ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब वनिता कासनियां पंजाब का कहना है कि सम्मानपूर्ण आजीविका और अभीष्ट स्थान पर निवास यह दोनों ही बातें मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है| फिर जिनका कार्यक्रम नौकरी हो उनके लिये तो इनका और भी अधिक महत्त्व है| मैं कुछ समय से गायत्री उपासना तथा मंत्र लेखन की साधना में संलग्न हूँ| यों मेरी साधना निष्काम रही है, पर देखता हूँ कि उसके सांसारिक परिणाम भी बहुत कल्याणकारी हो रहे हैं| दूसरे कई साथी अच्छी और स्थायी नौकरी पाने के लिए काफी दौड़ धूप करते रहते हैं| उन्होंने कृपापूर्वक मुझे भी कई बार प्रेरणा दी कि मैं भी अधिक प्रयत्न करूँ| यथासम्भव मैंने वह सब किया भी है, अपना प्रथम आधार गायत्री माता की शरणागति ही रही है| सच्चे मन से मैंने माता का आश्रय लिया है और माता की सच्ची कृपा का परिचय भी पाया है| जबकि अन्य उद्योगी साथी अपने लिये उपयुक्त स्थान न पा सके तब मैं नायब तहसीलदार की स्थायी जगह पर नियुक्त हूँ और स्थान भी मनवाँछित मिल गया था| अपनी इस नियुक्ति में मुझे माता की स्पष्ट कृपा परिलक्षित होती है| जैसे माता अपने बालक को गोद में लेकर उसकी सब प्रकार रक्षा करती है वैसे ही गायत्री माता के अंचल में आश्रय पाने वाला व्यक्ति भी अपनी उन्नति एवं सुरक्षा के लिए निश्चित हो जाता है| कोई-कोई व्यक्ति अच्छे कवच अपने पास रखते हैं और उनके बिगड़े काम बनते है| मैंने गायत्री मंत्र लेखन की कापियों में कवच की शक्ति पाई| उन्हें सर्वथा साथ रखने का परिणाम बहुत ही लाभदायक रहा| मेरे मित्रों ने भी मंत्र लेखन यज्ञ में भाग लिया है और अपनी भावनाओं अनुसार समुचित लाभ प्राप्त किया है| एक पटवारी सज्जन ने अपना दीवानी मुकद्दमा इसी महामंत्र की शक्ति से इच्छानुसार जीता| अपनी तथा दूसरे की गायत्री उपासना के परिणामों को देखते हुए यह कहना पड़ता है कि गायत्री माता समुचित कल्पवृक्ष का काम करती है| अपने पुत्रों की रक्षा एवं उन्नति के लिए वह बड़ी सहायता देती है| शत्रु चाहे आंतरिक हो, चाहे बाहरी उनसे रक्षा सहज ही हो जाती है| भयभीतों को माता की शरण में अभयदान मिलता है| सकाम साधना की अपेक्षा निष्काम भावना अधिक श्रेष्ठ है| गायत्री महाविज्ञान, समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब::
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
वनिता कासनियां पंजाब का कहना है कि सम्मानपूर्ण आजीविका और अभीष्ट स्थान पर निवास यह दोनों ही बातें मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है| फिर जिनका कार्यक्रम नौकरी हो उनके लिये तो इनका और भी अधिक महत्त्व है|
मैं कुछ समय से गायत्री उपासना तथा मंत्र लेखन की साधना में संलग्न हूँ| यों मेरी साधना निष्काम रही है, पर देखता हूँ कि उसके सांसारिक परिणाम भी बहुत कल्याणकारी हो रहे हैं| दूसरे कई साथी अच्छी और स्थायी नौकरी पाने के लिए काफी दौड़ धूप करते रहते हैं| उन्होंने कृपापूर्वक मुझे भी कई बार प्रेरणा दी कि मैं भी अधिक प्रयत्न करूँ| यथासम्भव मैंने वह सब किया भी है, अपना प्रथम आधार गायत्री माता की शरणागति ही रही है| सच्चे मन से मैंने माता का आश्रय लिया है और माता की सच्ची कृपा का परिचय भी पाया है| जबकि अन्य उद्योगी साथी अपने लिये उपयुक्त स्थान न पा सके तब मैं नायब तहसीलदार की स्थायी जगह पर नियुक्त हूँ और स्थान भी मनवाँछित मिल गया था| अपनी इस नियुक्ति में मुझे माता की स्पष्ट कृपा परिलक्षित होती है| जैसे माता अपने बालक को गोद में लेकर उसकी सब प्रकार रक्षा करती है वैसे ही गायत्री माता के अंचल में आश्रय पाने वाला व्यक्ति भी अपनी उन्नति एवं सुरक्षा के लिए निश्चित हो जाता है|
कोई-कोई व्यक्ति अच्छे कवच अपने पास रखते हैं और उनके बिगड़े काम बनते है| मैंने गायत्री मंत्र लेखन की कापियों में कवच की शक्ति पाई| उन्हें सर्वथा साथ रखने का परिणाम बहुत ही लाभदायक रहा| मेरे मित्रों ने भी मंत्र लेखन यज्ञ में भाग लिया है और अपनी भावनाओं अनुसार समुचित लाभ प्राप्त किया है| एक पटवारी सज्जन ने अपना दीवानी मुकद्दमा इसी महामंत्र की शक्ति से इच्छानुसार जीता|
अपनी तथा दूसरे की गायत्री उपासना के परिणामों को देखते हुए यह कहना पड़ता है कि गायत्री माता समुचित कल्पवृक्ष का काम करती है| अपने पुत्रों की रक्षा एवं उन्नति के लिए वह बड़ी सहायता देती है| शत्रु चाहे आंतरिक हो, चाहे बाहरी उनसे रक्षा सहज ही हो जाती है| भयभीतों को माता की शरण में अभयदान मिलता है| सकाम साधना की अपेक्षा निष्काम भावना अधिक श्रेष्ठ है|
गायत्री महाविज्ञान, समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब::
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें