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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

, काशी क्षेत्र के सांसदों व विधायकों के साथ सामूहिक बैठक कर विभिन्न विषयों पर चर्चा की। आदरणीय प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी के नेतृत्व में केंद्र व प्रदेश सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मंत्र को चरितार्थ कर रही हैं।━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━ 🌹🌹❤️❤️❤️🌹🌹━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━*💞श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी‌💞 🦚विराजे वृंदावन रजधानी।🦚💗श्री राधेरानी अवढरदानी💗 🦋लुटावें ब्रजरस मनमानी।🦋💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞 🦚पलोटे पग सारंगपाणि।🦚💗श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी💗 🦋कोटि कमला नौकरानी।🦋💞श्री राधेरानी मेरी महरानी💞 🦚बनायो शिवहुं को शिवानी।🦚💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗 🦋करत ठाकुर अगवानी।🦋💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞 🦚मनायो हरि दृग भरि पानी।🦚💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗 ♥️*'कृपालुहुं'* निज स्वामिनी मानी।♥️ 👣🌹🙇‍♂️🌹श्री राधे राधे🌹🙇‍♂️🌹👣

,। 💞श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी‌💞 🦚विराजे वृंदावन रजधानी।🦚💗श्री राधेरानी अवढरदानी💗 🦋लुटावें ब्रजरस मनमानी।🦋💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞 🦚पलोटे पग सारंगपाणि।🦚💗श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी💗 🦋कोटि कमला नौकरानी।🦋💞श्री राधेरानी मेरी महरानी💞 🦚बनायो शिवहुं को शिवानी।🦚💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗 🦋करत ठाकुर अगवानी।🦋💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞 🦚मनायो हरि दृग भरि पानी।🦚💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗 ♥️*'कृपालुहुं'* निज स्वामिनी मानी।♥️ 👣🌹🙇‍♂️🌹श्री राधे राधे🌹🙇‍♂️🌹👣━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━ 🌹🌹❤️❤️❤️🌹🌹━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━*

💞श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी‌💞   🦚विराजे वृंदावन रजधानी।🦚 💗श्री राधेरानी अवढरदानी💗   🦋लुटावें ब्रजरस मनमानी।🦋 💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞   🦚पलोटे पग सारंगपाणि।🦚 💗श्री राधेरानी मेरी ठकुरानी💗   🦋कोटि कमला नौकरानी।🦋 💞श्री राधेरानी मेरी महरानी💞  🦚बनायो शिवहुं को शिवानी।🦚 💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗   🦋करत ठाकुर अगवानी।🦋 💞श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💞   🦚मनायो हरि दृग भरि पानी।🦚 💗श्री राधेरानी ऐसी ठकुरानी💗   ♥️*'कृपालुहुं'* निज स्वामिनी मानी।♥️      👣🌹🙇‍♂️🌹श्री राधे राधे🌹🙇‍♂️🌹👣━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━   🌹🌹❤️❤️❤️🌹🌹 ━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━*

━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━ 🌹🌹❤️❤️❤️🌹🌹━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠ℎ𝑛𝑎꧂❀━*सुन लो विनती मेरी *कान्हा जी* वरना जाकर कचहरी अपील करूंगा,हार जाओगे खुद का मुकदमा *कन्हैया* *बरसाने वाली* को अपना वकील करूंगा।। 🙏❤️ *जय श्री राधेकृष्णा❤️🙏

, सुन लो विनती मेरी *कान्हा जी* वरना जाकर कचहरी अपील करूंगा,हार जाओगे खुद का मुकदमा *कन्हैया* *बरसाने वाली* को अपना वकील करूंगा।। 🙏❤️ *जय श्री राधेकृष्णा❤️🙏

#जामुन_की_लकड़ी_का_महत्त्व.अगर जामुन की मोटी लकड़ी का टुकडा पानी की टंकी में रख दे तो टंकी में शैवाल या हरी काई नहीं जमती और पानी सड़ता नहीं । टंकी को लम्बे समय तक साफ़ नहीं करना पड़ता ।जामुन की एक खासियत है कि इसकी लकड़ी पानी में काफी समय तक सड़ता नही है।जामुन की इस खुबी के कारण इसका इस्तेमाल नाव बनाने में बड़ा पैमाने पर होता है।नाव का निचला सतह जो हमेशा पानी में रहता है वह जामून की लकड़ी होती है।गांव देहात में जब कुंए की खुदाई होती तो उसके तलहटी में जामून की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है जिसे जमोट कहते है। आजकल लोग जामुन का उपयोग घर बनाने में भी करने लगे है।जामून के छाल का उपयोग श्वसन गलादर्द रक्तशुद्धि और अल्सर में किया जाता है।दिल्ली के महरौली स्थित निजामुद्दीन बावड़ी का हाल ही में जीर्णोद्धार हुआ है । 700 सालों के बाद भी गाद या अन्य अवरोधों की वजह से यहाँ पानी के सोते बंद नहीं हुए हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के प्रमुख के.एन. श्रीवास्तव के अनुसार इस बावड़ी की अनोखी बात यह है कि आज भी यहाँ लकड़ी की वो तख्ती साबुत है जिसके ऊपर यह बावड़ी बनी थी। श्रीवास्तव जी के अनुसार उत्तर भारत के अधिकतर कुँओं व बावड़ियों की तली में जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल आधार के रूप में किया जाता था।इस बावड़ी में भी जामुन की लकड़ी इस्तेमाल की गई थी जो 700 साल बाद भी नहीं गली है। बावड़ी की सफाई करते समय बारीक से बारीक बातों का भी खयाल रखा गया। यहाँ तक कि सफाई के लिए पानी निकालते समय इस बात का खास खयाल रखा गया कि इसकी एक भी मछली न मरे। इस बावड़ी में 10 किलो से अधिक वजनी मछलियाँ भी मौजूद हैं।इन सोतों का पानी अब भी काफी मीठा और शुद्ध है। इतना कि इसके संरक्षण के कार्य से जुड़े रतीश नंदा का कहना है कि इन सोतों का पानी आज भी इतना शुद्ध है कि इसे आप सीधे पी सकते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि पेट के कई रोगों में यह पानी फायदा करता है।पर्वतीय क्षेत्र में आटा पीसने की पनचक्की का उपयोग अत्यन्त प्राचीन है। पानी से चलने के कारण इसे "घट' या "घराट' कहते हैं।घराट की गूलों से सिंचाई का कार्य भी होता है। यह एक प्रदूषण से रहित परम्परागत प्रौद्यौगिकी है। इसे जल संसाधन का एक प्राचीन एवं समुन्नत उपयोग कहा जा सकता है। आजकल बिजली या डीजल से चलने वाली चक्कियों के कारण कई घराट बंद हो गए हैं और कुछ बंद होने के कगार पर हैं।पनचक्कियाँ प्राय: हमेशा बहते रहने वाली नदियों के तट पर बनाई जाती हैं। गूल द्वारा नदी से पानी लेकर उसे लकड़ी के पनाले में प्रवाहित किया जाता है जिससे पानी में तेज प्रवाह उत्पन्न हो जाता है। इस प्रवाह के नीचे पंखेदार चक्र (फितौड़ा) रखकर उसके ऊपर चक्की के दो पाट रखे जाते हैं। निचला चक्का भारी एवं स्थिर होता है। पंखे के चक्र का बीच का ऊपर उठा नुकीला भाग (बी) ऊपरी चक्के के खांचे में निहित लोहे की खपच्ची (क्वेलार) में फँसाया जाता है। पानी के वेग से ज्यों ही पंखेदार चक्र घूमने लगता है, चक्की का ऊपरी चक्का घूमने लगता है।पनाले में प्रायः जामुन की लकड़ी का भी इस्तेमाल होता है |फितौडा भी जामुन की लकड़ी से बनाया जाता है ।जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है।जलसुंघा ( ऐसे विशिष्ट प्रतिभा संपन्न व्यक्ति जो भूमिगत जल के स्त्रोत का पता लगाते है ) भी पानी सूंघने के लिए जामुन की लकड़ी का इस्तेमाल करते । साभार : वनिता पंजाब,

# Jamun_Ki_Wood_K_Image . If you keep a thick piece of berries in a water tank, there is no algae or green moss in the tank and the water does not rot. The tank does not have to be cleaned for a long time. A meal of berries

🌷🌹प्रेम भरी राधे-राधे स्वीकार करें🌹🌷श्रीराधे की कचहरी में ललिता ने हुक्म दियौजल्दी छलिया कूं हाजिर करौ दरबार मेंप्रेम कौ कानून तोडयौ लाडली ते मुंह मोड़यौऐसौ कहूँ होवै कहा या संसार मेंसुनते ही सब सखी ढूंढ़वे निकस परींकुंज, कुंड, घाट, बाट, पोखर कछारन मेंसगरी ठौर ढूँढयो पर मिलयौ नाय श्यामक्योंकि वू दुबक के बैठ्यो हतौ राधेदिले सरकार में 🌹🌷♥️♥️🌹🌹

तेरी याद से शुरू होती है मेरी हर सुबह फिर कैसे कह दूं कि मेरा दिन ख़राब है 🌹💞 राधे राधे 💞🌹

Every morning starts with your memory How can I say that my day is bad            Om Radhe Radhe

,। 🌷🌹प्रेम भरी राधे-राधे स्वीकार करें🌹🌷श्रीराधे की कचहरी में ललिता ने हुक्म दियौजल्दी छलिया कूं हाजिर करौ दरबार मेंप्रेम कौ कानून तोडयौ लाडली ते मुंह मोड़यौऐसौ कहूँ होवै कहा या संसार मेंसुनते ही सब सखी ढूंढ़वे निकस परींकुंज, कुंड, घाट, बाट, पोखर कछारन मेंसगरी ठौर ढूँढयो पर मिलयौ नाय श्यामक्योंकि वू दुबक के बैठ्यो हतौ राधेदिले सरकार में 🌹🌷♥️♥️🌹🌹

, श्याम प्यारे🥀🙏🥀मेरी हर शायरी दिल के दर्द को करता बयां।🙏😔🙏तुम्हारी आँख न भर आये कही पढ़ते पढ़ते।😭😭😔 कभी तो अपनी दासी की ओर निहारोगे🙏🙏🙏🙏Meriradharani

Shyam dear All my poetry is about heartache. Do not fill your eyes and study.

. ,। "फाल्गुन आयो रे" By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हिन्दू पंचाग का आखिरी महीना होता है फाल्गुन, इसके बाद हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। हिन्दू पंचाग के अनुसार चैत्र पहला माह होता है और फाल्गुन आखिरी माह माना जाता है। इस माह में दो महत्वपूर्ण पर्व आते हैं जो हिन्दू धर्म में अपना खास महत्व रखते हैं। महाशिवरात्रि, इस दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है और होली, इस दिन होलिका दहन किया जाता है और अगली सुबह रंगों से होली खेली जाती है। फाल्गुन माह में ही चंद्र देव का जन्म माना जाता है, इस कारण से फाल्गुन में चंद्र देव का पूजन शुभ माना जाता है। इस माह में ऋतु में बड़ा परिवर्तन हो रहा होता, बसंत ऋतु के समय नए फूल आ रहे होते हैं जो प्रकृति को खूबसूरत बनाते हैं। (फाल्गुन माह के व्रत और त्यौहार)1. जानकी जयन्ती:- (06.03.2021शनिवार) फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को माता सीता जयन्ती के रुप में मनाया जाता है। इस दिन माता सीता का जन्म मानकर उनकी पूजा आराधना की जाती है।2. विजया एकादशी:- (09.03.2021 मंगलवार) फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन एकादशी के व्रत का महत्व होता है और भगवान विष्णु को आराध्य मानकर पूजा जाता है। इस दिन व्रत करने की महत्वता है।3. महाशिवरात्रि:- (11.04.2021 गुरुवार) फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान भोलेनाथ की आराधना की जाती है, इस दिन लोग व्रत करके शिव-पार्वती का ब्याह रचाते हैं।4. फाल्गुनी अमावस्या:- (14.03.2021 शनिवार) इस दिन को धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिए दान-तर्पण करते हैं। इस अमावस्या को श्राद्ध पूजन के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।5. आमलकी एकादशी:- (25.03.2021 गुरुवार) फाल्गुन की शुक्ल एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। इस उपवास को करना शुभ माना जाता है। सुख-समृद्धि और मोक्ष की कामना हेतु इस दिन उपवास करने का महत्व है।6. होली:- (28.03.2021 रविवार) फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है और होलिका पूजन करके शाम के समय दहन किया जाता है। होली दहन के अगले दिन रंगों से होली खेली जाती है। इस पर्व का एक अपना धार्मिक महत्व माना जाता है। "जय जय श्री राधे"

. "Falgun Ayo Re"           Falgun is the last month of the Hindu Panchag, followed by the beginning of the Hindu New Year. According to Hindu Panchag, Chaitra is the first month and Phalgun is the last.

, हे श्याम ... 👏🏻🌹मुझे नहीं पता मेरा तुझ से क्या है वास्ता।मगर मुझे इतना पता है कि तू ही तो मंजिल मेरी तू ही मेरा रास्ता।।॥ जय श्री श्याम प्रभु की जय ॥ 🙏🏼🌹 जय श्री श्याम जी 🌹🙏🏼

*🌷🌹🌷🙏🌷🌹🌷🎁 *क्या सत्य नही* 📝 *एक बूढ़ी हर दिन मंदिर के सामने भीख मांगती थी। एक बार मंदिर से किसी साधु ने उस बुढिया को देखकर इस प्रकार पूछा- “आप अच्छे घर से आई हुई लगती है। आपका बेटा अच्छा लड़का है ना? फिर यहां हर दिन क्यों खड़ी होती है?”* *उस बुढ़िया ने कहा- “बाबा, आप तो जानते हैं, मेरा एक ही पुत्र है। बहुत साल पहले ही मेरे पति का स्वर्गवास हो गया। मेरा बेटा आठ महीने पहले मुझे छोड़कर नौकरी के लिए चला गया। जाते समय वह मेरे खर्चे के लिए कुछ रुपए देकर गया। वह सब मेरी आवश्यकता के लिए खर्च हो गया। मैं भी बूढ़ी हो चली हूँ। परिश्रम करके धन नहीं कमा सकती। इसीलिए देव मंदिर के सामने भीख मांग रही हूँ।* *साधु ने कहा- “क्या तुम्हारा बेटा अब पैसे नहीं भेजता?* *बुढिया ने कहा- “मेरा बेटा हर महीने एक एक रंगबिरंगा कागज भेजता है। ‌ मैं उसको चूम कर अपने बेटे के स्मरण में उसे दीवार पर चिपकाती हूं।* *साधु ने उसके घर जाकर देखने को निश्चय किया। अगले दिन वह उसके घर में दीवार को देख कर आश्चर्यचकित हो गया। उस दीवार पर आठ धनादेश पत्र चिपका के रखे थे। एक एक चेक् 50000 रुपये राशि का था।* *वह बुढिया पढ़ी लिखी नहीं थी। इसीलिए वह नहीं जानती थी कि उसके पास कितनी संपत्ति है। वह साधु उस विषय को जानकर उस बुढ़िया को उन धनादेशों का मूल्य समझाया।* *हम भी उसी बुढ़ीया की तरह हैं। हमारे पास जो धर्म के ग्रंथ है, उसका मूल्य नहीं जानकर उसे माथे से लगाकर अपने घर में सुरक्षित रखते हैं । उसकी उपयोगिता को समझ नही पाते ।**अंधकार है वहां जहां आदित्य नही**शमशान है वह देश जहां साहित्य नही ।*

#गोपियों_की_मटकियाँ" #श्रीकृष्ण नित्य ही मथुरा माखन लेकर जाती हुयी गोपियों का माखन खा जाते हैं, और कंकड़ मार कर उनकी मटकियाँ भी फोड़ देते हैं। श्रीकृष्ण के माखन खाने से तो गोपियों का मन खुश होता था परन्तु उनके मटकी फोड़ देने से वे बहुत चिन्तित हो जाती थीं,माखन तो वे अपने प्रेम से ही कान्हा के लिये तैयार किया करती थीं किन्तु मटकी तो दाम चुका कर मिलती थी। एक बार सभी गोपियाँ एकत्र हो इस की #शिकायत ले श्रीजी के समक्ष जा पहुँचीं। श्रीजी अपने प्रियतम के इस कृत्य को सुन अति-द्रवित हो उठीं, और श्रीकृष्ण से मान कर बैठीं। जब श्रीकृष्ण को श्रीजी के मान का पता चला तोअति-विचलित हो उठे और अविलम्ब श्रीजी को मनाने के लिये उनके पास चल दिये। राह में उन्हें सखी चित्रा मिली उन्होंने उन्हें श्रीजी के मान का कारण बताया, तथा उनका मान समाप्त करने के लिये बताया कि आपने जितनी गोपियों की मटकियाँ फोड़ी हैं उनके बदले उन्हें एक की जगह दस मटकियाँ बनाकर देनी होगीं वह भी सुन्दर चित्रकारी के साथ। श्रीजी को मान में देखना श्रीकृष्ण के लियै सम्भव नहीं होता इसलिये वे अविलम्ब श्रीजी का मान भंग करने के लिये सभीह गोपियों की इच्छानुसार उसनी पसन्द की मटकियाँ बना कर देने लगे। जब सभी गोपियाँ की मटकियाँ बना दी तब जाकर श्रीजी का मान भंग हुआ। ----------:::×:::----------

