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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जय श्री राधे कृष्णा,

जब कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था उसपर श्रीकृष्ण का जवाब क्या था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//            🌹🌹🙏🙏🌹🌹 कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ? द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था। परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा, क्योंकि उन्हें ज्ञात हो गया की मैं क्षत्रिय हूं। केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था। द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया। माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए। जो भी मुझे प्राप्त हुआ है,दुर्योधन से ही हुआ है। *तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ? *कृष्ण ने उत्तर दिया: *कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ। *जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए थी। *जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता...

जय श्री राधे कृष्णा

🌹आज का भगवद चिंतन - 754🌹 ⭐ अपना धन खर्च करके भी दूसरों का कलह मिटाने की लगन⭐ दो भाइयों की पंचायत में सेठ जी ने बंटवारा किया। एक अंगूठी पर मामला अटक गया। दोनों उसे लेने पर अड़ गए। सेठ जी ने कहा - अंगूठी मेरे पास छोड़ दो, मैं विचार करूंगा। थोड़े दिन बाद एक भाई को बुलाकर अंगूठी दे दी तथा कहा दूसरे भाई को पता नहीं चलना चाहिए।  इसी प्रकार दूसरे भाई को भी अपने पास से वैसी ही अंगूठी बनवा कर दे दी कि पहले को पता नहीं चलना चाहिए। काफी दिनों बाद भेद खुलने पर वे भाई सेठ जी के पास आए और कहा आपने ऐसा क्यों किया । सेठ जी ने कहा- मेरे एक अंगूठी बनवाने से तुम्हारा झगड़ा मिट गया, आपस में कलह रहना भगवत्प्राप्ति में बाधक है।  नारायण! नारायण! नारायण! नारायण! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब / भक्ति कथायें 🙏❤️🌹जय श्री कृष्णा🌹❤️🙏 🌻**********************************🌻

जय श्री राधे कृष्णा

🌹आज का भगवद चिंतन - 755🌹 *एक सच्ची कहानी जीवन की* वनवास समाप्त हुए वर्षों बीत गए थे, प्रभु श्रीराम और माता सीता की कृपा छाया में अयोध्या की प्रजा सुखमय जीवन जी रही थी। युवराज भरत अपनी कर्तव्यपरायणता और न्यायप्रियता के लिए ख्यात हो चुके थे।  . एक दिन संध्या के समय सरयू के तट पर तीनों भाइयों संग टहलते श्रीराम से महात्मा भरत ने कहा, "एक बात पूछूं भइया? माता कैकई ने आपको वनवास दिलाने के लिए मंथरा के साथ मिल कर जो षड्यंत्र किया था, क्या वह राजद्रोह नहीं था? उनके षड्यंत्र के कारण एक ओर राज्य के भावी महाराज और महारानी को चौदह वर्ष का वनवास झेलना पड़ा तो दूसरी ओर पिता महाराज की दुखद मृत्यु हुई। ऐसे षड्यंत्र के लिए सामान्य नियमों के अनुसार तो मृत्युदंड दिया जाता है, फिर आपने माता कैकई को दण्ड क्यों नहीं दिया? राम मुस्कुराए। बोले, "जानते हो भरत, किसी कुल में एक चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र जन्म ले ले तो उसका जीवन उसके असँख्य पीढ़ी के पितरों के अपराधों का प्रायश्चित कर देता है। जिस माँ ने तुम जैसे महात्मा को जन्म दिया हो उसे दण्ड कैसे दिया जा सकता है भरत ?" भरत संतुष्ट ...

जय श्री राधे कृष्णा

 🌹आज का भगवद चिंतन - 756🌹 *सच्चा इंसान* रामानुजाचार्य प्राचीन काल में हुए एक प्रसिद्ध विद्वान थे। उनका जन्म मद्रास नगर के समीप पेरुबुदूर गाँव में हुआ था।  बाल्यकाल में इन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा गया। रामानुज के गुरु ने बहुत मनोयोग से शिष्य को शिक्षा दी। शिक्षा समाप्त होने पर वे बोले-‘पुत्र, मैं तुम्हें एक मंत्र की दीक्षा दे रहा हूँ। इस मंत्र के सुनने से भी स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।’ . रामानुज ने श्रद्धाभाव से मंत्र की दीक्षा दी। वह मंत्र था-‘ऊँ नमो नारायणाय’। आश्रम छोड़ने से पहले गुरु ने एक बार फिर चेतावनी दी-‘रामानुज, ध्यान रहे यह मंत्र किसी अयोग्य व्यक्ति के कानों में न पड़े।’  रामानुज ने मन ही मन सोचा-‘इस मंत्र की शक्ति कितनी अपार है। यदि इसे केवल सुनने भर से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है तो क्यों न मैं सभी को यह मंत्र सिखा दूँ।’ रामानुज के हृदय में मनुष्यमात्र के कल्याण की भावना छिपी थी। इसके लिए उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा भी भंग कर दी।  उन्होंने संपूर्ण प्रदेश में उक्त मंत्र का जाप आरंभ करवा दिया। सभी व्यक्ति वह मंत्र जपने लगे।  गुरु जी...

जय श्री राधे कृष्ण

🌹आज का भगवद चिंतन - 757🌹 क्यों पूजनीय है स्त्री ?* *एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, "मैं आप को कैसी लगती हूँ ?" श्रीकृष्ण ने कहा, "तुम मुझे नमक जैसी लगती हो।" सत्यभामा इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने उस समय तो किसी तरह सत्यभामा को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया।* *कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। सर्वप्रथम सत्यभामा से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने। सत्यभामा ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या सब्जी में नमक ही नहीं था। कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर हलवे का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और फिर आक्क थू ! तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं किसने बनाई है यह रसोई ? सत्यभामा की आवाज सुन कर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के...

जय श्री राधे कृष्ण

🌹आज का भगवद चिंतन - 754🌹 ⭐ अपना धन खर्च करके भी दूसरों का कलह मिटाने की लगन⭐ दो भाइयों की पंचायत में सेठ जी ने बंटवारा किया। एक अंगूठी पर मामला अटक गया। दोनों उसे लेने पर अड़ गए। सेठ जी ने कहा - अंगूठी मेरे पास छोड़ दो, मैं विचार करूंगा। थोड़े दिन बाद एक भाई को बुलाकर अंगूठी दे दी तथा कहा दूसरे भाई को पता नहीं चलना चाहिए।  इसी प्रकार दूसरे भाई को भी अपने पास से वैसी ही अंगूठी बनवा कर दे दी कि पहले को पता नहीं चलना चाहिए। काफी दिनों बाद भेद खुलने पर वे भाई सेठ जी के पास आए और कहा आपने ऐसा क्यों किया । सेठ जी ने कहा- मेरे एक अंगूठी बनवाने से तुम्हारा झगड़ा मिट गया, आपस में कलह रहना भगवत्प्राप्ति में बाधक है।  नारायण! नारायण! नारायण! नारायण! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब / भक्ति कथायें 🙏❤️🌹जय श्री कृष्णा🌹❤️🙏 🌻**********************************🌻

*जिस के पास कुछ भी नही है, उस पर दुनिया हँसती है, जिस के पास सबकुछ है, उसपर दुनिया जलती है, मेरे पास आप जैसे अनमोल रिश्ते है, जिनके लिए दुनिया तरसती है*🌹🌹 Radhey Krishna🌹🌹 🙏🏻🙏🏻

जय श्री राधे कृष्ण https://www.amazon.in/dp/B08XMQBLNR/ref=cm_sw_r_wa_apa_fabc_AZ55822T7E95JVCM22RY?_encoding=UTF8&psc=1

संतान गोपाल मन्त्र~ by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।^मान्यता है कि इस मंत्र का ~प्रतिदिन 108 जाप^ करने से जातक को संतान प्राप्ति अवश्य होती है। साथ ही ज्योतिषी सलाह देते हैं कि मंत्र जाप के साथ-साथ अपने शयन कक्ष में श्रीकृष्ण की बाल रूप की प्रतिमा रखना चाहिए। इस प्रतिमा की श्रद्धाभाव से पूजा करते हुए उन्हें ~लड्डू, माखन मिसरी का भोग^ लगाना चाहिए। http://vnita8.blogspot.com/2021/03/hearing-name-of-scorpion-snake-creates.html

श्री श्याम

बालगोपाल पूजन की विधि By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब// गणेश पूजन करें। गणेश जी को स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प , धूप ,दीप, अक्षत से पूजन करें। अब बाल गोपाल का पूजन करें। बाल गोपाल को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें। वस्त्रों के बाद आभूषण पहनाएं। अब पुष्पमाला पहनाएं। अब अष्टगंध से तिलक करें। ~‘‘ऊँ बाल गोपालाय नमः’’^ मंत्र का उच्चारण करते हुए बाल कृष्ण को अष्टगंध का तिलक लगाएं। अब धूप व दीप अर्पित करें। फूल अर्पित करें। श्रद्धानुसार घी या तेल का दीपक लगाएं। आरती करें। आरती के पश्चात् परिक्रमा करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। माखन, मिश्री अर्पित करें।तुलसीदल अर्पित करें। पूजन के समय‘‘ऊँ बाल गोपालाय नमः’’मंत्र का जप करते रहें। http://vnita8.blogspot.com/2021/03/hearing-name-of-scorpion-snake-creates.html https://www.amazon.in/dp/B07JDHX79D/ref=cm_sw_r_wa_apa_fabc_AZWYFY9NWMH5MWSH0XS8

🌹आज का भगवद चिंतन - 751🌹*सीता माँ की अग्नि परीक्षा*जब रावण के वध के बाद सीता माता को वानर सेना पालकी में बैठाकर वापस लाती है तब यह प्रसंग आता है। जब लक्ष्‍मण श्रीराम से पूछते हैं कि सीता माता को आप वापस क्‍यों नहीं बुला रहे तो वे कहते हैं कि सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा। यह सुनकर लक्ष्‍मण क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि माता समान भाभी की अग्नि परीक्षा लेना उचित नहीं है। वे राम के विरुद्ध विद्रोह पर उतारू हो जाते हैं। इस पर श्रीराम लक्ष्‍मण को गूढ़ रहस्‍य बताते हैं। सीता हरण के पहले ही इसकी भूमिका रखी जा चुकी थी। ️राम को यह पता था कि रावण रूप बदलकर सीता को हरने आएगा। इसलिए उन्‍होंने सीता को इस संबंध में अवगत करा दिया था। दोनों ने इस लीला को आरंभ किया। इसके अनुसार वास्‍तविक सीता को अग्रि को सौंप दिया गया एवं वचन लिया गया कि रावण के वध के बाद ही सीता को अग्रि से वापस लिया जाएगा। बदले में सीता की प्रतिछाया, प्रतिबिंब को लंकेश हरकर ले जाएगा। ऐसा ही हुआ। लंका में पूरे समय वास्‍तविक सीता न होकर उनकी छाया थी। बाद में जब रावण का वध हो गया तो श्रीराम के कहने पर लक्ष्‍मण ने अग्नि उत्‍पन्‍न की।सीता माता से इससे गुजरने का आहवान किया गया। वे अग्नि से गुजरकर अंर्तध्‍यान हो गईं और कुछ ही पलों बाद अग्रि देवता प्रकट हुए। उनके साथ वास्‍तविक सीता माता प्रत्‍यक्ष थीं। इस प्रकार सीता माता वापस श्रीराम के पास आ गईं। यह दृश्‍य देखकर लक्ष्‍मण, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, जामवंत सहित समस्‍त वानर सेना भावुक हो गई।-प्रेरक /वनिता पंजाब भक्ति कथायें🙏❤️🌹जय सियाराम🌹❤️🙏🌻**********************************🌻

🌹आज का भगवद चिंतन - 752🌹*एक पेड़ दो मालिक*अकबर बादशाह दरबार लगा कर बैठे थे। तभी राघव और केशव नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास स्थित आम के पेड़ का मामला ले कर आए। दोनों व्यक्तियों का कहना था कि वे ही आम के पेड़ के असल मालिक हैं और दुसरा व्यक्ति झूठ बोल रहा है। चूँकि आम का पेड़ फलों से लदा होता है, इसलिए दोनों में से कोई उसपर से अपना दावा नहीं हटाना चाहता।.मामले की सच्चाई जानने के लिए अकबर ने राघव और केशव के आसपास रहने वाले लोगो के बयान सुनते हैं। पर कोई फायदा नहीं हो पाता है। सभी लोग कहते हैं कि दोनों ही पेड़ को पानी देते थे। और दोनों ही पेड़ के आसपास कई बार देखे जाते थे। पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार के बयान से भी साफ नहीं हुआ की पेड़ का असली मालिक राघव है कि केशव है, क्योंकि राघव और केशव दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के लिए चौकीदार को पैसे देते थे।अंत में अकबर थक हार कर अपने चतुर सलाहकार मंत्री बीरबल की सहायता लेते हैं। बीरबल तुरंत ही मामले की जड़ पकड़ लेते है। पर उन्हे सबूत के साथ मामला साबित करना होता है कि कौन सा पक्ष सही है और कौन सा झूठा। इस लिए वह एक नाटक रचते हैं।बीरबल आम के पेड़ की चौकीदारी करने वाले चौकीदार को एक रात अपने पास रोक लेते हैं। उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो भरोसेमंद व्यक्तियों को अलग अलग राघव और केशव के घर “झूठे समाचार” के साथ भेज देते हैं। और समाचार देने के बाद छुप कर घर में होने वाली बातचीत सुनने का निर्देश देते हैं।केशव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है कि आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजिये। यह खबर देते वक्त केशव घर पर नहीं होता है, पर केशव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर केशव को सुनाती है।केशव बोलता है, “हां… हां… सुन लिया अब खाना लगा। वैसे भी बादशाह के दरबार में अभी फेसला होना बाकी है… पता नही हमे मिलेगा कि नहीं। और खाली पेट चोरों से लड़ने की ताकत कहाँ से आएगी; वैसे भी चोरों के पास तो आजकल हथियार भी होते हैं।”आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति केशव की यह बात सुनकर बीरबल को बता देता है। राघव के घर पहुंचा व्यक्ति बताता है, “आप के आम के पेड़ के पास कुछ अज्ञात व्यक्ति पके हुए आम चुराने की फिराक में है। आप जा कर देख लीजियेगा।”यह खबर देते वक्त राघव भी अपने घर पर नहीं होता है, पर राघव के घर आते ही उसकी पत्नी यह खबर राघव को सुनाती है।राघव आव देखता है न ताव, फ़ौरन लाठी उठता है और पेड़ की ओर भागता है। उसकी पत्नी आवाज लगाती है, अरे खाना तो खा लो फिर जाना… राघव जवाब देता है कि… खाना भागा नहीं जाएगा पर हमारे आम के पेड़ से आम चोरी हो गए तो वह वापस नहीं आएंगे… इतना बोल कर राघव दौड़ता हुआ पेड़ के पास चला जाता है।आदेश अनुसार “झूठा समाचार” पहुंचाने वाला व्यक्ति बीरबल को सारी बात बता देते हैं।दूसरे दिन अकबर के दरबार में राघव और केशव को बुलाया जाता है। और बीरबल रात को किए हुए परीक्षण का वृतांत बादशाह अकबर को सुना देते हैं जिसमे भेजे गए दोनों व्यक्ति गवाही देते हैं। अकबर राघव को आम के पेड़ का मालिक घोषित करते हैं। और केशव को पेड़ पर झूठा दावा करने के लिए कडा दंड देते हैं। तथा मामले को बुद्धि पूर्वक, चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल की प्रशंशा करते हैं।सच ही तो है, जो व्यक्ति परिश्रम कर के अपनी किसी वस्तु या संपत्ति का जतन करता है उसे उसकी परवाह अधिक होती है।शिक्षा :-सत्य की हमेशा जीत होती हैठगी करने वाले व्यक्ति को अंत में दण्डित होना ही पड़ता है, यह प्रकृति का नियम है।*सबका मालिक एक है।*-वनिता पंजाब/ भक्ति कथायें🙏❤️🌹जय श्री कृष्णा🌹❤️🙏🌻**********************************🌻

