*श्री कृष्ण भक्त की कथा* बहुत प्राचीन समय की बात है।एक बहुत ही गरीब कृष्ण भक्त का बेटा अरुण गुरुकुल में पढने जाता था। जितना गरीब परिवार था उतना ही कृष्ण भक्त परिवार था। कहते है कि *निर्धनता ही धर्म की कसौटी है।* उन लोगों की भगवान कृष्ण मे अटुट आस्था थी। परिवार मे स्नेह एवं सहयोग की अमृत धारा बहती थी,रुखी सुखी रोटी बाँटकर भगवान का प्रसाद मानकर खा लेते थे । कोई भी कार्य भगवान कृष्ण कन्हैया का नाम ले कर ही शुरु करते थे।एक बार गुरूजी बच्चो से बोले कि कल वार्षिकोत्सव है,सभी बच्चे अपने अपने घर से दुध लायेंगें। वार्षिकोत्सव सुनकर सभी बच्चे काफी खुश थे। लेकिन अरुण के चेहरे पर कोई खुशी नजर नही आ रही थी, जबकि वह पढने में तेज था।उसके चेहरे पर मायुसी साफ नजर आ रही थी। कारण साफ था। वह सोचते जा रहा था कि वह गुरुकुल के लिए दुध कहाँ से लाएगा।अरुण मासूमियत भरे लहजे मे अपने माताजी एवं पिताजी से गुरुकुल के लिए दुध की माँग करता है। अरुण की माँ बोली "बेटा हम लोगो के पास गाय माता तो है नही फिर हम लोग दुध कहाँ से लाएगे ,फिर भी हमलोंग कहीं से दुध की व्यवस्था करने का प्रयास करते है।दुध की ब्यवस्था न होने पर अरुण के पिताजी बोले कि बेटा अपनी असमर्थता बताकर गुरूजी से माफी माँग लेना। दुध की व्यवस्था हम लोग नही कर सके।अगले दिन माताजी एवं पिताजी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद ले कर अरुण गुरुकुल चल दिया। उसके सहपाठी बच्चे अपने सुविधानुसार छोटे बड़े पात्र में दुध लेकर हँसी खुशी से बार्षिकोत्सव मनाने की खुशी मे गुरूकुल जा रहे थे। उन बच्चों को हँसता खेलता देखकर बालक मन अरुण और मायूस हो गया।रास्ते में पेड की छाया में अरुण बैठकर सोचने लगा। हे भगवान मेरे माता - पिता तो आपकी इतनी पुजा पाठ करते है फिर इतना गरीब क्यों है। यह सोचते सोचते अरुण रोने लगा।उसी समय एक नन्हा सा छोटा सा ग्वालबाल अपनी गायों को चराने उधर से निकला । वह ग्वाला अरुण को रोता देखकर उससे रोने का कारण पूछा। अरुण ने दुधवाली बात उस ग्वालबाल को बता दी । ग्वालबाल हँसते हुए बोला कि बस इतनी सी बात है, मै तुम्हारे लिए अभी दुध की व्यवस्था कर देता हूँ। ग्वालबाल दौड़कर गया और गाय का दुध एक छोटी सी लोटकी में दुहकर अरुण को दे दिया और बोला कि जा कर अपने गुरूजी को दे देना ।थोड़ा सा ही सही दुध मिलने की खुशी मे अरुण अपने गुरूजी से बोला कि गुरूजी मै दुध कहाँ रखुँ । गुरूजी छोटी सी लोटकी में दुध देखकर बोले ले जाकर जिस वर्तन में दुध रखा हो उसमें रख दो।अरुण जिस बर्तन में लौटकी का दुध डालता वह पात्र भर जाता लेकिन लोकटी जस का तस दुध से भरी ही रहती । सभी पात्र भरजाने पर अरुण गुरूजी से निवेदन किया कि गुरूजी सभी पात्र दुध से भर गये है फिर मै ये दुध कहाँ रखुँ।गुरुजी छोटी सी लोटकी के तरफ नजर दौडाये और झुझलाकर बोले कि जहाँ खाली जगह मिले रख दो ।अरुण एक बार पुनःचारो तरफ देखकर जहाँ भी बर्तन मे थोडी जगह देखता लोटकी का दुध उसमें डाल देता । फिर भी लोटकी दुध से भरी की भरी रह गयी ।अरुण पुनःगुरुजी से निवेदन किया कि सभी पात्र में थोडी भी जगह नही है । अरुण को गुरूजी साथ लेकर गये और देखे कि पुरा का पुरा सभी पात्र सचमुच दुध से भरा पडा था।गुरुजी जिस गिलास से पानी पीते थै उसे लेकर अरुण से बोले कि इसमें दुध डाल दो ।अरुण उस मे दुध डाल दिया ,गिलास भी दुध से भर गयी फिर भी लोटकी दुध से भरी की भरी रह गयी। यह देख गुरुजी आश्चर्यचकित रह गये ।गुरूजी के पुछने पर अरुण ने दुध कहाँ से लिया था, कौन दिया पुरा बृतान्त कह सुनाया । गुरुजी अरुण को लेकर उसजगह गये जहाँ वह ग्वालबाल अरुण को दुध दिया था ,लेकिन वहाँ न तो गायें थी न तो ग्वालबाल।*गुरुजी बोले धन्य हैं तुम्हारे कृष्ण भक्त माता पिता और धन्य हो तुम।**भगवान कहते हैं कि हम भक्तन के भक्त हमारे।**बोलो ---**श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव!* By वनिता कासनियां पंजाब ? *जय श्रीकृष्ण*ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और एक खूबसूरत सी कहानी से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम
*श्री कृष्ण भक्त की कथा*
बहुत प्राचीन समय की बात है।एक बहुत ही गरीब कृष्ण भक्त का बेटा अरुण गुरुकुल में पढने जाता था। जितना गरीब परिवार था उतना ही कृष्ण भक्त परिवार था। कहते है कि *निर्धनता ही धर्म की कसौटी है।* उन लोगों की भगवान कृष्ण मे अटुट आस्था थी। परिवार मे स्नेह एवं सहयोग की अमृत धारा बहती थी,रुखी सुखी रोटी बाँटकर भगवान का प्रसाद मानकर खा लेते थे । कोई भी कार्य भगवान कृष्ण कन्हैया का नाम ले कर ही शुरु करते थे।
एक बार गुरूजी बच्चो से बोले कि कल वार्षिकोत्सव है,सभी बच्चे अपने अपने घर से दुध लायेंगें। वार्षिकोत्सव सुनकर सभी बच्चे काफी खुश थे। लेकिन अरुण के चेहरे पर कोई खुशी नजर नही आ रही थी, जबकि वह पढने में तेज था।उसके चेहरे पर मायुसी साफ नजर आ रही थी। कारण साफ था। वह सोचते जा रहा था कि वह गुरुकुल के लिए दुध कहाँ से लाएगा।
अरुण मासूमियत भरे लहजे मे अपने माताजी एवं पिताजी से गुरुकुल के लिए दुध की माँग करता है। अरुण की माँ बोली "बेटा हम लोगो के पास गाय माता तो है नही फिर हम लोग दुध कहाँ से लाएगे ,फिर भी हमलोंग कहीं से दुध की व्यवस्था करने का प्रयास करते है।
दुध की ब्यवस्था न होने पर अरुण के पिताजी बोले कि बेटा अपनी असमर्थता बताकर गुरूजी से माफी माँग लेना। दुध की व्यवस्था हम लोग नही कर सके।
अगले दिन माताजी एवं पिताजी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद ले कर अरुण गुरुकुल चल दिया। उसके सहपाठी बच्चे अपने सुविधानुसार छोटे बड़े पात्र में दुध लेकर हँसी खुशी से बार्षिकोत्सव मनाने की खुशी मे गुरूकुल जा रहे थे। उन बच्चों को हँसता खेलता देखकर बालक मन अरुण और मायूस हो गया।
रास्ते में पेड की छाया में अरुण बैठकर सोचने लगा। हे भगवान मेरे माता - पिता तो आपकी इतनी पुजा पाठ करते है फिर इतना गरीब क्यों है। यह सोचते सोचते अरुण रोने लगा।
उसी समय एक नन्हा सा छोटा सा ग्वालबाल अपनी गायों को चराने उधर से निकला । वह ग्वाला अरुण को रोता देखकर उससे रोने का कारण पूछा। अरुण ने दुधवाली बात उस ग्वालबाल को बता दी । ग्वालबाल हँसते हुए बोला कि बस इतनी सी बात है, मै तुम्हारे लिए अभी दुध की व्यवस्था कर देता हूँ। ग्वालबाल दौड़कर गया और गाय का दुध एक छोटी सी लोटकी में दुहकर अरुण को दे दिया और बोला कि जा कर अपने गुरूजी को दे देना ।
थोड़ा सा ही सही दुध मिलने की खुशी मे अरुण अपने गुरूजी से बोला कि गुरूजी मै दुध कहाँ रखुँ । गुरूजी छोटी सी लोटकी में दुध देखकर बोले ले जाकर जिस वर्तन में दुध रखा हो उसमें रख दो।
अरुण जिस बर्तन में लौटकी का दुध डालता वह पात्र भर जाता लेकिन लोकटी जस का तस दुध से भरी ही रहती । सभी पात्र भरजाने पर अरुण गुरूजी से निवेदन किया कि गुरूजी सभी पात्र दुध से भर गये है फिर मै ये दुध कहाँ रखुँ।
गुरुजी छोटी सी लोटकी के तरफ नजर दौडाये और झुझलाकर बोले कि जहाँ खाली जगह मिले रख दो ।
अरुण एक बार पुनःचारो तरफ देखकर जहाँ भी बर्तन मे थोडी जगह देखता लोटकी का दुध उसमें डाल देता । फिर भी लोटकी दुध से भरी की भरी रह गयी ।
अरुण पुनःगुरुजी से निवेदन किया कि सभी पात्र में थोडी भी जगह नही है । अरुण को गुरूजी साथ लेकर गये और देखे कि पुरा का पुरा सभी पात्र सचमुच दुध से भरा पडा था।
गुरुजी जिस गिलास से पानी पीते थै उसे लेकर अरुण से बोले कि इसमें दुध डाल दो ।अरुण उस मे दुध डाल दिया ,गिलास भी दुध से भर गयी फिर भी लोटकी दुध से भरी की भरी रह गयी। यह देख गुरुजी आश्चर्यचकित रह गये ।
गुरूजी के पुछने पर अरुण ने दुध कहाँ से लिया था, कौन दिया पुरा बृतान्त कह सुनाया । गुरुजी अरुण को लेकर उसजगह गये जहाँ वह ग्वालबाल अरुण को दुध दिया था ,लेकिन वहाँ न तो गायें थी न तो ग्वालबाल।
*गुरुजी बोले धन्य हैं तुम्हारे कृष्ण भक्त माता पिता और धन्य हो तुम।*
*भगवान कहते हैं कि हम भक्तन के भक्त हमारे।*
*बोलो ---*
*श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव!*
By वनिता कासनियां पंजाब ?
*जय श्रीकृष्ण*
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