, #बरसाने_के_गहवर_वन_की_महिमा🍁श्री राधा अमृत कथा🍁 राजकुँवरी श्रीवृषभानु-नन्दिनी संध्या समय अपनी दोनों अनन्य सखियों श्रीललिताजू और विशाखाजू के साथ अपने प्रिय गहवर-वन में विहार हेतु महल से निकल रही हैं। 🌹☘श्रीजू की शोभा का वर्णन तो दिव्य नेत्रों द्वारा निहारकर भी नहीं किया जा सकता। अनुपम दिव्य श्रृंगार है। बड़े घेर का लहँगा है जिसमें सोने के तारों से हीरे-मोती और पन्ने जड़े हुए हैं। संध्या समय के सूर्य की लालिमा की किरणें पड़ने से उसमें से ऐसी दिव्य आभा निकल रही है कि उस आभा के कारण भी श्रीजू के मुख की ओर देखना संभव नहीं हो पाता।🌹☘संभव है नन्दनन्दन स्वयं भी न चाहते हों ! गहवर-वन को श्रीप्रियाजू ने स्वयं अपने हाथों से लगाया है, सींचा है; वहाँ के प्रत्येक लता-गुल्मों को उनके श्रीकर-पल्लव का स्पर्श मिला है सो वे हर ऋतु में फ़ल-फ़ूल और सुवास से भरे रहते हैं। खग-मृगों और शुक-सारिकाओं को भी श्रीगहवर वन में वास का सौभाग्य मिला है। मंद-मंद समीर बहता रहता है और शुक-सारिकाओं का कलरव एक अदभुत संगीत की सृष्टि करता रहता है। महल से एक सुन्दर पगडंडी गहवर वन को जाती है जिस पर समीप के लता-गुल्म पुष्पों की वर्षा करते रहते हैं। न जाने स्वामिनी कब पधारें और उनके श्रीचरणों में पर्वत- श्रृंखला की कठोर भूमि पर पग रखने से व्यथा न हो जाये ! 🌹☘सो वह पगडंडी सब समय पुष्पों से आच्छादित रहती है। पुष्पों की दिव्य सुगंध, वन की हरीतिमा और पक्षियों का कलरव एक दिव्य-लोक की सृष्टि करते हैं। हाँ, दिव्य ही तो ! जागतिक हो भी कैसे सकता है? परम तत्व कृपा कर प्रकट हुआ है। उस पगडंडी पर दिव्य-लता के पीछे एक "चोर" प्रतीक्षारत है। दर्शन की अभिलाषा लिये ! महल से प्रतिक्षण समीप आती सुवास संकेत दे रही है कि आराध्या निरन्तर समीप आ रही हैं। नेत्रों की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही है;🌹☘बार-बार वे उझककर देखते हैं कि कहीं दिख जायें और फ़िर छिप जाते हैं कि कहीं वे देख न लें !🌹☘श्रीजू महल की बारादरी से निकल अब पगडंडी पर अपना प्रथम पग रखने वाली हैं कि चोर का धैर्य छूट गया और वे दोनों घुटनों के बल पगडंडी पर बैठ गये....😍पवनदेव स्वयं को बड़भागी समझते हैं क्योंकि दो [एक ही] दिव्य-देहधारियों की सुवास को वह माध्यम रुप से बरसाने और नन्दगाँव के मध्य वितरित कर पाते हैं।👏👏👏 जय श्री राधे राधे👏👏👏

#मैं_जनक_नंदिनी..... (158)by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌺_(सीता व्यथा की आत्मकथा )_🌺*"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -*मैं वैदेही ! मैं कब मूर्छित हो गयी थी मुझे पता नही ।मेरे तो मुख पर जल का छींटा दिया था ..........तब जाकर मुझे कुछ होश आया ..............मैने सामनें देखनें की कोशिश की ...........एक दिव्य तेज सम्पन्न ऋषि खड़े थे......मुझे देखते हुये वो रो रहे थे ।पर ये क्यों रो रहे हैं ? मैने इधर उधर देखा था ..........मेरे आस पास कुछ ब्रह्मचारी बालक खड़े थे ..............।मैं कहाँ हूँ ? मेरा मस्तक असह्य पीड़ा का अनुभव कर रहा था ।ये अयोध्या तो नही है ? मैं यहाँ कैसे ? ओह ! मुझे तो मेरे श्रीराम नें त्याग दिया ।मुझे लक्ष्मण छोड़ कर चला गया है ।पुत्री ! तुम वैदेही हो ना ? उन ऋषि नें मुझे पूछा ।मैं क्या कहती ........मैं अपनें में ही नही थी .......कुछ नही बोली ।तुम जनक नन्दिनी हो ना ? मैं ऋषि वाल्मीकि ।उन अत्यन्त तेजपूर्ण ऋषि नें मुझे अपना परिचय दिया ।तुम्हारे पिता जनक मेरे अच्छे मित्रों में से हैं ........मैनें तुम्हे बचपन में जनकपुर में बहुत बार देखा है .........हम ज्ञान की चर्चा के लिये तुम्हारे पिता के पास में ही जाते थे ।मैनें उठनें की कोशिश की ........उन्हें प्रणाम करनें के लिए .....पर नही उठ सकी .........शरीर में मानों अब कोई शक्ति रही ही नही ।मैं तो गंगा किनारे सन्ध्या कर रहा था .....ये मेरे ब्रह्मचारी बालक हैं .....इन्होनें ही मुझे बताया कि .........कोई नारी मूर्छित पड़ी है ।मैं कुछ सोचता कि उससे पहले ही लक्ष्मण का रथ दूर से जाता हुआ दिखाई दिया ...........मैं समझ गया .......कि राम नें अपनी आल्हादिनी का त्याग कर दिया है । ऋषि बोले जा रहे थे ।आपको पता है ? मैने आश्चर्य व्यक्त किया ।........हाँ मुझे पता है .........मुझे ऋषि दुर्वासा नें सब पहले ही बता दिया था ।......ये कहते हुए ....उनके नेत्र सजल थे ........।पुत्री ! श्रीराम का जन्म ही लोक शिक्षा , मर्यादा इन्हीं सबके लिये हुआ है । तुम्हे त्यागना तो इसकी शुरुआत है पुत्री ! मैनें महर्षि की ओर देखा .......पूछा क्या औरों को भी त्यागेंगें ? अत्यन्त दुखपूर्वक महर्षि कह रहे थे ........लक्ष्मण शत्रुघ्न भरत सबका त्याग करके अकेले धर्म के लिये लड़ते हुये अपनें धाम जायेंगें ।मैं अब उठी .........हाँ लड़खड़ाते हुए उठी ...............प्रणाम किया महर्षि के चरणों में , मैनें ।पुत्री ! तुम चलो मेरे आश्रम.........नही नही तुम्हे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नही है ............मेरे आश्रम के एक भाग में कुछ तपश्विनी भी रहती हैं ..........वहाँ किसी पुरुष का प्रवेश नही है ।पुत्री ! मैं ऋषि वाल्मीकि तुम्हारे पिता जनक का मित्र हूँ .......तो तुम्हारा भी पिता समान ही हुआ ना !मैं रो गयी थी फिर .....................मुझे मेरे पिता, मेरी माँ मेरा भाई और मेरा जनकपुर सब याद आरहे थे ।पुत्री ! रोओ मत !ये कहते हुये महर्षि स्वयं अपनें आँसू पोंछ रहे थे ।वो चल पड़े अपनें आश्रम की ओर ..........पर बहुत धीरे चल रहे थे ।मैं इस समय चल रही हूँ यही क्या कम है .........वो ये जानते थे इसलिये धीमी गति से चलते हुये अपनें आश्रम में मुझे ले आये ।****************************ये वन देवी हैं .........मेरा नाम ही बदल दिया था महर्षि नें ।इससे ज्यादा इनसे कोई प्रश्न नही करेगा ...........ये गर्भ से हैं .......इसलिये इनको सम्भालना आप सबकी जिम्मेवारी है ।एक तपस्विनी गयीं और कुछ सूखे मेवे फल दूध इत्यादि लेकर आईँ .............।मुझे अभी कुछ खानें की इच्छा नही है .......मैने महर्षि की ओर देखा ।पुत्री ! खाओ ..............अपना नही तो कमसे कम गर्भस्थ शिशु का तो ध्यान रखो ..........इन्होनें क्या अपराध किया है !मेरे सिर में हाथ रखा ये कहते हुये महर्षि नें ...........मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरे पिता ने ही मुझे संरक्षण दिया हो ।महर्षि अपनी कुटिया में चले गए ...............।मेरे लिये एक स्वच्छ सी कुटिया ..........मेरा कितना ध्यान रख रही थीं वो सब तपश्विनी.........मुझे कुछ करनें नही देती थीं ।एक दिन शत्रुघ्न कुमार आगये थे ..........मथुरा जा रहे थे उनके अग्रज ने ही उन्हें भेजा था लवणासुर को मारनें .........तब रुके थे ।मुझे देखा तो रो पड़े .........बहुत रोये.............मैने ही उन्हें समझाया...फिर पूछा....अयोध्या की स्थिति कैसी है अब ! भाभी माँ ! अयोध्या का तो अधिदैव ही चला गया है ...........वहाँ अब रहा ही कौन ? मात्र एक कठोर आदर्शवान राजा ।मुझे जो बताया शत्रुघ्न कुमार नें.......कि जब लक्ष्मण लौट कर गए मुझे छोंड़नें के बाद .......तब जो स्थिति थी मेरे श्रीराम की ........उसे सुनकर तो मैं भी बिलख उठी ........नही ......मेरे श्रीराम को सम्भालना शत्रुघ्न भैया ! .........शत्रुघ्न कुमार नें बताया कि ...........शेष चरित्र कल ...........!!!!!🌹🌹जय श्री राम 🌹🌹,

