सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

シュリゴパルについて ヴィシュヌ・ジはクリシュナ卿をフルタイムで崇拝し、救いを得ると信じられています。 Shri Krishnajiは、Devakinandan、Vasudev、Balagopalとしても知られています。 バルゴパルはシュリクリシュナの子の形であると言われています。 クリシュナジは髪の毛がとてもいたずらでした。 ヒンドゥー教によると、クリシュナのバルゴパル形式が最も尊敬されていると考えられています。 クリシュナ卿の子供を崇拝することは、子供がいないカップルにとって非常に幸運であると考えられています。 チャイルドバルゴパルマントラは、子供がいないカップルの祝福と見なされているそのようなマントラの1つです。 *ソーシャルワーカーVanitaKasani Punjab Ram RamJiによる*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।#राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

, श्याम प्यारे🥀🙏🥀मेरी हर शायरी दिल के दर्द को करता बयां।🙏😔🙏तुम्हारी आँख न भर आये कही पढ़ते पढ़ते।😭😭😔 कभी तो अपनी दासी की ओर निहारोगे🙏🙏🙏🙏Meriradharani

Shyam dear All my poetry is about heartache. Do not fill your eyes and study.

कैसे बन गए भगवान कृष्ण लड्डू गोपाल? जानिए इसके पीछे का रहस्य By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पास भगवान श्रीकृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा उनकी पूजा में ही लीन रहते थे। वह अपने प्रभु को कभी भी कहीं छोड़कर नहीं जाते थे।एक बार कुंभनदास के लिए वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने उस भागवत में जाने से मना कर दिया। परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे। इसके बाद वह भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह उनकी पूजा का नियम नहीं टूटेगा। कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझा दिया कि मैंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए भोग तैयार कर दिया है। तुम बस ठाकुर जी को भोग लगा देना और इतना कहकर वह चले गए।कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे विनती की कि वह आएं और भोग लगाएं। रघुनंदन मन ही मन ये सोच रहा था कि ठाकुरजी आएंगे और अपने हाथों से खाएंगे जैसे सभी मनुष्य खाते हैं। कुंभनदास के बेटे ने कई बार भगवान श्रीकृष्ण से आकर खाने के लिए कहा, लेकिन भोजन को उसी प्रकार से देखर वह निराश हो गया और रोने लगा। उसने रोते-रोते भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान आकर भोग लगाइए। उसकी पुकार सुनकर ठाकुर जी ने एक बालक का रूप रखा और भोजन करने के लिए बैठ गए। जिसके बाद रघुनंदन के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वृंदावन से भागवत करके जब कुंभनदास घर लौटा तो उसने अपने बेटे से प्रसाद के बारे में पूछा। रघुनंदन ने अपने पिता से कहा ठाकुरजी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा कि अभी रघुनंदन नादान है। उसने सारा प्रसाद खा लिया होगा और डांट की वजह से झूठ बोल रहा है। अब रोज कुंभनदास भागवत के लिए जाते और शाम तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था।कुंभनदास को लगा कि अब उनका पुत्र कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने लगा है, लेकिन उनका पुत्र ऐसा क्यों कर रहा है? यह देखने के लिए कुंभनदास ने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रख दिए और दूर से छिपकर देखने लगे। रघुनंदन ने रोज की तरह ठाकुर जी को आवाज दी और ठाकुर जी एक बालक के रूप में कुंभनदास के बेटे के सामने प्रकट हुए। रघुनंदन ने ठाकुरजी से फिर से खाने के लिए आग्रह किया। जिसके बाद ठाकुर जी लड्डू खाने लगे। बाल वनिता महिला आश्रमकुंभनदास जो दूर से इस घटना को देख रहे थे, वह तुरंत ही आकर ठाकुर जी के चरणों में गिर गए। ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू और दूसरे हाथ का लड्डू मुख में जाने वाला ही था, लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर स्थिर हो गए।. तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप की पूजा की जाने लगी और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाए जाने लगे.

कैसे बन गए भगवान कृष्ण लड्डू गोपाल? जानिए इसके पीछे का रहस्य By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पास भगवान श्रीकृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा उनकी पूजा में ही लीन रहते थे। वह अपने प्रभु को कभी भी कहीं छोड़कर नहीं जाते थे। एक बार कुंभनदास के लिए वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने उस भागवत में जाने से मना कर दिया। परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे। इसके बाद वह भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह उनकी पूजा का नियम नहीं टूटेगा। कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझा दिया कि मैंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए भोग तैयार कर दिया है। तुम बस ठाकुर जी को भोग लगा देना और इतना कहकर वह चले गए। कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे विनती की कि वह आएं और भोग लगाएं। रघुनंदन मन ही मन ये सोच रहा था कि ठाकुरजी आएंगे और अपने हाथों से खाएंगे जैसे सभी मन...