के सर्वश्रेष्ठ रत्नों से तिल-तिल जोड़कर एक सुन्दर अप्सरा का निर्माण किया और उसे तिलोत्तमा नाम दिया। ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा को आदेश दिया की वो सुंद और उपसुन्द में विवाद करा दे। तिलोत्तमा इस प्रकार आदेश पाकर जिस वन में सुंद और उपसुन्द विश्राम कर रहे थे वहाँ गयी। जैसे ही दोनों दैत्यों ने तिलोत्तमा को देखा वो उसे पाने के लिए आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे से इस प्रकार द्वंद्व करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। महाभारत में यह कथा देवर्षि नारद ने पांडवों को उनके द्रौपदी से विवाह के पश्चात् सुनाई थी जिससे उनमें कभी भी द्रौपदी को लेकर आपसी मतभेद न उत्पन्न हो।

हिरण्यकशिपु के वंश में सुंद और उपसुन्द नाम के दो भयानक दैत्य हुए। दोनों भाई एक-दूसरे की परछाई की तरह थे। उन्होंने त्रिलोकों पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से विंध्याचल पर्वत पर जाकर वर्षों ब्रह्मदेव की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्मदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अमर होने का वरदान माँगा। जब ब्रह्मदेव ने कहा की ऐसा वर देना सृष्टि के नियमों के विपरीत है तो उन्होंने वरदान माँगा की उनकी मृत्यु एक-दूसरे के हाथों ही हो। 
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

ऐसा वरदान मिलने पर दोनों दैत्य और भी ज्यादा उत्पात करने लगे और तीनों लोकों के वासियों पर अत्याचार करने लगे। सभी देवगणों ने ब्रह्मदेव के पास जाकर उनसे मुक्ति का उपाय पूछा तो ब्रह्मदेव ने विश्वकर्मा को आदेश देकर एक अलौकिक सुंदरी बनाने को कहा। विश्वकर्मा जी ने सारे संसारों के सर्वश्रेष्ठ रत्नों से तिल-तिल जोड़कर एक सुन्दर अप्सरा का निर्माण किया और उसे तिलोत्तमा नाम दिया। ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा को आदेश दिया की वो सुंद और उपसुन्द में विवाद करा दे। 

तिलोत्तमा इस प्रकार आदेश पाकर जिस वन में सुंद और उपसुन्द विश्राम कर रहे थे वहाँ गयी। जैसे ही दोनों दैत्यों ने तिलोत्तमा को देखा वो उसे पाने के लिए आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे से इस प्रकार द्वंद्व करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए। 

महाभारत में यह कथा देवर्षि नारद ने पांडवों को उनके द्रौपदी से विवाह के पश्चात् सुनाई थी जिससे उनमें कभी भी द्रौपदी को लेकर आपसी मतभेद न उत्पन्न हो।

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🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।#राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

*कालिदास बोले 😗 माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.*स्त्री बोली 😗 बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।*कालीदास ने कहा 😗 मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।*कालिदास ने कहा 😗 मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?.(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)*कालिदास बोले 😗 मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।*स्त्री ने कहा 😗 नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)*कालिदास बोले 😗 मैं हठी हूँ ।.*स्त्री बोली 😗 फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)*कालिदास ने कहा 😗 फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।.*स्त्री ने कहा 😗 नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)*वृद्धा ने कहा 😗 उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)*माता ने कहा 😗 शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।.कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।शिक्षा :-विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *अन्न के कण को* "और"*आनंद के क्षण को* 🙏Jai Mata Di🙏