🎄🌷🎄🌷🎄प्रश्न–उत्तर Series-A165🎄🌷🎄🌷🎄*️⃣ ओमशांति दीदी, जैसे हम और सब धर्मों के बारे में सुनते हैं, कि उन धर्मों में भी स्वर्ग और नर्क के बारे में उनके धर्म-ग्रंथों में mention है, तो दीदी स्वर्ग में तो सिर्फ एक ही धर्म होता है देवी-देवता धर्म, तो उन धर्मों में वो शब्द कैसे आते हैं, और कैसे वो स्वर्ग और नर्क को फील करते हैं?✅ ओमशांति ।इन धर्मों की आत्माएं द्वापर युग में आती हैं। और इनका कनेक्शन देवी-देवता कुल की आत्माओं के साथ होता है, क्योंकि आदि सनातन देवी-देवता धर्म की आत्माएं तो सतयुग से नीचे उतरी हुई होती हैं, फिर द्वापर में जब उन धर्मों के धर्मस्थापकों की आत्माएं परमधाम घर से नीचे धरती पर आती हैं, तो उनका कनेक्शन देवता घराने की आत्माओं के साथ होता है। तो अभी वो धर्म स्थापन होने हैं, और देवता घराने की आत्माएं, जो already सतयुग से नीचे हैं, तो देवता घराने की आत्माओं के माध्यम से, माना दैवी कुल की आत्माओं के सहयोग से उन धर्मों की आत्माएं वृद्धि को पाती हैं। जब धर्म स्थापक आते हैं तो उनकी जो मान्यताएं होती हैं, उनकी जो धारणाएं होती हैं, वो बहुत श्रेष्ठ होती हैं, क्योंकि वो अभी-अभी परमधाम घर से आये हैं, तो वो बहुत ही श्रेष्ठ souls होती हैं, क्योंकि अभी उनकी सतोप्रधान अवस्था है। अब ये जो स्वर्ग और नर्क, ये जो दो स्टेप हैं, इनका ज्ञान देवता धर्म की आत्माओं के माध्यम से ही सतयुग से द्वापर में आगे बढ़ता है। क्योंकि हमने स्वर्ग देखा है, हमने सुख देखा है। लेकिन जब ये आत्माएं नीचे आती हैं, तो इन्हें वो सुख की, स्वर्ग की भासना देवी-देवता धर्म की आत्माओं के माध्यम से ही आती है, क्योंकि उन्होंने तो वो स्वर्ग देखा नहीं है। इनकी दुनिया तो अभी start होनी है, अभी बसनी है। तो इस धर्म में भी जब आत्माएं आती हैं, तो पहले कुछ आत्माएं होती हैं, फिर धीरे-धीरे वृद्धि होती है। फिर जब वृद्धि होती है, तो इन धर्मों का विस्तार होने लगता है। अब दूसरी बात ये है कि पहले उस धर्म की starting में इस तरह से धर्म ग्रंथों की रचना की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन जैसे-जैसे उन धर्मों की आत्माएं speed से परमधाम घर से नीचे उतरती हैं, तो फिर जब नीचे उन धर्मों में इतनी gathering हो जाती है, माना, उनका एक राज्य शुरू हो जाता है, तब उनको जरुरत पड़ती है कि धर्म स्थापक ने क्या कहा था, क्या शिक्षाएं दी थीं। तो इस तरह से फिर उन धर्मग्रंथों में धर्म स्थापक की शिक्षाओं का संकलन किया जाता है। अब स्वर्ग और नर्क की definition इन धर्मों में सुख या दुःख से relate करती है। माना स्वर्ग का मतलब इन धर्मों में सतयुग की सीन-सीनरियों से नहीं है, लेकिन सुख से है। तो जब आप इस contrast को समझेंगे, तो आपको मालूम पड़ेगा कि जब इन धर्मों की स्थापना होगी, तो वो देवी-देवता धर्म की आत्माओं के माध्यम से होगी, और इन धर्मों की स्थापना के समय बहुत सी आत्माएं यहाँ(देवी-देवता धर्म) से वहाँ जाएँगी माना convert होंगी। तब जाकर उन धर्मों की शुरुवात होगी, माना फिर नयी रचना उन धर्मों की start हो जाती है। तो इसी तरह से उनका भी प्रोसेस चलता है। हर एक धर्म का प्रोसेस अलग-अलग है, लेकिन उनका संपर्क देवी-देवता धर्म की आत्माओं के साथ कुछ तो होता है, तभी तो आज लास्ट में जाकर हम सब आत्मायें एक-दूसरे के संपर्क में आ रही हैं। तो उनके लिए स्वर्ग और नर्क का मतलब सतयुग की उस रिमझिम माना सीन-सीनरियों से नहीं है, उनका मतलब सुख और दुःख से है। तो इसलिए उस धर्म में अलग-अलग धारणाएं बनायीं गयी हैं, जैसे वो कब्र--दाखिल करते हैं, क्योंकि वो ये मानते हैं, कि अंत में फ़रिश्ते आते हैं, और वो उस कब्रदाखिल हुई आत्मा से कुछ 7 सवाल पूछते हैं, तो मान्यता ऐसी है कि अब उस आत्मा ने अगर अपने जीवन में रोज क़ुरान पढ़ी होगी, अच्छे कर्म किये होंगे, तो वो उन सवालों का जवाब दे देगी और फिर फ़रिश्ते उन्हें स्वर्ग में ले जायेंगे, माना उसको सुख मिलेगा। लेकिन यदि अपने जीवन में विकर्म किये होंगे, तो उनको अंत में बहुत कठिनाइयों का माना दुखों का सामना करना पड़ेगा, जिसे वो नर्क कहते हैं। तो इस तरह से वो कब्र-दाखिल करते हैं। तो ये इस तरह से बनाया गया है, तो उनको जो सुख की भासना होती है, उसे वो स्वर्ग कहते हैं, और जब दुःख की भासना होती है, तो नर्क कहते हैं। तो ये समझ कर्मों की उनको भी जरूर आ जाती है, तभी तो इंसान पाप और पुण्य से relate कर पाता है। तो ये पाप और पुण्य की समझ हमें संगमयुग पर आती है। वो आत्माएं द्वापर में जब परमधाम घर से आती हैं, तो उस समय वो सतोप्रधान अवस्था में होती हैं, लेकिन चूँकि चारों तरफ प्रकृति और समय अभी रजोप्रधानता का है, तो वो भी सतोप्रधानता से रजोप्रधानता में speed से आ जाती हैं और हम आत्माएं सतोप्रधानता में ज्यादा समय बिताती हैं, क्योंकि हम सतयुग से धीरे-धीरे नीचे उतरते हैं। फिर धीरे-धीरे करते-करते नीचे उतरते-उतरते तमोप्रधानता में सब आ जाते हैं, तो फिर संगम पर परमात्मा आते हैं और फिर से ये समझ देते हैं। कि कैसे ये सृष्टि चक्र चलता है, कैसे धर्मों की शुरुवात होती है, देवी-देवता धर्म के माध्यम से। तो हमें सब समझ में आता जाता है। तो इस तरह से यदि समझेंगे, तो हमें सब clear हो सकता है। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदी, मैं बहुत नेगेटिव होती जा रही हूँ, ना मुरली पढ़ने के लिए उमंग-उत्साह है, ना योग के लिए और फ्यूचर के लिए भी बहुत नेगेटिव feelings आ रही हैं। मतलब जीवन बिलकुल काला नज़र आ रहा है, कुछ करने का मन नहीं करता, irritation हो रही है हर चीज में। क्या करूँ?✅ ओमशांति। नेगेटिविटी आती रहती है बीच-बीच में, क्योंकि यह माया का स्त्रोत है, माना माया का एक स्पेशल बाण है कि आत्मा को नेगेटिव बनाते जाओ ताकि वो पुरुषार्थहीन हो जाए, बाबा से दूर होने का एहसास करने लगे और वह कमजोर हो जाए तो माया तो आपको कमजोर ही करना चाहती है और आप कमजोर हो भी रहे हैं, क्योंकि आपने माया को चांस दे दिया है। तो ऐसा कोई भी चांस आप माया को ना दें, जिससे वो आपको बाबा से दूर करे। लेकिन आपको बाबा से कोई दूर नहीं कर सकता। इस बात की आप को अच्छे से समझ है कि ये नेगेटिविटी खराब चीजें हैं तो इसके बारे में ज्यादा विचार ना करके आप अपने अनुभवों को याद करें। अगर अभी की कंडीशन आपको ऐसी लगती है तो कोई बात नहीं, आप थोड़ा-थोड़ा बाबा से रूह-रिहान करना शुरू करें। इससे दिनों-दिन आपके अंदर चेंज भी आने लगेगा और सब चीजें सेट भी हो जाएँगी। आप जैसे लगातार continue योग नहीं कर सकते, लेकिन हर एक घंटे के बीच में आप 5 मिनट का योग करें। और यह समझें कि मुझे बाबा मिला है और हर समस्या का समाधान बाबा के पास है। मेरा हाथ बाबा के हाथ में है और मेरे साथ कोई भी अकल्याण नहीं हो सकता। इस निश्चय के साथ आप कुछ समय तक ऐसे ही योग करें और किसी भी चीज के बारे में ना सोचें। तो ऐसे आगे बढ़ कर देखिए। फिर आपको अच्छा अनुभव होने लगेगा। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदी, परवश आत्माओं का कल्याण कैसे कर सकते हैं?✅ओमशांति। ऐसी आत्माओं का कल्याण करने के लिए बाबा ने कई मुरलियों में detail में समझाया हुआ है, कि परवश आत्माओं के लिए आपको मन्सा कैसे रखनी होती है और इसके लिए आपको ज्ञान भी इतना clear होना चाहिए। साथ ही इसके लिए आपको आत्मा का अभ्यास भी इतना करना होगा, और फिर उनको सुख-शांति के vibrations देने होंगे। तब जाकर परवश आत्माओं का कल्याण होता है। तो जब स्वयं को आत्मा समझकर, दूसरों को भी आत्मा रूप में देखने का अभ्यास पक्का होगा, तो उनका कल्याण कर पाएंगे। तो इसके लिए पहले अपने आप में भी ज्ञान-योग से शक्ति अर्जित करनी चाहिए। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदीजी, जब हम किसी को बाबा का परिचय देते हैं, तो कैसे पाता चले कि सामने वाली आत्मा ज्ञान देने के लिए सही है या नहीं? माना पात्र है या नहीं?✅ ओमशांति। इसके लिए, जब आप उनको ज्ञान सुनाते हैं, तो उनके दृष्टिकोण से ही देख सकते हैं कि वो समझ रहे हैं या नहीं। और जब ज्ञान सुनाते हैं तो आत्मा को ही देखें, तो आपको पता चल जायेगा। और ये परिचय तो हर एक को मिलना है, आज नहीं तो कल, हरेक ने मानना भी है, क्योंकि देखिये, जैसे बाबा ने भी बताया है, कि आयी तो सब आत्माएं एक ही परमधाम घर से हैं, बस उनको परिचय मिलना है। किसी को आज, किसी को कल तो किसी को पर्सों। पर मिलना सबको परिचय है एक ही घर का, एक परमात्मा का। भले ही सबको सारा ज्ञान नहीं मिलेगा। लेकिन इतना तो पता चलेगा ना! कि भगवान आया हुआ है, तो आप सच्चे मन से और सच्ची भावना के साथ अगर किसी को ज्ञान सुनाएंगे, तो आपको ये तुरंत स्पष्ट हो जाता है कि ये आत्मा ज्ञान को किस तरह से ले रही है। तो ये देखने के लिए आप उनकी भृकुटि में आत्मा को देखें, तो आपको स्पष्ट हो जायेगा। अगर आप इस आत्मिक भाव के साथ बाबा के साथ कंबाइंड होकर किसी को ज्ञान सुनाएंगे, तो आपको सब अच्छे से स्पष्ट हो जाएगा। ओमशांति।*️⃣ ओमशांति दीदी, मेरा प्रश्न है, "आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल" इस लाइन के आगे क्या है?✅ ओमशांति। "सुंदर मेला कर दिया, जब सतगुरु मिला दलाल".....इसका अर्थ ये है कि आत्मा, परमात्मा से अलग रही है बहुत समय से। और जब डायरेक्ट परमात्मा स्वयं आकर मिलते हैं, तब ये मिलान मेला होता है। और ये सुंदर सुनहरा मौका संगम युग का हम आत्माओं को आज मिल रहा है, तो इसका आनंद उठाएं। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदी, अगर हर बार हमारे साथ same सीन होगा, तो क्या हर बार हम ऐसे ही कर्म करते हैं?✅ ओमशांति। हर चीज हमारे साथ माना हमारे कर्मों के साथ तो नूँधी ही हुई है। तो आप तो कर्मों की philosophy तो अच्छे से जानते हैं। तो उन कर्मों को जानते हुए आज के अपने कर्म श्रेष्ठ बनाएं। हर सीन आपके साथ अच्छे ते अच्छा ही नूँधा हुआ है ड्रामा में। लेकिन आपको समझ तो आज मिल रही है ना कि किस कर्म को कैसे करना है, तो हर कर्म के साथ बाबा की याद शामिल करें, तो आपके हर कर्म श्रेष्ठ हो जाएंगे। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदी, श्रीमद भगवद् गीता और बाबा की मुरली इसमें बहुत सी समानता है। बहुत सी बातें, जो बाबा कहते हैं, वही गीता में लिखी हैं। ऐसा क्यों? स्पष्ट करें...✅ ओमशांति। गीता का भगवान कौन? गीता किसने सुनाई? डायरेक्ट शिव परमात्मा ने ब्रह्मा मुख द्वारा सुनाई। तो सबसे पहले तो आप यह समझ जाएँ कि गीता में है क्या? गीता में बताया क्या गया है? और गीता में जो लिखा गया है, वो मनुष्य लिखा जरूर है, लेकिन उसका अर्थ हमें बाबा ने समझाया है। तो जब हमें अर्थ समझ में आया है, तो आज सिर्फ एक 7 days कोर्स कर लेने से हम सब कुछ जान जाते हैं। जब हम इतना सब कुछ सिर्फ एक 7 days कोर्स कर लेने से जान जाते हैं। लेकिन जब हम गीता पढ़ते थे, तो इतना नहीं समझ में आता था। तो आप खुद समझिए, जब डायरेक्ट ज्ञानसागर बाप हमें समझनी देते हैं, तो हमें इतना accurate कैसे समझ में आ जाता है। क्योंकि जब बीजरूप परमात्मा हमें वह गीता ज्ञान सुनाते हैं, तभी हमें गीता समझ में आती है। पहले हम पढ़ते थे भले, लेकिन समझते नहीं थे। आज हम समझते हैं पर पढ़ते नहीं है। क्योंकि हमें यथार्थ पता चल गया। बेसिक पता चल गया तो सार पता चल गया। इसलिए विस्तार जितना भी है, उसका अर्थ हमारी बुद्धि में स्पष्ट होता है। इसलिए आप ये मत सोचिये कि जो गीता में लिखा है, वो बाबा बताते हैं। बाबा जो बताते हैं, वही कहीं जाकर द्वापर में वो मनुष्य आत्मा ही उसको इमर्ज करके फिर लिखित में रखती हैं। पर मूल बात है कि बाबा ने संगम पर सुनाया है, तब जाकर हमें समझ में आया है। ओमशांति। *️⃣ ओमशांति दीदी, मन्सा सेवा और निरंतर याद का बैलेंस कैसे रखें?✅ ओमशांति। बाबा ने इस पर मुरलियों में बहुत detail में समझनी दी है कि मन्सा सेवा कैसे करते हैं। शुद्ध मन के द्वारा, श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा, शुभ-भावनाओं द्वारा, श्रेष्ठ vibrations द्वारा हम मन्सा सेवा करते हैं। तो उसमें व्यर्थ नहीं आना चाहिए। जितना मन व्यर्थ से मुक्त रहता है उतनी ही मन्सा सेवा हो पाती है। निरंतर याद का भी यही आधार है। जितना मन में श्रेष्ठ संकल्पों की रचना करते हैं और एक बाबा के साथ मन को जोड़ें रखते हैं, निरंतर याद उसी चीज के आधार पर होती है। तो बाबा के साथ कनेक्शन रखना, बाबा के साथ कंबाइंड रहना और हर कर्म में बाबा की याद में रहना, ये आधार है। इसका बैलेंस बनाने के लिए तो आप कर्मों में भी मन्सा सेवा कर सकते हैं और याद में भी मन्सा सेवा कर सकते हैं। हर तरीके से मन्सा सेवा कर सकते हैं। लेकिन main बात है, बाबा की याद में रहना। तो आपको जब भी ऐसा लगे कि आप की याद टूट रही है या उस तरह से निरंतर नहीं आ रही है, तो वापिस से अपने को आत्मा समझकर बाबा की याद में अपने को लाना। इसे हर घंटे में 1-1 मिनट का ब्रेक होता है, जिससे हम अपने संकल्पों को कंट्रोल करते हैं और वापस उसी याद में आ सकते हैं। तो इस अभ्यास से आप एक तो मन्सा सेवा भी कर सकते हैं और निरंतर याद में भी रह सकते हैं। तो दोनों का बैलेंस बनाने के लिए, याद को बेस बनाइये तो ये दोनों कार्य आसानी से हो जाते हैं। ओमशांति । *️⃣ ओमशांति दीदी, मेरा ये घरेलु problem है कि जब भी मैं अपनी sister से कुछ समय के लिये mobile मांगता हूँ, तो वो नहीं देती है, मना कर देती है। और उसके बाद मैं mummy से mobile मांगने चला जाता हूँ, तो जाते-जाते वो कहती है कि मेरा phone ले जाओ, फिर मैं उसको मना कर देता हूँ। फिर वो मुझे कहती है, अहंकार आ गया? योग मे no improvement ...तो हम क्या करें ? ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करें या मना कर दें ?✅ ओमशांति। देखो बाबा के प्यारे-प्यारे बच्चे! सबसे पहले एक बात याद रखो, ये जो हम आपस में लड़ते हैं, झगड़ते हैं, या ये जो हम छोटी-छोटी किसी चीज के लिए ऊपर नीचे करते हैं, तो इससे क्या होता है कि सामने वाला समझता है कि आपके साथ बाबा नहीं है, लेकिन आपके साथ तो बाबा रहते हैं और जब बाबा आपके साथ रहते हैं तो आपको छोटी-छोटी चीजों के लिए तो फिर कुछ भी मांगना नहीं है। आपको अपने आप मिलेंगी। और जब भी कोई बहन से भी कुछ मांगे और फिर वापस दे दें, तो ये तो छोटी-छोटी बातें चलती रहती हैं, क्योंकि आपका उनसे प्यार है। दीदी का भी आपसे प्यार है। मम्मी का भी आपसे प्यार है। तो सब प्यार में ऐसे ऊपर-नीचे थोड़ा-थोड़ा करते रहते हैं। इसलिए योग में improvement लाने के लिए आपको क्या करना है, कि आपको किसी से कोई झगड़ा नहीं करना है। कभी किसी से लड़ना नहीं है। जब आप ऐसा करेंगे तो हर चीज आपको अपने आप सामने मिलेगी। आप देखना! कोई आपको तंग भी नहीं करेगा और हर चीज आपके सामने लाकर देगा। आप ऐसा कोशिश करके देखें, तो हर चीज आपको मिलेगी और खुश रहें। मजे में रहें। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ओमशांति।

,। *🍃🌷🌹जय श्री राधे राधे🌹🌷🍃*👉 *जया एकादशी की कथा* 👇भगवान श्री कृष्ण ने के बताया कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आये थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी। अपने प्रबल आकर्षण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। ऐसा ही हुआ और माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया। इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को शाप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों।शाप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गईl* कहा जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को उनका खोया राज-पाठ मिल गया था और पुत्र भी जीवित हो उठा था।*भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं : राजन् ! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए । नृपश्रेष्ठ ! ‘जया ऐकादशी’ ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करनेवाली है । जिसने ‘जया ऐकादशी’ का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया । इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।**🙏ओम नमो नारायणाय 🙏**बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय ।* *श्री कृष्ण शरणम* *🍃🌷🌹जय श्री राधे राधे🌹🌷🍃**🍃🌹🌷जय श्री राधे कृष्णा जी🌷🌹🍃*🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

दिव्यकृष्णसँदेश-'उन्मत्त चँचल नयनकमल विशाल! नीलकँठ नालिन वैजयँती माल! ! कटि कँचन पीत वसन नीलम चरण कमल मधुर रस चँदन! चँचल चितवन चँचल अधर अमृत वचन अलक्ष निरँजन!! देखो न वही रस का सागर वसँतराग आकर! आज बना है उर्वशी माधव कृष्ण कुसुमाकर! ! उस का वसँत राग में वँशी बजाना मलयज सुवासिनी! फिर उसका रुनझुन वसँत हास बिखराना अमृत सुहासिनी!! उस का अमीरस की अँजुरियाँ पिलाना चँद्रमालिनी ! उसका रस नयनों से अमीरस लुटाना चँद्ररागिनी! ! उस का रस वसँतराग में मुस्कराना सखी री! उसका शरत की रस चाँदनी बन जाना उर्वशी! ! सुधा वसँत राग में कहता है यही तो बात ! कृष्ण कुसुमाकर बनके आया है वसँत राग! ! उसके जादू से समझ लो वो कौन है साँवरी! उसकी मधुर वँशी में है वो जादू बाँवरी!! तुम्हें बना लिया है जिसने अपनी चाँदनी सारँगा ! बतलाओ री शवरीगँधा कौन है वो शवरी का चँदा!! वो नीलम चँदन रूप नहीं चँद्रकमल है शोभना ! उस के मोहना रूप पर शोभना तुम कभी मत डोलना!! आयी हो रुपहली चूनर डाले तुम रसबाले! उस पर ये चँदा की झूमर ये नयन मतवाले! ! इस कँचन महल को भुलाना समझ के फूल राख के! आँचल में उर्वशी भर के लाना फूल रास के! ! जब भी उस की शँख जैसी सुँदर सी शँखिनी अँजुरी को छुओगी तुम ! तो कृष्णवैजयँती री मुझ नीलम चँद्रसरोवर को छुओगी तुम!!'-Vnita Punjab 💕📿ષ્રીરાઘે📿ષ્રીકૃષ્ણા📿💕