Today's Bhagavad contemplation - 752🌹 * One tree two owners * Akbar Badshah sat in the court. Then two persons named Raghav and Keshav brought a case of mango tree near their house. Both men say they are

About Shri Gopal It is believed that Vishnu ji worships Lord Krishna on full-time basis and attains salvation. Shri Krishnaji is also known as Devakinandan, Vasudev, Balagopal. Bal Gopal is said to be the child form of Shri Krishna. Krishna ji was very naughty in his hair. According to Hinduism, Krishna's Bal Gopal form is considered to be the most revered. Worshiping the child form of Lord Krishna is considered very auspicious for childless couples. Child Bal Gopal Mantra is one such mantra which is considered as blessings for childless couples. * By social worker Vanita Kasani Punjab Ram Ram Ji *

シュリゴパルについて ヴィシュヌ・ジはクリシュナ卿をフルタイムで崇拝し、救いを得ると信じられています。 Shri Krishnajiは、Devakinandan、Vasudev、Balagopalとしても知られています。 バルゴパルはシュリクリシュナの子の形であると言われています。 クリシュナジは髪の毛がとてもいたずらでした。 ヒンドゥー教によると、クリシュナのバルゴパル形式が最も尊敬されていると考えられています。 クリシュナ卿の子供を崇拝することは、子供がいないカップルにとって非常に幸運であると考えられています。 チャイルドバルゴパルマントラは、子供がいないカップルの祝福と見なされているそのようなマントラの1つです。 *ソーシャルワーカーVanitaKasani Punjab Ram RamJiによる*

શ્રી ગોપાલ વિશે એવું માનવામાં આવે છે કે વિષ્ણુજી શ્રીકૃષ્ણની પૂરા સમયના ઉપાસના કરે છે અને મોક્ષ પ્રાપ્ત કરે છે. શ્રી કૃષ્ણજીને દેવકીનંદન, વાસુદેવ, બાલાગોપાલ તરીકે પણ ઓળખવામાં આવે છે. બાલ ગોપાલ શ્રી કૃષ્ણનું બાળ સ્વરૂપ હોવાનું કહેવાય છે. કૃષ્ણ જી તેમના વાળ માં ખૂબ તોફાની હતા. હિન્દુ ધર્મ અનુસાર, કૃષ્ણનું બાલ ગોપાલ સ્વરૂપ સૌથી આદરણીય માનવામાં આવે છે. નિlessસંતાન યુગલો માટે ભગવાન શ્રીકૃષ્ણના બાળ સ્વરૂપની પૂજા કરવી ખૂબ જ શુભ માનવામાં આવે છે. બાળ બાલ ગોપાલ મંત્ર એક એવો મંત્ર છે જેને નિlessસંતાન યુગલો માટે આશીર્વાદ માનવામાં આવે છે. * સામાજિક કાર્યકર વનિતા કસાની પંજાબ રામ રામ જી દ્વારા *

Ibyerekeye Bwana Gopal Byizerwa ko Vishnu ji asenga Lord Krishna igihe cyose kandi akabona agakiza. Bwana Krishnaji azwi kandi nka Devakinandan, Vasudev, Balagopal. Bal Gopal ngo ni imiterere yumwana wa Bwana Krishna. Krishna ji yari mubi cyane mumisatsi ye. Dukurikije idini ry'Abahindu, uburyo bwa Bal Gopal bwa Krishna bufatwa nk'icyubahiro cyinshi. Kuramya imiterere yumwana wa Lord Krishna bifatwa nkibyiza cyane kubashakanye badafite abana. Umwana Bal Gopal Mantra nimwe mantra ifatwa nkumugisha kubashakanye badafite abana. * Numukozi ushinzwe imibereho myiza Vanita Kasani Punjab Ram Ram Ji *

श्री गोपाल के बारे मेंमान्यता है कि विष्णु जी पूर्णावतार भगवान कृष्ण की विधिपूर्वक अराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्री कृष्णजी को देवकीनंदन, वासुदेव, बालगोपाल के नाम से भी जाना जाता है। बाल गोपाल श्रीकृष्ण के बाल रूप को कहा जाता है। कृष्ण जी अपने बाल रूप में बेहद नटखट थे।हिन्दू धर्म के अनुसार कृष्ण जी के बाल गोपाल स्वरूप को सर्वाधिक पूजनीय माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करना निसंतान दंपत्तियों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। संतान बाल गोपाल मंत्र एक ऐसा ही मंत्र है जो निसंतान दंपत्तियों के लिए आशीर्वाद समान माना जाता है। *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम राम जी💗🙏🙏💗*

About Shri Gopal  It is believed that Vishnu ji worships Lord Krishna on full-time basis and attains salvation. Shri Krishnaji is also known as Devakinandan, Vasudev, Balagopal. Bal Gopal is said to be the child form of Shri Krishna. Krishna ji was very naughty in his hair.  According to Hinduism, Krishna's Bal Gopal form is considered to be the most revered. Worshiping the child form of Lord Krishna is considered very auspicious for childless couples. Child Bal Gopal Mantra is one such mantra which is considered as blessings for childless couples.  * By social worker Vanita Kasani Punjab Ram Ram Ji * શ્રી ગોપાલ વિશે  એવું માનવામાં આવે છે કે વિષ્ણુજી શ્રીકૃષ્ણની પૂરા સમયના ઉપાસના કરે છે અને મોક્ષ પ્રાપ્ત કરે છે. શ્રી કૃષ્ણજીને દેવકીનંદન, વાસુદેવ, બાલાગોપાલ તરીકે પણ ઓળખવામાં આવે છે. બાલ ગોપાલ શ્રી કૃષ્ણનું બાળ સ્વરૂપ હોવાનું કહેવાય છે. કૃષ્ણ જી તેમના વાળ માં ખૂબ તોફાની હતા.  હિન્દુ ધર્મ અનુસાર, કૃષ્ણનું બાલ ગોપાલ સ્વરૂપ સૌથી આદરણીય માનવામાં આવે છે. નિles...

🌷🌹प्रेम भरी राधे-राधे स्वीकार करें🌹🌷*मन को श्रीजी के चरणों में लगाएं...*संसार में हम जिससे अत्यधिक प्रेम करते हैं अधिकांशतः अगले जन्म में हमें वही योनि प्राप्त होती है। अतः अपने मन को इस जगत के प्राणियों में न लगाकर श्रीजी के चरणों में लगाएं ताकि हमें सदैव के लिए श्रीजी के चरणों का आसरा मिल सके। इसी में हमारी भलाई निहित है अन्यथा चौरासी लाख योनियों में भटकना पड़ेगा।🌹🌷 दीवानी राधे की परिवार करुणामयी सरकार सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखियेगा 🌹🌷

,। 🌱🌲ओम नमः शिवाय 🌱🌲हर हर महादेव 🌱🌲जय भोले की 🌱🌲प्रातः वंदना जी 🌱🌳जय शिव शंभू🌱🌲🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀*श्रीहरि शरणम् सनातन धर्म संस्कार परिवार* 🌹🌳*मृत्यु के उस पार गतांक से आगे*🌹🙏 🌹🌳 *एक गरीब सेठ की कथा!*🌳🌹*मेरे भाई बहनों नगर का एक सेठ गंगा स्नान करने गया तो उसे एक महात्मा का दर्शन हुआ। सेठ ने बड़े प्रेम से आदर पूर्वक संत से प्रार्थना की कि 'आज आप मेरे घर पधारें और भिक्षा ग्रहण करें।' संत ने उसकी प्रार्थना मान ली।*🌹🌹🌳🌲🌴🌺*मेरे भाई बहनों दोपहर को ये महात्मा उस सेठ के पास भोजन ग्रहण करने गये। तब उस सेठ ने उन महात्मा की बड़ी श्रद्धा पूर्वक पूजा की, उनके पैर पखारे, चरणामृत पिया और चरणामृत सारे घर में छिड़क दिया। फिर आदर पूर्वक बड़े प्रेम से स्वादिष्ट भोजन कराया। आखिर उसने महात्मा से प्रार्थना की कि महाराज हमारे पूर्वज बड़े करोड़पति थे, मगर मैं तो गरीब हूं। वास्तव में आपकी सेवा जिस तरह करनी चाहिए थी वैसी मैं कर नहीं पाया। आप मेरी गरीबी दूर कर दीजिए। महात्मा ने देखा कि वास्तव में सेठिया गरीब था। महात्मा के मन में दया उत्पन्न हुई। महात्मा भू-गर्भविद्या जानते थे।* 🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱*मेरे भाई बहनों महात्मा बोले हे भक्त! तुम गरीब नहीं, तुम तो करोड़पति हो। सेठिया बोला कि महात्माजी! मेरा मजाक मत उड़ाइए। मैं सच बोल रहा हूं। महात्मा बोले कि सेठ! जिस चौकी पर बैठ कर मैं भोजन कर रहा था, उसके उत्तर दिशा में एक सोने के मटके में पचास करोड़ रुपये (सोने के सिक्के) गाड़े हुए हैं। सेठिया बोला 'मैं करोड़पति हूं', इस आपके वचन पर मैं विश्वास कैसे करूं तो महात्माजी बोले कि मैं भू-गर्भविद्या को जानता हूं। उस विद्या के बल से ही मैं यह बात तुम्हें कह रहा हूं कि तू गरीब नहीं बल्कि करोड़पति है।*🌹🌳🌱🥀🌴🌲*सेठिया बोला कि आपके विद्या समर्थित बचनों से तो हमारी आधी गरीबी दूर हो गई, मगर प्रत्यक्ष गरीबी कब दूर होगी? महात्माजी बोले अभी हमारे सामने इस चौकी के उत्तर में तीन हाथ जमीन खोद लो और अपने पच्चास करोड़ रुपयों का एक सोने के मटके में दर्शन करो। सेठिया ने जैसे बताया गया था वैसे ही जमीन खोदी तो बराबर तीन हाथ जमीन के नीचे सोने के मटके में ५० करोड़ रुपयों का दर्शन हुआ। सेठिया बहुत खुश हुआ और उसने महात्मा को इसमें से आधी संपत्ति लेने का आग्रह किया। महात्मा ने कहा कि मुझे तेरी यह आधी संपत्ति नहीं चाहिए। मैं भू-गर्भविद्या का जानकार हूं, चाहे जब मुझे धन प्राप्त हो सकता है। दूसरी बात यह है कि स्त्री, पुत्र, धन आदि का त्याग करके मैं महात्मा बना हूं। जैसे एक बार वमन (उल्टी) किए हुए का फिर से कोई भक्षण नहीं करता है, वैसे ही जो त्यागा उसको पुन: कोई ग्रहण नहीं करता है। त्यागे हुए स्त्री, पुत्र, धन आदि महात्मा के लिए वमन के समान है। जिसका त्याग किया है उसका पुनः ग्रहण करना वमन भक्षण करना ही है। एक बार जिसको असार मान घृणा कर के त्याग दिया, उसको पुन: कोई नहीं ग्रहण नहीं करता।*🌹🌳🌱🥀🌴🌲*मेरे भाई बहनों भगवत प्राप्ति के लिए जो पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा आदि का त्याग किया, तो फिर साधु तो भगवत प्राप्ति के लिए ही काम करेगा। स्त्री, पुत्र, धन के झंझट में दुबारा नहीं पड़ेगा। जो इनके झंझट में पड़ते हैं उन्हें भगवत प्राप्ति कैसे होगी सेठ! तुम तो गृहस्थ हैं। तुम्हारे स्त्री, पुत्र, परिवार है। इनका पालन करने के लिए तुम्हें ही धन की जरूरत है। मुझे धन की जरूरत नहीं है। बाकी बचा यह शरीर तो उसके लिए भिक्षा ही पर्याप्त है। शरीर की भूख को शांत नहीं करेंगे तो शरीर की यह गाड़ी चल नहीं सकती।‌ यह शरीर रहेगा ही नहीं क्योंकि कहा गया है ।*🌲🙏🌲🥀🌲🥀*अन्न से ही ये सारे भूत प्राणी उत्पन्न होते हैं। अन्न से ही होकर अन्न के द्वारा जीवन्त रहते हैं।‌ अन्न को ही प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते हैं और अंत में उसमें ही लीन होते हैं।*🌹🌳🥀*मेरे भाई बहनों इतना कहकर के महात्मा ने कहा सेठ! यह धन तो तुम्हारा ही था। तुम ही इसके मालिक थे। हमने ऐसा क्या किया जिसके कारण इसका हिस्सा हम लेवें। हमने बस उसका पता बता दिया। तुमको अपने धन की जानकारी दे दी, बस। इतना ही हमारा काम है। यह धन तुम्हारा ही है। तुम्हारे काम का है। अपने पास ही रखो। मुझे नहीं चाहिए।* *🌴🌲आगे पढ़ें कल ▶️*🌳🌹🥀*श्रीहरि शरणम् सनातन धर्म संस्कार परिवार*

