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▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬*‼️ॐ श्री श्याम देवाय नमः‼️* *꧁‼️जय श्री श्याम‼️꧂*▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬By वनिता कासनियां पंजाब*लीले घोड़े चढ़कर बाबा,**घूमेगा जब गाँव में!**बिन पायल घुंघरू बजेंगे,**हर प्रेमी के पाँव में!**माँझी की दरकार ना होगी,**फिर किसी भी नाव में!**जब साँवरा नाव तिराये,**मोर छड़ी की छाँव में!* *🙌मेरा श्याम मेरी जिदंगी🙌* *༺꧁जय श्री श्याम꧂༻* *༺꧁जय श्री राम꧂༻*

▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬*‼️ॐ श्री श्याम देवाय नमः‼️* *꧁‼️जय श्री श्याम‼️꧂*▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬ By वनिता कासनियां पंजाब *लीले घोड़े चढ़कर बाबा,**घूमेगा जब गाँव में!**बिन पायल घुंघरू बजेंगे,**हर प्रेमी के पाँव में!**माँझी की दरकार ना होगी,**फिर किसी भी नाव में!**जब साँवरा नाव तिराये,**मोर छड़ी की छाँव में!* *🙌मेरा श्याम मेरी जिदंगी🙌* *༺꧁जय श्री श्याम꧂༻* *༺꧁जय श्री राम꧂༻*

हम भगवान को रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो ईश्वर की बनाई हुई है, जो ईश्वर को भेंट करते हैं, लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै ईश्वर को दे रहा हूँ, और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें, ऎसा करना और सोचना मूर्खतापूर्ण हैं... 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 हम यह नहीं समझते कि ये सब उनका ही है, और उनको इन सब चीजो कि कोई जरुरत भी नही, अगर उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, अपना विश्वास दिजिए, अपने हर एक श्वास मे याद करो, तभी प्रभु जरुर खुश होगें, भाव से किया गया सत्संग, सत्कर्म प्रभु के निकट पहुंचने का द्वार हैं... 🌹🌹🌹🌹 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂 इस जीवन की चादर में... ❣️सांसों के ताने बाने हैं... ❣️दुख की थोड़ी सी सलवट है...... ❣️तो सुख के कुछ फूल सुहाने हैं.क्यों सोचु आगे क्या होगा.....❣️कल का क्या ठिकाना..❣️ऊपर बैठा बाजीगर ने...... ❣️न जाने क्या मन में ठाना है...... ❣️चाहे जितना भी जतन करके... भरले दामन तारों से... ❣️झोली में वो ही आएँगे...... ❣️जो तेरे नाम के दाने है..❣️ 💞🍂💞🍂💞🍂💞🍂💞#Vnita🙏❤️❣️राधे राधे ❣️❣️जय श्री कृष्ण.....💞🙏🏻💞🙏🏻💞

हम भगवान को रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज जो ईश्वर की बनाई हुई है, जो ईश्वर को भेंट करते हैं, लेकिन मन मे भाव रखते है की ये चीज मै ईश्वर को दे रहा हूँ, और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो जाएगें, ऎसा करना और सोचना मूर्खतापूर्ण हैं...                 🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂           हम यह नहीं समझते कि ये सब उनका ही है, और उनको इन सब चीजो कि कोई जरुरत भी नही, अगर उन्हे कुछ देना चाहते हैं तो अपनी श्रद्धा दीजिए, अपना विश्वास दिजिए, अपने हर एक श्वास मे याद करो, तभी प्रभु जरुर खुश होगें, भाव से किया गया सत्संग, सत्कर्म प्रभु के निकट पहुंचने का द्वार हैं... 🌹🌹🌹🌹       🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂🌿🍂        इस जीवन की चादर में... ❣️ सांसों के ताने बाने हैं... ❣️ दुख की थोड़ी सी सलवट है...... ❣️ तो सुख के कुछ फूल सुहाने हैं. क्यों सोचु आगे क्या होगा.....❣️ कल का क्या ठिकाना..❣️ ऊपर बैठा बाजीगर ने...... ❣️ न जाने क्या मन में ठाना है...... ❣️ चाहे जितना भी जतन करके...  भरले दामन तारों से... ❣️ झ...

ग्रह-नक्षत्र, कर्मफल और सुख-दु:ख क्या है? क्या स्वकर्म से ही बनती है मनुष्य की जन्मकुण्डली!!!!! !By #वनिता #कासनियां #पंजाब🙏🙏❤️मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र हैं या उसके कर्म ? क्या दु:ख नाश के लिए ग्रह-नक्षत्रों की आराधना की जानी चाहिए या अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए ?सबको अपना भविष्य जानने की इच्छा होती है, इसके लिए हम ज्योतिष का सहारा लेते हैं । ज्योतिषशास्त्र कर्मफल बताने की विद्या है । ज्योतिषशास्त्र किसी भी मनुष्य के भावी सुख-दु:ख की भविष्यवाणी करता है और ग्रहों को इसका कारण मानकर ग्रहशान्ति के लिए दान-जप-हवन आदि उपाय बताता है ।कर्मों की गहन गति!!!!!!!!यह संसार मनुष्य की कर्मभूमि और भोगभूमि दोनों है। जन्म-जन्मान्तर में किए हुए समस्त कर्म संस्काररूप से मनुष्य के अंतकरण में एकत्र रहते हैं, उनका नाम ‘संचित कर्म’ है । उनमें से जो वर्तमान जन्म में फल देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं, उनका नाम ‘प्रारब्ध कर्म’ है और वर्तमान समय में किए जाने वाले कर्मों को ‘क्रियमाण कर्म’ कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र इन्हीं कर्मों के फल को उसी प्रकार दिखलाता है जैसे अंधेरे में पड़ी हुई वस्तु को दीपक का प्रकाश ।ग्रह-नक्षत्र शुभ-अशुभ फल नहीं देते, मनुष्य के कर्म से मिलता है सुख-दु:खमहाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार एक बार भगवान शंकर से पार्वतीजी ने पूछा—मनुष्यों की जो अच्छी-बुरी अवस्था है, वह सब उनकी अपनी ही करनी का फल है, किन्तु संसार में लोग शुभ-अशुभ कर्म को ग्रहजनित मानकर ग्रह-नक्षत्रों की आराधना करते रहते हैं, क्या यह ठीक है ?भगवान शंकर ने कहा—‘ग्रहों ने कुछ नहीं किया । ग्रह-नक्षत्र शुभ-अशुभ कर्मफल को उपस्थित नहीं करते हैं, अपना ही किया हुआ सारा कर्म शुभ-अशुभ फल देने वाला है ।’शुभ कर्मफल की सूचना शुभ ग्रहों द्वारा और बुरे कर्मों की सूचना अशुभ ग्रहों द्वारा होती है।वास्तव में किसी भी मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र नहीं है । ग्रह कर्मों के फलदाता और कर्मफलों के सूचक हैं। जीवों के कर्मों का फल देने वाले भगवान श्रीविष्णु ही ग्रहरूप में रहते हैं । सूर्य का रामावतार, चन्द्रमा का कृष्णावतार, मंगल का नृसिंहावतार, बुध का बुद्धावतार, बृहस्पति का वामनावतार, शुक्र का परशुरामावतार, शनि का कूर्मावतार, राहु का वराहावतार और केतु का मीनावतार है । (लोमशसंहिता)मनुष्य के कर्मफल का भण्डार अक्षय है उसे भोगने के लिए ही जीव चौरासी लाख योनियों में शरीर धारण करता आ रहा है। इसीलिए मानव शरीर का एक नाम ‘भोगायतन’ है।कर्मफल अटल हैं इन्हें भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता है। हम अपने सुख-दु:ख, सौभाग्य-दुर्भाग्य के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं, इसके लिए विधाता या अन्य किसी को दोष नहीं दिया जा सकता है—ऐसा जानकर शान्त रहना चाहिए।रामचरितमानस में तुलसीदासजी कहते हैं—काहु न कोउ सुख दुख कर दाता ।निज कृत करम भोग सबु भ्राता ।। (राचमा २।९२।४)प्रकृति ने मानव जीवन में सन्तुलन के लिए यह व्यवस्था की है कि कुण्डली में छ: भाव सुख के व छ: भाव दु:ख के हैं । दु:ख के बीज से सुख का अंकुर फूटता है। सुख के फल में दु:ख की गुठली होती है । सुख-दु:ख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।जैसा बोयेंगे वैसा पायेंगे!!!!!!!जो हम बोते हैं, वही हमें कई गुना होकर वापिस मिलता है । प्रकृति की इस व्यवस्था से सुख बांटने पर वह हमें कई गुना होकर वापिस मिलता है और दूसरों को दु:ख देने पर वह भी कई गुना होकर हमारे पास आता है । जैसे बिना मांगे दु:ख मिलता है, वैसे ही बिना प्रयत्न के सुख मिलता है ।करम प्रधान बिस्व करि राखा ।जो जस करइ तो तस फलु चाखा ।। (राचमा २।२१९।