, श्री राम चरित मानस में लंका काण्ड 13. लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना14. हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार15. भरत जी के बाण से हनुमान्‌ का मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान्‌ संवाद16. श्री रामजी की प्रलापलीला, हनुमान्‌जी का लौटना, लक्ष्मणजी का उठ बैठना17. रावण का कुम्भकर्ण को जगाना, कुम्भकर्ण का रावण को उपदेश और विभीषण-कुम्भकर्ण संवाद18. कुम्भकर्ण युद्ध और उसकी परमगतिकालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध।सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध॥48 ख॥जो कालस्वरूप हैं, दुष्टों के समूह रूपी वन के भस्म करने वाले (अग्नि) हैं, गुणों के धाम और ज्ञानघन हैं एवं शिवजी और ब्रह्माजी भी जिनकी सेवा करते हैं, उनसे वैर कैसा?॥48 (ख)॥चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही।भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे।करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥(अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के समान लगे। (वह बोला-) अरे अभागे! मुँह काला करके (यहाँ से) निकल जा॥1॥बूढ़ भएसि न त मरतेउँ तोही।अब जनि नयन देखावसि मोही॥तेहिं अपने मन अस अनुमाना।बध्यो चहत एहि कृपानिधाना॥2॥तू बूढ़ा हो गया, नहीं तो तुझे मार ही डालता। अब मेरी आँखों को अपना मुँह न दिखला। रावण के ये वचन सुनकर उसने (माल्यवान्‌ ने) अपने मन में ऐसा अनुमान किया कि इसे कृपानिधान श्री रामजी अब मारना ही चाहते हैं॥2॥सो उठि गयउ कहत दुर्बादा।तब सकोप बोलेउ घननादा॥कौतुक प्रात देखिअहु मोरा।करिहउँ बहुत कहौं का थोरा॥3॥वह रावण को दुर्वचन कहता हुआ उठकर चला गया। तब मेघनाद क्रोधपूर्वक बोला- सबेरे मेरी करामात देखना। मैं बहुत कुछ करूँगा, थोड़ा क्या कहूँ? (जो कुछ वर्णन करूँगा थोड़ा ही होगा)॥3॥सुनि सुत बचन भरोसा आवा।प्रीति समेत अंक बैठावा॥करत बिचार भयउ भिनुसारा।लागे कपि पुनि चहूँ दुआरा॥4॥पुत्र के वचन सुनकर रावण को भरोसा आ गया। उसने प्रेम के साथ उसे गोद में बैठा लिया। विचार करते-करते ही सबेरा हो गया। वानर फिर चारों दरवाजों पर जा लगे॥4॥कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा।नगर कोलाहलु भयउ घनेरा॥बिबिधायुध धर निसिचर धाए।गढ़ ते पर्बत सिखर ढहाए॥5॥वानरों ने क्रोध करके दुर्गम कलिे को घेर लिया। नगर में बहुत ही कोलाहल (शोर) मच गया। राक्षस बहुत तरह के अस्त्र-शस्त्र धारण करके दौड़े और उन्होंने कलिे पर पहाड़ों के शिखर ढहाए॥5॥छंद :ढाहे महीधर सिखर कोटिन्ह बिबिध बिधि गोला चले।घहरात जिमि पबिपात गर्जत जनु प्रलय के बादले॥मर्कट बिकट भट जुटत कटत न लटत तन जर्जर भए।गहि सैल तेहि गढ़ पर चलावहि जहँ सो तहँ निसिचर हए॥उन्होंने पर्वतों के करोड़ों शिखर ढहाए, अनेक प्रकार से गोले चलने लगे। वे गोले ऐसा घहराते हैं जैसे वज्रपात हुआ हो (बिजली गिरी हो) और योद्धा ऐसे गरजते हैं, मानो प्रलयकाल के बादल हों। विकट वानर योद्धा भिड़ते हैं, कट जाते हैं (घायल हो जाते हैं), उनके शरीर जर्जर (चलनी) हो जाते हैं, तब भी वे लटते नहीं (हिम्मत नहीं हारते)। वे पहाड़ उठाकर उसे कलिे पर फेंकते हैं। राक्षस जहाँ के तहाँ (जो जहाँ होते हैं, वहीं) मारे जाते हैं।दोहा :मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ़ पुनि छेंका आइ।उतर्‌यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥मेघनाद ने कानों से ऐसा सुना कि वानरों ने आकर फिर कलिे को घेर लिया है। तब वह वीर कलिे से उतरा और डंका बजाकर उनके सामने चला॥49॥चौपाई :कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता।धन्वी सकल लोत बिख्याता॥कहँ नल नील दुबदि सुग्रीवा।अंगद हनूमंत बल सींवा॥1॥(मेघनाद ने पुकारकर कहा-) समस्त लोकों में प्रसदि्ध धनुर्धर कोसलाधीश दोनों भाई कहाँ हैं? नल, नील, द्विवदि, सुग्रीव और बल की सीमा अंगद और हनुमान्‌ कहाँ हैं?॥1॥कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही।आजु सबहि हठि मारउँ ओही॥अस कहि कठिन बान संधाने।अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने॥2॥भाई से द्रोह करने वाला विभीषण कहाँ है? आज मैं सबको और उस दुष्ट को तो हठपूर्वक (अवश्य ही) मारूँगा। ऐसा कहकर उसने धनुष पर कठिन बाणों का सन्धान किया और अत्यंत क्रोध करके उसे कान तक खींचा॥2॥सर समूह सो छाड़ै लागा।जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा॥जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर।सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर॥3॥वह बाणों के समूह छोड़ने लगा। मानो बहुत से पंखवाले साँप दौड़े जा रहे हों। जहाँ-तहाँ वानर गिरते दिखाई पड़ने लगे। उस समय कोई भी उसके सामने न हो सके॥3॥जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा।बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा॥सो कपि भालु न रन महँ देखा।कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा॥4॥रीछ-वानर जहाँ-तहाँ भाग चले। सबको युद्ध की इच्छा भूल गई। रणभूमि में ऐसा एक भी वानर या भालू नहीं दिखाई पड़ा, जिसको उसने प्राणमात्र अवशेष न कर दिया हो (अर्थात्‌ जिसके केवल प्राणमात्र ही न बचे हों, बल, पुरुषार्थ सारा जाता न रहा हो)॥4॥दोहा :दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर।सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर॥50॥फिर उसने सबको दस-दस बाण मारे, वानर वीर पृथ्वी पर गिर पड़े। बलवान्‌ और धीर मेघनाद सिंह के समान नाद करके गरजने लगा॥50॥चौपाई :देखि पवनसुत कटक बिहाला।क्रोधवंत जनु धायउ काला॥महासैल एक तुरत उपारा।अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥सारी सेना को बेहाल (व्याकुल) देखकर पवनसुत हनुमान्‌ क्रोध करके ऐसे दौड़े मानो स्वयं काल दौड़ आता हो। उन्होंने तुरंत एक बड़ा भारी पहाड़ उखाड़ लिया और बड़े ही क्रोध के साथ उसे मेघनाद पर छोड़ा॥1॥आवत देखि गयउ नभ सोई।रथ सारथी तुरग सब खोई॥बार बार पचार हनुमाना।निकट न आव मरमु सो जाना॥2॥पहाड़ों को आते देखकर वह आकाश में उड़ गया। (उसके) रथ, सारथी और घोड़े सब नष्ट हो गए (चूर-चूर हो गए) हनुमान्‌जी उसे बार-बार ललकारते हैं। पर वह निकट नहीं आता, क्योंकि वह उनके बल का मर्म जानता था॥2॥रघुपति निकट गयउ घननादा।नाना भाँति करेसि दुर्बादा॥अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे।कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे॥3॥(तब) मेघनाद श्री रघुनाथजी के पास गया और उसने (उनके प्रति) अनेकों प्रकार के दुर्वचनों का प्रयोग किया। (फिर) उसने उन पर अस्त्र-शस्त्र तथा और सब हथियार चलाए। प्रभु ने खेल में ही सबको काटकर अलग कर दिया॥3॥देखि प्रताप मूढ़ खिसिआना।करै लाग माया बिधि नाना॥जिमि कोउ करै गरुड़ सैं खेला।डरपावै गहि स्वल्प सपेला॥4॥श्री रामजी का प्रताप (सामर्थ्य) देखकर वह मूर्ख लज्जित हो गया और अनेकों प्रकार की माया करने लगा। जैसे कोई व्यक्ति छोटा सा साँप का बच्चा हाथ में लेकर गरुड़ को डरावे और उससे खेल करे॥4॥दोहा :जासु प्रबल माया बस सिव बिरंचि बड़ छोट।ताहि दिखावइ निसिचर निज माया मति खोट॥51॥शिवजी और ब्रह्माजी तक बड़े-छोटे (सभी) जिनकी अत्यंत बलवान्‌ माया के वश में हैं, नीच बुद्धि निशाचर उनको अपनी माया दिखलाता है॥51॥चौपाई : :नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा।महि ते प्रगट होहिं जलधारा॥नाना भाँति पिसाच पिसाची।मारु काटु धुनि बोलहिं नाची॥1॥आकाश में (ऊँचे) चढ़कर वह बहुत से अंगारे बरसाने लगा। पृथ्वी से जल की धाराएँ प्रकट होने लगीं। अनेक प्रकार के पिशाच तथा पिशाचिनियाँ नाच-नाचकर 'मारो, काटो' की आवाज करने लगीं॥1॥बिष्टा पूय रुधिर कच हाड़ा।बरषइ कबहुँ उपल बहु छाड़ा॥बरषि धूरि कीन्हेसि अँधिआरा।सूझ न आपन हाथ पसारा॥2॥वह कभी तो विष्टा, पीब, खून, बाल और हड्डियाँ बरसाता था और कभी बहुत से पत्थर फेंक देता था। फिर उसने धूल बरसाकर ऐसा अँधेरा कर दिया कि अपना ही पसारा हुआ हाथ नहीं सूझता था॥2॥कपि अकुलाने माया देखें।सब कर मरन बना ऐहि लेखें॥कौतुक देखि राम मुसुकाने।भए सभीत सकल कपि जाने॥3॥माया देखकर वानर अकुला उठे। वे सोचने लगे कि इस हिसाब से (इसी तरह रहा) तो सबका मरण आ बना। यह कौतुक देखकर श्री रामजी मुस्कुराए। उन्होंने जान लिया कि सब वानर भयभीत हो गए हैं॥3॥एक बान काटी सब माया।जिमि दिनकर हर तिमिर निकाया॥कृपादृष्टि कपि भालु बलिोके।भए प्रबल रन रहहिं न रोके॥4॥तब श्री रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली, जैसे सूर्य अंधकार के समूह को हर लेता है। तदनन्तर उन्होंने कृपाभरी दृष्टि से वानर-भालुओं की ओर देखा, (जिससे) वे ऐसे प्रबल हो गए कि रण में रोकने पर भी नहीं रुकते थे॥4॥दोहा :आयसु मागि राम पहिं अंगदादि कपि साथ।लछिमन चले क्रुद्ध होइ बान सरासन हाथ॥52॥श्री रामजी से आज्ञा माँगकर, अंगद आदि वानरों के साथ हाथों में धनुष-बाण लिए हुए श्री लक्ष्मणजी क्रुद्ध होकर चले॥।52॥चौपाई :छतज नयन उर बाहु बिसाला।हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला॥इहाँ दसानन सुभट पठाए।नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए॥1॥उनके लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं। हिमाचल पर्वत के समान उज्ज्वल (गौरवर्ण) शरीर कुछ ललाई लिए हुए है। इधर रावण ने भी बड़े-बड़े योद्धा भेजे, जो अनेकों अस्त्र-शस्त्र लेकर दौड़े॥1॥भूधर नख बिटपायुध धारी।धाए कपि जय राम पुकारी॥भिरे सकल जोरिहि सन जोरी।इत उत जय इच्छा नहिं थोरी॥2॥पर्वत, नख और वृक्ष रूपी हथियार धारण किए हुए वानर 'श्री रामचंद्रजी की जय' पुकारकर दौड़े। वानर और राक्षस सब जोड़ी से जोड़ी भिड़ गए। इधर और उधर दोनों ओर जय की इच्छा कम न थी (अर्थात्‌ प्रबल थी)॥2॥मुठिकन्ह लातन्ह दातन्ह काटहिं।कपि जयसील मारि पुनि डाटहिं॥मारु मारु धरु धरु धरु मारू।सीस तोरि गहि भुजा उपारू॥3॥वानर उनको घूँसों और लातों से मारते हैं, दाँतों से काटते हैं। विजयशील वानर उन्हें मारकर फिर डाँटते भी हैं। 'मारो, मारो, पकड़ो, पकड़ो, पकड़कर मार दो, सिर तोड़ दो और भुजाऐँ पकड़कर उखाड़ लो'॥3॥असि रव पूरि रही नव खंडा।धावहिं जहँ तहँ रुंड प्रचंडा॥देखहिं कौतुक नभ सुर बृंदा।कबहुँक बिसमय कबहुँ अनंदा॥4॥नवों खंडों में ऐसी आवाज भर रही है। प्रचण्ड रुण्ड (धड़) जहाँ-तहाँ दौड़ रहे हैं। आकाश में देवतागण यह कौतुक देख रहे हैं। उन्हें कभी खेद होता है और कभी आनंद॥4॥दोहा :रुधिर गाड़ भरि भरि जम्यो ऊपर धूरि उड़ाइ।जनु अँगार रासिन्ह पर मृतक धूम रह्यो छाइ॥53॥खून गड्ढों में भर-भरकर जम गया है और उस पर धूल उड़कर पड़ रही है (वह दृश्य ऐसा है) मानो अंगारों के ढेरों पर राख छा रही हो॥53॥चौपाई :घायल बीर बिराजहिं कैसे।कुसुमति किंसुक के तरु जैसे॥लछिमन मेघनाद द्वौ जोधा।भिरहिं परसपर करि अति क्रोधा॥1॥घायल वीर कैसे शोभित हैं, जैसे फूले हुए पलास के पेड़। लक्ष्मण और मेघनाद दोनों योद्धा अत्यंत क्रोध करके एक-दूसरे से भिड़ते हैं॥1॥एकहि एक सकइ नहिं जीती।निसिचर छल बल करइ अनीती॥क्रोधवंत तब भयउ अनंता।भंजेउ रथ सारथी तुरंता॥2॥एक-दूसरे को (कोई किसी को) जीत नहीं सकता। राक्षस छल-बल (माया) और अनीति (अधर्म) करता है, तब भगवान्‌ अनन्तजी (लक्ष्मणजी) क्रोधित हुए और उन्होंने तुरंत उसके रथ को तोड़ डाला और सारथी को टुकड़े-टुकड़े कर दिया!॥2॥नाना बिधि प्रहार कर सेषा।राच्छस भयउ प्रान अवसेषा॥रावन सुत निज मन अनुमाना।संकठ भयउ हरिहि मम प्राना॥3॥शेषजी (लक्ष्मणजी) उस पर अनेक प्रकार से प्रहार करने लगे। राक्षस के प्राणमात्र शेष रह गए। रावणपुत्र मेघनाद ने मन में अनुमान किया कि अब तो प्राण संकट आ बना, ये मेरे प्राण हर लेंगे॥3॥बीरघातिनी छाड़िसि साँगी।तेजपुंज लछिमन उर लागी॥मुरुछा भई सक्ति के लागें।तब चलि गयउ निकट भय त्यागें॥4॥तब उसने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह तेजपूर्ण शक्ति लक्ष्मणजी की छाती में लगी। शक्ति लगने से उन्हें मूर्छा आ गई। तब मेघनाद भय छोड़कर उनके पास चला गया॥4॥दोहा :मेघनाद सम कोटि सत जोधा रहे उठाइ।जगदाधार सेष किमि उठै चले खिसिआइ॥54॥मेघनाद के समान सौ करोड़ (अगणित) योद्धा उन्हें उठा रहे हैं, परन्तु जगत्‌ के आधार श्री शेषजी (लक्ष्मणजी) उनसे कैसे उठते? तब वे लजाकर चले गए॥54॥चौपाई :सुनु गिरिजा क्रोधानल जासू।जारइ भुवन चारदिस आसू॥सक संग्राम जीति को ताही।सेवहिं सुर नर अग जग जाही॥1॥(शिवजी कहते हैं-) हे गिरिजे! सुनो, (प्रलयकाल में) जिन (शेषनाग) के क्रोध की अग्नि चौदहों भुवनों को तुरंत ही जला डालती है और देवता, मनुष्य तथा समस्त चराचर (जीव) जिनकी सेवा करते हैं, उनको संग्राम में कौन जीत सकता है?॥1॥यह कौतूहल जानइ सोई।जा पर कृपा राम कै होई॥संध्या भय फिरि द्वौ बाहनी।लगे सँभारन निज निज अनी॥2॥इस लीला को वही जान सकता है, जिस पर श्री रामजी की कृपा हो। संध्या होने पर दोनों ओर की सेनाएँ लौट पड़ीं, सेनापति अपनी-अपनी सेनाएँ संभालने लगे॥2॥व्यापक ब्रह्म अजित भुवनेस्वर।लछिमन कहाँ बूझ करुनाकर॥तब लगि लै आयउ हनुमाना।अनुज देखि प्रभु अति दुख माना॥3॥व्यापक, ब्रह्म, अजेय, संपूर्ण ब्रह्मांड के ईश्वर और करुणा की खान श्री रामचंद्रजी ने पूछा- लक्ष्मण कहाँ है? तब तक हनुमान्‌ उन्हें ले आए। छोटे भाई को (इस दशा में) देखकर प्रभु ने बहुत ही दुःख माना॥3॥जामवंत कह बैद सुषेना।लंकाँ रहइ को पठई लेना॥धरि लघु रूप गयउ हनुमंता।आनेउ भवन समेत तुरंता॥4॥जाम्बवान्‌ ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे लाने के लिए किसको भेजा जाए? हनुमान्‌जी छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर समेत तुरंत ही उठा लाए॥4॥दोहा :राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥55॥सुषेण ने आकर श्री रामजी के चरणारविन्दों में सिर नवाया। उसने पर्वत और औषध का नाम बताया, (और कहा कि) हे पवनपुत्र! औषधि लेने जाओ॥55॥चौपाई :राम चरन सरसिज उर राखी।चला प्रभंजनसुत बल भाषी॥उहाँ दूत एक मरमु जनावा।रावनु कालनेमि गृह आवा॥1॥श्री रामजी के चरणकमलों को हृदय में रखकर पवनपुत्र हनुमान्‌जी अपना बल बखानकर (अर्थात्‌ मैं अभी लिए आता हूँ, ऐसा कहकर) चले। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया॥1॥दसमुख कहा मरमु तेहिं सुना।पुनि पुनि कालनेमि सिरु धुना॥देखत तुम्हहि नगरु जेहिं जारा।तासु पंथ को रोकन पारा॥2॥रावण ने उसको सारा मर्म (हाल) बतलाया। कालनेमि ने सुना और बार-बार सिर पीटा (खेद प्रकट किया)। (उसने कहा-) तुम्हारे देखते-देखते जिसने नगर जला डाला, उसका मार्ग कौन रोक सकता है?॥2॥भजि रघुपति करु हित आपना।छाँड़हु नाथ मृषा जल्पना॥नील कंज तनु सुंदर स्यामा।हृदयँ राखु लोचनाभिरामा॥3॥श्री रघुनाथजी का भजन करके तुम अपना कल्याण करो! हे नाथ! झूठी बकवाद छोड़ दो। नेत्रों को आनंद देने वाले नीलकमल के समान सुंदर श्याम शरीर को अपने हृदय में रखो॥3॥मैं तैं मोर मूढ़ता त्यागू।महा मोह निसि सूतत जागू॥काल ब्याल कर भच्छक जोई।सपनेहुँ समर कि जीतिअ सोई॥4॥मैं-तू (भेद-भाव) और ममता रूपी मूढ़ता को त्याग दो। महामोह (अज्ञान) रूपी रात्रि में सो रहे हो, सो जाग उठो, जो काल रूपी सर्प का भी भक्षक है, कहीं स्वप्न में भी वह रण में जीता जा सकता है?॥4॥दोहा :सुनि दसकंठ रिसान अति तेहिं मन कीन्ह बिचार।राम दूत कर मरौं बरु यह खल रत मल भार॥56॥उसकी ये बातें सुनकर रावण बहुत ही क्रोधित हुआ। तब कालनेमि ने मन में विचार किया कि (इसके हाथ से मरने की अपेक्षा) श्री रामजी के दूत के हाथ से ही मरूँ तो अच्छा है। यह दुष्ट तो पाप समूह में रत है॥56॥चौपाई :अस कहि चला रचिसि मग माया।सर मंदिर बर बाग बनाया॥मारुतसुत देखा सुभ आश्रम।मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥1॥वह मन ही मन ऐसा कहकर चला और उसने मार्ग में माया रची। तालाब, मंदिर और सुंदर बाग बनाया। हनुमान्‌जी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूँ, जिससे थकावट दूर हो जाए॥1॥राच्छस कपट बेष तहँ सोहा।मायापति दूतहि चह मोहा॥जाइ पवनसुत नायउ माथा।लाग सो कहै राम गुन गाथा॥2॥राक्षस वहाँ कपट (से मुनि) का वेष बनाए विराजमान था। वह मूर्ख अपनी माया से मायापति के दूत को मोहित करना चाहता था। मारुति ने उसके पास जाकर मस्तक नवाया। वह श्री रामजी के गुणों की कथा कहने लगा॥2॥होत महा रन रावन रामहिं।जितिहहिं राम न संसय या महिं॥इहाँ भएँ मैं देखउँ भाई।ग्यान दृष्टि बल मोहि अधिकाई॥3॥(वह बोला-) रावण और राम में महान्‌ युद्ध हो रहा है। रामजी जीतेंगे, इसमें संदेह नहीं है। हे भाई! मैं यहाँ रहता हुआ ही सब देख रहा हूँ। मुझे ज्ञानदृष्टि का बहुत बड़ा बल है॥3॥मागा जल तेहिं दीन्ह कमंडल।कह कपि नहिं अघाउँ थोरें जल॥सर मज्जन करि आतुर आवहु।दिच्छा देउँ ग्यान जेहिं पावहु॥4॥हनुमान्‌जी ने उससे जल माँगा, तो उसने कमण्डलु दे दिया। हनुमान्‌जी ने कहा- थोड़े जल से मैं तृप्त नहीं होने का। तब वह बोला- तालाब में स्नान करके तुरंत लौट आओ तो मैं तुम्हे दीक्षा दूँ, जिससे तुम ज्ञान प्राप्त करो॥4॥दोहा :सर पैठत कपि पद गहा मकरीं तब अकुलान।मारी सो धरि दिब्य तनु चली गगन चढ़ि जान॥57॥तालाब में प्रवेश करते ही एक मगरी ने अकुलाकर उसी समय हनुमान्‌जी का पैर पकड़ लिया। हनुमान्‌जी ने उसे मार डाला। तब वह दिव्य देह धारण करके विमान पर चढ़कर आकाश को चली॥57॥चौपाई :कपि तव दरस भइउँ निष्पापा।मिटा तात मुनिबर कर सापा॥मुनि न होइ यह निसिचर घोरा।मानहु सत्य बचन कपि मोरा॥1॥(उसने कहा-) हे वानर! मैं तुम्हारे दर्शन से पापरहित हो गई। हे तात! श्रेष्ठ मुनि का शाप मिट गया। हे कपि! यह मुनि नहीं है, घोर निशाचर है। मेरा वचन सत्य मानो॥1॥अस कहि गई अपछरा जबहीं।निसिचर निकट गयउ कपि तबहीं॥कह कपि मुनि गुरदछिना लेहू।पाछें हमहिं मंत्र तुम्ह देहू॥2॥ऐसा कहकर ज्यों ही वह अप्सरा गई, त्यों ही हनुमान्‌जी निशाचर के पास गए। हनुमान्‌जी ने कहा- हे मुनि! पहले गुरुदक्षिणा ले लीजिए। पीछे आप मुझे मंत्र दीजिएगा॥2॥सिर लंगूर लपेटि पछारा।निज तनु प्रगटेसि मरती बारा॥राम राम कहि छाड़ेसि प्राना।सुनि मन हरषि चलेउ हनुमाना॥3॥हनुमान्‌जी ने उसके सिर को पूँछ में लपेटकर उसे पछाड़ दिया। मरते समय उसने अपना (राक्षसी) शरीर प्रकट किया। उसने राम-राम कहकर प्राण छोड़े। यह (उसके मुँह से राम-राम का उच्चारण) सुनकर हनुमान्‌जी मन में हर्षित होकर चले॥3॥देखा सैल न औषध चीन्हा।सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा॥गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ।अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ॥4॥उन्होंने पर्वत को देखा, पर औषध न पहचान सके। तब हनुमान्‌जी ने एकदम से पर्वत को ही उखाड़ लिया। पर्वत लेकर हनुमान्‌जी रात ही में आकाश मार्ग से दौड़ चले और अयोध्यापुरी के ऊपर पहुँच गए॥4॥दोहा :देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि॥58॥भरतजी ने आकाश में अत्यंत विशाल स्वरूप देखा, तब मन में अनुमान किया कि यह कोई राक्षस है। उन्होंने कान तक धनुष को खींचकर बिना फल का एक बाण मारा॥58॥चौपाई :परेउ मुरुछि महि लागत सायक।सुमिरत राम राम रघुनायक॥सुनि प्रिय बचन भरत तब धाए।कपि समीप अति आतुर आए॥1॥बाण लगते ही हनुमान्‌जी 'राम, राम, रघुपति' का उच्चारण करते हुए मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। प्रिय वचन (रामनाम) सुनकर भरतजी उठकर दौड़े और बड़ी उतावली से हनुमान्‌जी के पास आए॥1॥बिकल बलिोकि कीस उर लावा।जागत नहिं बहु भाँति जगावा॥मुख मलीन मन भए दुखारी।कहत बचन भरि लोचन बारी॥2॥हनुमान्‌जी को व्याकुल देखकर उन्होंने हृदय से लगा लिया। बहुत तरह से जगाया, पर वे जागते न थे! तब भरतजी का मुख उदास हो गया। वे मन में बड़े दुःखी हुए और नेत्रों में (विषाद के आँसुओं का) जल भरकर ये वचन बोले-॥2॥जेहिं बिधि राम बिमुख मोहि कीन्हा।तेहिं पुनि यह दारुन दुख दीन्हा॥जौं मोरें मन बच अरु काया॥ प्रीति राम पद कमल अमाया॥3॥जिस विधाता ने मुझे श्री राम से विमुख किया, उसी ने फिर यह भयानक दुःख भी दिया। यदि मन, वचन और शरीर से श्री रामजी के चरणकमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो,॥3॥तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला।जौं मो पर रघुपति अनुकूला॥सुनत बचन उठि बैठ कपीसा।कहि जय जयति कोसलाधीसा॥4॥और यदि श्री रघुनाथजी मुझ पर प्रसन्न हों तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित हो जाए। यह वचन सुनते ही कपिराज हनुमान्‌जी 'कोसलपति श्री रामचंद्रजी की जय हो, जय हो' कहते हुए उठ बैठे॥4॥सोरठा :लीन्ह कपिहि उर लाइ पुलकित तनु लोचन सजल।प्रीति न हृदय समाइ सुमिरि राम रघुकुल तलिक॥59॥भरतजी ने वानर (हनुमान्‌जी) को हृदय से लगा लिया, उनका शरीर पुलकित हो गया और नेत्रों में (आनंद तथा प्रेम के आँसुओं का) जल भर आया। रघुकुलतलिक श्री रामचंद्रजी का स्मरण करके भरतजी के हृदय में प्रीति समाती न थी॥59॥चौपाई :तात कुसल कहु सुखनिधान की।सहित अनुज अरु मातु जानकी॥लकपि सब चरित समास बखाने।भए दुखी मन महुँ पछिताने॥1॥(भरतजी बोले-) हे तात! छोटे भाई लक्ष्मण तथा माता जानकी सहित सुखनिधान श्री रामजी की कुशल कहो। वानर (हनुमान्‌जी) ने संक्षेप में सब कथा कही। सुनकर भरतजी दुःखी हुए और मन में पछताने लगे॥1॥अहह दैव मैं कत जग जायउँ।प्रभु के एकहु काज न आयउँ॥जानि कुअवसरु मन धरि धीरा।पुनि कपि सन बोले बलबीरा॥2॥हा दैव! मैं जगत्‌ में क्यों जन्मा? प्रभु के एक भी काम न आया। फिर कुअवसर (विपरीत समय) जानकर मन में धीरज धरकर बलवीर भरतजी हनुमान्‌जी से बोले-॥2॥तात गहरु होइहि तोहि जाता।काजु नसाइहि होत प्रभाता॥चढ़ु मम सायक सैल समेता।पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता॥3॥हे तात! तुमको जाने में देर होगी और सबेरा होते ही काम बिगड़ जाएगा। (अतः) तुम पर्वत सहित मेरे बाण पर चढ़ जाओ, मैं तुमको वहाँ भेज दूँ जहाँ कृपा के धाम श्री रामजी हैं॥3॥सुनि कपि मन उपजा अभिमाना।मोरें भार चलिहि किमि बाना॥राम प्रभाव बिचारि बहोरी।बंदि चरन कह कपि कर जोरी॥4॥भरतजी की यह बात सुनकर (एक बार तो) हनुमान्‌जी के मन में अभिमान उत्पन्न हुआ कि मेरे बोझ से बाण कैसे चलेगा? (किन्तु) फिर श्री रामचंद्रजी के प्रभाव का विचार करके वे भरतजी के चरणों की वंदना करके हाथ जोड़कर बोले-॥4॥दोहा :तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥60 क॥हे नाथ! हे प्रभो! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत चला जाऊँगा। ऐसा कहकर आज्ञा पाकर और भरतजी के चरणों की वंदना करके हनुमान्‌जी चले॥60 (क)॥भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार॥60 ख॥भरतजी के बाहुबल, शील (सुंदर स्वभाव), गुण और प्रभु के चरणों में अपार प्रेम की मन ही मन बारंबार सराहना करते हुए मारुति श्री हनुमान्‌जी चले जा रहे हैं॥60 (ख)॥चौपाई :उहाँ राम लछिमनहि निहारी।बोले बचन मनुज अनुसारी॥अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ।राम उठाइ अनुज उर लायउ॥1॥वहाँ लक्ष्मणजी को देखकर श्री रामजी साधारण मनुष्यों के अनुसार (समान) वचन बोले- आधी रात बीत चुकी है, हनुमान्‌ नहीं आए। यह कहकर श्री रामजी ने छोटे भाई लक्ष्मणजी को उठाकर हृदय से लगा लिया॥1॥सकहु न दुखित देखि मोहि काउ।बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥मम हित लागि तजेहु पितु माता।सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥2॥(और बोले-) हे भाई! तुम मुझे कभी दुःखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था। मेरे हित के लिए तुमने माता-पिता को भी छोड़ दिया और वन में जाड़ा, गरमी और हवा सब सहन किया॥2॥सो अनुराग कहाँ अब भाई।उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू।पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥3॥हे भाई! वह प्रेम अब कहाँ है? मेरे व्याकुलतापूर्वक वचन सुनकर उठते क्यों नहीं? यदि मैं जानता कि वन में भाई का विछोह होगा तो मैं पिता का वचन (जिसका मानना मेरे लिए परम कर्तव्य था) उसे भी न मानता॥3॥सुत बित नारि भवन परिवारा।होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥अस बिचारि जियँ जागहु ताता।मलिइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत्‌ में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत्‌ में सहोदर भाई बार-बार नहीं मलिता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥जथा पंख बिनु खग अति दीना।मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥5॥जैसे पंख बिना पक्षी, मणि बिना सर्प और सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं, हे भाई! यदि कहीं जड़ दैव मुझे जीवित रखे तो तुम्हारे बिना मेरा जीवन भी ऐसा ही होगा॥5॥जैहउँ अवध कौन मुहु लाई।नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई॥बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥6॥स्त्री के लिए प्यारे भाई को खोकर, मैं कौन सा मुँह लेकर अवध जाऊँगा? मैं जगत्‌ में बदनामी भले ही सह लेता (कि राम में कुछ भी वीरता नहीं है जो स्त्री को खो बैठे)। स्त्री की हानि से (इस हानि को देखते) कोई विशेष क्षति नहीं थी॥6॥अब अपलोकु सोकु सुत तोरा।सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥निज जननी के एक कुमारा।तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी।सब बिधि सुखद परम हित जानी॥उतरु काह दैहउँ तेहि जाई।उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥8॥सब प्रकार से सुख देने वाला और परम हितकारी जानकर उन्होंने तुम्हें हाथ पकड़कर मुझे सौंपा था। मैं अब जाकर उन्हें क्या उत्तर दूँगा? हे भाई! तुम उठकर मुझे सिखाते (समझाते) क्यों नहीं?॥8॥बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन।स्रवत सललि राजिव दल लोचन॥उमा एक अखंड रघुराई।नर गति भगत कृपाल देखाई॥9॥सोच से छुड़ाने वाले श्री रामजी बहुत प्रकार से सोच कर रहे हैं। उनके कमल की पंखुड़ी के समान नेत्रों से (विषाद के आँसुओं का) जल बह रहा है। (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! श्री रघुनाथजी एक (अद्वितीय) और अखंड (वियोगरहित) हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान्‌ ने (लीला करके) मनुष्य की दशा दिखलाई है॥9॥सोरठा :प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥प्रभु के (लीला के लिए किए गए) प्रलाप को कानों से सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए। (इतने में ही) हनुमान्‌जी आ गए, जैसे करुणरस (के प्रसंग) में वीर रस (का प्रसंग) आ गया हो॥61॥चौपाई :हरषि राम भेंटेउ हनुमाना।अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥तुरत बैद तब कीन्ह उपाई।उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्‌जी से गले मलिे। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यंत ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरंत उपाय किया, (जिससे) लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे॥1॥हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता।हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा।जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥2॥प्रभु भाई को हृदय से लगाकर मलिे। भालू और वानरों के समूह सब हर्षित हो गए। फिर हनुमान्‌जी ने वैद्य को उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया, जिस प्रकार वे उस बार (पहले) उसे ले आए थे॥2॥चौपाई :यह बृत्तांत दसानन सुनेऊ।अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा।बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥यह समाचार जब रावण ने सुना, तब उसने अत्यंत विषाद से बार-बार सिर पीटा। वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसने उसको जगाया॥3॥जागा निसिचर देखिअ कैसा।मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥कुंभकरन बूझा कहु भाई।काहे तव मुख रहे सुखाई॥4॥कुंभकर्ण जगा (उठ बैठा) वह कैसा दिखाई देता है मानो स्वयं काल ही शरीर धारण करके बैठा हो। कुंभकर्ण ने पूछा- हे भाई! कहो तो, तुम्हारे मुख सूख क्यों रहे हैं?॥4॥कथा कही सब तेहिं अभिमानी।जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥तात कपिन्ह सब निसिचर मारे।महा महा जोधा संघारे॥5॥उस अभिमानी (रावण) ने उससे जिस प्रकार से वह सीता को हर लाया था (तब से अब तक की) सारी कथा कही। (फिर कहा-) हे तात! वानरों ने सब राक्षस मार डाले। बड़े-बड़े योद्धाओं का भी संहार कर डाला॥5॥दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी।भट अतिकाय अकंपन भारी॥अपर महोदर आदिक बीरा।परे समर महि सब रनधीरा॥6॥दुर्मुख, देवशत्रु (देवान्तक), मनुष्य भक्षक (नरान्तक), भारी योद्धा अतिकाय और अकम्पन तथा महोदर आदि दूसरे सभी रणधीर वीर रणभूमि में मारे गए॥6॥दोहा :सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बलिखान।जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥62॥तब रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण बलिखकर (दुःखी होकर) बोला- अरे मूर्ख! जगज्जननी जानकी को हर लाकर अब कल्याण चाहता है?॥62॥चौपाई :भल न कीन्ह तैं निसिचर नाहा।अब मोहि आइ जगाएहि काहा॥अजहूँ तात त्यागि अभिमाना।भजहु राम होइहि कल्याना॥1॥हे राक्षसराज! तूने अच्छा नहीं किया। अब आकर मुझे क्यों जगाया? हे तात! अब भी अभिमान छोड़कर श्री रामजी को भजो तो कल्याण होगा॥1॥हैं दससीस मनुज रघुनायक।जाके हनूमान से पायक॥अहह बंधु तैं कीन्हि खोटाई।प्रथमहिं मोहि न सुनाएहि आई॥2॥हे रावण! जिनके हनुमान्‌ सरीखे सेवक हैं, वे श्री रघुनाथजी क्या मनुष्य हैं? हाय भाई! तूने बुरा किया, जो पहले ही आकर मुझे यह हाल नहीं सुनाया॥2॥कीन्हेहु प्रभु बिरोध तेहि देवक।सिव बिरंचि सुर जाके सेवक॥नारद मुनि मोहि ग्यान जो कहा।कहतेउँ तोहि समय निरबाहा॥3॥हे स्वामी! तुमने उस परम देवता का विरोध किया, जिसके शिव, ब्रह्मा आदि देवता सेवक हैं। नारद मुनि ने मुझे जो ज्ञान कहा था, वह मैं तुझसे कहता, पर अब तो समय जाता रहा॥3॥अब भरि अंक भेंटु मोहि भाई।लोचन सुफल करौं मैं जाई॥स्याम गात सरसीरुह लोचन।देखौं जाइ ताप त्रय मोचन॥4॥हे भाई! अब तो (अन्तिम बार) अँकवार भरकर मुझसे मलि ले। मैं जाकर अपने नेत्र सफल करूँ। तीनों तापों को छुड़ाने वाले श्याम शरीर, कमल नेत्र श्री रामजी के जाकर दर्शन करूँ॥4॥दोहा :राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक।रावन मागेउ कोटि घट मद अरु महिष अनेक॥63॥श्री रामचंद्रजी के रूप और गुणों को स्मरण करके वह एक क्षण के लिए प्रेम में मग्न हो गया। फिर रावण से करोड़ों घड़े मदिरा और अनेकों भैंसे मँगवाए॥63॥चौपाई :महिषखाइ करि मदिरा पाना।गर्जा बज्राघात समाना॥कुंभकरन दुर्मद रन रंगा।चला दुर्ग तजि सेन न संगा॥1॥भैंसे खाकर और मदिरा पीकर वह वज्रघात (बिजली गिरने) के समान गरजा। मद से चूर रण के उत्साह से पूर्ण कुंभकर्ण कलिा छोड़कर चला। सेना भी साथ नहीं ली॥1॥देखि बिभीषनु आगें आयउ।परेउ चरन निज नाम सुनायउ॥अनुज उठाइ हृदयँ तेहि लायो।रघुपति भक्त जानि मन भायो॥2॥उसे देखकर विभीषण आगे आए और उसके चरणों

