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महाभारत और गीता भाग - १२ ( बारह )प्राचीन काल में अरण्य ( जंगल ) में ऋषि - गण अपने शिष्यों से अध्यात्म की चर्चा किया करते थे ।by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब साधारणत: अध्यात्म - चर्चा नीरव एवं शांत वातावरण में होती है , जहां पहले से ही प्रश्नकर्त्ता एवं उत्तर- दाता की मन:स्थिति इसके लिए तैयार रहती है । जैसे वातावरण शांत रहता है , वैसे ही प्रश्न -कर्ता एवं उत्तरदाता दोनों का मन भी शांत रहता है । कोलाहल से दूर शांत वातावरण का चयन इसलिए किया जाता है , ताकि प्रश्नकर्ता के मन में एकाग्रता आ सके और वह पूर्ण मनोयोग से श्रवण कर उसे हृदयंगम कर सके । भगवद्गीता का अमृतमय संदेश धृतराष्ट्र एवं पाण्डु दोनों पक्षों के जीवन - मरण के घोर कोलाहल के बीच कुरुक्षेत्र के समरांगण में भगवान श्रीकृष्ण ने सिर्फ अर्जुन को दिया था । समग्र संसार में भगवत् - गीता ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है , जो रण - क्षेत्र में अध्यात्म का प्रतिपादन करती है । सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि भगवत् - गीता में प्रश्नों के उत्तरदाता प्रश्नकर्ता के संधि दूत बने हैं । धृतराष्ट्र एवं पांडु पुत्रों के बीच सुलह कराने के लिए संजय एवं श्री कृष्ण दोनों ने प्रयास किया था । धृतराष्ट्र के दूत के रूप में संजय पांडवों से मिलने गए थे ,तो स्वयं श्री कृष्ण पांडव पक्ष अर्थात् अर्जुन की ओर से कौरवों की सभा में दूत बनकर संधि का प्रस्ताव रखने गए थे। धृतराष्ट्र प्रश्नकर्ता है , तो संजय उत्तरदाता है। दूसरी ओर अर्जुन प्रश्नकर्ता है , तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण उतरदाता हैं। ऐसी घटना दुनिया के किसी भी संवादमय प्रश्नोत्तरी में नहीं हुई है ,जहां उत्तरदाता प्रश्नकर्ता के दूत भी रह चुके हैं। इस तथ्य को सर्वदा स्मरण रखना होगा । तभी हम आगे चलकर भगवान की वाणी को समझ पाने में समर्थ हो सकेंगे कि भगवान ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए क्यों प्रेरित किया ?हम हम सभी जानते हैं कि प्रश्नकर्ता सदैव अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति से ही जवाब चाहता है ।विद्यार्थी अपने शिक्षक अथवा आचार्य से तथा शिष्य अपने गुरु से अपनी समस्या का समाधान कराना चाहता है। शिक्षक विद्यार्थी से एवं गुरु शिष्य से श्रेष्ठ होता है । लेकिन भगवत् - गीता के अंतर्गत सर्वप्रथम प्रश्न करने वाले धृतराष्ट्र चक्रवर्ती सम्राट हैं और उनका उत्तर देने वाला उनका मंत्री संजय है । मंत्री का पद सम्राट के पद के नीचे होता है । इसी प्रकार महारथी अर्जुन अपने सारथी से प्रश्न करता है । सारथी से सदैव रथी एवं महारथी श्रेष्ठ होता है । साधारणत: विश्व में कहीं भी श्रेष्ठ व्यक्ति अपने पद से छोटे पद के व्यक्ति से प्रश्न नहीं करता । लेकिन भगवत् - गीता में ऐसा ही हुआ है।ऐसा ही श्री राम चरित मानस में भी हुआ है , जहां पक्षीराज गरुड़ एक सामान्य पक्षी काकभुशुण्डि से प्रश्न करते हैं। ऐसा ही अष्टावक्र - गीता में भी हुआ है , जहां राजा जनक एक सामान्य ऋषि - पुत्र अष्टावक्र से प्रश्न करते हैं। भगवद्गीता के अलावा उपर्युक्त दोनों प्रसंगों का भी अध्ययन करना चाहिए। समय निकालकर पढ़ने के लिए आपको अंतर्मन से बहुत-बहुत धन्यवाद।

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🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।#राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

*कालिदास बोले 😗 माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.*स्त्री बोली 😗 बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।*कालीदास ने कहा 😗 मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।*कालिदास ने कहा 😗 मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?.(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)*कालिदास बोले 😗 मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।*स्त्री ने कहा 😗 नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)*कालिदास बोले 😗 मैं हठी हूँ ।.*स्त्री बोली 😗 फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)*कालिदास ने कहा 😗 फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।.*स्त्री ने कहा 😗 नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)*वृद्धा ने कहा 😗 उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)*माता ने कहा 😗 शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।.कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।शिक्षा :-विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *अन्न के कण को* "और"*आनंद के क्षण को* 🙏Jai Mata Di🙏