४)जब सुख-दु:ख हमारे ही कर्मों का फल है तो सुख आने पर हम क्यों फूल जाएं और दु:ख पड़ने पर मुरझाएं क्यों ? क्योंकि सुख-दु:ख सदा रहने वाले नहीं और क्षण-क्षण में बदलने वाले हैं । सुख-दु:ख जब अपनी ही करनी का फल हैं तो एक के साथ राग और दूसरे के साथ द्वेष किसलिए ? गीता में भगवान कहते हैं—इहैव तैर्जित सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: । (५। १९)अर्थात्—जिन लोगों के मन में सुख-दु:ख के भोग में समता आ गई है उन्होंने तो इसी जन्म में और इसी शरीर से ही संसार को जीत लिया और वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो गए ।मनुष्य स्वयं भाग्यविधाता!!!!!!!भाग्य का विधान अटल है । जितने भी ज्योतिषीय उपाय हैं, वे सब तात्कालिक हैं । मनुष्य यदि अपने को एक खूंटे (इष्टदेव) से बांध ले और ध्यान-जप, सत्कर्म और ईश्वरभक्ति को अपना ले तो जीवन में सब कुछ शुभ ही होगा । कर्म रूपी पुरुषार्थ से ही मनचाहे फल की प्राप्ति होती है । मनुष्य स्वयं भाग्यविधाता है काल तो केवल कर्मफल को प्रस्तुत कर देता है ।यदि मनुष्य जन्म-मरण के जंजाल से छूटना चाहता है तो भगवान ने उसका भी रास्ता गीता में बताया है—‘ज्ञानाग्नि: सर्वकर्माणि भस्मसात् कुरते तथा ।’ (अध्याय ४। ३७)ज्ञानरूपी अग्नि संचित कर्म के बड़े-से-बड़े भण्डार को क्षणभर में जला डालती है । ज्ञान की चिनगारी जब पाप के ईंधन पर गिरती है तो पाप जलते हैं । ज्ञान को अपनाने पर कर्म सुधरेंगे । तत्वज्ञान होने से कर्म वास्तव में कर्म नहीं रह जाते तब उनका फल तो कैसे ही हो सकता है ? अत: समस्त कर्मों के साथ उनका कर्मफल भी मिट जाता है और जीव को पुन: शरीर धारण नहीं करना पड़ता ।यह ज्ञान क्या है? यह है— हम भगवान के हैं, वे हमारे हैं, फिर उनसे हमारा भेद क्या? हम दासत्व स्वीकार कर लें और जो कुछ करें उनके लिए करें (सब कर्म कृष्णार्पण कर दें) या फल की भावना का त्याग कर दें नहीं तो कर्म रूपी भयंकर सर्प काटता ही रहेगा। करने में सावधान रहें और जो हो जाए उसमें प्रसन्न रहे एवं भगवन्नाम जपते रहें, आप एक सच्चे कर्मयोगी बन जाएंगे।कर से कर्म करो विधि नाना ।मन राखो जहां कृपा निधाना ।।प्रभु बैठे आकाश में लेकर कलम दवात।खाते में वह हर घड़ी लिखते सबकी बात ।।मेरे मालिक की दुकान में सब लोगों का खाता ।जितना जिसके भाग्य में होता वह उतना ही पाता ।।क्या साधु क्या संत, गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी ।प्रभु की पुस्तक में लिखी है सबकी कर्म कहानी ।।सभी जनों के जमाखर्च का सही हिसाब लगाता ।बड़े-बड़े कानून प्रभु के, बड़ी बड़ी मर्यादा ।।किसी को कौड़ी कम नहीं देता और न दमड़ी ज्यादा ।इसीलिए तो दुनिया में वह जगतसेठ कहलाता ।।करते हैं सभी फैसले प्रभु आसन पर डट के ।उनके फैसले कभी न बदले, लाख कोई सर पटके ।।समझदार तो चुप रहता है, मूर्ख शोर मचाता ।अच्छी करनी करो चतुरजन, कर्म न करियो काला ।।धर्म कर्म मत भूलो रे भैया, समय गुजरता जाता ।मेरे मालिक की दुकान में सब लोगों का खाता ।।

ग्रह-नक्षत्र, कर्मफल और सुख-दु:ख क्या है? क्या स्वकर्म से ही बनती है मनुष्य की जन्मकुण्डली!!!!!! By #वनिता #कासनियां #पंजाब🙏🙏❤️ मनुष्य के सुख-दु:ख का कारण ग्रह-नक्षत्र हैं या उसके कर्म ? क्या दु:ख नाश के लिए ग्रह-नक्षत्रों की आराधना की जानी चाहिए या अच्छे कर्म करने का प्रयास करना चाहिए ? सबको अपना भविष्य जानने की इच्छा होती है, इसके लिए हम ज्योतिष का सहारा लेते हैं । ज्योतिषशास्त्र कर्मफल बताने की विद्या है । ज्योतिषशास्त्र किसी भी मनुष्य के भावी सुख-दु:ख की भविष्यवाणी करता है और ग्रहों को इसका कारण मानकर ग्रहशान्ति के लिए दान-जप-हवन आदि उपाय बताता है । कर्मों की गहन गति!!!!!!!! यह संसार मनुष्य की कर्मभूमि और भोगभूमि दोनों है। जन्म-जन्मान्तर में किए हुए समस्त कर्म संस्काररूप से मनुष्य के अंतकरण में एकत्र रहते हैं, उनका नाम ‘संचित कर्म’ है । उनमें से जो वर्तमान जन्म में फल देने के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं, उनका नाम ‘प्रारब्ध कर्म’ है और वर्तमान समय में किए जाने वाले कर्मों को ‘क्रियमाण कर्म’ कहते हैं । ज्योतिषशास्त्र इन्हीं कर्मों के फल को उसी प्रकार दिखलाता है जैसे अंधेरे में पड़ी हु...

