सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

महाभारत में सबसे महान योद्धा कौन था जो अकेले पूरे युद्ध को समाप्त कर सकता था? By वनिता कासनियां पंजाब कोई नही। अगर कर सकता तो महाभारत के युद्ध को 18 दिनों तक चलने की आवश्यकता ही नही थी।इस उत्तर को पढ़ने से पहले अनुरोध है कि अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा को कृपया थोड़ी देर अलग रख दें। हम सभी की श्रीकृष्ण में श्रद्धा है किंतु इस युद्ध के वास्तविक कारण और महत्व को समझने के लिए कृपया कुछ देर के लिए हम श्रीकृष्ण को ईश्वर ना समझ कर एक असाधारण मनुष्य मान लेते हैं ताकि दोनो पक्षों का बल अच्छे तरह से समझ सकें। आइये अब आरम्भ करते हैं।जो लोग बर्बरीक का नाम ले रहे हैं उन्हें ये बता दूं कि बर्बरीक जैसा कोई चरित्र मूल व्यास महाभारत में है ही नही। अर्थात घटोत्कच के पुत्र के रूप में बर्बरीक, अंजनपर्व एवं मेघवर्ण का वर्णन तो है लेकिन बर्बरीक की तपस्या, सिद्धि, तीन बाण, शीश दान इत्यादि का जो वर्णन है वो मूल व्यास महाभारत में नही है। वो कथा लोककथाओं में अधिक प्रसिद्ध है। और अगर था भी तो वरदान प्राप्त योद्धाओं की महाभारत में कोई कमी नही थी। इसीलिए बर्बरीक को यही पर छोड़ देते हैं।अर्जुन के दिव्यास्त्रों की भी बड़ी चर्चा होती है किंतु ये भी याद रखें कि वो अकेला नही था जिसके पास दिव्यास्त्र थे। महाभारत का युद्ध उन योद्धाओं से भरा था जिनके पास विभिन्न प्रकार के दिव्यास्त्र थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, भगदत्त, कृपाचार्य, कृतवर्मा, जयद्रथ, सुशर्मा, बाह्लीक, सुदक्षिण, श्रीकृष्ण, सात्यिकी, द्रुपद, विराट, धृतकेतु, मलयध्वज इत्यादि ऐसे योद्धा थे जिनके पास अनेकानेक दिव्यास्त्र थे।ऐसा ना समझें कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ ही नही। दोनो पक्षों के योद्धाओं द्वारा कई बार दिव्यास्त्र का प्रयोग हुआ। विशेषकर भीष्म और अर्जुन के युद्ध मे कई बार दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ और अर्जुन और कर्ण के अंतिम युद्ध मे तो केवल दिव्यास्त्रों का ही प्रयोग हुआ।अगर महास्त्रों (ध्यान दें, साधारण दिव्यास्त्र नही) की बात की जाए तो ये सत्य है कि अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र था जिससे सबका नाश तत्काल किया जा सकता था किंतु पाशुपत उस युद्ध मे कभी प्रयोग ही नही किया गया। उसका एक कारण ये भी था कि पाशुपत का प्रयोग स्वयं से निर्बल शत्रु पर नही किया जा सकता था अन्यथा वो चलाने वाले का ही नाश कर देता था। महाभारत में अर्जुन के समकक्ष योद्धा गिने चुने ही थे इस लिए भी पाशुपतास्त्र का प्रयोग नही किया गया। दूसरा महाअस्त्र नारायणास्त्र अश्वथामा के पास था और उसका प्रयोग हुआ भी किन्तु श्रीकृष्ण ने पांडवों को बचा लिया। अब अगर बात करें ब्रह्मास्त्र की तो उस युग मे भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन, इन पाँच योद्धाओं के पास ब्रह्मास्त्र था। इनमें से अश्वथामा के पास ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान ही था। कर्ण को इसका पूरा ज्ञान था किंतु वो श्रापग्रस्त था इसी कारण अर्जुन से अंतिम युद्ध मे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ना कर सका। इसके अतिरिक्त परशुराम के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु उन्होंने युद्ध मे भाग नही लिया। कुछ लोग समझते हैं कि श्रीकृष्ण के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु ऐसा नही है, उनके पास ब्रह्मास्त्र होने का कोई वर्णन महाभारत में नही है। किन्तु श्रीकृष्ण तो श्रीहरि के पूर्णावतार है इसीलिए उनके पास ब्रम्हास्त्र होने, ना होने से कोई फर्क नही पड़ता।इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे दिव्यास्त्र भी थे जिनका प्रयोग केवल किसी एक योद्धा को ही था। जैसे प्रस्वापास्त्र केवल भीष्म के पास ही था, जिसका प्रयोग वे परशुराम के विरुद्ध युद्ध मे करने वाले थे किंतु किया नही। नारायणास्त्र का ज्ञान केवल अश्वथामा और श्रीकृष्ण को था और भार्गवास्त्र का ज्ञान केवल कर्ण के पास ही था। इसके अतिरिक्त सुदर्शन चक्र को केवल श्रीकृष्ण और परशुराम ही धारण कर सकते थे और पाशुपतास्त्र केवल अर्जुन के पास था। पता नही ये कितना प्रामाणिक है किंतु कई जगह वर्णन है कि भीष्म और द्रोण के पास ब्रह्मशिरा का ज्ञान भी था जो उन्हें परशुराम से मिला। ब्रह्मशिरा ब्रह्मास्त्र से 4 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है। हालांकि परशुराम ने कर्ण को ये ज्ञान नही दिया और ना ही द्रोण ने अर्जुन और यहाँ तक कि अश्वत्थामा को भी इसका ज्ञान नही दिया।