. "मैया, मोहे बहुरिया ला दे"By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब नन्हे कान्हा ने ब्याह करने की हठ पकड़ ली है। अब उन्हें संसार की अन्य कोई वस्तु नहीं चाहिये, उनकी तो बस अब बहुरिया(दुल्हन) की ही माँग है।"मैया मोहि बहुरिया ला दे, तेरी सौं मेरी सुनि मैया, अबहिं ब्याहन जैहौं" मैया यशोदा के मुख पर लावण्यमयी मुस्कराहट के साथ साथ झुंझलाहट का भाव भी है। नंदराय जी, रोहिणी जी, बलराम जी सब हँस हँस कर यशोदा जी से कह रहे हैं-- "नंद रानी, तुम्हीं ने तो प्रस्ताव रखा है इसके समक्ष, अब लाओ इसके लिये इक नन्ही सी बहुरिया"। यशोदा जी अवाक ! किंकर्तव्यविमूढ़-सी बैठी हैं अपने प्राण-धन लाड़ले की बाल-हठ सुन कर। कुछ क्षण पूर्व मैया को अपना लाडला लला सम्भालना दूभर हो रहा था, एक दूसरी हठ के कारण। जब से नन्हे कान्हा ने आकाश मंडल में चंद्रमा को उदित होते देखा, चंद्र-खिलौना लेने की हठ पकड़ ली। जमीन पर लोट लोट कर- "चंद्र खिलौना लैहौं, मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं" सारा घर आसमान पर उठा रखा था। किसी के भी बहलाने से न मानें, हठ अधिक अधिक और अधिक बढ़ती ही जा रही थी- "चंद्र खिलौना नहीं दोगी तो सुरभि गैया का पय पान न करिहौं, तेरी गोद न ऐहौं, बेनी सिर न गुथैहौं, तेरौ और नंदबाबा का सुत न कहेहौं" ऐसी-ऐसी प्रतिज्ञाऐं मैया यशोदा तो चकरा ही गईं, कैसे मनाऊँ अपने लाडले को ? सैकड़ों लालच दिये, किन्तु बाल हठ न छुटी। जब किसी भी प्रकार मैया का लाडला प्राण-धन न माना, तब अंततः मैया यशोदा ने एक उपाय किया। मैया ने लला के कान में हँस कर धीरे से फुसफुसाते हुये कहा- "मेरे लाडले, यदि तुम चंद्र खिलौना लेने की अपनी हठ छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारा ब्याह करा दूँगी, यह बात अभी मैंने बस तुम्हें ही बताई है और किसी को नहीं, क्योंकि मैं केवल तुम्हारा ही ब्याह कराऊँगी बलराम का नहीं।" मैया की बात सुन कर,अब नन्हे कान्हा को चंद्र खिलौने का स्मरण ही न रहा, अब तो उन्हें बस ब्याह करने की धुन लग गई है-- "तेरी सौगंध मैया, अभी इसी समय ब्याहने चल दूँगा, चल मैया चल, मैं तो अभी बहुरिया लाऊँगौ" मैया हतप्रभ एक हठ छूटी तो दूसरी पकड़ ली। क्या करे मैया, कहाँ से लाकर दे हठीले को इसी समय बहुरिया। अतुल अप्रतिम सौंदर्ययुक्त दुर्लभ अविस्मरणीय दृश्य है, नन्हे कान्हा पूर्णत बाल हठ पकड़े हुये हैं- "चल मैया ब्याहने चल" घर के सब छोटे बड़े स्नेही जन हँस-हँस कर दोहरे हुये जा रहे हैं, और मैया यशोदा की तो मति ही चकरा रही है कि कैसे मनाऊँ अपने इस लाडले प्राण धन को ? ----------:::×:::--------- "जय जय श्री राधे"******************************************* "बाल वनिता महिला आश्रम" की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें👇बाल वनिता महिला आश्रम
. "मैया, मोहे बहुरिया ला दे"
नन्हे कान्हा ने ब्याह करने की हठ पकड़ ली है। अब उन्हें संसार की अन्य कोई वस्तु नहीं चाहिये, उनकी तो बस अब बहुरिया(दुल्हन) की ही माँग है।
"मैया मोहि बहुरिया ला दे, तेरी सौं मेरी सुनि मैया, अबहिं ब्याहन जैहौं"
मैया यशोदा के मुख पर लावण्यमयी मुस्कराहट के साथ साथ झुंझलाहट का भाव भी है। नंदराय जी, रोहिणी जी, बलराम जी सब हँस हँस कर यशोदा जी से कह रहे हैं-- "नंद रानी, तुम्हीं ने तो प्रस्ताव रखा है इसके समक्ष, अब लाओ इसके लिये इक नन्ही सी बहुरिया"। यशोदा जी अवाक ! किंकर्तव्यविमूढ़-सी बैठी हैं अपने प्राण-धन लाड़ले की बाल-हठ सुन कर।
कुछ क्षण पूर्व मैया को अपना लाडला लला सम्भालना दूभर हो रहा था, एक दूसरी हठ के कारण। जब से नन्हे कान्हा ने आकाश मंडल में चंद्रमा को उदित होते देखा, चंद्र-खिलौना लेने की हठ पकड़ ली। जमीन पर लोट लोट कर-
"चंद्र खिलौना लैहौं, मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं"
सारा घर आसमान पर उठा रखा था। किसी के भी बहलाने से न मानें, हठ अधिक अधिक और अधिक बढ़ती ही जा रही थी-
"चंद्र खिलौना नहीं दोगी तो सुरभि गैया का पय पान न करिहौं, तेरी गोद न ऐहौं, बेनी सिर न गुथैहौं, तेरौ और नंदबाबा का सुत न कहेहौं"
ऐसी-ऐसी प्रतिज्ञाऐं मैया यशोदा तो चकरा ही गईं, कैसे मनाऊँ अपने लाडले को ? सैकड़ों लालच दिये, किन्तु बाल हठ न छुटी। जब किसी भी प्रकार मैया का लाडला प्राण-धन न माना, तब अंततः मैया यशोदा ने एक उपाय किया। मैया ने लला के कान में हँस कर धीरे से फुसफुसाते हुये कहा- "मेरे लाडले, यदि तुम चंद्र खिलौना लेने की अपनी हठ छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारा ब्याह करा दूँगी, यह बात अभी मैंने बस तुम्हें ही बताई है और किसी को नहीं, क्योंकि मैं केवल तुम्हारा ही ब्याह कराऊँगी बलराम का नहीं।"
मैया की बात सुन कर,अब नन्हे कान्हा को चंद्र खिलौने का स्मरण ही न रहा, अब तो उन्हें बस ब्याह करने की धुन लग गई है-- "तेरी सौगंध मैया, अभी इसी समय ब्याहने चल दूँगा, चल मैया चल, मैं तो अभी बहुरिया लाऊँगौ" मैया हतप्रभ एक हठ छूटी तो दूसरी पकड़ ली। क्या करे मैया, कहाँ से लाकर दे हठीले को इसी समय बहुरिया।
अतुल अप्रतिम सौंदर्ययुक्त दुर्लभ अविस्मरणीय दृश्य है, नन्हे कान्हा पूर्णत बाल हठ पकड़े हुये हैं- "चल मैया ब्याहने चल" घर के सब छोटे बड़े स्नेही जन हँस-हँस कर दोहरे हुये जा रहे हैं, और मैया यशोदा की तो मति ही चकरा रही है कि कैसे मनाऊँ अपने इस लाडले प्राण धन को ?
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