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के अट्ठाईस नाम!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #हनुमानगढ़ #राजस्थान एक बार भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने पूछा—‘केशव ! मनुष्य बार-बार आपके एक हजार नामों का जप क्यों करता है, उनका जप करना तो बहुत ही थका देने वाला है । आप मनुष्यों की सुविधा के लिए एक हजार नामों के समान फल देने अपने दिव्य नाम बताइए ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है!भगवान के नामों का उच्चारण करना संसार के रोगों के नाश की सर्वश्रेष्ठ औषधि है । जैसे जलती हुई अग्नि को शान्त करने में जल सर्वोपरि साधन है, घोर अन्धकार को नष्ट करने में सूर्य ही समर्थ है, वैसे ही मनुष्य के अनन्त मानसिक दोषों—दम्भ, कपट, मद, मत्सर, क्रोध, लोभ आदि को नष्ट करने में भगवान का नाम ही समर्थ है । बारम्बार नामोच्चारण करने से जिह्वा पवित्र हो जाती है, मन को अत्यन्त प्रसन्नता होती है, समस्त इन्द्रियों को परम सुख प्राप्त होता है और सारे शोक-संताप नष्ट हो जाते हैं । श्रीमद्भागवत के अनुसार–’भगवान का नाम प्रेम से, बिना प्रेम से, किसी संकेत के रूप में, हंसी-मजाक करते हुए, किसी डांट-फटकार लगाने में अथवा अपमान के रूप में भी लेने से मनुष्य के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं ।’रामचरितमानस में कहा गया है–’भाव कुभाव अनख आलसहुँ । नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।’ भगवान का नाम लेकर जो जम्हाई भी लेता है उसके समस्त पाप भस्मीभूत हो जाते हैं–राम राम कहि जै जमुहाहीं । तिन्हहि न पाप पुंज समुहाहीं ।।श्रीकृष्ण और अर्जुन संवादएक बार भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने पूछा—‘केशव ! मनुष्य बार-बार आपके एक हजार नामों का जप क्यों करता है, उनका जप करना तो बहुत ही श्रम साध्य है । आप मनुष्यों की सुविधा के लिए एक हजार नामों के समान फल देने अपने दिव्य नाम बताइए ।’भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है । वह मनुष्य एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेध-यज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है । अमावस्या, पूर्णिमा तथा एकादशी तिथि को और प्रतिदिन प्रात:, मध्याह्न व सायंकाल इन नामों का स्मरण करने या जप करने से मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।’ समस्त पापनाशक भगवान के 28 दिव्य नामों का स्तोत्र (श्रीविष्णोरष्टाविंशति नाम स्तोत्रम् )अर्जुन उवाच !किं नु नाम सहस्त्राणि जपते च पुन: पुन: । यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व केशव ।।श्रीभगवानुवाचमत्स्यं कूर्मं वराहं च वामनं च जनार्दनम् । गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं मधुसूदनम् ।। पद्मनाभं सहस्त्राक्षं वनमालिं हलायुधम् । गोवर्धनं हृषीकेशं वैकुण्ठं पुरुषोत्तमम् ।। विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं हरिम् । दामोदरं श्रीधरं च वेदांगं गरुणध्वजम् ।। अनन्तं कृष्णगोपालं जपतोनास्ति पातकम् । गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च ।।भगवान श्रीकृष्ण के 28 दिव्य नाम हिन्दी में!!!!!!!#Vnita🙏🙏❤️मत्स्य,कूर्म,वराह,वामन,जनार्दन,गोविन्दपुण्डरीकाक्ष,माधव,मधुसूदन,पद्मनाभ,सहस्त्राक्ष,वनमाली,हलायुध,गोवर्धन,हृषीकेश,वैकुण्ठ,पुरुषोत्तम,विश्वरूप,वासुदेव,राम,नारायण,हरि,दामोदर,श्रीधर,वेदांग,गरुड़ध्वज,अनन्त,कृष्णगोपाल।जीवन की जटिलताओं में फंसे, हारे-थके, आत्म-विस्मृत सम्पूर्ण प्राणियों के लिए आज के जीवन में भगवन्नाम ही एकमात्र तप है, एकमात्र साधन है, एकमात्र धर्म है। इस मनुष्य जीवन का कोई भरोसा नहीं है । इसके प्रत्येक श्वास का बड़ा मोल है। अत: उसका पूरा सदुपयोग करना चाहिए।