🌲 जय श्री🌲 कृष्णा जी 🌲प्रातः🌲 वं🌲दना 🌲जी🌲🌱🌲🌱🌲🌱🌲*🌹🌹जय जयश्रीराधे🌹🌹* *आखिर है क्या रामायण ????* *अगर पढ़ो तो आंसुओ पे काबू रखना...प्यारे पाठको....छोटा सा वृतांत है*🥀🌷🌿🌱*एक रात की बात हैं,माता कौशिल्या जी को सोते में अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी। नींद खुल गई । पूछा कौन हैं ?**मालूम पड़ा श्रुतिकीर्ति जी हैं ।नीचे बुलाया गया**श्रुतिकीर्ति जी, जो सबसे छोटी बहु हैं, आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं*🥀🌷🌷🌿*माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बिटिया ? क्या नींद नहीं आ रही ?**शत्रुघ्न कहाँ है ?*🥀🌷🌿🌱*श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी, गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए ।*🥀🌷🌿🌱*उफ ! कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया ।**तुरंत आवाज लगी, सेवक दौड़े आए । आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी, माँ चली ।*🥀🌷🌿🌱*आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ?**अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले ।**माँ सिराहने बैठ गईं, बालों में* *हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी ने* *आँखें**खोलीं, माँ !*🥀🌷🌿🌱*उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ? मुझे बुलवा लिया होता ।**माँ ने कहा, शत्रुघ्न ! यहाँ क्यों ?"*🥀🌷🌷🌱*शत्रुघ्न जी की रुलाई फूट पड़ी, बोले- माँ ! भैया राम जी पिताजी की आज्ञा से वन चले गए, भैया लक्ष्मण जी उनके पीछे चले गए, भैया भरत जी भी नंदिग्राम में हैं, क्या ये महल, ये रथ, ये राजसी वस्त्र, विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?**माता कौशल्या जी निरुत्तर रह गईं ।*🥀🌷🌿*देखो क्या है ये रामकथा...*🥀🌷🌿*यह भोग की नहीं....त्याग की कथा हैं, यहाँ त्याग की प्रतियोगिता चल रही हैं और सभी प्रथम हैं, कोई पीछे नहीं रहा* 🥀🌱🌿*चारो भाइयों का प्रेम और त्याग एक दूसरे के प्रति अद्भुत-अभिनव और अलौकिक हैं ।**रामायण जीवन जीने की सबसे उत्तम शिक्षा देती हैं ।*🌸🌸🌸*भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ तो उनकी पत्नी माँ सीता ने भी सहर्ष वनवास स्वीकार कर लिया। परन्तु बचपन से ही बड़े भाई की सेवा मे रहने वाले लक्ष्मण जी कैसे राम जी से दूर हो जाते! माता सुमित्रा से तो उन्होंने आज्ञा ले ली थी, वन जाने की.. परन्तु जब पत्नी उर्मिला के कक्ष की ओर बढ़ रहे थे तो सोच रहे थे कि माँ ने तो आज्ञा दे दी, परन्तु उर्मिला को कैसे समझाऊंगा!! क्या कहूंगा!*🥀🌷🌿*यहीं सोच विचार करके लक्ष्मण जी जैसे ही अपने कक्ष में पहुंचे तो देखा कि उर्मिला जी आरती का थाल लेके खड़ी थीं और बोलीं- "आप मेरी चिंता छोड़ प्रभु की सेवा में वन को जाओ। मैं आपको नहीं रोकूँगीं। मेरे कारण आपकी सेवा में कोई बाधा न आये, इसलिये साथ जाने की जिद्द भी नहीं करूंगी।"*🥀🌷*लक्ष्मण जी को कहने में संकोच हो रहा था। परन्तु उनके कुछ कहने से पहले ही उर्मिला जी ने उन्हें संकोच से बाहर निकाल दिया। वास्तव में यहीं पत्नी का धर्म है। पति संकोच में पड़े, उससे पहले ही पत्नी उसके मन की बात जानकर उसे संकोच से बाहर कर दे!**लक्ष्मण जी चले गये परन्तु 14 वर्ष तक उर्मिला ने एक तपस्विनी की भांति कठोर तप किया। वन में भैया-भाभी की सेवा में लक्ष्मण जी कभी सोये नहीं परन्तु उर्मिला ने भी अपने महलों के द्वार कभी बंद नहीं किये और सारी रात जाग जागकर उस दीपक की लौ को बुझने नहीं दिया।*🌺🌺🌷*मेघनाथ से युद्ध करते हुए जब लक्ष्मण को शक्ति लग जाती है और हनुमान जी उनके लिये संजीवनी का पहाड़ लेके लौट रहे होते हैं, तो बीच में अयोध्या में भरत जी उन्हें राक्षस समझकर बाण मारते हैं और हनुमान जी गिर जाते हैं। तब हनुमान जी सारा वृत्तांत सुनाते हैं कि सीता जी को रावण ले गया, लक्ष्मण जी मूर्छित हैं।**यह सुनते ही कौशल्या जी कहती हैं कि राम को कहना कि लक्ष्मण के बिना अयोध्या में पैर भी मत रखना। राम वन में ही रहे। माता सुमित्रा कहती हैं कि राम से कहना कि कोई बात नहीं। अभी शत्रुघ्न है। मैं उसे भेज दूंगी। मेरे दोनों पुत्र राम सेवा के लिये ही तो जन्मे हैं। माताओं का प्रेम देखकर हनुमान जी की आँखों से अश्रुधारा बह रही थी। परन्तु जब उन्होंने उर्मिला जी को देखा तो सोचने लगे कि यह क्यों एकदम शांत और प्रसन्न खड़ी हैं? क्या इन्हें अपनी पति के प्राणों की कोई चिंता नहीं?*🌺🌷🥀*हनुमान जी पूछते हैं- देवी! आपकी प्रसन्नता का कारण क्या है? आपके पति के प्राण संकट में हैं। सूर्य उदित होते ही सूर्य कुल का दीपक बुझ जायेगा। उर्मिला जी का उत्तर सुनकर तीनों लोकों का कोई भी प्राणी उनकी वंदना किये बिना नहीं रह पाएगा। वे बोलीं- "**मेरा दीपक संकट में नहीं है, वो बुझ ही नहीं सकता। रही सूर्योदय की बात तो आप चाहें तो कुछ दिन अयोध्या में विश्राम कर लीजिये, क्योंकि आपके वहां पहुंचे बिना सूर्य उदित हो ही नहीं सकता। आपने कहा कि प्रभु श्रीराम मेरे पति को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं। जो योगेश्वर राम की गोदी में लेटा हो, काल उसे छू भी नहीं सकता। यह तो वो दोनों लीला कर रहे हैं। मेरे पति जब से वन गये हैं, तबसे सोये नहीं हैं। उन्होंने न सोने का प्रण लिया था। इसलिए वे थोड़ी देर विश्राम कर रहे हैं। और जब भगवान् की गोद मिल गयी तो थोड़ा विश्राम ज्यादा हो गया। वे उठ जायेंगे। और शक्ति मेरे पति को लगी ही नहीं शक्ति तो राम जी को लगी है। मेरे पति की हर श्वास में राम हैं, हर धड़कन में राम, उनके रोम रोम में राम हैं, उनके खून की बूंद बूंद में राम हैं, और जब उनके शरीर और आत्मा में हैं ही सिर्फ राम, तो शक्ति राम जी को ही लगी, दर्द राम जी को ही हो रहा। इसलिये हनुमान जी आप निश्चिन्त होके जाएँ। सूर्य उदित नहीं होगा।"*🌺🥀🌷*राम राज्य की नींव जनक की बेटियां ही थीं... कभी सीता तो कभी उर्मिला। भगवान् राम ने तो केवल राम राज्य का कलश स्थापित किया परन्तु वास्तव में राम राज्य इन सबके प्रेम, त्याग, समर्पण , बलिदान से ही आया।**"जय जय सियाराम"*🌺🌺🌷*पसंद आया हो, प्रेम, त्याग, समर्थन की भावना अगर मन में हो तो इसे आगे अवश्य बढावे🌹🌹 जय जयश्रीराधे🌹🌹

*🙏🌹जय श्री महाकाल 🌹🙏**श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का आज का भस्म आरती श्रृंगार दर्शन*🌲🌲🌺🙏🌱🌱🌱🌱🌱🙏🌱🙏🌱🌱🌱*मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर।*🌺🥀🌹🙏🙏🙏🙏 एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियाँ जुड़वाँ – एक अभी भी उस मृत स्त्री के शव से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वाँ बच्चियाँ और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जाकर अपने प्रधान को कहा - मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वाँ बच्चियाँ हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत मां से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन दे दिया जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।मृत्यु के देवता ने कहा - तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी इच्छा से मृत्यु होती है, जिसकी इच्छा से जीवन होता है! तो तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी सज़ा मिलेगी। और सज़ा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।🌹🌴*इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हँस लेगा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो अहंकार हँसता है। जब हम अपनी मूर्खता पर हँसते हैं तब अहंकार टूटता है।*🌺🥀देवदूत को लगा नहीं। वह राज़ी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूँ। और हँसने का मौका कैसे आएगा?🌺🌺🌹उसे जमीन पर फेंक दिया गया। सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे। एक मोची बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था। जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उसको दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहाँ रुक सके। 🌺🥀🌹मोची ने कहा - अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो – जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए – वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।🌱🌳🥀🌺उस देवदूत को लेकर मोची घर लौटा। न तो मोची को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है। जैसे ही देवदूत को लेकर मोची घर में पहुँचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।🌺🥀🥀और देवदूत पहली दफा हँसा। मोची ने उससे कहा - हँसते हो, बात क्या है?उसने कहा - मैं जब तीन बार हँस लूँगा तब बता दूँगा।🌺🥀🌹देवदूत हँसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि मोची देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हज़ारों खुशियाँ आ जाएंगी। *लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है!* पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे। *जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज़ा ही नहीं है* – मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हज़ारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हँसा अपनी मूर्खता पर – क्योंकि उसे लगा यह पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!🌺🥀🥀🥀जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने मोची का सब काम सीख लिया। और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची महीनों के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुँच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के जूते वहाँ बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।🌱🌳🥀एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा - यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं!!🌱🌳🌳🌺क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहनाकर मरघट तक ले जाते हैं।🌺🌺🌹🙏मोची ने भी देवदूत को कहा - स्लीपर मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फँसेंगे!🌱🌺🌺🌺🌹🙏लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब मोची ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठाकर उसको मारने को तैयार हो गया - तू हमारी फाँसी लगवा देगा! तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?🌱🌳🥀🌺🌹🙏देवदूत फिर खिलखिला कर हँसा। तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा - जूते मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है।*भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है।* सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह मोची उसके पैर पकड़कर माफी माँगने लगा - मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा - कोई हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।🌺🥀🌹🌹लेकिन वह हँसा आज दुबारा। मोची ने फिर पूछा - हँसी का कारण?उसने कहा - जब मैं तीन बार हँस लूँगा, तब बता दूँगा।🌱🌳🥀🌺🌹🙏*दोबारा हँसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी। हम माँगते हैं जो कभी नहीं घटेगा क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।*तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियाँ! मुझे क्या पता था कि भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया।और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियाँ आयीं, जवान। उन तीनों की शादी हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियाँ हैं, जिनको वह मृत माँ के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं।उसने पूछा - क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है?🌺🥀🌹🙏उस बूढ़ी औरत ने कहा - ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियाँ हैं। गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वाँ। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया।🌺🥀🌹🙏अगर माँ ज़िंदा रहती तो ये तीनों बच्चियाँ गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं। माँ मर गयी, इसलिए ये बच्चियाँ तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है।🌱🌳🥀🌺देवदूत तीसरी बार हँसा और मोची को उसने बुलाकर कहा - ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी। नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं, जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज़ नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हँस लिया हूँ। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूँ।🌱🌳🥀🌺*अगर हम अपने को बीच में लाना बंद कर दें, तो हमें मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दें उस पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। हम बिना लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दें। वह जो भी हो, हमारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा। अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें, लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या सौभाग्य, यह सब चिंता हमें नहीं करनी चाहिए..!!* *🙏🌺 जय महाकाल जी🌺🙏🌺🙏जय भोलेनाथ जी🙏🌺🙏🌺 जय शिव शंकर जी🌺🙏🌺🙏हर हर महादेव🙏🌺

🌲जय श्री🌲 राधे कृष्णा जी 🌲प्रातः 🌲🌲वंदना 🌲जी🌲🌺🌲🌺🌲🌺🌲🥀🥀🌱🌱🌱🌱🌱🌱🌱🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀रामनाम के लाभ: आध्यात्मिक व वैज्ञानिक कारण?🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺🌹🌺*बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥🥀🌺🌿☘️भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम 'राम' की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात्‌ 'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है। वह 'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥🌹👌🌷🌲🌷राम शब्द ‘रा’ रकार ‘म’ मकार से मिलकर बना है। ‘रा’ अग्नि स्वरूप है यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है। इस प्रकार पूरे तारक मंत्र "श्रीराम जय राम जय जय राम" का सार है शक्ति से परमात्मा पर विजय। अब रामनाम उच्चारण की वैज्ञानिकता समझते हैं: योग शास्त्र में ‘रा’ वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़ रज्जु के दायीं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार होता है।🌿👌🌲🌲☘️ ‘म’ वर्ण को चंद्र ऊर्जा का कारक अर्थात् स्त्रीलिंग माना गया है। यह ऊर्जा रीढ़ रज्जु के बायीं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होती है। इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निःश्वास तथा निरंतर रकार ‘रा’ और मकार ‘म’ का उच्चारण करते रहने के कारण दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है। 🌱🌷🌱☘️🥀अध्यात्मवाद में माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर आ जाते हैं। इस समय अंतःकरण निष्पाप होजाता है।🥀🌵🌿🌲🌴🌹 अभ्यास में भी ‘रा’ को इस प्रकार उच्चारित करना है कि पूरे का पूरा श्वास बाहर निकल जाए। इस समय ‘तान्देन’ से रिक्तता अनुभव होने लगती है। इस स्थिति में पेट बिल्कुल पिचक जाता है। 🌴🌹🌴🌹🌺किंतु ‘रा’ का केवल उच्चारण मात्र ही नहीं करना है। इसे लंबा खींचना है रा...ऽ...ऽ...ऽ। अब ‘म’ का उच्चारण करें। ‘म’ शब्द बोलते ही दोनों होठ स्वतः एक ताले के समान बंद हो जाते हैं और इस प्रकार वाह्य विकार के पुनः अंतःकरण में प्रवेश पर बंद होठ रोक लगा देते हैं। *महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥🌳🙏🌹🌺🌱भावार्थ:-जो महामंत्र है, जिसे महेश्वर श्री शिवजी जपते हैं और उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं, जो इस 'राम' नाम के प्रभाव से ही सबसे पहले पूजे जाते हैं॥🌳🌹🌺राम नाम अथवा मंत्र जपते रहने से मन और मस्तिष्क पवित्र होते हैं और व्यक्ति अपने पवित्र मन में परब्रह्म परमेश्वर के अस्तित्व को अनुभव करने लगता है।🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼🌿🌼🌼