श्री राम मंदिर निर्माण कार्य में एक ईंट आपकी तरफ से जरूर लगवाएं, इसके लिए आपके घर कभी भी कोई हिन्दू संगठन पहुँच सकता है।, जय श्री राममानसिक परतन्त्रता को तोड़कर, भारत की तरुणाई का अभ्युदय है। इस अभ्युदय में हम सबका सहयोग हो, इस भाव से सम्पूर्ण समाज जुटना चाहिए।जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, उसी तरह आज देशभर के लोगों के सहयोग से राममंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होगा।#राम_मन्दिर_से_राष्ट्र_निर्माण🙏🏼🚩

In the construction work of Shri Ram temple, a brick must be installed on your behalf, for this, any Hindu organization can reach your house at any time., Jai Shri Ram Breaking the mental freedom, India's youth is born. This morning

, दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत् ।यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ॥दिनभर ऐसा काम करो जिससे रातमें चैनकी नींद आ सके, वैसे ही जीवनभर ऐसा काम करो जिससे मॄत्यूपश्चात सुख मिले...जय श्री कृष्ण .....

Divasenaiv Tat Kuryad Yen Ratrau Sukhan Vaset. Yavajjiv & t Tatkuryad yen Pritya Sukham Vaset Do a day-long work that can give you a restful sleep at night, in the same way, do such a thing throughout your life that will give you happiness after all ..