इतने वृहद विश्लेषण की आवश्यकता इसीलिए पड़ी कि आप ये समझ लें कि महाभारत में केवल अर्जुन के पास ही दिव्यास्त्र नही थे। हाँ, अन्य योद्धाओं की तुलना में उसके पास कुछ अधिक दिव्यास्त्र थे जो उसने इंद्र से प्राप्त किये थे। दूसरे कि जो ये समझते हैं कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग नही हुआ वे भी गलत हैं। उस महायुद्ध में भयंकर मात्रा में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ था। उस युद्ध मे ऐसे कई योद्धा थे जो शीघ्रता से उस युद्ध को समाप्त कर सकते थे। जैसा कि श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि अगर केवल भीष्म नही होते तो वो युद्ध केवल 1 दिन में जीता जा सकता था।तो अब प्रश्न आता है कि जब महाभारत में इतने महान योद्धा थे तो वो युद्ध 18 दिनों तक क्यों खिंच गया? उत्तर है केवल श्रीकृष्ण के कारण।आप इस युद्ध के उद्देश्य को जानने का प्रयास कीजिये। श्रीकृष्ण का उद्देश्य इस युद्ध के द्वारा अधिक से अधिक योद्धाओं का नाश कराना था और वो भी दोनों ओर से। कहा जाता है कि उस समय पृथ्वी का भार इतना बढ़ गया था कि उसके बोझ से पृथ्वी फट जाती। पृथ्वी का बोझ कम करना अत्यंत आवश्यक था और श्रीकृष्ण का अवतरण वास्तव में इसी कारण हुआ था, ना कि कंस को मारने के कारण। अगर ये युद्ध जल्दी समाप्त हो जाता तो उनका ये उद्देश्य पूर्ण नही हो पाता। यही कारण है कि उनके ही कारण ये युद्ध इतने दिनों तक चला।वास्तव में श्रीकृष्ण उस युद्ध मे अद्भुत भूमिका निभा रहे थे। उन्हें दोनो ओर के योद्धाओं का नाश भी कराना था और इस बात का ध्यान भी रखना था कि पांडवों की पराजय ना हो। वो उस युद्ध मे कितने दवाब में होंगे इसका हम और आप अनुमान भी नही लगा सकते।यही कारण था कि उन्होंने युद्ध मे शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा कर ली और उनकी प्रेरणा से बलराम ने भी युद्ध मे भाग नही लिया ताकि वो युद्ध अधिक समय तक चल सके। इन दोनो के युद्ध मे भाग लेने पर संभव था कि युद्ध कुछ जल्दी समाप्त हो जाता और श्रीकृष्ण का उद्देश्य अधूरा रह जाता। जो लोग उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं वे ये जान लें कि महाभारत के 36 वर्ष पश्चात जब यादवों की संख्या और बल बहुत अधिक बढ़ गया तो स्वयं श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने ही यादव वंश का नाश कर दिया। गांधारी का श्राप तो बस निमित्तमात्र था।अब जाते जाते श्रीकृष्ण को एक योद्धा के रूप में भी देख लेते हैं। वे श्रीहरि के पूर्ण अवतार थे और उनकी सभी 16 कलाओं के साथ जन्में थे। श्रीहरि के सभी शस्त्र उनके पास थे किंतु इसपर भी कई युद्ध मे उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे भी उनका उद्देश्य वही था जो महाभारत युद्ध के पीछे था।जैसे जरासंध से वे 18 वर्ष तक युद्ध करते रहे और उसकी सेना को समाप्त करने के बाद भी मथुरा छोड़ द्वारिका में आकर बस गए। शाल्व और उनका द्वंद 26 दिनों तक चला था। सुभद्रा के वचन के कारण जब श्रीकृष्ण और अर्जुन में युद्ध हुआ था तो वो 11 दिनों तक चलता रहा जबतक दोनो ने स्वयं युद्ध नही रोका। पौंड्रक और उनका युद्ध 16 दिनों तक चला था, एकलव्य का वध उन्होंने तीन दिन के युद्ध के पश्चात किया। जाम्बवन्त और उनका युद्ध 23 दिनों तक चला। बाणासुर के साथ उनका युद्ध 1 मास तक चला जिसके बाद अंततः भगवान शंकर को बाणासुर की सहायता के लिए आना पड़ा।इसीलिए ये जान लें कि महाभारत का युद्ध इतने दिन इसी कारण चला क्योंकि श्रीकृष्ण ऐसा ही चाहते थे। और कोई ऐसा नही था जो उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त कर देता।आशा है आपको उत्तर तर्कसंगत लगा होगा। अब जाते जाते आपको एक प्रश्न के साथ छोड़े जा रही हूँ।"आपमे से कितने लोगों को लगता है कि वर्तमान में पृथ्वी का भार (जनसंख्या) उतारने के लिए ऐसे ही किसी महायुद्ध की आवश्यकता है?"जय श्रीकृष्ण। 🚩

