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#माखनचोर 🌷गोपियाँ मानती है- कि जब कुछ अच्छा हो तो लाला ने किया और बुरा हुआ तो मेरे से हुआ। दूसरी गोपी कहने लगी -माँ तुमसे क्या कहु ?मै दूध-दही बेचने निकली। न जाने रास्ते मुझे ऐसा लगा कि मेरी मटुकी में कन्हैया छिपा हुआ है। मटुकी उतार कर देखा तो उसमे लाला के दर्शन हुए। अब कन्हैया को भी कहीं बेचा जा सकता है? कुछ भी बेचे बिना घर वापस लौटी तो घरमें मेरी फजीयत हुई। अपनी बुध्धिरूपी मटुकी में जो कन्हैया समाया हुआ होगा तो हर कहीं उसके दर्शन होते रहेंगे। गोपियाँ अपनी बुद्धी में,मन में ठाकुरजी को बिराजमान रखती थी। गोपियाँ भले घर में है,परन्तु उनके मन में घर नहीं है। उनके मन में श्रीकृष्ण है। वे सदा श्रीकृष्ण का स्मरण करती है। गोपियाँ गेरू वस्त्र नहीं पहनती फिर भी उनका मन कृष्ण-प्रेम में रंगा रहता है। यह तो गोपियों के प्रेमसन्यास की कथा है। यही है गोपियों के मन की तन्मयता और निरोध। कृष्ण में तन्मयता हो जाने के कारण गोपियाँ संसार-व्यवहार के कार्य कर नहीं पाती थी। कृष्णप्रेम में सुधबुध खोकर न करने योग्य काम कर बैठती थी। फिर भी कन्हैया उनका काम संवारता था.शुकदेवजी सन्यासी,परमहंस है। गोपियों की कथा करते है। गोपियाँ भी परमहंस है। सभी कामकाज से निवृति होने के बाद भक्ति करना मर्यादा भक्ति है। मर्यादा भक्ति में व्यवहार और भक्ति अलग होते है। पर पुष्टि भक्ति में ऐसा नहीं है। उसमे व्यवहार और भक्ति एक है। हरेक कार्य में ईश्वर का अनुसंधान वह पुष्टि भक्ति है। गोपियाँ तो हर कार्य में ईश्वर का अनुसंधान रखती है। यह सिध्धांत महाप्रभुजी ने आगे बढ़ाया है। महाप्रभुजीने सुबोधिनिजीमें गोपियों को प्रेम सन्यासिनी कहा है। गोपिया के पास केवल निःस्वार्थ प्रेम है। वस्त्र-सन्यास की अपेक्षा प्रेम-सन्यास उत्तम है। कृष्णप्रेम में ह्रदय पिघलने पर संन्यास हो पाता है और तभी वह उजागर होता है। सर्व कर्म का न्यास-त्याग सन्यास है। ईश्वर के लिए जो जीता है,वही सन्यासी है। गोपियाँ ईश्वर के लिए जीती थी अतः उन्हें प्रेम-सन्यासिनी कहा गया है। माखनचोरी लीला का यही रहस्य है। मन माखनसा मृदु है। मन की चोरी ही तो माखनचोरी है। कृष्ण औरो के चित चोर लेते है,फिर भी वे पकडे नहीं जाए। पकड़ा जाने वाला चोर तो सामान्य चोर होता है किन्तु कन्हैया तो अनोखा चोर है। उन्हें तो गोपियोंके मनका निरोध करना था। मनको -किसी भी अन्य विषयों में जाने से बचाना था। गोपियाँ अर्थात इंद्रिय। सभी इन्द्रियाँ हमेशा ईश्वर ही का चिंतन करती रहे,इसी हेतु से इन सब लीलाओं की रचना की गई है। यशोदाजी ने गोपियों से कहा-अरी सखी,कन्हैया आता है उसकी खबर तुम्हे होती है तो फिर तुम उस दिन घर में माखन न रखो। दो-चार बार आएगा और माखन न मिलने पर,फिर वापस नहीं आएगा। गोपी बोली -माँ,तुम हमे क्या सीख दोगे?आपने सीख दी वह भी हम कर चुके है पर काम नहीं आई।🙏🏻 जय श्री कृष्ण🙏🏻#बाल_वनिता_महिला_आश्रम #संगरिया की #टीम#बे_सहारा #दिलों की #धड़कन #गरीबों के #मसीहा #किसानों के #किसान 72 #कोम को #साथ में लेकर चलने वाले #सच्चे और #ईमानदार हर #इंसान की #हेल्प करने वाले #बाल #वनिता #महिला #आश्रम की #संस्था#Vnita🙏🙏🎉#विधायक #मोदीराज #बीजेपी #कांग्रेस #गुरदीप #सिंह #सहयोग#गुरदीप #किसान#कांग्रेस #वनिता