हजार नामों के समान फल देने वाले भगवान श्रीकृष्ण के अट्ठाईस नाम!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #हनुमानगढ़ #राजस्थान एक बार भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने पूछा—‘केशव ! मनुष्य बार-बार आपके एक हजार नामों का जप क्यों करता है, उनका जप करना तो बहुत ही थका देने वाला है । आप मनुष्यों की सुविधा के लिए एक हजार नामों के समान फल देने अपने दिव्य नाम बताइए ।’ भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—‘मैं अपने ऐसे चमत्कारी 28 नाम बताता हूँ जिनका जप करने से मनुष्य के शरीर में पाप नहीं रह पाता है! भगवान के नामों का उच्चारण करना संसार के रोगों के नाश की सर्वश्रेष्ठ औषधि है । जैसे जलती हुई अग्नि को शान्त करने में जल सर्वोपरि साधन है, घोर अन्धकार को नष्ट करने में सूर्य ही समर्थ है, वैसे ही मनुष्य के अनन्त मानसिक दोषों—दम्भ, कपट, मद, मत्सर, क्रोध, लोभ आदि को नष्ट करने में भगवान का नाम ही समर्थ है । बारम्बार नामोच्चारण करने से जिह्वा पवित्र हो जाती है, मन को अत्यन्त प्रसन्नता होती है, समस्त इन्द्रियों को परम सुख प्राप्त होता है और सारे शोक-संताप नष्ट हो जाते हैं ।...

नामदेवजी ने घर में लगी आग में किए भगवान के दर्शन,जहां देखो वहां मौजूद कृष्ण प्यारा है!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसम्पूर्ण जगत भगवान में ही ओतप्रोतगीता (१०।३९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।अर्थ—हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है।यह सम्पूर्ण संसार साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, दिशाएं, वृक्ष, नदियां, समुद्र, जमीन, खम्भा, मकान जो भी चीज देखने, सुनने या चिन्तन में आती है—ये सब भगवान ही हैं। चर-अचर, जलचर, नभचर, थलचर, भूत-प्रेत, पिशाच, दानव, राक्षस, देवता, गंधर्व, चौरासी लाख योनियां, चौदह भुवन–इन सबका बीज एक भगवान ही हैं। इसमें भला-बुरा, अच्छा-गंदा, गुण-दोष आदि दो चीजें नहीं हैं। संसार के आदि में भी भगवान थे और अन्त में भी भगवान रहेंगे।श्रीमद्भागवत (२।९।३२) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘सृष्टि के पूर्व भी मैं ही था, मुझसे भिन्न कुछ भी नहीं था और सृष्टि के उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह दिखायी दे रहा है, वह मैं ही हूँ। जो सत्, असत् और उससे परे है, वह सब मैं ही हूँ तथा सृष्टि के बाद भी मैं ही हूँ एवं इन सबका नाश हो जाने पर जो कुछ बाकी रहता है, वह भी मैं ही हूँ।’माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के मुख में किए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन!!!!!गीता (११।७) में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं–’अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और जो कुछ देखना चाहता हो सो देख।’भगवान के यह वचन श्रीमद्भागवत के एक प्रसंग से सिद्ध होते हैं—भगवान के एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड हैं; उन ब्रह्माण्डों के रूप में भगवान ही प्रकट हुए हैं। एक बार कन्हैया ने मिट्टी खा ली। माता यशोदा ने छड़ी दिखाकर कन्हैया को डराते हुए मुंह खोलकर दिखाने के लिए कहा। कन्हैया ने जब अपना मुंह खोला तो उनके छोटे से मुख में माता को अनन्त लोक दिखाई दिए। यहां तक कि पृथ्वी, भारतवर्ष, व्रज और व्रज में भी नंदगाव दिखाई दिया। नन्दगांव में भी माता यशोदा ने नन्दबाबा का घर देखा। उसमें भी अपनी गोद में कन्हैया को बैठे देखा। इस प्रकार माता ने भगवान के मुख में अनन्त सृष्टि को देखा। इससे स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण के सिवाय कोई दूसरी चीज है ही नही–‘वासुदेव: सर्वम्।’कृष्ण! तव सत्ता ही सब ठौर,दीखता मुझे नहीं कुछ और।जहां तक जाती मेरी दृष्टि,तुझी में व्याप्त मिली सब सृष्टि।। (नन्दकिशोर झा, काव्यतीर्थ)गीता (७।७) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–हे अर्जुन! जैसे सूत की मणियां सूत के धागे में पिरोयी होती हैं, ऐसे ही सम्पूर्ण जगत् मेरे में ही ओतप्रोत है। अर्थात्–सूत भी भगवान हैं, मणियां भी भगवान हैं, माला भी भगवान है और माला फेरने वाले भी भगवान ही हैं।