🌹🌷#वेणी_गुंथन_लीला🌷🌹श्री_श्यामा_श्याम_प्यारे_जू_की_मनमोहक_लीला,आप सभी रसिक जन किशोरी जू की मनमोहक लीला का स्मरण करे जय श्री राधे राधे जी 💕 निकुन्ज में प्रियालालजू विराज रहे हैं। दोनों एकटक एक-दूसरे को ऐसे देख रहे हैं, मानो कभी प्रत्यक्ष मिले ही न हों और आज ही प्रथम-दर्शन हो रहा हो। निकुन्ज में निरन्तर वसन्त ऋतु ही रहती है। यहाँ सूर्य-चन्द्र का प्रभाव नहीं देखा जाता जब तक स्वयं किशोरीजी ही संकेत न कर दें। एक अदभुत दिव्य प्रकाश यहाँ के वृक्षों, लताओं और पुष्पों से निकलता रहता है। मखमली दिव्य दूर्वा श्रीजी के कोमल चरणों का स्पर्श करती है। दूर्वा में से भी एक नील-आभा निकलती रहती है जो श्रीकिशोरीजी के चरण पड़ने पर एक अनुपम अलौकिक दिव्य-आभा में परिवर्तित हो जाती है। इस आभा के रंग को कोई नाम देना संभव नहीं। यह आभा निकुन्ज को छोड़ कर कहीं संभव भी तो नहीं। यहाँ दूर्वा, लता-पता, वृक्ष, कुमुदनी, पुष्प, शुक-सारिका, मयूर के रुप में श्रीकिशोरीजी के ही परिकर, किंकर, मंजरी, विमलात्मायें उनकी कृपा और उनके होने के भाव को सफ़ल कर रहे हैं। यहाँ सब उन्हीं श्रीयुगल से प्रकट तो सभी चैतन्य ! कोई जड़ पदार्थ है ही नहीं !💕 💕 श्रीलालजी पीताम्बर के छोर को अपने दायें हाथ में लपेटे हुए हैं और एक टहनी को बायें हाथ से झुकाकर पकड़े हुए हैं और सामने किशोरीजी अपलक उन्हें निहार रही हैं; सहसा नन्दलाल के हाथ के भार से टहनी कुछ और झुक गयी। भार से झुक गयी? वृक्ष के रुप में विराजमान श्रीजी के प्रिय-परिकर की इच्छा हो आयी कि आज एक साथ दोनों का ही स्पर्श-सुख मिले सो किशोरीजू से मानसिक अनुमति ले वह झुकी तो लगा कि श्रीश्यामसुन्दर के कर-कमल के भार से झुकी है और जब श्यामसुन्दर को भान हुआ तो उन्होंने उस टहनी को छोड़ दिया ताकि वह टूट न जाये किन्तु छूटने से पूर्व उसने किशोरीजी की वेणी को स्पर्श करते हुए सहसा उसे खोल दिया। 💕 💕 किशोरीजी के कंधों पर बिखर गयी केश-राशि। श्यामसुन्दर ने स्वयं को अपराधी घोषित करते हुए दन्ड के रुप में *वेणी-गुंथन* की इच्छा प्रकट की। नयन झुकाकर मुस्करा दीं श्रीजू और मनोवांछित प्रदान किया श्रीलालजी को। निकुन्ज में मणि-मन्डित चबूतरे पर बैठ गयीं किशोरीजी। पुकारा प्रियादासी को। प्रफ़ुल्लित, प्रमुदित, आहलादित चली आयी वह। ला दीं कंघी और दर्पण। किशोरिजी ने देखा कि दोनों को देख कुछ अन्य ही भाव से लजाकर मुस्करा रही है वह ! तो पूछा "क्या हुआ? प्रिया ! "कुछ भी तो नहीं ! स्वामिनी !" मुस्कराते हुए भाग खड़ी हुयी वह। निहार रही है कुछ दूर से। हो गया वेणी-गुंथन ! ऐसी वेणी गुंथी है जैसी पूर्व में कभी नहीं गुंथी। 💕 💕 ऐसी निपुणता से गूंथी है मानो यह उनका नित्य का ही कार्य हो। सुकोमल केश-राशि को सुकोमल करों का स्पर्श मिला है और जब वे बाँधना चाहें तो कौन न बँधे? "राधेजू ! तनिक दर्पण में निहारो तो ! उचित प्रकार से बँधी है कि नहीं?" श्रीकिशोरीजी ने बायें कर-कमल से दर्पण को उठाया; दर्पण क्षणार्ध को अचकचा गया कि कहीं लीला में व्यवधान न कर दूँ किन्तु पुन: चिंतन किया कि श्रीयुगल की कृपा से सत्य को सत्य दिखलाना ही तो मेरा कार्य है, जीवन है सो प्रमुदित हो उठा लीला-पात्र बनकर। किशोरी जी ने दर्पण में अपने को निहारा और लजा गयीं ! अरे ! यह क्या? इसमें तो श्यामसुन्दर दिख रहे हैं ! अब वेणी कैसे देखूँ और क्या उत्तर दूँ? 💕 💕 हठात खिलखिलाने का स्वर निकुन्ज में गूँज उठा। देखा तो प्रिया-सखी। चेत हुआ प्रिया-प्रियतम को। विरह-भाव से चिंतन के कारण इस निकुन्ज की लीला के पूर्व ही श्रीयुगल परिवर्तित हो गये थे। श्री किशोरी जू हो गयीं थीं श्यामसुन्दर और श्यामसुन्दर हो गये थे श्रीकिशोरीजू ! अब दर्पण ने दिखलाया सत्य ! वेणीगुंथन श्रीकिशोरीजी का कब हुआ? वह तो हुआ प्यारे श्यामसुन्दर का और वह भी श्री किशोरी जी के कर-कमलों से ! श्रीयुगल सहित सम्पूर्ण निकुन्ज भर उठा हास्य-ध्वनि से, आनन्द से, आहलाद से ! निकुन्ज के वृक्ष, लताओं से पुष्प-वर्षा हो रही है और मयूर नृत्य करते हुए कह रहे हैं 💕 💕 - "जय हो ! जय हो !! जय हो !!! 💕 🌹 जय श्री राधे-कृष्ण जी🌹🌹जय जय श्री श्याम श्यामा🌹🔔🎪🍃🎎🌹🎎🍃🎪🔔श्री लाड़ली लाल सरकार की जय होश्री राधा रानी मन्दिर बरसाना मथुरा चाकर राधा रानी के सेवायत मन मोहन गोस्वामी जी आप सभी भक्त जन व रसिक जनौ को प्रेम भरी राधे राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌹

🌴🥀 जय🌴🥀 श्री 🌴🥀राधे 🌴🥀🌴🥀कृष्णा 🌴🥀जी🌴🥀🌴🌴🥀मिलारेपा की आज्ञाकारितातिब्बत में करीब 850 वर्ष पहले एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया मिलारेपा। जब वह सात वर्ष का था, तब उसके पिता का देहांत हो गया। चाचा और बुआ ने उनकी सारी मिल्कियत हड़प ली। अपनी छोटी बहन और माता सहित मिलारेपा को खूब दुःख सहने पड़े। अपनी मिल्कियत पुनः पाने के लिए उसकी माता ने कई प्रयत्न किये लेकिन चाचा और बुआ ने उसके सारे प्रयत्न निष्फल कर दिये। वह तिलमिला उठी। उसके मन से किसी भी तरह से इस बात का रंज नहीं जा रहा था।एक दिन की बात है। तब मिलारेपा की उम्र करीब 15 वर्ष थी। वह कोई गीत गुनगुनाते हुए घर लौटा। गाने की आवाज सुनकर उसकी माँ एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में राख लेकर बाहर आयी और मिलारेपा के मुँह पर राख फेंककर लाठी से उसे बुरी तरह पीटते हुए बोलीः "कैसा कुपुत्र जन्मा है तू ! अपने बाप का नाम लजा दिया।"उसे पीटते-पीटते माँ बेहोश हो गयी। होश आने पर उसे फटकारते हुए मिलारेपा से बोलीः "धिक्कार है तुझे ! दुश्मनों से वैर लेना भूलकर गाना सीखा? सीखना हो तो कुछ ऐसा सीख, जिससे उनका वंश ही खत्म हो जाय।"🌴🥀बस... मिलारेपा के हृदय में चोट लग गयी। घर छोड़कर उसने तंत्रविद्या सिखानेवाले गुरु को खोज निकाला और पूरी निष्ठा एवं भाव से सेवा करके उनको प्रसन्न किया। उनसे दुश्मनों को खत्म करने एवं हिमवर्षा करने की विद्या सीख ली। इनका प्रयोग कर उसने अपने चाचा और बुआ की खेती एवं उनके कुटुम्बियों को नष्ट कर डाला। चाचा और बुआ को उसने जिंदा रखा, ताकि वे तड़प-तड़पकर दुःख भोगते हुए मरें। यह देखकर लोग मिलारेपा से खूब भयभीत हो गये। समय बीता। मिलारेपा के हृदय की आग थोड़ी शांत हुई। अब उसने बदला लेने की वृत्ति पर पश्चाताप होने लगा। ऐसे में उसकी एक लामा (तिब्बत के बौद्ध आचार्य) के साथ भेंट हुई। उसने सलाह दीः "तुझे अगर विद्या ही सीखनी है तो एकमात्र योगविद्या ही सीख। भारत से यह योगविद्या सीखकर आय हुए एकमात्र गुरु हैं – मारपा।"🌱🥀योगविद्या जानने वाले गुरु के बारे में सुनते ही उसका मन उनके दर्शन के लिए अधीर हो गया। मिलारेपा में लगन तो थी ही, साथ में दृढ़ता भी थी और तंत्रविद्या सीखकर उसने गुरु के प्रति निष्ठा भी साबित कर दिखायी थी। एक बार हाथ में लिया हुआ काम पूरा करने में वह दृढ़ निश्चयी था। उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। वह तो सीधा चल पड़ा मारपा को मिलने।रास्ता पूछते-पूछते, निराश हुए बिना मिलारेपा आगे-ही-आगे बढ़ता गया। रास्ते में एक गाँव के पास खेत में उसने किसी किसान को देखा, उसके पास जाकर मारपा के बारे में पूछा। किसान ने कहाः "मेरे बदले में तू खेती कर तो मैं तुझे मारपा के पास ले जाऊँगा।"🌴🥀मिलारेपा उत्साह से सहमत हो गया। थोड़े दिनों के बाद किसान ने रहस्योदघाटन किया कि वह खुद ही मारपा है। मिलारेपा ने गुरुदेव को भावपूर्वक प्रणाम किया और अपनी आपबीती कह सुनायी। उसने स्वयं के द्वारा हुए मानव-संहार की बात भी कही। बदले की भावना से किये हुए पाप के बारे में बताकर पश्चाताप किया। मिलारेपा की निखालिस स्वीकारोक्ति स गुरु का मन प्रसन्न हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी प्रसन्नता को गुप्त ही रखा। अब मिलारेपा की परीक्षा शुरु हुई। गुरु के प्रति, श्रद्धा, निष्ठा एवं दृढ़ता की कसौटियाँ प्रारम्भ हुईं। गुरु मारपा मिलारेपा के साथ खूब कड़ा व्यवहार करते, जैसे उनमें दया की एक बूँद भी न हो। लेकिन मिलारेपा अपनी गुरुनिष्ठा में पक्का था। वह गुरु के बताये प्रत्येक कार्य को खूब तत्परता एवं निष्ठा से करने लगा।कुछ महीने बीते, फिर भी गुरु ने मिलारेपा को कुछ ज्ञान नहीं दिया। मिलारेपा ने काफी नम्रता से गुरुजी के समक्ष ज्ञान के लिए प्रार्थना की। गुरुजी भड़क उठेः "मैं अपना सर्वस्व देकर भारत से यह योगविद्या सीखकर आया हूँ। यह तेरे जैसे दुष्ट के लिए है क्या? तूने जो पाप किये हैं वे जला दे, तो मैं तुझे यह विद्या सिखाऊँ। जो खेती तूने नष्ट की है वह उनको वापस दे दे, जिनको तूने मारा डाला है उन सबको जीवित कर दे...."🌴🥀यह सुनकर मिलारेपा खूब रोया। फिर भी वह हिम्मत नहीं हारा, उसने गुरु की शरण नहीं छोड़ी।🌴🥀कुछ समय और बीता। मारपा ने एक दिन मिलारेपा से कहाः "मेरे पुत्र के लिए एक पूर्वमुखी गोलाकार मकान बना दे, लेकिन याद रखना उसे बनाने में तुझे किसी की मदद नहीं लेनी है। मकान में लगने वाली लकड़ी भी तुझे ही काटनी है, गढ़नी है और मकान में लगानी है।"🌴🥀मिलारेपा खुश हो गया कि 'चलो, गुरुजी की सेवा करने का मौका तो मिल रहा है न !' उसने बड़े उत्साह से कार्य शुरु कर दिया। वह स्वयं ही लकड़ियाँ काटता और उन्हें तथा पत्थरों को अपनी पीठ पर उठा-उठाकर लाता। वह स्वयं ही दूर से पानी भरकर लाता। किसी की भी मदद लेने की मनाई थी न! गुरु की आज्ञा पालने में वह पक्का था। मकान का आधा काम तो हो गया। एक दिन गुरुजी मकान देखने आये। वे गुस्से में बोलेः "धत् तेरे की ! ऐसा मकान नहीं चलेगा। तोड़ डाल इसको और याद रखना, जो चीज जहाँ से लाया है, उसे वहीं रखना।"🌴🥀मिलारेपा ने बिना किसी फरियाद के गुरुजी की आज्ञा का पालन किया। फरियाद का 'फ' तक मुँह में नहीं आने दिया। कार्य पूरा किया। फिर गुरुजी ने दूसरी जगह बताते हुए कहाः "हाँ, यह जगह ठीक है। यहाँ पश्चिम की ओर द्वारवाला अर्धचन्द्राकार मकान बना दे।"🌴🥀मिलारेपा पुनः काम में लग गया। काफी मेहनत के बाद आधा मकान पूरा हुआ। तब गुरुजी फिर से फटकारते हुए बोलेः "कैसा भद्दा लगता है यह ! तोड़ डाल इसे और एक-एक पत्थर उसकी मूल जगह पर वापस रख आ।"🌴🥀बिल्कुल न चिढ़ते हुए उसने गुरु के शब्द झेल लिये। मिलारेपा की गुरुभक्ति गजब की थी!थोड़े दिन बाद गुरुजी ने फिर से नयी जगह बताते हुए हुक्म कियाः "यहाँ त्रिकोणाकार मकान बना दे।"🌴🥀मिलारेपा ने पुनः काम चालू कर दिया। पत्थर उठाते-उठाते उसकी पीठ एवं कंधे छिल गये थे। फिर भी उसने अपनी पीड़ा के बारे में किसी को भी नहीं बताया। त्रिकोणाकार मकान बँधकर मकान बँधकर पूरा होने आया, तब गुरुजी ने फिर से नाराजगी व्यक्त करते हुए कहाः "यह ठीक नहीं लग रहा। इसे तोड़ डाल और सभी पत्थरों को उनकी मूल जगह पर रख दे।"इस स्थिति में भी मिलारेपा के चेहरे पर असंतोष की एक भी रेखा नहीं दिखी। गुरु के आदेश को प्रसन्न चित्त से शिरोधार्य कर उसने सभी पत्थरों को अपनी-अपनी जगह व्यवस्थित रख दिया। इस बार एक टेकरी पर जगह बताते हुए गुरु ने कहाः "यहाँ नौ खंभे वाला चौरस मकान बना दे।"गुरुजी ने तीन-तीन बार मकान बनवाकर तुड़वा डाले थे। मिलारेपा के हाथ एवं पीठ पर छाले पड़ गये थे। शरीर की रग-रग में पीड़ा हो रही थी। फिर भी मिलारेपा गुरु से फरियाद नहीं करता कि 'गुरुजी ! आपकी आज्ञा के मुताबिक ही तो मकान बनाता हूँ। फिर भी आप मकान पसंद नहीं करते, तुड़वा डालते हो और फिर से दूसरा बनाने को कहते हो। मेरा परिश्रम एवं समय व्यर्थ जा रहा है।'🌴🥀मिलारेपा तो फिर से नये उत्साह के साथ काम में लग गया। जब मकान आधा तैयार हो गया, तब मारपा ने फिर से कहाः "इसके पास में ही बारह खंभे वाला दूसरा मकान बनाओ।" कैसे भी करके बारह खंभे वाला मकान भी पूरा होने को आया, तब मिलारेपा ने गुरुजी से ज्ञान के लिए प्रार्थना की गुरुजी ने मिलारेपा के सिर के बाल पकड़कर उसको घसीटा और लात मारते हुए यह कहकर निकाल दिया कि 'मुफ्त में ज्ञान लेना है?'🌴🥀दयालु गुरुमाता (मारपा की पत्नी) से मिलारेपा की यह हालत देखी नहीं गयी। उसने मारपा से दया करने की विनती की लेकिन मारपा ने कठोरता न छोड़ी। इस तरह मिलारेपा गुरुजी के ताने भी सुन लेता व मार भी सह लेता और अकेले में रो लेता लेकिन उसकी ज्ञानप्राप्ति की जिज्ञासा के सामने ये सब दुःख कुछ मायना नहीं रखते थे। एक दिन तो उसके गुरु ने उसे खूब मारा। अब मिलारेपा के धैर्य का अंत आ गया। बारह-बारह साल तक अकेले अपने हाथों से मकान बनाये, फिर भी गुरुजी की ओर से कुछ नहीं मिला। अब मिलारेपा थक गया और घर की खिड़की से कूदकर बाहर भाग गया। गुरुपत्नी यह सब देख रही थी। उसका हृदय कोमल था। मिलारेपा की सहनशक्ति के कारण उसके प्रति उसे सहानुभूति थी। वह मिलारेपा के पास गयी और उसे समझाकर चोरी-छिपे दूसरे गुरु के पास भेज दिया। साथ में बनावटी संदेश-पत्र भी लिख दिया कि 'आनेवाले युवक को ज्ञान दिया जाय।' यह दूसरा गुरु मारपा का ही शिष्य था। उसने मिलारेपा को एकांत में साधना का मार्ग सिखाया। फिर भी मिलारेपा की प्रगति नहीं हो पायी। मिलारेपा के नये गुरु को लगा कि जरूर कहीं-न-कहीं गड़बड़ है। उसने मिलारेपा को उसकी भूतकाल की साधना एवं अन्य कोई गुरु किये हों तो उनके बारे में बताने को कहा। मिलारेपा ने सब बातें निखालिसता से कह दीं।🌴🥀नये गुरु ने डाँटते हुए कहाः "एक बात ध्यान में रख-गुरु एक ही होते हैं और एक ही बार किये जाते हैं। यह कोई सांसारिक सौदा नहीं है कि एक जगह नहीं जँचा तो चले दूसरी जगह। आध्यात्मिक मार्ग में इस तरह गुरु बदलनेवाला धोबी के कुत्ते की नाईं न तो घर का रहता है न ही घाट का। ऐसा करने से गुरुभक्ति का घात होता है। जिसकी गुरुभक्ति खंडित होती है, उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करने में बहुत लम्बा समय लग जाता है। तेरी प्रामाणिकता मुझे जँची। चल, हम दोनों चलते हैं गुरु मारपा के पास और उनसे माफी माँग लेते हैं।" ऐसा कहकर दूसरे गुरु ने अपनी सारी संपत्ति अपने गुरु मारपा को अर्पण करने के लिए साथ में ले ली। सिर्फ एक लंगड़ी बकरी को ही घर पर छोड़ दिया।🌴🥀दोनों पहुँचे मारपा के पास। शिष्य द्वारा अर्पित की हुई सारी संपत्ति मारपा ने स्वीकार कर ली, फिर पूछाः "वह लंगड़ी बकरी क्यों नहीं लाये?" तब वह शिष्य फिर से उतनी दूरी तय करके वापस घर गया। बकरी को कंधे पर उठाकर लाया और गुरुजी को अर्पित की। यह देखकर गुरुजी बहुत खुश हुए। मिलारेपा के सामने देखते हुए बोलेः "मिलारेपा ! मुझे ऐसी गुरुभक्ति चाहिए। मुझे बकरी की जरूरत नहीं थी लेकिन मुझे तुम्हें पाठ सिखाना था" मिलारेपा ने भी अपने पास जो कुछ था उसे गुरुचरणों में अर्पित कर दिया। मिलारेपा के द्वारा अर्पित की हुई चीजें देखकर मारपा ने कहाः "ये सब चीजें तो मेरी पत्नी की हैं। दूसरे की चीजें तू कैसे भेंट में दे सकता है?" ऐसा कहकर उन्होंने मिलारेपा को धमकाया।🌴🥀मिलारेपा फिर से खूब हताश हो गया। उसने सोचा कि "मैं कहाँ कच्चा साबित हो रहा हूँ, जो मेरे गुरुजी मुझ पर प्रसन्न नहीं होते?" उसने मन-ही-मन भगवान से प्रार्थना की और निश्चय किया कि 'इस जीवन में गुरुजी प्रसन्न हों ऐसा नहीं लगता। अतः इस जीवन का ही गुरुजी के चरणों में बलिदान कर देना चाहिए।' ऐसा सोचकर जैसे ही वह गुरुजी के चरणों में प्राणत्याग करने को उद्यत हुआ, तुरंत ही गुरु मारपा समझ गये, 'हाँ, अब चेला तैयार हुआ है।'🌴🥀मारपा ने खड़े होकर मिलारेपा को गले लगा लिया। मारपा की अमीदृष्टि मिलारेपा पर बरसी। प्यारभरे स्वर में गुरुदेव बोलेः "पुत्र ! मैंने जो तेरी सख्त कसौटियाँ लीं, उनके पीछे एक ही कारण था – तूने आवेश में आकर जो पाप किये थे, वे सब मुझे इसी जन्म में भस्मीभूत करने थे, तेरी कई जन्मों की साधना को मुझे इसी जन्म में फलीभूत करना था। तेरे गुरु को न तो तेरी भेंट की आवश्यकता है न मकान की। तेरे कर्मों की शुद्धि के लिए ही यह मकार बँधवाने की सेवा खूब महत्त्वपूर्ण थी। स्वर्ण को शुद्ध करने के लिए तपाना ही पड़ता है न ! तू मेरा ही शिष्य है। मेरे प्यारे शिष्य ! तेरी कसौटी पूरी हुई। चल, अब तेरी साधना शुरु करें।" मिलारेपा दिन-रात सिर पर दीया रखकर आसन जमाये ध्यान में बैठता। इस तरह ग्यारह महीने तक गुरु के सतत सान्निध्य में उसने साधना की। प्रसन्न हुए गुरु ने देने में कुछ बाकी न रखा। मिलारेपा को साधना के दौरान ऐसे-ऐसे अनुभव हुए, जो उसके गुरु मारपा को भी नहीं हुए थे। शिष्य गुरु से सवाया निकला। अंत में गुरु ने उसे हिमालय की गहन कंदराओं में जाकर ध्यान-साधना करने को कहा।🌴🥀अपनी गुरुभक्ति, दृढ़ता एवं गुरु के आशीर्वाद से मिलारेपा ने तिब्बत में सबसे बड़े योगी के रूप में ख्याति पायी। बौद्ध धर्म की सभी शाखायें मिलारेपा की मानती हैं। कहा जाता है कि कई देवताओं ने भी मिलारेपा का शिष्यत्व स्वीकार करके अपने को धन्य माना। तिब्बत में आज भी मिलारेपा के भजन एवं स्तोत्र घर-घर में गाये जाते हैं। मिलारेपा ने सच ही कहा हैः"गुरु ईश्वरीय शक्ति के मूर्तिमंत स्वरूप होते हैं। उनमें शिष्य के पापों को जलाकर भस्म करने की क्षमता होती है।"शिष्य की दृढ़ता, गुरुनिष्ठा, तत्परता एवं समर्पण की भावना उसे अवश्य ही सतशिष्य बनाती है, इसका ज्वलंत प्रमाण हैं मिलारेपा। आज के कहलानेवाले शिष्यों को ईश्वरप्राप्ति के लिए, योगविद्या सीखने के लिए आत्मानुभवी सत्पुरुषों के चरणों में कैसी दृढ़ श्रद्धा रखनी चाहिए इसकी समझ देते हैं योगी मिलारेपा।🌴ॐॐॐॐ🌴ॐॐॐॐ🌴ॐॐॐॐ🌴ॐॐ🌴