,। 🦚 मेरे सांवरिया ,,,,,, !!!❣ *!! सिर्फ दो शब्द !!*"शिकायत" *!! मेरे दिल ने आज ये ज़ुर्रत कर ली !!* *!! तुमसे पूछे बिना तुमसे मोहब्बत कर ली !!* 🦚🌹कृष्णमय रात्रि🌹🦚

🦚 my dear,,,,,, !!!                     * !! Just two words !! * "Complaint"       * !! My heart started doing this today !! *   * !! Loved you without asking you !! *              Krishnamay

,। "परम सुख" दुःख में सुख खोज लेना, हानि में लाभ खोज लेना, प्रतिकूलताओं में भी अवसर खोज लेना इस सबको सकारात्मक दृष्टिकोण कहा जाता है। जीवन का ऐसा कोई बड़े से बड़ा दुःख नहीं जिससे सुख की परछाईयों को ना देखा जा सके। जिन्दगी की ऐसी कोई बाधा नहीं जिससे कुछ प्रेरणा ना ली जा सके। रास्ते में पड़े हुए पत्थर को आप मार्ग की बाधा भी मान सकते हैं और चाहें तो उस पत्थर को सीढ़ी बनाकर ऊपर भी चढ़ सकते हैं। जीवन का आनन्द वही लोग उठा पाते हैं जिनका सोचने का ढंग सकारात्मक होता है। इस दुनिया में बहुत लोग इसलिए दु:खी नहीं कि उन्हें किसी चीज की कमी है किन्तु इसलिए दु:खी हैं कि उनके सोचने का ढंग नकारात्मक है। सकारात्मक सोचो, सकारात्मक देखो। इससे आपको अभाव में भी जीने का आनन्द आ जायेगा। अगर आपकी खुशी की एकमात्र वजह ये है कि जो चीज आपके पास हैं, वो दूसरों के पास नहीं, तो इसे विकार कहेंगे। इस तरह के विकार से जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाये उतना बढ़िया। इससे मिलने वाली प्रसन्नता छणिक होती है। नुकसान ज्यादा होता है और उसके बारे में पता बाद में चलता है। बातें चाहे कितनी बड़ी बड़ी की जाए, कितनी ही अच्छी ही क्यों न हों किन्तु याद रखिये संसार आपको आपके कर्मो के द्वारा जानता है। अतः बातें भी अच्छी करिए और कार्य भी हमेशा उत्कृष्ट और श्रेष्ठ करें। अनुपमा की राधे राधे जी.... #😊कृष्ण कथाएं #🙏 भक्ति #🌸 जय श्री कृष्ण #🌸 बोलो राधे राधे #🙏 राधा रानी

"Ultimate happiness"    Seeking happiness in grief, seeking profit in loss, finding opportunities in adversities is called a positive attitude. There is no greater sorrow in life that does not give shadows of happiness

,। 🕉️🙇🏻‍♂️🚩जय श्री राधेश्याम जी श्री धाम #वृन्दावन महिमा🚩🙇🏻‍♂️🕉️प्राचीन समय में श्री वृन्दावन धाम में तुलसी जी का बहुत ही विशाल वन था। श्री धाम वृन्दावन की महिमा अनंत है। यहाँ पे श्री ठाकुर जी ने अनंत लीलाये की है। श्री वृन्दावन धाम सारे धामों से बढ़ कर के है। यहाँ पे जन्म लेने के लिए स्वर्ग के देवता भी श्री राधा रानी एवं श्री ठाकुर जी से प्रार्थना करते रहते है पर श्री वृन्दावन धाम में वास उसी को मिलसकता है जिस पर हमारे ठाकुर जी की अशीम कृपा होगी। यहाँ पे माना जाता है के माता लक्ष्मी जी श्री धाम वृन्दावन में प्रवेश पाने के लिए बेलवन में तपश्या की थी। श्री वृन्दावन धाम की महारानी श्री राधा रानी है। यहाँ पे श्री राधा रानी अपने प्रियतम श्री श्याम सूंदर के साथ अनंत लीलाये की है। श्री धाम वृन्दावन की महिमा को कोई अपने शब्दों में बया नहीं कर सकता है। बड़े बड़े साधु महात्मा लोग भगवन से प्रार्थना करते है की हे राधा रानी हमें अपने चरणों की धूलि बनादो या किसी पशु पक्षी या कोई भी जनम दो लेकिन ब्रज का ही वास मिले। क्यों की वृन्दावन की धूलि जनम - मरण के बंधन से मुक्ति दिलाने वाली है। इस धूलि में श्री श्यामा श्याम सूंदर जी ने अनेक लीलाये की है। यहाँ पे लोग ब्रज रज को लोग आपने सर पे धारण करते है।एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी वृन्दावन के कालीदह के निकट राम्गुलैला के स्थान में रुके थे। उस समय वृन्दावन में एक संत रहते थे जिनका नाम था नाभा जी जिन्होंने ने भक्तमाल ग्रन्थ लिखा है। उन्होंने उस समय वृन्दावन में भक्तो का बहुत बडा भंडारा किया, तुलसीदास जी उस समय वृन्दावन में ही ठहरे थे अतः भगवान शंकर जी ने गोस्वामी जी से कहा की आप भी जाये नाभा जी के भंडारे में। तुलसीदास जी ने भगवन शंकर की आज्ञा का पालन किया और नाभा जी के भंडारे में जाने के लिया चल दिए और जब वो वहा पहुंचे तो थोडा बिलम्ब हो गया था और वहां पर संतो की बहुत भीड़ थी उनको कही बैठने की जगह नहीं मिली तो जहा संतो के जूते-चप्पल पड़े थे वो वही ही बैठ गए।अब संत लोग भंडारा पा रहे थे, पहले ज़माने में संत लोग स्वयं आपने बर्तन लेकर जाया करते थे, आज भी वृन्दावन की रसिक संत भंडारे में अपने-अपने पात्र लेकर जाते है। अब भंडारा भी था तो खीर का था क्योकि हमारे बांकेबिहारी को खीर बहुत पसंद है आज भी राजभोग में 12 महीने खीर का ही भोग लगता है, अब जो प्रसाद बाट रहा था वो गोस्वामी जी के पास आये और कहा बाबा -तेरो पात्र कहा है तेरो बर्तन कहा है अब तुलसीदास जी के पास कोई बर्तन तो था नहीं तो उसने कहा की बाबा जाओ कोई बर्तन लेकर आओ, मै किस्मे तोहे खीर दू इतना कह कर वह चला गया थोड़ी देर बाद फिर आया तो देखा बाबा जी वैसे ही बैठे है , फिर उसने कहा बाबा मैंने तुमसे कहा था की बर्तन ले आओ मै तोहे किस्मे खीर दू, इतना कहने के बाद तुलसी दास मुस्कराने लगे और वही पास में एक संत का जूता पड़ा था वो जूता परोसने वाले के सामने कर दिया और कहा इसमें खीर डाल दो तो वो परोसने वाले ने कहा की बाबा पागल होए गयो है का इसमें खीर लोगे, तो गोस्वामी जी के आँखों में आँसू भर आये और कहा की ये जूता संत का है और वो भी वृन्दावन के रसिक संत का , और इस जूते में ब्रजरज पड़ी हुई है और ब्रजरज जब खीर के साथ अंदर जाएगी तो मेरा अंतःकरण पवित्र हो जायेगा, धन्य है वृन्दावन , धन्य है वह रज जहा पर हमारे प्यारे और प्यारी जू के चरण पड़े है, ये भूमि श्री राधारानी की भूमि है यदि हम वृन्दावन में प्रवेश करते है तो समझ लेना चाहिए कि ये हमारे श्री राधारानी की कृपा है जो हमें वृन्दावन आने का न्यौता मिला। भले ही ये बात हम न समझे लेकिन एकबात समझ लेना चाहिए की जब तक हमारे श्री जी की कृपा नहीं होगी हम वृन्दावन में प्रवेश भी नहीं पा सक्ते हैधन वृन्दावन धाम है, धन वृन्दावन नाम। धन वृन्दावन रसिक जो सुमिरै स्यामा स्याम।*😊🤹‍♀️🙏जै जै श्यामा जै जै श्याम जै जै श्री वृन्दावन धाम🙏🤹‍♀️😊*

,। 🙏🌹जय जय श्री राधे कृष्ण 🌹🙏🌳🌴🌿🍁🏵🌷 सुप्रभात दोस्तों भाई बहनों जय श्री कृष्णा जय श्री श्याम श्री राधे राधे जी 🌷🏵🍁🌿🌴🌳🙏🏻 **🌹🌹🌹❤ *#अंतर्मन में श्याम बसें,**#धड़कन में #राधा रानी हो !!**निज #साँस की उथल पुथल में,**#मुरली की तान #सुहानी हो !!**काम क्रोध का वास न हो,**लोभ मोह सब खो जाए !!**#प्रभु #चरण में मिले चाकरी,**मन वृन्दावन हो जाए !!*❤#Vnita🌹🌳🌾🙏राधे राधे जी🙏🌾🌳🌹🙏🌹जय जय श्री राधे कृष्ण 🌹🙏

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. "क्यों पूजनीय है स्त्री ?" एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, "मैं आप को कैसी लगती हूँ ?" श्रीकृष्ण ने कहा, "तुम मुझे नमक जैसी लगती हो।" सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने उस समय तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया। कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। सर्वप्रथम सत्यभामा से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने। सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या सब्जी में नमक ही नहीं था। कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर हलवे का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर आक्क थू ! तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं किसने बनाई है यह रसोई ? सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के पास आये और पूछा क्या हुआ देवी ? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या ? इतनी क्रोधित क्यों हो ? तुम्हारा चेहरा इतना तमतमा क्यूँ रहा है ? क्या हो गया ? सत्यभामा ने कहा किसने कहा था आपको भोज का आयोजन करने को ? इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है ? किसी वस्तु में नमक नहीं है। मीठे में शक्कर नहीं है। एक कौर नहीं खाया गया। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, तो क्या हुआ बिना नमक के ही खा लेतीं। सत्यभामा फिर क्रुद्ध कर बोली लगता है दिमाग फिर गया है आपका ? बिना शक्कर के मिठाई तो फिर भी खायी जा सकती है मगर बिना नमक के कोई भी नमकीन वस्तु नहीं खायी जा सकती है। तब श्रीकृष्ण ने कहा तब फिर उस दिन क्यों गुस्सा हो गयी थीं जब मैंने तुम्हे यह कहा कि तुम मुझे नमक जितनी प्रिय हो। अब सत्यभामा को सारी बात समझ में आ गयी की यह सारा आयोजन उसे सबक सिखाने के लिए था और उनकी गर्दन झुक गयी।#तात्पर्य:- स्त्री जल की तरह होती है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है। स्त्री नमक की तरह होती है, जो अपना अस्तित्व मिटा कर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर-सत्कार से परिवार को ऐसा बना देती है। माला तो आप सबने देखी होगी। तरह-तरह के फूल पिरोये हुए पर शायद ही कभी किसी ने अच्छी से अच्छी माला में अदृश्य उस सूत को देखा होगा जिसने उन सुन्दर-सुन्दर फूलों को एक साथ बाँध कर रखा है। लोग तारीफ़ तो उस माला की करते हैं जो दिखाई देती है मगर तब उन्हें उस सूत की याद नहीं आती जो अगर टूट जाये तो सारे फूल इधर-उधर बिखर जाते हैं। स्त्री उस सूत की तरह होती है, जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान-पहचान की मोहताज नहीं होती है। और शायद इसीलिए दुनिया राम के पहले सीता को और श्याम के पहले राधे को याद करती है। अपने को विलीन कर के पुरुषों को सम्पूर्ण करने की शक्ति भगवान् ने स्त्रियों को ही दी है। -----------:::×:::--------- "जय जय श्री राधे"************************************************ "श्रीजी की चरण सेवा" की सभी वनिता पंजाब, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें👇,

, आज का भगवद चिंतन।यह काल कलिकाल है इसमें केवल नाम जप से ही मनुष्य के कल्याण का मार्ग बताया है।पिछले अंक से आगे।शुकदेवजी कहते है -सतयुग में विष्णु के ध्यान से,,त्रेता युग में यज्ञ से,द्वापर में विधिपूर्वक विष्णु पूजासे- जो फल मिलता था,वही फल कलियुग में भगवान के नाम कीर्तन से मिलता है। मृत्यु के समय परमेश्वर का ध्यान करनेसे जीवको अपने स्वरुप में समाहित कर देते है। शुकदेवजी राजाको अंतिम उपदेश देते है - हे राजन,जन्म और मृत्यु तो शरीर के धर्म है।आत्मा तो अजर अमर है। घट फूट जाने के पर उसमे समाया हुआ आकाश महाकाश से मिल जाता है। इसी प्रकार देहोत्सर्ग होने पर जीव ब्रह्ममय हो जाता है। राजन,आज तुम्हारा अंतिम दिन है। तक्षक नाग तुम्हे डंसेगा। वह तेरे शरीरको मार सकेगा पर तेरी आत्माको नहीं। आत्मा शरीर से अलग है। आत्मा परमात्मा का अंश है। अब अंत में तुम्हे महावाक्य का उपदेश देता हूँ। अहं ब्रह्म परं धाम ब्रह्मांड परम पदम् राजन- मै ही परमात्मा रूप ब्रह्म हूँ और परम पद रूप ब्रह्म भी मै ही हूँ।ऐसा सोचकर अपनी आत्मा को ब्रह्म से जोड़ लो। तक्षक-काल भी श्रीकृष्ण का ही अंश है। शरीर नाशवान है,आत्मा तो अमर है। अब तुम्हे कुछ और सुनने की इच्छा है? समय तो हो गया है,फिर भी अगर कोई इच्छा हो तो बोल। जब तक मै यहाँ हूँ तक्षक यहाँ नहीं आ सकता। परीक्षित- महाराज,आपने मुझे व्यापक ब्रह्म के दर्शन कराये है सो मै निर्भय हो गया हूँ। भागवत श्रवण के पाँच फल है। -(१) निर्भयता (२) निः सन्देहता (३) ह्रदय में प्रभुका साक्षात् प्रवेश (४) सभी में भगवद दर्शन (५) परम प्रेम परीक्षित कहते है-प्रभु- भागवत का प्रथम स्कन्ध सुनकर-परमात्मा के दक्षिण चरण के दर्शन हुए। द्वितीय स्कन्ध सुनकर वाम चरण के दर्शन हुए। तीसरे और चौथे स्कन्ध सुनकर दोनों हस्त-कमल के दर्शन हुए। पाँचवे और छठ्ठे स्कन्ध को सुनकर दोनों जंघा के,सातवें स्कन्ध के श्रवण से कटि भाग के दर्शन हुए। अष्टम और नवम स्कन्ध सुनकर प्रभु के विशाल वक्षःस्थल के दर्शन हुए।एकादश स्कन्ध सुनकर श्रीनाथजी का ऊपर उठा हुआ हस्त दिखाई दिया। बारहवें स्कन्ध के श्रवण से मुझे लग रहा है कि श्रीकृष्ण दोनों हाथों से मुझे बुला रहे है। अब तो मै प्रभु का ही ध्यान धर रहा हूँ। मै उनकी शरण में हूँ। मुझे सर्वत्र वे ही दिखाई दे रहे है। मै उनके पास जा रहा हूँ। वे मुझे बुला रहे है। मै कृतार्थ हो गया। महाराज,आपने मुझे प्रेम-रस पिलाया है,मुझे पवित्र बनाया है। आपने कथा नहीं की पर मुझे प्रत्यक्ष श्रीकृष्ण के दर्शन कराये है। आपने बताया है कि सारा जगत ब्रह्मरूप है। तक्षक जगत से पृथक नहीं है,वह भी ब्रह्मरूप है। मै आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ। आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया।शेष अगले अंक में।(साभार:भगवद रहस्य)सुन्दर कथाओ के लिए Vnita पेज लाइक करे।,

*💕🍀꧁!! जय श्री Զเधॆ कृष्णा जी !!꧂🍀💕**💕🍀꧁!! जय श्री Զเधॆ Զเधॆ जी !!꧂🍀💕*Oh my teenagerAn Mangu Baikunth Ladli, neither I ask for liberation,Give devotion to Charan in your loveRadha Ratu, teach it,Vas dedo kishori ji showers ानाWho brought the owner,

🌹🙏हे किशोरी जी🙏🌹🌸ना मांगू बैकुंठ लाड़ली, ना मैं मांगू मुक्ति,चरण तेरे में प्रीति हो जाए, ऐसी दे दो भक्ति ।🌸🌺राधा राधा रटूं, यह सिखा जाना,वास देदो किशोरी जी बरसाना ॥🌺🌸कौन पहुंचाए स्वामिनी सूझतनहीं किनारा,बृज की रज में रज हो जाऊं हो जाए पार उतारा ।🌸🌺मर ना जाऊं जल्दी से आ जाना,वास देदो किशोरी जी बरसाना ॥🌺🌻मेरे मस्तक हाथ धरो तो बन जाए वो रेखा,‘श्री हरी दासी’ ने संतो की आँखों में जैसा देखा।🌻🙏🏻मैं भी देखू वो बरसाना,वास दे दो किशोरी जी बरसाना ॥🙏🏻 ...🌹बोलो जय श्री राधे🌹...

जय श्री गोविंद*•••🙏🙏मुझे चरणों से लगाले मेरे श्याम मुरली वाले। मेरी स्वास–स्वास में तेरा है नाम *मुरली वाले...।।*भक्तो की तुमने कान्हाँ विपदा है टारी, मेरी भी वाह थामो आके बिहारी। बिगड़े बनाए तुमने हर काम मुरली वाले।। *मुझे चरणो से..!*!पतझड़ है मेरा जीवन, बनके बहार आजा, सुनले पुकार कान्हाँ बस एक बार आजा। बेचैन मन के तुम्ही आराम मुरली वाले।। *मुझे चरणो से..!!* तुम हो दया के सागर, जनमो की मै हूँ प्यासी, दे दो जगह मुझे भी चरणों में बस जरा सी। सुबह तुम्ही हो, तुम्ही मेरी श्याम मुरली वाले।। *मुझे चरणों से लगाले मेरे श्याम मुरली वाले..!!*जय जय श्री राधे*!!