संसार में भगवान के हैं विभिन्न रूप,!!!!!एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं। परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की। भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हो, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है। मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है।गीता (९।१९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘मैं ही सूर्यरूप में तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण कर उसे बरसाता हूँ। मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् और असत् भी मैं ही हूँ।’अत: जो हमारे मन को सुहाए वह भी भगवान का रूप है और जो नहीं सुहाये, वह भी भगवान का रूप है। जो मन को नहीं सुहाता उसमें भगवान को देखना अत्यन्त कठिन है परन्तु उसके प्रति भी भगवद्भाव आ जाए तो यह भक्त बनने की निशानी है और गीता में कहा गया है कि ऐसे महात्मा दुर्लभ होते हैं।जैसे जमीन में जल सब जगह रहता है, पर उसकी प्राप्ति कुएं से ही होती है; वैसे ही भगवान सब जगह हैं किन्तु उनकी प्राप्तिस्थान हृदय है (गीता १३।१७)।घर में लगी आग में नामदेवजी ने किए भगवान के दर्शन!!!!!भगवान कोई भी रूप धारण कर लीला करें, सच्चे भक्त भगवान को हरेक रूप में पहिचान लेते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि भगवान को छोड़कर कहीं जाती नहीं।नामदेवजी के घर में आग लग गयी। लोगों ने जब आग लगने का समाचार नामदेवजी को दिया तो वे बहुत प्रसन्न हुए कि मेरे घर में मेरे भगवान के सिवा और कौन बिना पूछे आ सकता है? भगवान ही अग्नि रूप में घर में आए हैं और घर की चीजों का भोग लगा रहे हैं। घर के बाहर जो सामान रखा था, नामदेवजी उसे भी उठाकर घर के भीतर अग्नि में डालने लगे कि भगवन् इनका भी भोग लगाओ। आग से नामदेवजी का घर जल गया किन्तु भगवान ने रातोंरात उनका छप्पर छा दिया क्योंकि मनुष्य भगवान को जो अर्पित करता है, वही उसे प्रसाद रूप में मिलता है।गीता (६।३०) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।अर्थात्–जो सबमें मुझको देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।’मीराबाई के पास सिंह भेजा गया किन्तु उसे भी उन्होंने अपने आराध्य का नरसिंह रूप मानकर पूजा-स्तुति की और सिंह भी उन्हें बिना हानि पहुंचाए वापिस चला गया। मीरा ने विष को अपने गिरधर का चरणामृत समझकर पान कर लिया। भगवान कण-कण में बसे हैं। प्रह्लादजी के कहने पर भगवान नृसिंहरूप में खम्भे से प्रकट हो गए।गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी यही बात कही है—सीय राममय सब जग जानी।करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।। (मानस, बाल. ८।१)‘सब कुछ भगवान ही हैं’—यह बात मनुष्य राग-द्वेष व मोह के कारण समझ नहीं पाता। जो मनुष्य समस्त प्राणियों में भगवद्बुद्धि करके सबकी सेवा करते हैं वे संसार-सागर में सहज ही तर जाते है |#Vnita❤️सब जग ईश्वर-रूप है, भलो बुरो नहिं कोय।जैसी जाकी भावना, तैसो ही फल होय।।

💙मेरे #चेहरे 👦की #हंसी 😀 हो तुम 🤴 💦               💙 मेरे #दिल 💕की हर #खुशी हो तुम     🌹. 💙. 🌹 मेरे #होठो 👄 की #मुस्कान हो तुम🤴💙                  💙 #धड़कता 💙है मेरा ये #_दिल 💙     🍁 🍁 🍁 #जिसके लिए #_वो मेरी #जान💙 हो #तुम  .नामदेवजी ने घर में लगी आग में किए भगवान के दर्शन,जहां देखो वहां मौजूद कृष्ण प्यारा है!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान सम्पूर्ण जगत भगवान में ही ओतप्रोत गीता (१०।३९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं– यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन। न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।। अर्थ—हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है। यह सम्पूर्ण संसार साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, दिशाएं, वृक्ष, नदियां, समुद्र, जमीन, ...