*रिश्ते कभी जिंदगी के साथ साथ* *नहीं चलते..!!*रिश्ते एक बार बनते हैफिर जिंदगीरिश्तो के साथ साथ चलती है...!!!!जो इंसान “खुद” के लिये जीता है...उसका एक दिन “मरण” होता है...पर जो इंसान ”दूसरों” के लिये जीता है...उसका हमेशा “स्मरण” होता है.....🥀🌹🙏श्री राधे कृष्णा जी 🙏🌹🥀

, मेरे साँवरिया----✍️🌹🙏🦚🪴🍀🌳🙏🌳🍀🪴🦚श्याम तेरी बंसी भजे धीरे धीरे,भजे धीरे धीरे श्री यमुना के तीरे‌,भजे धीरे धीरे श्री यमुना के तीरे,श्याम तेरी बंसी भजे धीरे धीरे ||🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴🪴इत में मथुरा, उत में गोकुल,बीच में यमुना, वहे धीरे धीरे,श्याम तेरी बंसी भजे धीरे धीरे ||१||🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀इत मधु मंगल, उत में सुदामा,बीच में कान्हा, चले धीरे धीरे,कान्हा तेरी मुरली भजे धीरे धीरे ||२||☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️इत में ललिता, उत में विशाखा,बीच में राधा, चले धीरे धीरे,कान्हा तेरी मुरली भजे धीरे धीरे ||३|| By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳हम सब आयें, तेरी शरण में,हमको भी दर्शन, मिले धीरे धीरे,श्याम तेरी बंसी भजे धीरे धीरे ||४||🦚🪴🍀🌳🙏🌳🍀🪴🦚

,। 🥀🌺जय श्री राधे कृष्णा जी 🥀🌺प्रातः वंदना जी🥀🌺🌲☘️🌺🥀🙏🙏🌺🥀जय श्री🌺🥀 कृष्णा जी🌺🥀🌴🌺राजा के दरबार मे...🌺🌴एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया,,,,,उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, तो वो बोला,🌺"मैं आदमी हो, चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ,,😇राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया,,,,,😎कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा,तो उसने कहा....नस्ली नही है....😏राजा को हैरानी हुई, 😳उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा,,,,,🥀🌵उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं,पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी, इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है,,,,,🌺🌹🥀राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं??🧐"उसने कहा 🌲🥀☘️"जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है,,😎राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ,😊उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए ,🥰और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया,,,😎🙏🌲🌺कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी,🧐उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं,लेकिन पैदाइशी नहीं हैं,😏राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, 😨उसने अपनी सास को बुलाया,🤨 सास ने कहा "हक़ीक़त ये है कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था,लेकिन हमारी बेटी 6 महीने में ही मर गई थी,🌹🙏🌲लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया,,🥰राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा, "तुम को कैसे पता चला??🧐""उसने कहा, " रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा है,एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता है,जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही,😏राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ,😇और फिर से बहुत सारा अनाज भेड़ बकरियां बतौर इनाम दी,🥰साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर लिया,,😎कुछ वक्त गुज़रा, 🌹👏🌵राजा ने फिर नौकर को बुलाया,और अपने बारे में पूछा,😇नौकर ने कहा 🌵🙏🥀🥀"जान की सलामती हो तो कहूँ”🙏🏻राजा ने वादा किया तो उसने कहा, "न तो आप राजा के बेटे हो,और न ही आपका चलन राजाओं वाला है"😐राजा को बहुत गुस्सा आया, 😡मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था,😏राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा...मां ने कहा,ये सच है,🌺🌹🌲तुम एक चरवाहे के बेटे हो,हमारी औलाद नहीं थी,तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला,,,,,😊राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , बता, "भोई वाले तुझे कैसे पता चला????🧐🤨उसने कहा " जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं,लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं...😏ये रवैया किसी राजा का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है,,🤨🙏🌵🌹🥀किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं । 😏इंसान की असलियत की पहचान,उसके व्यवहार और उसकी नियत से होती

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🥀🌺जय श्री राधे कृष्णा जी 🥀🌺प्रातः वंदना जी🥀🌺🌲☘️🌺🥀🙏🙏 🌺🥀जय श्री🌺🥀 कृष्णा जी🌺🥀 🌴🌺राजा के दरबार मे...🌺🌴 एक आदमी नौकरी मांगने के लिए आया,,,,, उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, तो वो बोला,🌺 "मैं आदमी हो, चाहे जानवर, शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ,,😇 राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया,,,,,😎 कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा, तो उसने कहा.... नस्ली नही है....😏 राजा को हैरानी हुई, 😳 उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा,,,,,🥀🌵 उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं, पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी, इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है,,,,,🌺🌹🥀 राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं??🧐 "उसने कहा 🌲🥀☘️ "जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है,,😎 राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ,😊 उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए ,🥰 और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया,,,😎🙏🌲🌺 कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी,🧐 उसने कहा, "तौर तरीके तो रानी जैसे हैं, लेकिन पैदाइशी नहीं हैं,😏 राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, 😨 उसने अपनी सास को बुलाया,🤨 सास ने कहा "हक़ीक़त ये है कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था, लेकिन हमारी बेटी 6 महीने में ही मर गई थी,🌹🙏🌲 लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया,,🥰 राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा, "तुम को कैसे पता चला??🧐 ""उसने कहा, " रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा है, एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता है, जो रानी साहिबा में बिल्कुल नही,😏 राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ,😇 और फिर से बहुत सारा अनाज भेड़ बकरियां बतौर इनाम दी,🥰 साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर लिया,,😎 कुछ वक्त गुज़रा, 🌹👏🌵 राजा ने फिर नौकर को बुलाया, और अपने बारे में पूछा,😇 नौकर ने कहा 🌵🙏🥀🥀 "जान की सलामती हो तो कहूँ”🙏🏻 राजा ने वादा किया तो उसने कहा, "न तो आप राजा के बेटे हो, और न ही आपका चलन राजाओं वाला है"😐 राजा को बहुत गुस्सा आया, 😡 मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था,😏 राजा सीधा अपनी मां के महल पहुंचा... मां ने कहा, ये सच है,🌺🌹🌲 तुम एक चरवाहे के बेटे हो, हमारी औलाद नहीं थी, तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला,,,,,😊 राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , बता, "भोई वाले तुझे कैसे पता चला????🧐🤨 उसने कहा " जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं, लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं...😏 ये रवैया किसी राजा का नही, किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है,,🤨🙏🌵🌹🥀 किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं । 😏 इंसान की असलियत की पहचान, उसके व्यवहार और उसकी नियत से होती

,। 🥀🚩राम राम जी 🚩🥀श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं।नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं॥१॥कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं। पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं॥२॥भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं।रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं॥३॥शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं।आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं॥४॥इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं।मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं॥५॥मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो।करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो॥६॥एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली।तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली॥७॥॥सोरठा॥जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏🙏जय श्री राम जी 🙏🙏