एक बार संत सूरदास को किसी ने भजन के लिए आमंत्रित किया..भजन कार्यक्रम के बाद उस व्यक्ति को सूरदास जी को अपने घर तक पहुँचाने का ध्यान नही रहा और वह अन्य अतिथियों की सेवा में व्यस्त हो गयासूरदास जी ने भी उसे तकलीफ नहीं देना चाहा और खुद लाठी लेकर गोविंद–गोविंद करते हुये अंधेरी रात मे पैदल घर की ओर निकल पड़े । रास्ते मे एक कुआं पड़ता था । वे लाठी से टटोलते–टटोलते भगवान का नाम लेते हुये बढ़ रहे थे और उनके पांव और कुएं के बीच मात्र कुछ इंच की दूरी रह गई थी कि.....उन्हे लगा कि किसी ने उनकी लाठी पकड़ ली है, तब उन्होने पूछा - तुम कौन हो ? उत्तर मिला – बाबा, मैं एक बालक हूँ । मैं भी आपका भजन सुन कर लौट रहा हूँ । देखा कि आप गलत रास्ते जा रहे हैं, इसलिए मैं इधर आ गया । चलिये, आपको घर तक छोड़ दूँ...सूररदास ने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है बेटा ?"बाबा, अभी तक माँ ने मेरा नाम नहीं रखा है।‘’तब मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूँ ?कोई भी नाम चलेगा बाबा...सूरदास ने रास्ते मे और कई सवाल पूछे। उन्हे लगा कि हो न हो, यह कन्हैया है,वे समझ गए कि आज गोपाल खुद मेरे पास आए हैं । क्यो नहीं मैं इनका हाथ पकड़ लूँ ।यह सोंच उन्होने अपना हाथ उस लकड़ी पर कृष्ण की ओर बढ़ाने लगे । भगवान कृष्ण उनकी यह चाल समझ गए ।सूरदास का हाथ धीरे–धीरे आगे बढ़ रहा था । जब केवल चार अंगुल अंतर रह गया, तब श्री कृष्ण लाठी को छोड़ दूर चले गए । जैसे उन्होने लाठी छोड़ी, सूरदास विह्वल हो गए, आंखो से अश्रुधारा बह निकली ।बोले - "मैं अंधा हूँ ,ऐसे अंधे की लाठी छोड़ कर चले जाना क्या कन्हैया तुम्हारी बहादुरी है ?और.. उनके श्रीमुख से वेदना के यह स्वर निकल पड़े“हाथ छुड़ाये जात हो, निर्बल जानि के मोय ।हृदय से जब जाओगे, तो सबल जानूँगा तोय ।।"मुझे निर्बल जानकार मेरा हाथ छुड़ा कर जाते हो, पर मेरे हृदय से जाओ तो मैं तुम्हें मर्द कहूँ ।भगवान कृष्ण ने कहा..बाबा, अगर मैं ऐसे भक्तो के हृदय से चला जाऊं तो फिर मैं कहाँ रहूँ .भज गोविंदम्... !!,

#भक्त_का_मान_रखने_स्वयं_साक्षी_बनकर_आये 👍👌भगवान श्री कृष्ण का एक नाम गोपाल हैं जो साक्षी गोपाल नामक मन्दिर के रूप में प्रसिध्द है । इस मन्दिर का नाम साक्षी गोपाल कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा प्रचलित है, किसी समय यह मूर्ति वृन्दावन के एक मन्दिर में स्थापित थी। जिसके दर्शन के लिये एक बार दो ब्राह्मण, जिनमें एक वृद्ध और एक युवा, वृन्दावन की यात्रा पर निकले। यात्रा लम्बी थी और उन दिनों रेलगाड़ियाँ की व्यवस्था भी नहीं थीं, अतः यात्रियों को अनेक कष्ट उठाने पड़ते थे। वृद्ध व्यक्ति युवक का अत्यन्त कृतज्ञ था, क्योंकि युवक ने यात्रा के दौरान उनकी काफी सेवा की थी। जब वह वृध्दि व्यक्ति वृन्दावन पहुँचे तो उन्होंने कहा, हे युवक तुमने पूरे यात्रा के दौरान मेरी बहुत सेवा की है। मैं इसके लिए तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी इस सेवा के बदले में तुम्हें कुछ पुरस्कार दूँ।उस युवक ने कहा - आप वृद्ध हैं, मेरे पिता के समान हैं, आपकी सेवा करना मेरा कर्त्तव्य है। इसके लिए मुझे कोई पुरस्कार नहीं चाहिए।वृद्ध पुरुष हठ करने लगे नहीं, मैं तुम्हारा अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, मैं तुम्हें पुरस्कार अवश्य दूँगा। तब उस वृद्ध ने उस युवक से अपनी पुत्री का विवाह करने का वचन दे दिया। वह वृद्ध पुरुष अत्यन्त धनी थे और वह युवक, विद्वान ब्राह्मण होते हुए भी अत्यन्त निर्धन था। यह सुन युवक ने कहा, आप यह वचन न दें, क्योंकि आपका परिवार इस बात पर कभी भी सहमत नहीं होगा। क्योंकि मैं एक गरीब ब्राह्मण हूँ, और आप इतने धनी परिवार से हैं, अतः यह विवाह संभव नहीं हो सकेगा। कृपया भगवान के श्रीविग्रह के समक्ष इस प्रकार वचन न दें।दोनों का यह वार्तालाप मन्दिर के भीतर भगवान गोपाल (कृष्ण) के श्रीविग्रह के समक्ष हो रहा था, और वह युवक चिन्तित था कि कहीं यह वचन पूरा न हो सका तो इससे श्रीविग्रह का अपमान न हो जाये। फिर भी उस युवक के तर्कों के बावजूद वृद्ध पुरुष विवाह की बात पर अड़े रहे, तथा दर्शन के पश्चात वृन्दावन में कुछ दिनों रहने के बाद वे दोनों घर लौट आये, और वह वृद्ध पुरुष ने यात्रा की सारी बात अपने ज्येष्ठ पुत्र से कहा और कहा कि तुम्हारी बहन का विवाह उस निर्धन ब्राह्मण युवक से करने का वचन दिया हूँ । यह सुन उनका ज्येष्ठ पुत्र अत्यन्त क्रोधित हो गया और कहा आपने मेरी बहन के लिए ऐसा दरिद्र पति क्यों चुना है यह विवाह नहीं हो सकता।यह सुन वृद्ध पुरुष की पत्नी भी आ गई और कहने लगी, यदि आप हमारी पुत्री का विवाह उस युवक से करेंगे, तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। यह सब सुनकर वृद्ध पुरुष बहुत उलझन में पड़ गये। कुछ समय बीतने के पश्चात उस ब्राह्मण-युवक को चिन्ता होने लगी कि कहीं वह वृद्ध पुरुष ने अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करने का वचन भगवान् के समक्ष दिया था। उसे पूरा करने क्यों नहीं आ रहे हैं? यह सोच वह युवक उस वृद्ध पुरुष को उनके वचन की याद दिलाने के लिए उनके पास गये।युवक ने कहा, आपने भगवान् गोपाल (कृष्ण) के समक्ष वचन दिया था, किन्तु अब आप उसे पूरा नहीं कर रहे हैं। ऐसा क्यों यह सुन वृद्ध पुरुष मौन थे, और वह अपनी उस उलझन के सुलझाने के लिए भगवान कृष्ण से प्रार्थना करने लगे. क्योंकि वह अपनी पुत्री का विवाह इस युवक के साथ करके वह अपने परिवार में क्लेश पैदा करना नहीं चाह रहे थे। उसी समय उनका ज्येष्ठ पुत्र आ गया और वह उस ब्राह्मण युवक ऊपर दोषारोपण करने लगता है, तुमने तीर्थस्थान के बहाने मेरे पिता को मोहित कर लिया, और सारा धन लूटने के लिये मेरी सबसे छोटी बहन से विवाह करने का वचन ले लिया है।इस प्रकार की बात कहकह कर बहुत शोरगुल करने लगा जिससे और लोग एकत्र होने लगे। वह युवक समझ गया कि वृद्ध पुरुष अब भी विवाह करने के लिये सहमत है, किन्तु उनके परिवार के लोग यह नहीं होने दे रहे हैं।यह देखा वह ब्राह्मण युवक भी उच्च स्वर में बोलने लगा कि वृद्ध पुरुष ने भगवान् श्रीगोपाल के समक्ष मुझे यह वचन दिया था, किन्तु अब परिवार के विरोध के कारण अपने वचन को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। तब उस वृद्ध पुरुष का पुत्र कहने लगता हैं तुम कहते हो कि भगवान् साक्षी हैं, तो ठीक है यदि भगवान् यहाँ आकर कहे कि वे साक्षी हैं कि मेरे पिता ने वचन दिया है, तो तुम मेरी बहन के साथ विवाह कर सकते हो।युवक ने कहा, हाँ, मैं भगवान श्रीगोपाल से कहूँगा कि वे साक्षी के रूप में आएँ। उसे विश्वास था कि भगवान् अवश्य आएँगे। सभी के समक्ष यह बात तय हुआ कि यदि वृद्ध पुरुष के वचन की साक्षी के लिए भगवान गोपाल (श्रीकृष्ण) यदि वृन्दावन से यहाँ आएँगे, तो कन्या का विवाह उस युवक से कर दिया जाएगा। वह ब्राह्मण युवक पुनः पैदल लौटकर वृन्दावन के लिये आता हैं, कुछ दिन यात्रा कर वृन्दावन पहुँचकर भगवान गोपाल (श्री कृष्ण) से प्रार्थना करने लगाता हैं, “हे भगवान्! आप तो साक्षी हैं आपके समक्ष उन्होंने मुझे वचन दिये थे इसलिए आपको मेरे साथ चलना होगा. वह इतना निष्ठावान भक्त था कि वह भगवान गोपाल से ऐसे बातें कर रहा था, जैसे किसी अपने मित्र से कर रहा हो। उसने यह नहीं सोचा कि यह गोपाल तो एकमात्र मूर्ति हैं। वह तो उन्हें साक्षात् भगवान् मान रहा था। अचानक मूर्ति से आवाज आई, तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूँ? मैं तो एक मूर्ति हूँ। मैं कहीं नहीं जा सकता।युवक ने बहुत ही सुन्दर उत्तर दिया, यदि मूर्ति बोल सकती है, तो वह चल भी सकती है। इस प्रकार युवक के सविनय आग्रह को स्वीकार करते हुए श्रीविग्रह ने कहा, अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा, किन्तु एक शर्त है। तुम किसी भी दशा में मुझे पीछे मुड़कर देखना नहीं यदि देखे तो मैं वही स्थापित हो जाऊंगी, और आगे नहीं जाऊंगी वह युवक शर्त मान लेता हैं. भगवान कहते हैं मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चलूँगा तुम मेरे नूपुरों की ध्वनि से जान लेना कि मैं पीछे आ रहा हूँ।युवक भगवान की बात मान चलने लगता हैं आगे आगे युवक चलता है पीछे पीछे भगवान नूपुर की मधुर ध्वनि के साथ आते हैं। इसी प्रकार जब यात्रा पूरी होने वाली होती हैं और वह युवक जैसे ही गाँव में प्रवेश करने वाला होता हैं वैसे ही नूपुरों की ध्वनि सुनाई देनी बन्द हो गई। उस युवक को चिन्ता हुई कि गोपाल कहाँ चले गये और वह अधीर होकर जैसे ही पीछे मुड़कर देखने लगता हैं वह मूर्ति स्थिर हो जाती हैं। चूँकि उसने पीछे मुड़ कर देखा था, इसलिए अब मूर्ति आगे नहीं जाने वाली थी। इसलिये वह तुरन्त दौड़कर नगर में पहुँचा और लोगों से कहने लगा कि चल कर देखें कि गोपाल स्वयं साक्षी रूप में आये हैं। यह सुन लोग अचंभित हो गए कि इतनी बड़ी मूर्ति इतनी दूरी से चलकर कैसे आ गई। जैसे ही जाकर देखते है कि भगवान स्वयं साक्षी रूप में आये है तो उस युवक के भक्ति सभी प्रसन्न हो जाते हैं और वचन अनुसार उसका विवाह उस वृद्ध पुरुष की छोटी लड़की से कर दिया और श्रीविग्रह के सम्मान में उस स्थल पर एक मन्दिर बनवा दिया जिसे लोग भगवान् की पूजा साक्षी-गोपाल के रूप में करते हैं। यह स्थान जगन्नाथ पुरी से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और साक्षी गोपाल के नाम से विख्यात है। !हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण! !!हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे!!

उन्होंने नब्ज देखी हमारी ,,,,,, और बीमार लिख दिया !! रोग हमने पूछा तो,,,,,, वृंदावन से प्यार लिख दिया !!! कर्जदार रहेंगे उम्र भर,,,,,,,, हम उस वैध के !!!! जिसने दवा में,,,,, श्री राधा नाम लिख दिया !!!!! जय श्री कृष्णा, राधे राधे,

📿 राधे माला कीर्तन पोस्ट 📿🌹👏 जय श्री राधे कृष्णा 👏🌹🦚🌹🦚 सुप्रभात वंदन जी🦚🌹👏🌹👏 अलबेली सरकार के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम 👏🌹सभी भक्तजन को कोटि कोटि प्रणाम 👏🌹 आये सब मिलकर राधा नाम संकीर्तन करते हैं 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे 📿 राधे👏🌹👏🌹👏🌹👏🌹👏राधा नाम नहीं तो जीना क्या? राधा नाम नहीं तो जीना क्या 👏🌹👏अमृत है राधा नाम जगत में इसे छोड़ विषय विष पीना क्या?।।१।।राधा नाम नहीं तो जीना क्या 👏🌹👏काल सदा अपने रस डोले ना जाने कब सिर चढ़ बोले। राधा नाम जपो निसबासर,इस में वर्ष महीना क्या।।२।।👏🌹राधा नाम नहीं तो जीना क्या 👏🌹👏 राधे-राधे 👏 🌹तीर्थ है राधा नाम तुम्हारा, फिर क्यो फिरता है मारा मारा।,अंत समय राधा नाम आवे, काशी और मथुरा क्या।।३।। राधा नाम नहीं तो जीना क्या 👏🌹👏🌹👏🌹👏🌹👏भुषण से सब अंग सजाये,रसना पर राधा नाम आये।देह पड़ी रह जाय यहां पर, कुण्डल और नगीना क्या।।४।। राधा नाम नहीं तो जीना क्या राधा नाम नहीं तो जीना क्या।।राधा नाम नहीं तो जीना क्या 👏🌹👏🌹👏🌹👏🌹👏🌹👏राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे 🌹👏 राधे-राधे राधे-राधे बरसाने वाली राधे राधे राधे हम सब की प्यारी राधे राधे राधे राधे 👏🌹वृंदावन में राधे राधे, बरसाने में राधे राधे 👏🌹 कुंज गली में राधे राधे बांके बिहारी राधे राधे 🌹👏 निधि वन में राधे राधे 👏🌹👏 अलबेली में राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे 👏🌹👏🌹👏🌹👏🌹,🌹👏 जय श्री राधे कृष्णा 👏🌹

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🌹🌴‼ जयश्रीकृष्ण ‼🌹 श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवाय !!! ༺꧁🌺 Զเधॆ Զเधॆ🌺꧂༻

............ ਪੁੱਛੋ ਪੁੱਛੋ.... ਚਿੱਤ ਕਰੇ ! ਹੋ ਜਾਂ ਅਮਨਾਂ ਦੀ ਘੁੱਗੀਗੱਲ ਰਹੇ ਨਾ ਗੁੱਝੀਜੰਗ ਜੰਗ ਨਾ ਕੂਕੋ ਲੋਕੋਜੰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਕੂਕਣ! ਬੰਬ ਗੋਲੇ ਤੋਪਤੁਸੀਂ ਕੂਕਦੇ ਜੰਗ ਜੰਗ ਜੰਗਜੰਗ ਕੂਕਦੀ ਲੋਕਸੰਨਾਟਿਆਂ, ਖੰਡਰਾਂਖਮੋਸ਼ੀਆਂ ਤੋਂ ਪੁੱਛੋਹੋਸ਼ਾ ਦੀਆਂ ਟੁੱਟੀਆਂ ਬੇਹੋਸ਼ੀਆਂ ਤੋਂ ਪੁੱਛੋਬਹਿਕੇ ਪੌਣ ਪਾਣੀ ਜਿਹਦੇ ! ਉਸ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਪੁੱਛੋ ਅੰਬਰ ਤੋਂ ਪੁੱਛੋ ਮੁੱਕੇ ਅੰਦਰ ਤੋਂ ਪੁੱਛੋਮੁੱਕ ਜਾਣਾ ਉਡੀਕਦਿਆਂ ਉਡੀਕਦਿਆ ਮੁੱਕੂ ਨਾ ਜਿਹੜੀ ਉਹ ਉਡੀਕ ਕੀਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇਗੂੰਗੀ ਚੀਕ ਕੀਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਨਫ਼ਰਤਾਂ ਦੀ ਲੀਕ ਕੀਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਨਾ ਸਾੜੋ ਬੰਬਾਂ ਨਾਲ ਨਾ ਮਾਰੋ ਬੰਬਾਂ ਨਾਲ ਸਿਖ ਲੋ ਮੁਹੱਬਤਾਂ ਦੀ ਤੌਫ਼ੀਕ ਕੀਹਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ....Vnita,,,

🙏🌹जय श्री कृष्ण जय श्री राधे 🌹🙏*हमारा जीवन परिवर्तनों* *से ही बना है इसलिये किसी भी परिवर्तन से घबराएं नहीं*...... *बल्कि उसे स्वीकार* *करें। कुछ परिवर्तन आपको* *सफलता* *दिलाएंगे... तो कुछ सफल होने के गुण* *सिखाएंगे*।*जीवन एक नदी की तरह बह रहा है**जहा अनपेक्षित मोड़ है,**शायद अच्छा हो**ख़राब भी हो सकता है**प्रत्येक मोड़ का आनंद लेना सीखें,**क्योंकि**यह मोड़ फिर से लौट के नहीं आएंगे* *सर्व परिस्थितियों को स्वीकार करने की स्वयं मे शक्ति को बढ़ाओ और उनका सामना साहस से करों तो आप एक दिन विजेता बन जाएंगे*🙏🌹जय श्री कृष्ण जय श्री राधे 🌹🙏🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️