नामदेवजी ने घर में लगी आग में किए भगवान के दर्शन,जहां देखो वहां मौजूद कृष्ण प्यारा है!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसम्पूर्ण जगत भगवान में ही ओतप्रोतगीता (१०।३९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।अर्थ—हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है।यह सम्पूर्ण संसार साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, दिशाएं, वृक्ष, नदियां, समुद्र, जमीन, खम्भा, मकान जो भी चीज देखने, सुनने या चिन्तन में आती है—ये सब भगवान ही हैं। चर-अचर, जलचर, नभचर, थलचर, भूत-प्रेत, पिशाच, दानव, राक्षस, देवता, गंधर्व, चौरासी लाख योनियां, चौदह भुवन–इन सबका बीज एक भगवान ही हैं। इसमें भला-बुरा, अच्छा-गंदा, गुण-दोष आदि दो चीजें नहीं हैं। संसार के आदि में भी भगवान थे और अन्त में भी भगवान रहेंगे।श्रीमद्भागवत (२।९।३२) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘सृष्टि के पूर्व भी मैं ही था, मुझसे भिन्न कुछ भी नहीं था और सृष्टि के उत्पन्न होने के बाद जो कुछ भी यह दिखायी दे रहा है, वह मैं ही हूँ। जो सत्, असत् और उससे परे है, वह सब मैं ही हूँ तथा सृष्टि के बाद भी मैं ही हूँ एवं इन सबका नाश हो जाने पर जो कुछ बाकी रहता है, वह भी मैं ही हूँ।’माता यशोदा ने श्रीकृष्ण के मुख में किए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन!!!!!गीता (११।७) में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं–’अब इस मेरे शरीर में एक जगह स्थित चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देख तथा और जो कुछ देखना चाहता हो सो देख।’भगवान के यह वचन श्रीमद्भागवत के एक प्रसंग से सिद्ध होते हैं—भगवान के एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड हैं; उन ब्रह्माण्डों के रूप में भगवान ही प्रकट हुए हैं। एक बार कन्हैया ने मिट्टी खा ली। माता यशोदा ने छड़ी दिखाकर कन्हैया को डराते हुए मुंह खोलकर दिखाने के लिए कहा। कन्हैया ने जब अपना मुंह खोला तो उनके छोटे से मुख में माता को अनन्त लोक दिखाई दिए। यहां तक कि पृथ्वी, भारतवर्ष, व्रज और व्रज में भी नंदगाव दिखाई दिया। नन्दगांव में भी माता यशोदा ने नन्दबाबा का घर देखा। उसमें भी अपनी गोद में कन्हैया को बैठे देखा। इस प्रकार माता ने भगवान के मुख में अनन्त सृष्टि को देखा। इससे स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण के सिवाय कोई दूसरी चीज है ही नही–‘वासुदेव: सर्वम्।’कृष्ण! तव सत्ता ही सब ठौर,दीखता मुझे नहीं कुछ और।जहां तक जाती मेरी दृष्टि,तुझी में व्याप्त मिली सब सृष्टि।। (नन्दकिशोर झा, काव्यतीर्थ)गीता (७।७) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–हे अर्जुन! जैसे सूत की मणियां सूत के धागे में पिरोयी होती हैं, ऐसे ही सम्पूर्ण जगत् मेरे में ही ओतप्रोत है। अर्थात्–सूत भी भगवान हैं, मणियां भी भगवान हैं, माला भी भगवान है और माला फेरने वाले भी भगवान ही हैं।संसार में भगवान के हैं विभिन्न रूप,!!!!!एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं। परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की। भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हो, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है। मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है।गीता (९।१९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘मैं ही सूर्यरूप में तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण कर उसे बरसाता हूँ। मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत् और असत् भी मैं ही हूँ।’