,। 🌹🌳 जय श्री शनि🌹🌳 देव महाराज की 🌹🌳शुभ प्रभात जी🌹🌳🙏🙏*🚩हनुमान चालीसा तात्त्विक अनुशीलन🚩* By समाजसेवी वनिता पंजाब:🥦🙏🙏🥦 🩸 *सत्तावनवाँ - भाग* 🩸*छप्पनवें भाग* में अब तक आपने पढ़ा :--*संकट कटै मिटै सब पीरा !**जो सुमिरै हनुमत बलबीरा !!* 🌿🌺 *अब गतांक से आगे*🌺🌿*जय जय जय हनुमान गोसाई !**कृपा करहुं गुरुदेव की नांईं !!**के अंतर्गत**🙏🌺जय जय जय*🌺🙏मेरे भाई बहनों *ध्यान* देने की बात है यहां पर ये है कि *गोस्वामी तुलसीदास जी* महाराज ने *जय* शब्द तीन बार लिखा है । जिस के विभिन्न भाव हो सकते हैं जिनमें से कुछ पर विचार किया जा रहा है । कुछ भी हो यह तो निश्चित ही है कि विशेष भाव या अभिप्राय तो प्रकट है ही जिससे इस चौपाई , छंद अलंकार भाव अर्थ आदि अभिव्यंजना विशेष प्रभावशाली हो गई है । इससे पूर्व *जय* शब्द दो बार दो अर्धालियों में आया है । जैसे ।🥀🌵🙏🌺🌿*जय हनुमान ज्ञान गुण सागर* *जय कपीस तिहुं लोक उजागर*मेरे भाई बहनों *हनुमान चालीसा* का प्रारंभ इसी *जय* शब्द से हुआ है तो अब उपसंहार भी *जय* शब्द से ही हो रहा है । कुछ विशिष्ट दिव्य शास्त्रों काव्यों ग्रंथों की परंपरा पूर्णता प्रकट करने हेतु ऐसी ही रही है जैसे *गोस्वामी जी* ने *श्रीरामचरितमानस* का प्रारंभ व वर्ण से *(वर्णानामर्थसंघानां)* से करके समाप्ति भी व वर्ण *(मानवा:)* पर की है । अब कुछ लोग यह भी कह सकते हैं यह तो सैंतीसवीं चौपाई है तथा इस स्तोत्र का नाम *चालीसा* है जो कि चालीस चौपाइयों से युक्त है फिर इस चौपाई को उपसंहार कैसे माना जा सकता है । ऐसे सभी लोगों को मैं पं रामबीर शास्त्री वैदिक यह बताना चाहूंगा कि मैंने यहां पर समाप्ति नहीं लिखा है बल्कि उपसंहार *( उप = समीप , संहार = समाप्ति )* मेरे भाई बहनों *हनुमान चालीसा* समाप्ति के निकट है दूसरी बात यह है कि वस्तुतः स्तोत्र के दो भाग करें तो प्रथम भाग में *हनुमान जी* के केवल गुणानुवाद हैं बीच में कहीं भी कोई मांग नहीं की गई है प्रथम ३६ चौपाइयों में गुणानुवाद की पूर्णता , संख्या की पूर्णता की प्रतीक व अक्षय तथा अधिकतम संख्या ९ से विभाजन पूर्ण कर दी गई है । ३६ की संख्या भी ३+६ = ९ है । आगे की चार चौपाइयों में से प्रथम आज मैं पं रामबीर शास्त्री वैदिक सादतपुर करावल नगर दिल्ली से सैंतीसवी चौपाई प्रस्तुत कर रहा हूं जिसमें अपना अर्थ उद्देश्यपूर्ति की विधा की प्रार्थना , बाद की दो चौपाइयों में स्तोत्र की फलश्रुति व अंतिम चौपाई में उद्देश्य (साध्य) साधन साधक एवं सारांश का बड़े ही दिव्य ढंग से वर्णन कर दिया गया है । गुणानुवाद रूप स्तोत्र का प्रारंभ *जय* से कर उसकी समाप्ति पर *जय* शब्द पुनः देकर स्तोत्र के एक भाग पूर्ण होने की सूचना *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* दे रहे हैं । किसी भी शब्द या वाक्य क्रिया को तीन बार कह कर दृढ़ता से बलपूर्वक उसकी ओर ध्यान आकृष्ट किया जाता है | लोक व्यवहार में भी यदि किसी व्यक्ति को विशेष शपथ दिलाई जाती है तो तीन बार आवृत्ति पूर्वक घोषणा की जाती हैं । *करूंगा - करूंगा - करूंगा**श्री रामचरितमानस* में *कागभुशुण्डि जी* भक्तों के सिद्धांत का दृढ़ता से समर्थन करने के लिए तीन बार नमस्कार करते हैं ।🌲🌳🌵🌺🌹*तरिअ न विनु सेये मम स्वामी !**राम नमामि नमामि नमामी !!*मेरे भाई बहनों इसी प्रकार यहां भी *जय* की दृढ़ता प्रकट करते हुए तीन बार आवृत्ति की गई है । सोए हुए को जगाने के लिए या अन्य मनस्क व्यक्ति का ध्यान गहराई से अपनी और आकर्षित करने के लिए बहुत बार संबोधित जोर देकर किया जाता है । यहां भी *हनुमान जी* को ऋषि के श्रापानुसार समाधिस्थ समझकर तीन बार पुकारा गया है जो कि बहुवचन का प्रतीक है । दो बार *जय-जय* पूर्व में कह चुके हैं अभी तक *हनुमान जी* ने नहीं सुना तो अधिक जोर देने के लिए तीन बार *जय* शब्द कहकर उनको बुला रहे हैं *हनुमान जी* के पांच मुख हैं पांचों के कानों में आवाज देने के लिए पूर्ण स्तोत्र में पाँच बार *जय* शब्द का घोष किया गया जिसमें दो बार पूर्व में किया जा चुका है व तीन बार अब लिखा जा रहा है भूत भविष्य वर्तमान तीनों कालों के लिए बताने के लिए यहां पर तीन बार जयघोष किया गया प्रथम *जय* शब्द *संबोधन* के लिए दूसरा *नमस्कार* के लिए *तीसरा* शब्द *सफलता* को बताने के लिए *तुलसीदास जी महाराज* ने लिखा है यहाँ गुरु, देवता व गोसाईं तीनों रूपों में *हनुमान जी* की प्रतिष्ठा की गई है इसलिए तीन रूपों में तीन बार *जय* शब्द का उच्चारण करके काव्य की दिव्यता को बढ़ा दिया है ।🌲🌺🌹🌿🌲🙏*हनुमान गोसाई*🌿🌲🌹मेरे भाई बहनों *गोसाई* शब्द का अर्थ नाथ या स्वामी के रूप में लिया जाता है यहां अपने स्वामी नाथ या संरक्षक के रूप में *हनुमान जी* को पुकारा गया है अतः *हनुमान जी* आपकी जय हो । प्रारंभ में *जय* शब्द के साथ *हनुमान* शब्द दिया था अब उपसंहार में भी *जय जय* के साथ *जय हनुमान* शब्द ही दिया गया जिससे आद्यांत पुकार एक ही नाम से की गई *श्रीरामचरितमानस* के प्रतिपाद्य विषय के संबंध में स्वयं *गोस्वामी तुलसीदास बाबा जी* ने लिखा है 🥀🌿🙏🌲🙏*जेहि महुँ आदि मध्य अवसाना !**प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना !!*इसी प्रकार यहां प्रतिपाद्य विषय *हनुमान जी* हैं जो कि इस स्तोत्र के प्रधान देवता है इसलिए स्तोत्र के आदि अंत में *हनुमान जी* का नाम दिया गया | तीन बार *जय* शब्द के साथ यहां इस चौपाई में *हनुमान* नाम भी *तीसरी बार* आया है । विचार करने की बात है पूरे *हनुमान चालीसा* में तीन बार ही *हनुमान जी* का नाम *गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज* ने लिखा है ।🌿🌲🌵*प्रथम* आदि में :*जय हनुमान ज्ञान गुण सागर*उसके बाद फिर *मध्य में**संकट ते हनुमान छुड़ावैं*और अब *अंत में* लिख रहे हैं *जय जय जय हनुमान गोसाई*मेरे भाई बहनों यदि पूरे स्तोत्र के आदि मध्य और अंत में तीन बार *हनुमान जी* का नाम लिखा है तो इसमें तीन प्रमुख विशेषताएं भी दिखाई पड़ती है । विचार कीजिएगा प्रथम बार गोस्वामी तुलसीदास बाबा ने *हनुमान* शब्द लिखा तो उनको *ज्ञान गुण सागर बताया* मध्य में जब *हनुमान* शब्द लिखा तो *बल सामर्थ्य* का दर्शन कराया क्योंकि वह *संकट से छुटकारा* दिलाते हैं *संकट से छुटकारा* वही दिला सकता है जिसके भीतर बल एवं सामर्थ्य हो और अब यहां पर अंत में *गोसाई* शब्द लिखकर के *हनुमान जी* की जितेंद्रियता का दर्शन करा रहे हैं । क्योंकि गो का अर्थ है इंद्रियाँ एवं उनके स्वामी जीव इंद्रियों के अधीन होता है पर यहां इंद्रियों के स्वामी कहकर इंद्रियों को भी *हनुमान जी* के आधीन बताया गया है ।🌲🌹🌲🌹*एक अन्य भाव*🌹🌿 मेरे भाई बहनों पहले *जय कपीस* कहा था और अब *गोसाईं* कह रहे हैं | इंद्रियों पर प्रभुत्व ज्ञानियों का भी नहीं होता है ।*जो ज्ञानिन्ह कर चित अपहरई !**बरिआई विमोह बस करई !!*मेरे भाई बहनों *गोसाई* कहकर *गोस्वामी जी* ने ज्ञानियों की दुर्बलताओं का अभाव बताया कि *हनुमान जी* आप स्वयं *गोसाई* प्रभु हैं अतः विभवात्मक इंद्रियों के बल से आप हमारी रक्षा करें हम आप की शरण में हैं ।🌹🌺🌲*एक और अन्य भाव* 🌹🌺🌺इंद्रियों का स्वामी *मन* को भी कहा गया है क्योंकि वह *मन* की उपस्थिति में ही सजीव एवं सक्रिय प्रभावी होती हैं पर *हनुमान जी* क्या है *हनुमान जी* को कहा गया है *मनोजवं मारुततुल्यवेगं* अतः कभी-कभी *मन* स्वयं इंद्रियों का अधिष्ठाता हो कार्य करने लग जाता है । जैसे स्वप्न में , तो *हनुमान जी* को तब भी कोई भय नहीं हो सकता क्योंकि वस्तुत: *हनुमान जी* स्वयं *गोसाई* हैं । *हनुमान व गोसाईं* दोनों शब्द एक साथ देकर *तुलसीदास जी महाराज* ने यह बताने का प्रयास किया है कि *हे हनुमान जी* आप धन्य हैं जो कि *गोसाई* होकर भी निराभिमानी है *भाव एक यह भी* है कि यद्यपि आप गो - इंद्रियों के स्वामी हैं फिर भी उनके अभिमानी देवता नहीं है इंद्रियों के अपने-अपने अभिमानी देवता अलग-अलग हैं । *नेत्रों के सूर्य* , *रसना के वरुण* आदि सभी अपने अपने क्षेत्रज गो के स्वामी है *हे हनुमान जी* आप सबके सार्वभौम स्वामी हैं परंतु इतना होने के बाद भी आप आपने अपने मान का हनन कर दिया और *हनुमान* कहलाए इसीलिए गोस्वामी *तुलसीदास जी महाराज* ने यहां पर *हनुमान जी* को *गोसाई* कह कर संबोधित किया है ।🌹🌳*🔥 इससे आगे कल शेष अगले भाग में**🚩बोलिए सियावर रामचन्द्र भगवान की जय*

vnitakasnia@gnail.com

2021: मार्च में इस दिन मनाई जाएगी जानकी जयंती, जानिये शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जानकी जयंती के दिन माता सीता की पूजा की जाती है। इस साल 6 मार्च को जानकी जयंती मनाई जाएगी। 2021: मार्च का महीना त्योहारों का महीना होता है। इस महीने में होली, शिवरात्रि समेत कई त्योहार आते हैं। हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी मनाई जाती है। इस साल 6 मार्च को सीता अष्टमी पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन मां सीता धरती पर प्रकट हुई थीं। इसलिए हर साल कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है। यह दिन सुहागिनों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरी श्रद्धा-भाव से व्रत रखती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी सुहागिन व्रत रखकर माता सीता की उपासना करती हैं, उनका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।इसके साथ ही वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। वहीं, जिन लड़कियों की शादी नहीं हुई है, वह मनचाहे वर प्राप्ति के लिए जानकी जयंती का उपवास रखती हैं।शुभ मुहूर्त:अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 05 मार्च को शाम 07 बजकर 54 मिनट परव्रत रखने का सही समय : 06 मार्च 2021समापन- 06 मार्च शनिवार को शाम 06 बजकर 10 मिनट परजानकी जयंती का महत्व: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से शादी में आने वाली सभी अड़चने दूर हो जाती हैं। वहीं, जीवन-साथ की उम्र भी लंबी होती है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्यों को सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखन से सभी तीर्थों के दर्शन जितने फल की प्राप्ति होती है।जानकी जयंती पूजा विधि: जानकी जयंती के दिन व्रत रखने के लिए महिलाओं को सुबह स्नान कर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम करना चाहिए। इसके बाद व्रत करने का संकल्प लेकर व्रत शुरू करना चाहिए। इसके बाद व्रती को माता सीता और राम की पूजा करना चाहिए। इस दौरान सबसे पहले भगवान गणेश और माता अंबिका की पूजा करें। माता सीता और भगवान राम की पूजा करते समय पीले फूल, वस्त्र और सोलह श्रृंगार का सामान उन्हें चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन राम और सीता को पीली चीजों का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद माता सीता की आरती करें। शाम को दूध-गुण के बने व्यंजन से अपना व्रत खोलना चाहिए।