By वनिता कासनियां पंजाब

कोई नही। अगर कर सकता तो महाभारत के युद्ध को 18 दिनों तक चलने की आवश्यकता ही नही थी।

इस उत्तर को पढ़ने से पहले अनुरोध है कि अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा को कृपया थोड़ी देर अलग रख दें। हम सभी की श्रीकृष्ण में श्रद्धा है किंतु इस युद्ध के वास्तविक कारण और महत्व को समझने के लिए कृपया कुछ देर के लिए हम श्रीकृष्ण को ईश्वर ना समझ कर एक असाधारण मनुष्य मान लेते हैं ताकि दोनो पक्षों का बल अच्छे तरह से समझ सकें। आइये अब आरम्भ करते हैं।

  • जो लोग बर्बरीक का नाम ले रहे हैं उन्हें ये बता दूं कि बर्बरीक जैसा कोई चरित्र मूल व्यास महाभारत में है ही नही। अर्थात घटोत्कच के पुत्र के रूप में बर्बरीक, अंजनपर्व एवं मेघवर्ण का वर्णन तो है लेकिन बर्बरीक की तपस्या, सिद्धि, तीन बाण, शीश दान इत्यादि का जो वर्णन है वो मूल व्यास महाभारत में नही है। वो कथा लोककथाओं में अधिक प्रसिद्ध है। और अगर था भी तो वरदान प्राप्त योद्धाओं की महाभारत में कोई कमी नही थी। इसीलिए बर्बरीक को यही पर छोड़ देते हैं।
  • अर्जुन के दिव्यास्त्रों की भी बड़ी चर्चा होती है किंतु ये भी याद रखें कि वो अकेला नही था जिसके पास दिव्यास्त्र थे। महाभारत का युद्ध उन योद्धाओं से भरा था जिनके पास विभिन्न प्रकार के दिव्यास्त्र थे। भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, भगदत्त, कृपाचार्य, कृतवर्मा, जयद्रथ, सुशर्मा, बाह्लीक, सुदक्षिण, श्रीकृष्ण, सात्यिकी, द्रुपद, विराट, धृतकेतु, मलयध्वज इत्यादि ऐसे योद्धा थे जिनके पास अनेकानेक दिव्यास्त्र थे।
  • ऐसा ना समझें कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ ही नही। दोनो पक्षों के योद्धाओं द्वारा कई बार दिव्यास्त्र का प्रयोग हुआ। विशेषकर भीष्म और अर्जुन के युद्ध मे कई बार दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ और अर्जुन और कर्ण के अंतिम युद्ध मे तो केवल दिव्यास्त्रों का ही प्रयोग हुआ।
  • अगर महास्त्रों (ध्यान दें, साधारण दिव्यास्त्र नही) की बात की जाए तो ये सत्य है कि अर्जुन के पास पाशुपतास्त्र था जिससे सबका नाश तत्काल किया जा सकता था किंतु पाशुपत उस युद्ध मे कभी प्रयोग ही नही किया गया। उसका एक कारण ये भी था कि पाशुपत का प्रयोग स्वयं से निर्बल शत्रु पर नही किया जा सकता था अन्यथा वो चलाने वाले का ही नाश कर देता था। महाभारत में अर्जुन के समकक्ष योद्धा गिने चुने ही थे इस लिए भी पाशुपतास्त्र का प्रयोग नही किया गया। दूसरा महाअस्त्र नारायणास्त्र अश्वथामा के पास था और उसका प्रयोग हुआ भी किन्तु