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जब गीता का सार सभी के लिए था तो अर्जुन को उपदेश देते समय श्रीकृष्ण ने पूरी सृषि्ट को कुछ छणों के लिए क्यों रोक दिया था? By वनिता कासनियां पंजाब बिल्कुल नहीं। गीता का ज्ञान सिर्फ अर्जुन के लिए था और हमेशा अर्जुन का ही रहेगा। अर्जुन के अलावा गीता किसी को नहीं मिली।भगवान ने भी गीता में यही कहा है कि"हे अर्जुन। न तो ये ज्ञान तेरे सिवा किसी को मिला है और न ही कभी मिलेगा। क्योंकि तू ही मेरा सबसे प्रिय है। मेरे इस विराट रूप के दर्शन न तो तुझसे पहले किसी को हुए है और न ही कभी होंगे।"तो फिर गीता हमारे किस काम की? जब अर्जुन प्रिय था और वही रहेगा तो हम क्यों गीता समझे। जब भगवान ने कहा है कि अर्जुन के अलावा विराट रूप के दर्शन और कोई नहीं कर सकता तो फिर हमारे किस काम कि है गीता। ये तो अर्जुन के काम ही तो रही।लेकिन एक तरफ भगवान गीता में यह भी कहते है कि ये ज्ञान मैने सूर्य को दिया। और उसके बाद से ही बहुत से तत्व दर्शियो ने मेरा विराट रूप भी देखा है।आखिर कृष्ण कहना क्या चाहते है? दोनों अलग अलग बात करते है। कभी कहते है की किसी को ये ज्ञान नहीं मिलेगा अर्जुन के अलावा और फिर कहते है की पहले भी ये ज्ञान तत्व दर्शियों को मिला है।बड़ी विडम्बना है। ये क्या कह दिया ईश्वर ने?वस्तुत गीता शास्त्र हृदय देश में होने वाले महाभारत का चित्रण है। जहा अर्जुन का अर्थ है - अनुराग।अनुराग अर्थात इष्ट के प्रति राग।इष्ट में प्रेम होना ही अनुराग है। और अनुराग ही अर्जुन है। जिस व्यक्ति के ह्रदय में अनुराग है वहीं अर्जुन है। अर्जुन कोई विशेष व्यक्ति नहीं है। यह तो मनुष्य के अन्दर इष्ट के प्रति राग है। और जिसमें यह अर्जुन अर्थात अनुराग है वहीं गीता का अधिकारी है। उसे ही गीता मिलती है।सूर्य के ह्रदय में अनुराग था तो सूर्य को भी गीता का दर्शन मिला। तत्व दर्शियों के ह्रदय में अनुराग था तो उन्हें भी गीता ज्ञान मिला। इसलिए अर्जुन का अर्थ अनुरागी है। अनुराग ही अर्जुन है। अनुराग ही हृदय में युद्ध करता है। मोह अर्थात दुर्योधन की सेना से युद्ध करता है।इसलिए गीता के लिए अर्जुन होना आवश्यक है। अनुराग होना आवश्यक है। अन्यथा पुस्तक तो घर के किसी कोने में लाल कपडे में बांध के रख दीं होगी।और गीता को छोड़कर किसी बाबा के चक्कर में चले गए होंगे। उन्हें पता है(नकली बाबाओं को) कि यदि इसे समझ ही होती तो गीता मिल जाती। जब इसके गीता समझ नहीं आती तो उसके अर्थ को कुछ भी बता और ये मान लेगा।यही तो हो था है आजकल बाबाओं के द्वारा।इसलिए कहीं मत जाओ। सिर्फ अनुरागी बन जाओ। फिर बाबा लोग खुद ही दूर चले जाएंगे। उन्हें पता है कि ये गीता समझ कर आ रहा है। समस्या खड़ी कर देगा। ढोंग को खत्म कर देगा। आडम्बर नहीं टिकने देगा। इसलिए भागो। भागो।तस्वीर- गूगल से।



बिल्कुल नहीं। गीता का ज्ञान सिर्फ अर्जुन के लिए था और हमेशा अर्जुन का ही रहेगा। अर्जुन के अलावा गीता किसी को नहीं मिली।

भगवान ने भी गीता में यही कहा है कि

"हे अर्जुन। न तो ये ज्ञान तेरे सिवा किसी को मिला है और न ही कभी मिलेगा। क्योंकि तू ही मेरा सबसे प्रिय है। मेरे इस विराट रूप के दर्शन न तो तुझसे पहले किसी को हुए है और न ही कभी होंगे।"

तो फिर गीता हमारे किस काम की? जब अर्जुन प्रिय था और वही रहेगा तो हम क्यों गीता समझे। जब भगवान ने कहा है कि अर्जुन के अलावा विराट रूप के दर्शन और कोई नहीं कर सकता तो फिर हमारे किस काम कि है गीता। ये तो अर्जुन के काम ही तो रही।

लेकिन एक तरफ भगवान गीता में यह भी कहते है कि ये ज्ञान मैने सूर्य को दिया। और उसके बाद से ही बहुत से तत्व दर्शियो ने मेरा विराट रूप भी देखा है।

आखिर कृष्ण कहना क्या चाहते है? दोनों अलग अलग बात करते है। कभी कहते है की किसी को ये ज्ञान नहीं मिलेगा अर्जुन के अलावा और फिर कहते है की पहले भी ये ज्ञान तत्व दर्शियों को मिला है।

बड़ी विडम्बना है। ये क्या कह दिया ईश्वर ने?

वस्तुत गीता शास्त्र हृदय देश में होने वाले महाभारत का चित्रण है। जहा अर्जुन का अर्थ है - अनुराग।

अनुराग अर्थात इष्ट के प्रति राग।

इष्ट में प्रेम होना ही अनुराग है। और अनुराग ही अर्जुन है। जिस व्यक्ति के ह्रदय में अनुराग है वहीं अर्जुन है। अर्जुन कोई विशेष व्यक्ति नहीं है। यह तो मनुष्य के अन्दर इष्ट के प्रति राग है। और जिसमें यह अर्जुन अर्थात अनुराग है वहीं गीता का अधिकारी है। उसे ही गीता मिलती है।

सूर्य के ह्रदय में अनुराग था तो सूर्य को भी गीता का दर्शन मिला। तत्व दर्शियों के ह्रदय में अनुराग था तो उन्हें भी गीता ज्ञान मिला। इसलिए अर्जुन का अर्थ अनुरागी है। अनुराग ही अर्जुन है। अनुराग ही हृदय में युद्ध करता है। मोह अर्थात दुर्योधन की सेना से युद्ध करता है।

इसलिए गीता के लिए अर्जुन होना आवश्यक है। अनुराग होना आवश्यक है। अन्यथा पुस्तक तो घर के किसी कोने में लाल कपडे में बांध के रख दीं होगी।

और गीता को छोड़कर किसी बाबा के चक्कर में चले गए होंगे। उन्हें पता है(नकली बाबाओं को) कि यदि इसे समझ ही होती तो गीता मिल जाती। जब इसके गीता समझ नहीं आती तो उसके अर्थ को कुछ भी बता और ये मान लेगा।

यही तो हो था है आजकल बाबाओं के द्वारा।

इसलिए कहीं मत जाओ। सिर्फ अनुरागी बन जाओ। फिर बाबा लोग खुद ही दूर चले जाएंगे। उन्हें पता है कि ये गीता समझ कर आ रहा है। समस्या खड़ी कर देगा। ढोंग को खत्म कर देगा। आडम्बर नहीं टिकने देगा। इसलिए भागो। भागो।

तस्वीर- गूगल से।

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🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