#माखनचोर 🌷
गोपियाँ मानती है- कि जब कुछ अच्छा हो तो लाला ने किया और बुरा हुआ तो मेरे से हुआ। 

 दूसरी गोपी कहने लगी -माँ तुमसे क्या कहु ?मै दूध-दही बेचने निकली। न जाने रास्ते मुझे ऐसा लगा कि मेरी मटुकी में कन्हैया छिपा हुआ है। मटुकी उतार कर देखा तो उसमे लाला के दर्शन हुए। 
अब कन्हैया को भी कहीं बेचा जा सकता है? कुछ भी बेचे बिना घर वापस लौटी तो घरमें मेरी फजीयत हुई। 

 अपनी बुध्धिरूपी मटुकी में जो कन्हैया समाया हुआ होगा तो हर कहीं उसके दर्शन होते रहेंगे। 
गोपियाँ अपनी बुद्धी में,मन में ठाकुरजी को बिराजमान रखती थी। 
गोपियाँ भले घर में है,परन्तु उनके मन में घर नहीं है। उनके मन में श्रीकृष्ण है। 
वे सदा श्रीकृष्ण का स्मरण करती है। 

 गोपियाँ गेरू वस्त्र नहीं पहनती फिर भी उनका मन कृष्ण-प्रेम में रंगा रहता है। 
यह तो गोपियों के प्रेमसन्यास की कथा है। 
यही है गोपियों के मन की तन्मयता और निरोध। 

 कृष्ण में तन्मयता हो जाने के कारण गोपियाँ संसार-व्यवहार के कार्य कर नहीं पाती थी। 
कृष्णप्रेम में सुधबुध खोकर न करने योग्य काम कर बैठती थी। फिर भी कन्हैया उनका काम संवारता था.
शुकदेवजी सन्यासी,परमहंस है। गोपियों की कथा करते है। गोपियाँ भी परमहंस है। 

 सभी कामकाज से निवृति होने के बाद भक्ति करना मर्यादा भक्ति है। 
मर्यादा भक्ति में व्यवहार और भक्ति अलग होते है। 
पर पुष्टि भक्ति में ऐसा नहीं है। उसमे व्यवहार और भक्ति एक है। 
हरेक कार्य में ईश्वर का अनुसंधान वह पुष्टि भक्ति है। गोपियाँ तो हर कार्य में ईश्वर का अनुसंधान रखती है। 

 यह सिध्धांत महाप्रभुजी ने आगे बढ़ाया है। महाप्रभुजीने सुबोधिनिजीमें गोपियों को प्रेम सन्यासिनी कहा है। गोपिया के पास केवल निःस्वार्थ प्रेम है। वस्त्र-सन्यास की अपेक्षा प्रेम-सन्यास उत्तम है। 
कृष्णप्रेम में ह्रदय पिघलने पर संन्यास हो पाता है और तभी वह उजागर होता है। 
सर्व कर्म का न्यास-त्याग सन्यास है। ईश्वर के लिए जो जीता है,वही सन्यासी है। 
गोपियाँ ईश्वर के लिए जीती थी अतः उन्हें प्रेम-सन्यासिनी कहा गया है। 

 माखनचोरी लीला का यही रहस्य है। मन माखनसा मृदु है। मन की चोरी ही तो माखनचोरी है। 
कृष्ण औरो के चित चोर लेते है,फिर भी वे पकडे नहीं जाए। पकड़ा जाने वाला चोर तो सामान्य चोर होता है 
किन्तु कन्हैया तो अनोखा चोर है। उन्हें तो गोपियोंके मनका निरोध करना था। 
मनको -किसी भी अन्य विषयों में जाने से बचाना था। 

 गोपियाँ अर्थात इंद्रिय। 
सभी इन्द्रियाँ हमेशा ईश्वर ही का चिंतन करती रहे,इसी हेतु से इन सब लीलाओं की रचना की गई है। 

 यशोदाजी ने गोपियों से कहा-अरी सखी,कन्हैया आता है उसकी खबर तुम्हे होती है तो फिर तुम उस दिन घर में माखन न रखो। दो-चार बार आएगा और माखन न मिलने पर,फिर वापस नहीं आएगा। 
गोपी बोली -माँ,तुम हमे क्या सीख दोगे?आपने सीख दी वह भी हम कर चुके है पर काम नहीं आई।
#बाल_वनिता_महिला_आश्रम 
#संगरिया 
की #टीम
#बे_सहारा #दिलों की #धड़कन #गरीबों के #मसीहा #किसानों के #किसान 72 #कोम को #साथ में लेकर चलने वाले #सच्चे और #ईमानदार हर #इंसान की #हेल्प करने वाले #बाल #वनिता #महिला #आश्रम की #संस्था
#Vnita🙏🙏🎉

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🙏🏻 जय श्री कृष्ण🙏🏻

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🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

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In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

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