श्रीकृष्ण ने पांडवों को बचा लिया। अब अगर बात करें ब्रह्मास्त्र की तो उस युग मे भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा और अर्जुन, इन पाँच योद्धाओं के पास ब्रह्मास्त्र था। इनमें से अश्वथामा के पास ब्रह्मास्त्र का अधूरा ज्ञान ही था। कर्ण को इसका पूरा ज्ञान था किंतु वो श्रापग्रस्त था इसी कारण अर्जुन से अंतिम युद्ध मे ब्रह्मास्त्र का प्रयोग ना कर सका। इसके अतिरिक्त परशुराम के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु उन्होंने युद्ध मे भाग नही लिया। कुछ लोग समझते हैं कि श्रीकृष्ण के पास भी ब्रह्मास्त्र था किंतु ऐसा नही है, उनके पास ब्रह्मास्त्र होने का कोई वर्णन महाभारत में नही है। किन्तु श्रीकृष्ण तो श्रीहरि के पूर्णावतार है इसीलिए उनके पास ब्रम्हास्त्र होने, ना होने से कोई फर्क नही पड़ता।
  • इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे दिव्यास्त्र भी थे जिनका प्रयोग केवल किसी एक योद्धा को ही था। जैसे प्रस्वापास्त्र केवल भीष्म के पास ही था, जिसका प्रयोग वे परशुराम के विरुद्ध युद्ध मे करने वाले थे किंतु किया नही। नारायणास्त्र का ज्ञान केवल अश्वथामा और श्रीकृष्ण को था और भार्गवास्त्र का ज्ञान केवल कर्ण के पास ही था। इसके अतिरिक्त सुदर्शन चक्र को केवल श्रीकृष्ण और परशुराम ही धारण कर सकते थे और पाशुपतास्त्र केवल अर्जुन के पास था। पता नही ये कितना प्रामाणिक है किंतु कई जगह वर्णन है कि भीष्म और द्रोण के पास ब्रह्मशिरा का ज्ञान भी था जो उन्हें परशुराम से मिला। ब्रह्मशिरा ब्रह्मास्त्र से 4 गुणा अधिक शक्तिशाली होता है। हालांकि परशुराम ने कर्ण को ये ज्ञान नही दिया और ना ही द्रोण ने अर्जुन और यहाँ तक कि अश्वत्थामा को भी इसका ज्ञान नही दिया।
  • इतने वृहद विश्लेषण की आवश्यकता इसीलिए पड़ी कि आप ये समझ लें कि महाभारत में केवल अर्जुन के पास ही दिव्यास्त्र नही थे। हाँ, अन्य योद्धाओं की तुलना में उसके पास कुछ अधिक दिव्यास्त्र थे जो उसने इंद्र से प्राप्त किये थे। दूसरे कि जो ये समझते हैं कि महाभारत में दिव्यास्त्रों का प्रयोग नही हुआ वे भी गलत हैं। उस महायुद्ध में भयंकर मात्रा में दिव्यास्त्रों का प्रयोग हुआ था। उस युद्ध मे ऐसे कई योद्धा थे जो शीघ्रता से उस युद्ध को समाप्त कर सकते थे। जैसा कि श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि अगर केवल भीष्म नही होते तो वो युद्ध केवल 1 दिन में जीता जा सकता था।
तो अब प्रश्न आता है कि जब महाभारत में इतने महान योद्धा थे तो वो युद्ध 18 दिनों तक क्यों खिंच गया? उत्तर है केवल श्रीकृष्ण के कारण।