, श्रीधामवृन्दावन धाम की महिमा!!!!!!धन्य वृन्दावन धाम है धन्य वृन्दावन नाम। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब धन्य वृन्दावन रसिक जो सुमिरे श्यामाश्याम।।श्रीधाम वृन्दावन भगवान श्रीराधाकृष्ण की रसमयी लीलाभूमि है। पुराणों में इसे व्रजमण्डलरूपी कमल की अत्यन्त सुन्दर कर्णिका कहा गया है। अत: कमल-कर्णिका के समान ही यह सुन्दरता, blसुकुमारता एवं मधुरता का कोष है। यह सहस्त्रदल-कमल का केन्द्रस्थान है। वृन्दावन के मध्यभाग में एक सुन्दर भवन के भीतर योगपीठ है। उसके ऊपर माणिक्य का बना हुआ सुन्दर सिंहासन है, जिसके ऊपर अष्टदल कमल है, जिसकी कर्णिका अर्थात् मध्यभाग में सुकोमल आसन लगा है; वही भगवान श्रीकृष्ण का स्थान है जहां वे विराजमान होते हैं। कलिन्द-कन्या यमुना उस कमल-कर्णिका की प्रदक्षिणा किया करती हैं। भूमण्डल में वृन्दावन गुह्यतम, रमणीय, अविनाशी तथा परमानन्द से पूर्ण स्थान है। यह गोविन्द का अक्षयधाम है।श्रीगर्ग संहिता में बहिषत् से ईशानकोण, यदुपुर से दक्षिण और शोणपुर से पश्चिम की साढ़े बीस योजन विस्तृत भूमि को ‘दिव्य माथुर मण्डल’या ‘व्रज’ बतलाया है। इस व्रज में सबसे श्रेष्ठ ‘वृन्दावन’ नामक वन है जो भगवान के भी मन को हरने वाला लीला-क्रीडास्थल है। यह वृन्दावन वैकुण्ठ से भी परम उत्कृष्ट है। यहां ‘गोवर्धन’ नाम से प्रसिद्ध गिरिराज, कालिन्दी (यमुना) का पावन तट, बृहत्सानु (बरसाना) पर्वत व नन्दीश्वर गिरि शोभायमान है। यह विस्तृत भूभाग विशाल काननों (वनों) से घिरा है; जो पशुओं के लिए हितकर, गोप-गोपी और गौओं के लिए सेवन करने योग्य है, उस मनोहर वन को ‘वृन्दावन’ के नाम से जाना जाता है। यह वृन्दावन अपने सम्पूर्ण वैभव के साथ मथुरा मण्डल में अवस्थित है।भगवान श्रीकृष्ण का निजधाम–श्रीवृन्दावन!!!!ब्रज चौरासी कोस में, चारगाम निजधाम।वृन्दावन अरू मधुपुरी, बरसानो नन्दगाम।।श्रीवृन्दावन, मथुरा और द्वारका भगवान के नित्य लीलाधाम हैं। परन्तु पद्मपुराण के अनुसार वृन्दावन ही भगवान का सबसे प्रिय धाम है। भगवान श्रीकृष्ण ही वृन्दावन के अधीश्वर हैं। वे व्रज के राजा हैं और व्रजवासियों के प्राणवल्लभ हैं। उनकी चरण-रज का स्पर्श होने के कारण वृन्दावन पृथ्वी पर नित्यधाम के नाम से प्रसिद्ध है।मोहन वृन्दावन के राजा, राधा महारानी सुकुमार।बीस कोस वृन्दावन गायौ,बरसानो गहवर तक छायौ,गोवर्धन हूं बन में आयौ,ठौर-ठौर पर रस की लीला करी जुगल सरकार।।योजन पांच वन्यौ वृन्दावन,मुख्य भूमि तट यमुनाकंकन,रास बिहार होय जहां कुंजन,विधि हरि हर दुर्लभ रजधानी नित बरसै रसधार।।सृष्टिचक्र में यह वन नाहीं,माया की गति नहिं अवगाहीं,काल शक्ति वन में नहि जाहीं,महा प्रलय ब्रजधूरिन नासै जगमग ज्योति अपार।।(डॉ. वसन्त यामदग्नि)सनत्कुमार संहिता में गोविन्द की अतिशय प्रिय भूमि वृन्दावन का विस्तार पंचयोजन बताया गया है और पंचयोजन विस्तृत वृन्दावन स्वयं श्रीकृष्ण का देहरूप माना गया है। भगवान की इच्छा से इसमें संकुचन और विस्तार हुआ करता है। छोटे से वृन्दावन में जितनी गोपियों, ग्वालों और गौओं के होने का वर्णन आता है, वह स्थूल दृष्टि से देखने से सम्भव प्रतीत नहीं होता; फिर भी भगवान की महिमा से वह सब सत्य ही है। वृन्दावन की एक झाड़ी में ही ब्रह्माजी को सहस्त्र-सहस्त्र ब्रह्माण्ड और उनके निवासी दीख गये थे। यहां के नग, खग, मृग, कुंज, लता आदि काल और प्रकृति के प्रभाव से अतीत दिव्य स्वरूप हैं। यहां के रजकणों के समान तो वैकुण्ठ भी नहीं माना गया, क्योंकि यहां कि भूमि का चप्पा-चप्पा श्रीप्रिया-प्रियतम के चरणचिह्नों से महिमामण्डित है। सांसारिक दृष्टि से यह वृन्दावन कदापि दर्शनीय नहीं है, पर यदि श्रीराधाकृष्ण की कृपा हो जाये तो वृन्दावन के इस रूप का दर्शन भी साधकों को हो जाता है।नित्य छबीली राधिका, नित छविमय ब्रजचंद।विहरत वृंदाबिपिन दोउ लीला-रत स्वच्छन्द।।श्रीमद्भागवत के अनुसार अत्याचारी कंस के उत्पातों से दु:खी होकर नन्द-उपनन्द आदि गोपों की सभा में अपने तत्कालीन निवास बृहद्वन को छोड़कर सुरक्षा के लिए जिस वृन्दावन में बसने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था, वह वृन्दावन अपने स्वरूप में छोटे-छोटे अनेक वनों का समूह था। इस क्षेत्र में पुण्य पर्वत गिरिराज था, स्वच्छ सलिला श्रीयमुना थीं और यह सम्पूर्ण क्षेत्र अपनी वनश्री की शोभा से समृद्ध होने के कारण गोप-गोपी और गायों की सुख-सुविधा से युक्त था–वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम्।गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृणवीरुधम्।। (श्रीमद्भागवत १०।११।२८)इसी बृहद् वृन्दावन में गोप-गोपी एवं गोपाल की अनेक लीलाएं हुईं। वृन्दावन के इसी क्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा वत्सासुर, वकासुर एवं अघासुर का वध हुआ। इसी क्षेत्र में यमुना-पुलिन पर ग्वालबालों की मण्डली में जूठन खाते श्रीकृष्ण को देखकर ब्रह्माजी मोहग्रसित हुए। वृन्दावन के इसी बृहद् क्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा कालियनाग को नाथे जाने पर यमुना प्रदूषण से मुक्त हुई थी। यहीं मुज्जावटी क्षेत्र में श्रीकृष्ण द्वारा दावानल का पान किया गया। भाण्डीर वन में ही प्रलम्बासुर नामक दैत्य ग्वालबालों व श्रीकृष्ण की क्रीड़ा में ग्वाल के वेष में सम्मिलित हुआ था। यमुनातट पर व्रजांगनाओं के चीरहरण का साक्षी वह कदम्ब का वृक्ष आधुनिक स्यारह गांव के पास स्थित था। वृन्दावन के गिरिराज क्षेत्र में ही इन्द्र का मानमर्दन हुआ। वरुणदेव ने नन्दबाबा का हरण आधुनिक भयगांव नाम से प्रसिद्ध स्थान पर किया था। राधाकुण्ड का भूभाग अरिष्टासुर के उद्धार से सम्बन्धित है–राधाकुण्डे श्यामकुण्डे गिरि गोवर्धन।मधुर मधुर वंशी बाजे, ऐई तो वृन्दावन।।श्रीगर्ग संहिता के उल्लेख के आधार पर श्रीराधाकृष्ण के रास का क्षेत्र वृन्दावन के सैकत पुलिन से शुरु होकर गिरिगोवर्धन, चन्द्रसरोवर, तालवन, मधुवन, कामवन, बरसाना, नन्दगांव, कोकिलावन एवं रासौली तक विस्तृत माना जाता है। इस प्रकार बृहद् वृन्दावन की सीमा दक्षिण-पश्चिम में गोवर्धन तक तथा उत्तर में वर्तमान छाता तहसील के दक्षिणी भाग तक मानी जाती है।वृन्दावन को भगवान का स्वरूप ही मानना चाहिए। यहां कि धूलि का स्पर्श होने मात्र से ही मोक्ष हो जाता है। बड़े-बड़े देवेश्वर भी उसकी पूजा करते हैं। ब्रह्मा आदि भी उसमें रहने की इच्छा करते हैं। यहां देवता और सिद्धों का निवास है। यहां की भूमि चिन्तामणि है और जल रस से भरा हुआ अमृत है। वहां के पेड़ कल्पवृक्ष हैं और गायें कामधेनु हैं।धनि यह बृंदाबन की रेनु।नंद-किसोर चरावत गैयाँ, मुखहिं बजावत बेनु।मन-मोहन कौ ध्यान धरैं जिय, अति सुख पावत चैनु।चलत कहाँ मन और पुरी तन, जहाँ कछु लैन न दैनु।इहाँ रहहु जहँ जूठनि पावहु, ब्रजवासिनि कैं ऐनु।सूरदास ह्याँ की सरबरि नहि, कल्पबृच्छ सुर-धैनु।।अन्तर तो केवल इतना ही है कि कल्पवृक्ष अथवा चिन्तामणि जहां सिर्फ भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्बन्धित कामनाओं की पूर्ति करते हैं, वहां वृन्दावन साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ है। भुक्ति-मुक्ति और भक्ति–यह तीनों ही प्रदान करता है। पर जो सबसे बड़ी चीज यह प्रदान करता है, वह है अद्भुत माधुर्ययुक्त प्रेम जिसके कारण श्रीकृष्ण प्रेमी-साधक के पीछे-पीछे घूमते रहते हैं।वृन्दावन के इस अनूठे रूप का दर्शन व्यक्ति अपनी ज्ञानेन्द्रियों से नहीं बल्कि अपनी आत्मा से ही कर सकता है। इसके लिए सिर्फ और सिर्फ एक ऐसे मन की आवश्यकता होती है जहां श्रीकृष्ण के लिए विशुद्ध प्रेम (अनुराग) हो। ऐसा उज्जवल प्रेम जिसमें न पुण्य का भय है, पाप की आशंका, न नरक की विभीषिका का डर है, न स्वर्ग का लालच, न सुख की कामना है, न दु:ख का दर्द। जहां अधीरता नहीं, धैर्य है; शर्त नहीं, समर्पण है; आशा नहीं, पूर्ण विश्वास है। जिसमें साधक अपने सुख के बारे में रत्ती भर भी न सोचकर केवल प्रेमास्पद (श्रीकृष्ण) के सुख की चिन्ता में ही लगा रहता है। भगवान को प्रेम और केवल प्रेम ही प्रिय है। वृन्दावन इसी रस की खान हैं। वृन्दावन में सदा श्याम तेज विराजमान रहता है। श्रीकृष्ण नित्य वृन्दावन की वीथियों (गलियों) में, यहां के कुंज-निकुंजों में, यमुनातट पर वेणु बजाते रहते है और गायें चराते अपने रसिक भक्तों को कृतार्थ करते रहते हैं।यह वृन्दावन पूर्ण ब्रह्मानन्द में निमग्न रहता है। यहां प्रतिदिन पूर्ण चन्द्रमा का उदय होता है और सूर्य अपनी रश्मियों के द्वारा इस वन की सेवा करते हैं। वृन्दावन में जाते ही सारे दु:खों का नाश हो जाता है। यह वृन्दावनधाम अमृतरस से भरा अखण्ड प्रेम का समुद्र है। यह सम्पूर्ण भूमि रसमयी है। क्यों न हो, यहां सदा-सर्वदा सृष्टि का पूर्णतम माधुर्य (श्रीराधाकृष्ण) क्रीड़ारत जो रहता है। श्रीवृन्दावन केवल धाम ही नहीं है, अपितु यह श्रीराधामाधव के रास-विलास से युक्त प्रेममयी क्रीडाओं की दिव्यभूमि है। व्रजरसिकों का विश्वास है कि श्रीवृन्दावन प्रेम की वह भावभूमि है, जहां अनादिकाल से प्रेम की रसधारा अनवरत रूप से बहती चली आ रही है।प्रेममयी श्रीराधिका, प्रेम सिन्धु गोपाल।प्रेमभूमि वृन्दाविपिन, प्रेम रूप ब्रज बाल।।वृन्दावन में सर्वत्र श्रीराधिका का ही पूर्ण राज्य है। वह वृन्दावनेश्वरीकहलाती हैं। भुक्ति-मुक्ति की यहां तनिक भी नहीं चलती। धर्म-कर्म भी यहां ‘जेवरी बंटते’ अस्तित्वहीन नजर आते हैं। यहां के मनुष्य ही नहीं; वृक्षों के डाल-डाल और पात-पात पर भी सदा ‘राधे-राधे’ का शब्द गुंजायमान रहता है।वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय।डाल-डाल और पात-पात पर राधे ही राधे होय।।इस वृन्दावनधाम में संतों व वैष्णवों की स्थिति के सम्बन्ध में क्या कहा जा सकता है? ऐसे वैष्णवजन ही इस धाम का आश्रय लेते हैं जिनका अंतकरण शुद्ध है और जो प्रेमरस से परिपूर्ण हैं। मीराबाई अपने सच्चे पति श्रीकृष्ण के दर्शन करना चाहती थीं। अत: उन्होंने दृढ़ निश्चय किया कि मेरा प्रीतम के देश वृन्दावन जाना ही उचित है–’मैं गिरधर के घर जाऊं।’ वह जानतीं थीं कि उनकी प्रेम-साधना वृन्दावन में ही फूले-फलेगी। मीराबाई ने वृन्दावन की महिमा का वर्णन करते हुए एक सुन्दर भजन गाया है–आली री ! मौहे लागे वृन्दावन नीको।घर-घर तुलसी ठाकुर पूजा दर्शन गोविन्दजी को।।निरमल नीर बहत यमुना में भोजन दूध दही को।रत्न सिंहासन आप विराजै मुकुट धरयौ तुलसी को।।कुँजन कुँजन फिरत राधिका शब्द सुनत मुरली को।मीरा के प्रभु गिरधर नागर भजन बिना नर फीको।।सत्ययुग में राजा केदार सातों द्वीपों के अधिपति थे। उनका सारा नित्य व नैमित्तिक कर्म श्रीकृष्ण की प्रीति के लिए ही होता था। भगवान का सुदर्शन चक्र राजा की रक्षा के लिए सदा उन्हीं के साथ रहता था। वे चिरकाल तक तपस्या करके अंत में गोलोक चले गए। उनके नाम से केदार तीर्थ प्रसिद्ध हुआ। उनकी पुत्री का नाम वृन्दा था, जो लक्ष्मीजी का अंश थी। उसने साठ हजार वर्षों तक निर्जन वन में तपस्या की। भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकट होकर कोई वर मांगने को कहा। तब वृन्दा ने कहा–’तुम मेरे पति हो जाओ।’ भगवान ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वह भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोलोक चली गई। वृन्दा ने जहां तप किया था, उस स्थान का नाम ‘वृन्दावन’ हुआ।एक अन्य कथा के अनुसार राजा कुशध्वज के दो कन्याएं थीं–तुलसी और वेदवती। वेदवती ने तपस्या करके परम पुरुष नारायण को प्राप्त किया। वह जनकपुत्री सीता के नाम से जानी जाती हैं। तुलसी ने तपस्या करके श्रीहरि को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा की, किन्तु दुर्वासा के शाप से उसने शंखचूड़ को प्राप्त किया। फिर भगवान नारायण उसे पतिरूप में प्राप्त हुए। भगवान श्रीहरि के वर से तुलसी वृक्षरूप में प्रकट हुईं और तुलसी के शाप से श्रीहरि शालग्राम शिला हो गये। उस तुलसी की तपस्या का एक यह भी स्थान है; इसलिए इसे ‘वृन्दावन’ कहते हैं।श्रीराधा के सोलह नामों में एक वृन्दा नाम भी है। पूर्वकाल में श्रीकृष्ण ने श्रीराधा की प्रीति के लिए गोलोक में वृन्दावन का निर्माण किया था। फिर पृथ्वी पर उनकी क्रीडालीला के लिए प्रकट हुआ वह वन उस प्राचीन नाम से ही ‘वृन्दावन’ कहलाने लगा।श्रीराधाकृष्णगणोद्देशदीपिका के अनुसार श्रीराधा की एक प्रिय सखी का नाम भी ‘वृन्दा’ बताया गया है। यह वृन्दा सदैव वृन्दावन में निवास करती है और प्रतिदिन श्रीराधा और श्रीकृष्ण के मिलन की योजना बनाना ही इनकी परमप्रिय सेवा है। अत: यह कहा जा सकता है कि महाभावस्वरूपा श्रीराधा एवं उनकी प्रिय सखी वृन्दा के नामानुसार ही यह स्थल ‘श्रीवृन्दावन’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।