╔═══•✥✥🌹✥✥•═══╗ 🌹🌟✿Զเधॆ_Զเधॆ✿🌟🌹╚═══•✥✥🌹✥✥•═══╝ 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁 💎‼#श्रीराधेकृष्णा‼💎✍*::::::::::::::♦️♦️::::::::::::::::::*जीवन में सबसे आसान और कठिन क्या है .....?* *”ग़लती “**क्यू की कोई दूसरा करे तो कहना आसान हो ता है और खुदसे हो तो स्वीकारना कठिन होता है ....!!*::::::::::::::::::::::♦🌻️♦️::::::::::::::::::::::::: 🌹🙏‼🌟◉✿Զเधॆ_Զเधॆ✿◉🌟‼🙏🌹┈┉┅━❀꧁ω❍ω꧂❀━┅┉┈

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🌹🌹#कान्हा_का_नामकरण 🌹🌹भगवान श्रीकृष्ण की तमाम लीलाओं के बारे में हम सब जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लीलाधर श्रीकृष्ण का नाम कान्हा और कन्हैया कैसे पड़ा। दरअसल इसके पीछे भी पौराणिक कहानी है। और आज पौराणिक कहानी में हम इसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं...पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार हैएक दिन वासुदेव प्रेरणा से कुल पुरोहित गर्गाचार्य गोकुल पधारे। नन्द यशोदा ने आदर सत्कार किया और वासुदेव देवकी का हाल लिया। जब उन्होंने गर्गाचार्य से जब आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया, 'पास के गांव में बालक ने जन्म लिया है। वही नामकरण के लिए जा हूं बस रास्ते में तुम्हारा घर पड़ता था इसलिए मिलने आ गया।'यह सुन कर नन्द और यशोदा ने गुरु से विनती कि, 'बाबा हमारे यहां भी दो बालकों ने जन्म लिया है उनका भी नामकरण कर दो।'गर्गाचार्य ने मना करते हुए कहा, 'तुम्हें हर काम जोर शोर से करने की आदत है। कंस को पता चला तो मेरा जीना दुभर करेगा।' लेकिन नन्द बाबा कहां मानने वाले थे कहने लगे, 'भगवन गौशाला में चुपचाप नामकरण कर देना हम किसी को नहीं बताएंगे।' यह सुनकर गुरु गर्गाचार्य तैयार हो गए।दूसरी ओर जब रोहिणी ने सुना कुल पुरोहित गर्गाचार्य आए हैं तो गुणगान बखान करने लगी। तब यशोदा बोलीं 'गर्ग इतने बड़े पुरोहित हैं तो ऐसा करो अपने बच्चे हम बदल लेते हैं तुम मेरे लाला को और मैं तुम्हारे पुत्र को लेकर जाऊंगी देखती हूं कैसे तुम्हारे कुल पुरोहित सच्चाई जानते हैं।'इस तरह से शर्त के अनुसरा रोहिणी और यशोदा परीक्षा पर उतर आईं। और अपने-अपने बच्चे बदलकर नामकरण के लिए गौशाला में पहुंच गईं। यशोदा के हाथ में बच्चे को देख गर्गाचार्य कहने लगे ये रोहिणी का पुत्र है इसलिए एक नाम रौहणेय होगा। अपने गुणों से सबको आनंदित करेगा तो एक नाम राम होगा और बल में इसके समान कोई ना होगा तो एक नाम बल भी होगा मगर सबसे ज्यादा लिया जाने वाला नाम बलराम होगा। यह किसी में कोई भेद नहीं करेगा। सबको अपनी तरफ आकर्षित करेगा तो एक नाम संकर्षण भी होगा।अब जैसे ही रोहिणी की गोद के बालक को देखा तो गर्गाचार्य मोहिनी सूरत में खो गए। और अपनी सारी सुधि भूल गए। इस तरह से खुली आंखों से ही गर्गाचार्य प्रेम समाधि में लीन हो गए। गर्गाचार्य ना तो बोलते थे ना ही हिलते थे। न जाने इसी तरह कितने पल निकल गए यह देख नन्द बाबा और यशोदा मैया घबरा गईं। और उन्हें हिलाकर पूछने लगे, 'बाबा क्या हुआ ? आप तो बालक का नामकरण करने आए हैं, क्या यह भूल गए?'यह सुन गर्गाचार्य को होश आया है और एकदम बोल पड़े नन्द तुम्हारा बालक कोई साधारण इंसान नहीं यह तो... यह कहते हुए जैसे ही उन्होंने अंगुली उठाई तभी कान्हा ने आंखें दिखाई। गर्गाचार्य कहने वाले थे कि यह तो साक्षात् भगवान हैं। तभी कान्हा ने आंखों ही आंखों में गर्गाचार्य को धमकाया और कहा 'बाबा मेरा भेद नहीं खोलना। मैं जानता हूं बाबा कि यह दुनिया भगवान का क्या करती है, उसे पूज कर अलमारी में बंद कर देती है और मैं अलमारी में बंद होने नहीं आया हूं, मैं तो माखन मिश्री खाने आया हूं, मां की ममता में खुद को भिगोने आया हूं। इसलिए अगर आपने मेरा यह भेद सबके सामने खोल दिया तो मेरा क्या हाल होगा?'दरअसल गर्गाचार्य नामकरण करने आए थे और किसी भी परिस्थिति में उन्हें नामकरण करना था इसलिए उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की बातों को मानने से इनकार कर दिया और फिर से कहने ही वाले थे कि, 'आपका बालत तो साक्षात्....'। तभी श्रीकृष्ण ने उन्हें फिर से समझाते हुए कहा कि 'बाबा मान जाओ, नहीं तो मुंह खुली की खुली रह जाएगी और उंगली उठी की उठी रह जाएगी।'यह सभी खेल आंखों ही आंखों में चल रहा था इसलिए पास में बैठे ना तो नन्द बाबा कुछ समझ पा कहे थे और ना ही यशोदा मैया कुछ समझ पा रही थीं। लेकिन बीच का रास्ता निकालते हुए गर्गाचार्य ने कहा, 'आपके इस बेटे के अनेक नाम होंगे। जैसे-जैसे कर्म करता जाएगा वैसे-वैसे नए नाम होते जाएंगे। लेकिन क्योंकि इस बालक ने इस बार काला रंग पाया है, इसलिए इसका एक नाम कृष्ण होगा। यह बालक इससे पहले यह कई रंगों में आया है।'मैया बोली बाबा यह कैसा नाम बताया है इसे बोलने में तो मेरी जीभ ने चक्कर खाया है। कोई आसान नाम बतला देना तब गर्गाचार्य कहने लगे, 'मैया तुम इसे कन्हैया, कान्हा, किशन या किसना कह लेना।' यह सुन मैया मुस्कुरा उठीं और तब से सारी उम्र इस बालक को कान्हा कहकर बुलाती रहीं।पौराणिक मान्यता है कि तभी से भगवान श्रीकृष्ण को कान्हा, कन्हैया, किशन या किसना कहते हैं ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय। जय जय श्री राधे। 🙏🙏🌹🌹

*✍दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है,**" वाह...." 👌**जब आप किसी के लिए ऐसा बोलते हैं,* *तब ना सिर्फ आप अपने अहंकार को तोड़ते है,* *बल्कि एक दिल भी जीत लेते है....!!!!✍* *🌹🌻By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌻 सुप्रभात🌻🌻 🌹*सदा मुस्कुराते रहिए 🙂 Radhe Radhe friends,

#Hari sharnam ❣❣Radhe radhe ji Sab ko ji ❣❣ *❣❣लाख बार हरि हरि कहै, एक बार श्री हरिदास।*❣❣*❣❣अति प्रसन्न श्री लाड़िली, देत वृन्दावन वास॥*❣❣. ❣ जय श्री कृष्णा ❣❣❣कृष्ण के सुकून का आधार है "राधा"..❣❣ ❣❣ जगत के पवित्र प्रेम का पर्याय है "राधा"..❣❣ ❣ यू तो सारे बंधनों से मुक्त है "कृष्ण"..❣ मगर जिससे छूट न पाए वो बंधन है "राधा"..❣❣❣❣Mera samarpan hari charnan ❣❣

नारी शक्ति को प्रणाम*🙏🙏श्री Զเधे 👏👏हे मित्र, आपकी मित्रता से जीवन धन्य हो गया।हे प्रभू , मेरे श्याम जी........ सुबह का प्रणाम प्रभु जी। सभी राधेश्याम भक्तों को प्रणाम प्रभुजी ।जय बोलो बाल कृष्ण भगवान की जय ।हे प्रभु ... अनमोल वचन : “भगवान् का प्राकट्य प्रेमसे”भगवान् शिव कहते हैं –हरि ब्यापक सर्बत्र समाना । प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं । कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं ॥ अग जगमय सब रहित बिरागी । प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ॥ (मानस १/८४/५-७) मैं तो यह जानता हूँ कि भगवान सब जगह समान रूप से व्यापक हैं, प्रेम से वे प्रकट हो जाते हैं, देश, काल, दिशा, विदिशा में बताओ, ऐसी जगह कहाँ है, जहाँ प्रभु न हों । वे चराचरमय (चराचरमें व्याप्त) होते हुए ही सबसे रहित हैं और विरक्त हैं (उनकी कहीं आसक्ति नहीं है), वे प्रेम से प्रकट होते हैं, जैसे अग्नि । (अग्नि अव्यक्त रूप से सर्वत्र व्याप्त है, परन्तु जहाँ उसके लिए अरणिमन्थनादि साधन किए जाते हैं, वहाँ वह प्रकट होती है । इसी प्रकार सर्वत्र व्याप्त भगवान भी प्रेम से प्रकट होते हैं ।चंचलता ईश्वर में है, स्थिरता आप में होनी चाहिए । 👉 *आज से हम* अपने मन को और दिल को खूबसूरत बनाएँ...जय सनातन धर्म,जय सनातन संस्कृति और शिक्षा।*"अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है."**स्वस्थ रहें, खुश रहे ।🙏*सुप्रभात*🙏🌷 🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌷 🌷🙏🙏श्री कृष्ण शरणम्🙏🙏********************************************हे प्रभू जी, "" सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया ,सर्वे भद्राणि पश्यंतु , मां कश्चित् दु:ख भाग भवेत् । ""जो इच्छा करहिं मन माहीं । प्रभू कृपा कछु दुर्लभ नाहीं ।""मेरी गलतियों को माफ़ करना प्रभू जी"" By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,।जय जय श्री राधे राधे जी जय जय श्री कृष्णा कृष्णा जीप्रणाम ! प्रभु जी।

*कालिदास बोले 😗 माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा.*स्त्री बोली 😗 बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।*कालीदास ने कहा 😗 मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।*कालिदास ने कहा 😗 मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।*स्त्री बोली 😗 तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?.(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)*कालिदास बोले 😗 मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।*स्त्री ने कहा 😗 नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)*कालिदास बोले 😗 मैं हठी हूँ ।.*स्त्री बोली 😗 फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)*कालिदास ने कहा 😗 फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।.*स्त्री ने कहा 😗 नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)*वृद्धा ने कहा 😗 उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)*माता ने कहा 😗 शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।.कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।शिक्षा :-विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी *व्यर्थ* नहीं जाने देना चाहिए.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब. *अन्न के कण को* "और"*आनंद के क्षण को* 🙏Jai Mata Di🙏

,। *!! जय श्री कृष्ण !!**दो चीजें खराब नही होनी चाहिए* *जिंदगी में तबियत ओर नियत.*. *फिर इस भव से बेड़ा पार है*...*स्वाद और विवाद को छोड़ देना चाहिए*..*स्वाद छोड़ो तो शरीर को फायदा* *विवाद छोड़ो तो संबंघ को फायदा*..*सार्वजनिक रूप से की गई* *आलोचना अपमान मैं बदल जाती है*..*ओर* ,,, *एकांत में *बताने पर* *सलाह बन जाती है...*🙏🌹 जय जय श्री राधे राधे जी 🌹🙏

,। 🌹 IIजय श्री कृष्ण जय श्री राधे ll 🌹*स्वीकार करने की हिम्मत* *और**सुधार करने की नीयत हो* *तो**इंसान बहुत कुछ सीख सकता है।* 🌹*हमको कितने लोग पहचानते है ?* *उसका महत्व नहीं है,**लेकिन क्यों पहचानते है..?* *इसका महत्व है. . .**अपनी पहचान दूसरों को सुख देकर बनाए।* 🙏🌹🙏,

, यदि कृष्ण न चाहे तो उनकी तरह तरफ चलना तो बहुत दूर, हम कृष्ण का विचार तक नही कर सकते, राधा नाम जो हमारे मुख पर है ये उनकी कृपा है ये उनकी इच्छा है उनकी ही कृपा है, उन्होंने स्वीकारा है हमें ।

,। 🌹जय 🌹श्री 🌹राधे 🌹कृष्णा🌹 जी🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🏹 *रामायण का दिव्य प्रसंग धनुष यज्ञ* 🏹🌹 *🏹🏹 भाग 55 गतांक से आगे 🏹🏹*🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌱🙏🌱🌱🌱🌱🙏*मेरे भाई बहनों महाराज जनक ने विश्वामित्र , 🌷वसिष्ठादि संतो को सजल नेत्रो से प्रणाम करते हैं , हे महराज ! आपकी कृपा से हमारे घर ऐसा महान प्रसंग हुआ जनक जी कहते है महराज इसी प्रकार अपनी छत्रछाया बनाये रखना । बारात मे आए बरातिओ को कहते हैं । आपकी सेवा मे यदि जाने अनजाने कोई त्रुटि हुई हो तो छमा करना ।पुत्री के पिता है न । वैसे भी महराज जनक नम्रता की प्रतिमूर्ति है । जनक जी सबसे मिल रहे हैं । चारो दामादो से भी मिले ।राम जी को पहचान गये है कि ये ब्रम्ह्य है । उन्होने कहा राघवेन्द्र आपकी किन शब्दो मे प्रशंसा करुँ आप तो ।*🌿*राम करौं केहि भाँति प्रसंसा ।*🥀🥀*मुनि महेस मन मानस हंसा ।।*🥀🥀*हे राम जी!आप तो शिवजी एवं कागभुशुण्डि जी के मानस के हंस हैं । वेद जिसे नेति कहते हैं वह तत्व आप ही हो । आप अपनी भक्ति और प्रेम का दान करो । सभी भाइयो से मिलकर जनक जी जब दशरथ जी से मिलने लगे तो सजल नेत्रो से जनक जी कहते है , हे अवधेश , हे प्रभु ! मैने ऐसा सुना है कि आप सम्पूर्ण पृथ्वी के गोले पर किसी के घर मेहमान नही बनते । आपका इतना बडप्पन है कि पृथ्वी पर कोई भी राजा आपकी आवभगत नही कर सकता । आप स्वर्ग मे इन्द्र के घर मेहमान बनते है । इन्द्र भी आपको आधा सिंहासन बैठने के लिये देता हैं ।ऐसी आपकी महानता है । आप हमारे यहाँ की व्यवस्था - अव्यवस्था देखकर इतने दिन रुके रहे । महाराज मै तो सिर्फ इतना कहूँगा कि आपने मुझे बडा बना दिया ।*🌹🌹🌲🌹*करौ कवन बिधि बिनय बनाई ।*🌿🌿🌿*महाराज मोहि दीन्हि बडाई ।।*🌿🌿🌿*मेरे भाई बहनों आप प्रेम बनाए रखना । कौसल्या माँ ,सुमित्रा माँ ,कैकेयी माँ बारात मे आयी होती तो मै और सुनयना उनको कहते कि हे माँ आज से ये कन्यायें आप की हो गयी इनका ख्याल रखना । पर वे बारात मे नही आयी हैं । अतः हे अवधेश मै आपसे यही प्रार्थना करता हूँ कि महारानिओ से मेरा संदेशा अवश्य कह देना । इतना कहकर जनक जी की आँखो से झरझर आंसू बहने लगे । महाराज दशरथ जी रथ से उतर पडते है जनक जी को खींच कर सीने से लगा लिया -- मिथिलेश ! आप बिल्कुल चिन्ता मत करना । ये आज से मेरी बेटी है ।*🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿*कोसलपति समधी सजन सनमाने सब भाँति ।**मिलनि परसपर बिनय अति प्रीति न हृदयँ समाति ।।**मेरे भाई बहनों सभी वाहन आगे बढने लगे , लोग समझा रहे है पर जनक जी जानकी की पालकी के पीछे पीछे चलने लगते हैं । वशिष्ठ जी ने राजा दशरथ से कहा राजन ! जनक जी अभी पीछे आ रहे है उन्हे समझाकर वापस लौटाओ । रथ खडा रहा । जनक जी को समझाया जनक जी अब वापस जाकर घर के लोगो को धैर्य धारण कराओ । आप बहुत दूर आ गये हो ।*🌹*कीन्हि बिनय पुनि पुनि सिरु नाई ।*🌷🌹*फिरे महीसु आसिषा पाई ।।*🌷🌿*मेरे भाई बहनों जनक जी वहीं खडे होकर जब तक रथ की ध्वजा दिखती रही खडे रहे । फिर वापस लौटे । घर आते हैं मेहमानो को विदायी देते हैं । फिर अपने सूने आंगन को देखकर रो पडते हैं । कुशकेतु सतानन्द और माता सुनयना महराज जनक को सान्त्वना देते है । जनकपुर सून्य बन गया । कन्याओ की विदायी हो गयी । रास्ते मे ठहरते ठहरते बारात अवध के लिए चली ।**अब रास्ते मे है । कुछ समय लगेगा अयोध्या पहुँचने मे ।अयोध्या पहुँच जाएगें तो आगे कथा बढेगी तब तक आप सीताराम की मनोहारी छवि को मन मे विठाकर बोलते है श्रीराम जय राम जय जय राम । सीताराम सीताराम सीताराम कहिए । जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए ।*🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌲🌿🌹🌿*बोलिए सियावर रामचन्द्र भगवान की जय*🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🥀🥀🥀🥀🥀🥀