आप इस युद्ध के उद्देश्य को जानने का प्रयास कीजिये। श्रीकृष्ण का उद्देश्य इस युद्ध के द्वारा अधिक से अधिक योद्धाओं का नाश कराना था और वो भी दोनों ओर से। कहा जाता है कि उस समय पृथ्वी का भार इतना बढ़ गया था कि उसके बोझ से पृथ्वी फट जाती। पृथ्वी का बोझ कम करना अत्यंत आवश्यक था और श्रीकृष्ण का अवतरण वास्तव में इसी कारण हुआ था, ना कि कंस को मारने के कारण। अगर ये युद्ध जल्दी समाप्त हो जाता तो उनका ये उद्देश्य पूर्ण नही हो पाता। यही कारण है कि उनके ही कारण ये युद्ध इतने दिनों तक चला।

वास्तव में श्रीकृष्ण उस युद्ध मे अद्भुत भूमिका निभा रहे थे। उन्हें दोनो ओर के योद्धाओं का नाश भी कराना था और इस बात का ध्यान भी रखना था कि पांडवों की पराजय ना हो। वो उस युद्ध मे कितने दवाब में होंगे इसका हम और आप अनुमान भी नही लगा सकते।

यही कारण था कि उन्होंने युद्ध मे शस्त्र ना उठाने की प्रतिज्ञा कर ली और उनकी प्रेरणा से बलराम ने भी युद्ध मे भाग नही लिया ताकि वो युद्ध अधिक समय तक चल सके। इन दोनो के युद्ध मे भाग लेने पर संभव था कि युद्ध कुछ जल्दी समाप्त हो जाता और श्रीकृष्ण का उद्देश्य अधूरा रह जाता। जो लोग उनपर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हैं वे ये जान लें कि महाभारत के 36 वर्ष पश्चात जब यादवों की संख्या और बल बहुत अधिक बढ़ गया तो स्वयं श्रीकृष्ण और बलराम ने अपने ही यादव वंश का नाश कर दिया। गांधारी का श्राप तो बस निमित्तमात्र था।

अब जाते जाते श्रीकृष्ण को एक योद्धा के रूप में भी देख लेते हैं। वे श्रीहरि के पूर्ण अवतार थे और उनकी सभी 16 कलाओं के साथ जन्में थे। श्रीहरि के सभी शस्त्र उनके पास थे किंतु इसपर भी कई युद्ध मे उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा था। हालांकि इसके पीछे भी उनका उद्देश्य वही था जो महाभारत युद्ध के पीछे था।

जैसे जरासंध से वे 18 वर्ष तक युद्ध करते रहे और उसकी सेना को समाप्त करने के बाद भी मथुरा छोड़ द्वारिका में आकर बस गए। शाल्व और उनका द्वंद 26 दिनों तक चला था। सुभद्रा के वचन के कारण जब श्रीकृष्ण और अर्जुन में युद्ध हुआ था तो वो 11 दिनों तक चलता रहा जबतक दोनो ने स्वयं युद्ध नही रोका। पौंड्रक और उनका युद्ध 16 दिनों तक चला था, एकलव्य का वध उन्होंने तीन दिन के युद्ध के पश्चात किया। जाम्बवन्त और उनका युद्ध 23 दिनों तक चला। बाणासुर के साथ उनका युद्ध 1 मास तक चला जिसके बाद अंततः भगवान शंकर को बाणासुर की सहायता के लिए आना पड़ा।

इसीलिए ये जान लें कि महाभारत का युद्ध इतने दिन इसी कारण चला क्योंकि श्रीकृष्ण ऐसा ही चाहते थे। और कोई ऐसा नही था जो उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उस युद्ध को शीघ्रता से समाप्त कर देता।

आशा है आपको उत्तर तर्कसंगत लगा होगा। अब जाते जाते आपको एक प्रश्न के साथ छोड़े जा रही हूँ।

"आपमे से कितने लोगों को लगता है कि वर्तमान में पृथ्वी का भार (जनसंख्या) उतारने के लिए ऐसे ही किसी महायुद्ध की आवश्यकता है?"

जय श्रीकृष्ण। 🚩

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।#राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

*कालिदास बोले 😗 माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.*स्त्री बोली 😗 बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।*कालीदास ने कहा 😗 मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।*कालिदास ने कहा 😗 मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?.(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)*कालिदास बोले 😗 मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।*स्त्री ने कहा 😗 नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)*कालिदास बोले 😗 मैं हठी हूँ ।.*स्त्री बोली 😗 फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)*कालिदास ने कहा 😗 फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।.*स्त्री ने कहा 😗 नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)*वृद्धा ने कहा 😗 उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)*माता ने कहा 😗 शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।.कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।शिक्षा :-विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *अन्न के कण को* "और"*आनंद के क्षण को* 🙏Jai Mata Di🙏