अत: जो हमारे मन को सुहाए वह भी भगवान का रूप है और जो नहीं सुहाये, वह भी भगवान का रूप है। जो मन को नहीं सुहाता उसमें भगवान को देखना अत्यन्त कठिन है परन्तु उसके प्रति भी भगवद्भाव आ जाए तो यह भक्त बनने की निशानी है और गीता में कहा गया है कि ऐसे महात्मा दुर्लभ होते हैं।जैसे जमीन में जल सब जगह रहता है, पर उसकी प्राप्ति कुएं से ही होती है; वैसे ही भगवान सब जगह हैं किन्तु उनकी प्राप्तिस्थान हृदय है (गीता १३।१७)।घर में लगी आग में नामदेवजी ने किए भगवान के दर्शन!!!!!भगवान कोई भी रूप धारण कर लीला करें, सच्चे भक्त भगवान को हरेक रूप में पहिचान लेते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि भगवान को छोड़कर कहीं जाती नहीं।नामदेवजी के घर में आग लग गयी। लोगों ने जब आग लगने का समाचार नामदेवजी को दिया तो वे बहुत प्रसन्न हुए कि मेरे घर में मेरे भगवान के सिवा और कौन बिना पूछे आ सकता है? भगवान ही अग्नि रूप में घर में आए हैं और घर की चीजों का भोग लगा रहे हैं। घर के बाहर जो सामान रखा था, नामदेवजी उसे भी उठाकर घर के भीतर अग्नि में डालने लगे कि भगवन् इनका भी भोग लगाओ। आग से नामदेवजी का घर जल गया किन्तु भगवान ने रातोंरात उनका छप्पर छा दिया क्योंकि मनुष्य भगवान को जो अर्पित करता है, वही उसे प्रसाद रूप में मिलता है।गीता (६।३०) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति।।अर्थात्–जो सबमें मुझको देखता है और मुझमें सबको देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता।’मीराबाई के पास सिंह भेजा गया किन्तु उसे भी उन्होंने अपने आराध्य का नरसिंह रूप मानकर पूजा-स्तुति की और सिंह भी उन्हें बिना हानि पहुंचाए वापिस चला गया। मीरा ने विष को अपने गिरधर का चरणामृत समझकर पान कर लिया। भगवान कण-कण में बसे हैं। प्रह्लादजी के कहने पर भगवान नृसिंहरूप में खम्भे से प्रकट हो गए।गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी यही बात कही है—सीय राममय सब जग जानी।करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।। (मानस, बाल. ८।१)‘सब कुछ भगवान ही हैं’—यह बात मनुष्य राग-द्वेष व मोह के कारण समझ नहीं पाता। जो मनुष्य समस्त प्राणियों में भगवद्बुद्धि करके सबकी सेवा करते हैं वे संसार-सागर में सहज ही तर जाते है |#Vnita❤️सब जग ईश्वर-रूप है, भलो बुरो नहिं कोय।जैसी जाकी भावना, तैसो ही फल होय।।

नामदेवजी ने घर में लगी आग में किए भगवान के दर्शन,जहां देखो वहां मौजूद कृष्ण प्यारा है!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानसम्पूर्ण जगत भगवान में ही ओतप्रोतगीता (१०।३९) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन।न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम्।।अर्थ—हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है, वह मैं ही हूँ। मेरे बिना कोई भी चर-अचर प्राणी नहीं है।यह सम्पूर्ण संसार साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है। आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, ग्रह-नक्षत्र, दिशाएं, वृक्ष, नदियां, समुद्र, जमीन, खम्भा, मकान जो भी चीज देखने, सुनने या चिन्तन में आती है—ये सब भगवान ही हैं। चर-अचर, जलचर, नभचर, थलचर, भूत-प्रेत, पिशाच, दानव, राक्षस, देवता, गंधर्व, चौरासी लाख योनियां, चौदह भुवन–इन सबका बीज एक भगवान ही हैं। इसमें भला-बुरा, अच्छा-गंदा, गुण-दोष आदि दो चीजें नहीं हैं। संसार के आदि में भी भगवान थे और अन्त में भी भगवान रहेंगे।श्रीमद्भागवत (२।९।३२) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं–‘सृष्टि के पूर्व भी मैं ही था, मुझसे भिन्न कुछ भी...