वृन्दावन सदा वासा नाना केलि रसोत्सुका।उभयोर्मिलनाकांक्षी तयो: प्रेमपरिप्लुता।।श्रीवृन्दावन के नामकरण के विषय में स्कन्दपुराण में इसे वन्यवृन्दा (तुलसी) से भी जोड़ा जाता है। वृन्दा (तुलसी) का यह वन कभी ऋषि-मुनियों के आश्रमों से भरा-बसा था। इस वन में श्रीहरि सदा निवास करते हैं।मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के प्रमुख भक्तों में श्रीचैतन्य महाप्रभु का योगदान वृन्दावन की खोज, उसके स्वरूप व गौरव को फिर से प्रतिष्ठित करने में प्रमुख रहा है। श्रीचैतन्य महाप्रभु जब वृन्दावन आए तो यहां एक निर्जन सघन वन था। उन्होंने यहां यमुना किनारे इमली के पेड़ के नीचे विश्राम किया था, वह स्थान इमलीतला के नाम से जाना जाता है। इमलीतला के बारे में कहा जाता है कि एक दिन श्रीकृष्ण यमुना किनारे राधाजी के साथ रास रचा रहे थे। तभी वहां गोपियां आ गईं। इससे श्रीकृष्ण रुष्ट होकर इमलीतला घाट पर जाकर विरह में ‘राधा-राधा’ पुकारने लगे। यह इमलीतला एक सिद्धस्थान है। यहां सच्ची साधना की जाए तो मनोरथपूर्ति के साथ ही सिद्धि भी प्राप्त हो जाती है।अपनी तीर्थयात्रा के बाद जैसे ही श्रीचैतन्य महाप्रभु नवद्वीप लौटे तो उन्होंने अपने छह विद्वान अनुयायियों को भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलास्थलियों की खोज व पुनरुद्धार के लिए वृन्दावन भेजा। ये छह गोस्वामी थे–श्रील रूप गोस्वामी, श्रील सनातन गोस्वामी, श्रील रघुनाथभट्ट गोस्वामी, श्रील जीव गोस्वामी, श्रील गोपालभट्ट गोस्वामी और श्रील रघुनाथदास गोस्वामी। श्रीमहाप्रभु और इन्हीं छह गोस्वामियों की प्रेरणा से ही यहां भव्य मन्दिरों का निर्माण हुआ और श्रीविग्रहों की प्रतिष्ठा हुई। अत: यह कहना गलत न होगा कि इन्हीं के प्रयासों से आज वृन्दावन एक वैष्णव तीर्थ के रूप में विख्यात है। श्रील रूप गोस्वामी ने श्रीराधागोविन्ददेव मन्दिर, श्रील सनातन गोस्वामी ने श्रीराधामदनमोहन मन्दिर, श्रील जीव गोस्वामी ने श्रीराधादामोदर मन्दिर, श्रील गोपालभट्ट गोस्वामी ने श्रीराधारमण मन्दिर, श्रीमधु पंडित गोस्वामी ने श्रीराधागोपीनाथजी मन्दिर, श्रीश्यामानंद पंडित गोस्वामी ने श्रीराधाश्यामसुंदर मन्दिर, श्रीलोकनाथ गोस्वामी ने श्रीराधागोकुलनंदजी मन्दिर का निर्माण करवाया। श्रीराधादामोदर मन्दिर में श्रीगिरिराज महाराज की वह शिला भी विराजमान है जिस पर श्रीकृष्णचरण अंकित हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रील सनातन गोस्वामी को यह शिला गोवर्धन (चकलेश्वर) में उस समय दी थी जब वे वृद्धावस्था के कारण नित्य गोवर्धन की परिक्रमा नहीं लगा पाते थे। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं श्रील सनातन गोस्वामी से कहा था कि इस शिला की चार परिक्रमा कर लेने मात्र से उन्हें गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा का पुण्य फल प्राप्त होगा। यद्यपि इन गोस्वामियों ने भव्य मन्दिरों का निर्माण कराया, परन्तु वे स्वयं छोटी कुटिया में ही रहकर भजन व लेखन करते थे।वृन्दावन में संतों द्वारा स्थापित भगवान श्रीकृष्ण के विग्रहों में सात ऐसे प्रमुख विग्रह हैं, जो स्वयं प्रकट हैं–श्रीगोविन्ददेवजी, श्रीमदनमोहनजी, श्रीगोपीनाथजी, श्रीजुगलकिशोरजी, श्रीराधारमणजी, श्रीराधाबल्लभजी, और श्रीबांकेबिहारीजी।इनके अतिरिक्त वृन्दावन के प्रमुख मन्दिरों में श्रीप्रभुपाद स्वामी भक्तिवेदान्त सरस्वतीजी द्वारा स्थापित श्रीकृष्णबलराम मन्दिर (इस्कॉन), रंगजी का मन्दिर, श्रीगौरांग महाप्रभु मन्दिर, श्रीजमाईठाकुर मन्दिर, जयपुरिया मन्दिर, पागलबाबा का मन्दिर, लालाबाबू मन्दिर, ब्रह्मचारीजी का मन्दिर, जगन्नाथ मन्दिर, शाहजी का मन्दिर, बनखण्डी महादेव, रसिकबिहारी मन्दिर, श्रीयुगलकिशोरजी का मन्दिर, अष्टसखी मन्दिर, आनन्दीबाई का मन्दिर, भट्टजी का मन्दिर, कलाधारी का मन्दिर, सत्यनारायन मन्दिर व शाहजहांपुर वाला मन्दिर आदि प्रमुख हैं। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभजी ने इसी वृन्दावन में गोविन्ददेव प्रतिष्ठित किए थे। कहा जाता है कि श्रृंगारवट नामक स्थान पर ग्वालबाल गोचारण के समय विश्राम करते थे। इसी स्थान पर अपनी व्रजयात्रा के समय श्रीनित्यानन्द महाप्रभु पधारे थे।महारास के दर्शन के लिए गोपीवेश में पधारे भगवान शंकर गोपेश्वर महादेव मन्दिर में वंशीवट पर विराजित हैं। ये मन्दिर 5500 वर्ष से भी अधिक पुराना है। ऐसा माना जाता है कि आज भी वृन्दावन में श्रीगोपीश्वर महादेव महारास देख रहे हैं।एक बार शरदपूर्णिमा के दिन यमुना किनारे वंशीवट पर जब महारास में श्रीकृष्ण ने वेणुनाद किया तो कैलास पर्वत पर भगवान शंकर का मन भी श्रीराधाकृष्ण व गोपियों की दिव्यलीला देखने के लिए मचल उठा और वे वृन्दावन की ओर चल पड़े। पार्वतीजी ने बहुत समझाया पर वे नहीं माने और अपने परिवार के साथ वृन्दावन के वंशीवट पर आ गये। पार्वतीजी तो महारास में प्रवेश कर गईं पर गोपियों ने शंकरजी को रोक दिया और कहा–’श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य कोई पुरुष महारास में प्रवेश नहीं कर सकता।’ शंकरजी ने गोपियों को कोई उपाय बताने के लिए कहा। तब ललिता सखी ने कहा–’यदि आप महारास देखना चाहते हैं तो गोपी बन जाइए।’ यह सुनकर भगवान शंकर अर्धनारीश्वर से पूरे नारी बन गये। नारी बने शंकरजी ने यमुनाजी से कहा–’पार्वतीजी तो महारास में चली गयीं हैं। हम केवल भस्म लगाना जानते हैं, आप हमारा सोलह श्रृंगार कर दीजिए।’ यमुनाजी ने शंकरजी का श्रृंगार कर दिया और गोपी बने शंकरजी महारास में प्रवेश कर गये और नृत्य करने लगे। नाचते-नाचते शंकरजी का घूंघट हट गया और उनकी जटाएं बिखर गयीं। श्रीकृष्ण ने गोपी बने शंकरजी का हाथ पकड़कर आलिंगन करते हुए कहा–’व्रजभूमि में आपका स्वागत है, महाराज गोपीश्वर !’ भगवान शंकर ने श्रीराधाकृष्ण से वर मांगा कि–’मैं सदैव वृन्दावन में आप दोनों के चरणों में वास करूं।’ यही एक ऐसा मन्दिर है जहां भगवान शिव लहंगा, ओढ़नी, ब्लाउज, नथ, बिन्दी, टीका, कर्णफूल पहने हुए गोपी के रूप में विराजित हैं।ज्ञान गुदड़ी वह स्थान है, जहां जब उद्धवजी श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आए तो उद्धवजी का सारा ज्ञान गोपियों की पवित्र प्रेमधारा के सामने बौना बनकर गुदड़ी के रूप में बदल गया। इनके अतिरिक्त अक्रूरधाम, श्रीतुलसी राम दर्शनस्थल, देवरहा बाबा का समाधिस्थल, ब्रह्मकुंड आदि भी महत्वपूर्ण स्थल हैं। वृन्दावन में यमुना के निकट राधाबाग में प्राचीन सिद्धपीठ के रूप में मां कात्यायनी का मन्दिर है। ये व्रज की अधिष्ठात्री देवी हैं। भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए व्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा यमुनातट पर की थी। भतरोड़बिहारी मन्दिर यज्ञ पत्नियों द्वारा कृष्ण-बलराम को कराये गये भोजन (भात) का स्मृतिचिह्न है।वृन्दावन के सभी स्थलों से श्रीराधा-कृष्ण की कोई-न-कोई लीला जुड़ी हुई है। ऐसी ही एक मधुरलीला श्रीगोरे दाऊजी मन्दिर (श्रीअटलबिहारी मन्दिर) के सम्बन्ध में कही जाती है–अटल वन में भगवान श्रीकृष्ण बलदाऊजी व सखाओं के साथ गाय चराने जाते थे और वहां कदम्ब के वृक्ष के नीचे बैठकर विश्राम करते थे। एक दिन बलदेवजी गाय चराने नहीं आये और सखा भी गाय चराते हुए दूर निकल गये। कदम्ब के वृक्ष के नीचे श्रीकृष्ण अकेले हैं, यह बात श्रीराधाजी की सखियों को पता चल गई। ललिता सखी के कहने पर श्रीराधा ने गोरे बलदाऊजी का भेष धारण किया और श्रीकृष्ण से मिलने पहुंच गयीं। श्रीराधा ने भेष तो बदल लिया पर नाक की नथ उतारना भूल गयीं। जब दाऊजी के भेष में श्रीराधा ने श्रीकृष्ण से कहा–’मेरा इंतजार किये बगैर मुझे छोड़कर वन में आ गये।’ तब श्रीकृष्ण तो श्रीराधा को पहचान गये और उन्होंने गोरे दाऊजी (श्रीराधा) का हाथ पकड़कर कहा–’भैया, कुछ देर तो मेरे पास बैठो।’ पोल खुल जाने के डर से जब किशोरीजी जाने लगीं, तब श्रीकृष्ण ने कहा–’मेरी प्रिया, तुम कहां जाती हो, अब तो इस वन में ही स्थापित हो जाओ और मुझे रोजाना दर्शन देती रहना।’ इस पर राधाजी ने कहा–’आपके बिना इस वन में मैं कैसे रहूंगी, आपको भी यहीं अटल आसन लगाना होगा।’ इस प्रकार इसका अटलबिहारी व गोरे दाऊजी मन्दिर नाम पड़ा।वृन्दावन में जगद्गुरु कृपालुजी महाराज द्वारा स्थापित प्रेम मन्दिरश्रीमद्भागवत का मूर्तिमान स्वरूप है। इसके अतिरिक्त इस्कॉन वृन्दावन में दुनिया के सबसे ऊंचे चन्द्रोदय मंदिर का निर्माण करा रहा है।सघन लता-कुंजों से आच्छादित वृन्दावन का सेवाकुंज/निकुंजवनश्रीहितहरिवंशजी गोस्वामी की साधनाभूमि है। यह वृन्दावन की प्राचीनतम सेवा-स्थलियों में से है। कहा जाता है रात्रि में यहां प्रिया-प्रियतम रासक्रीडा करते हैं। यहां श्रीकृष्ण करुणामयी श्रीराधा की चरण-सेवा करते हुए विराजित हैं। कहा जाता है कि एक रात्रि में रास रचाते-रचाते जब श्रीराधाजी थक गईं, तो श्रीकृष्ण ने श्रीराधा के चरण सेवाकुंज में ही दबाए थे। कहते हैं कि आज भी हर रात्रि श्रीकृष्ण व श्रीराधा की दिव्य रासलीला सेवाकुंज में होती है। रात्रि में यहां कोई मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी भी नहीं ठहरते हैं।ब्रह्म मैं ढूंढ़यो पुरानन गायन, बेद-रिचा सुनि चौगुने चायन।देख्यो सुन्यो कबहूं न कितै वह कैसे सरूप औ कैसे सुभायन।।टेरत हेरत हारि परयो, रसखानि बतायो न लोग-लुगायन।देख्यो, दुर्यो वह कुंज-कुटीर में बैठ्यो पलोटत राधिका-पायन।।धनि श्रीराधिका के चरन।सुभग सीतल अति सुकोमल, कमल के से वरन।।नन्द सुत मन मोदकारी, विरह सागर तरन।दास परमानन्द छिन-छिन, श्याम जिनकी सरन।।सेवाकुंज में ललिताकुंड है। कहते हैं खेल के वक्त ललिता सखी को जब प्यास लगी तो श्रीकृष्ण ने अपनी वंशी से पृथ्वी पर वार करके जल निकाला, जिसे पीकर ललिता सखी ने प्यास बुझाई। उसी जल स्त्रोत का नाम ललिताकुण्ड पड़ गया।वृन्दावन मे निधिवन का अपना ही महत्व है। स्वामी हरिदासजी की अनन्य भक्ति से उनके आराध्य श्रीबांकेबिहारीजी इसी निधिवन में प्रकट हुए। भगवान श्रीकृष्ण यहां श्रीराधा के साथ रास रचाया करते थे। आज भी ऐसा माना जाता है कि श्रीराधा-कृष्ण का रात्रिशयन निधिवन में ही होता है। श्रीराधाकृष्ण के अनन्य भक्तों को रात्रि में कन्हैया की वंशी व नृत्य करती हुई गोपियों के पायल की आवाज आज भी सुनाई देती है। स्वामी हरिदासजी ललिता सखी का अवतार माने जाते हैं अत: यहां वीणावादिनी ललिताजी अपने प्यारे श्यामा-कुंजबिहारी को लाड़ लड़ाती हैं। जब स्वामी हरिदास विभोर होकर संगीत की रागिनी छेड़ते तो उनके आराध्य श्रीराधाकृष्ण उनकी गोद में आकर बैठ जाते थे।एक दिन स्वामीजी ने ऐसा गाया कि निधिवन में एक लता के नीचे से सहसा एक प्रकाशपुंज प्रकट हुआ और एक-दूसरे का हाथ थामे प्रिया-प्रियतम प्रकट हुए। श्रीराधा-कृष्ण की अद्भुत छवि को देखकर स्वामीजी ने कहा–’क्या आपके अद्भुत रूप व सौंदर्य को संसार की नजरें सहन कर पाएंगी?’ स्वामीजी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा–’मैं संत हूं। मैं आपको तो लंगोटी पहना दूंगा, किन्तु श्रीराधारानी को नित्य नए श्रृंगार कहां से करवाऊंगा।’ स्वामीजी की विनती पर प्रिया-प्रियतम एक-दूसरे में समाहित होकर एक रूप हो गये। अर्थात् श्यामा-कुंजबिहारी श्रीबांकेबिहारी के रूप में प्रकट हो गये। ऐसा कहा जाता है कि ठाकुर श्रीबांकेबिहारी की गद्दी पर स्वामीजी को प्रतिदिन बारह स्वर्ण मोहरें रखी हुई मिलती थीं, जिन्हें वे उसी दिन बिहारीजी के भोग लगाने में व्यय कर देते थे।माई री, सहज जोरी प्रगट भई,रंग की गौर श्याम, घन दामिनी जैसें।प्रथम हूँ हुती, अब हूँ, आगैं हूँ रहिहैं, न टरिहैं तैंसें।।एक सुन्दर परकोटे से घिरी यहां की झुकी हुई वृक्षावली मानो तपस्यारत व्रज-साधक ही हैं, जो आज भी तप कर रहे हैं। लताओं के रूप-रंग भी यहां गौर-स्याम की युगल जोड़ी के समान एक ही टहनी में श्याम-पीत रंग के हैं। मध्यभाग में स्वामीजी का समाधिस्थल है।वृन्दावन के यमुनाघाट भी श्रीकृष्ण की किसी-न-किसी लीला से सम्बन्धित हैं। गोविन्दघाट पर गोस्वामी हितहरिवंशजी द्वारा स्थापित व्रज का प्राचीन रासमण्डल है। चीरघाट का कदम्ब का वृक्ष श्रीकृष्ण की चीरहरण लीला का साक्षी है। धीरसमीर घाट श्रीकृष्ण की मधुर वंशी से, केशीघाट केशी वध से, मदनटेर गोचारण लीला से, कालीदहकालियानाग दमन से, वंशीवट श्रीकृष्ण के वेणुवादन से, जगन्नाथ घाटभगवान जगन्नाथ से जुड़ा है। और भी न जाने कितने घाट व स्थल है। कहना होगा वृन्दावन का कण-कण चिन्मय है जो किसी-न-किसी रूप में श्रीकृष्ण से जुड़ा है, अत: वन्दनीय है।सेऊँ श्रीवृन्दाविपिन विलास।जहाँ जुगल मिलि मंगल मूरति, करत निरन्तर बास।।सोलहवीं शती में अनेक संतों-आचार्यों ने इस पवित्र भूमि में रहकर न केवल अपने आराध्य को लाड़ लड़ाया अपितु भक्तिरस को जन-जन तक पहुंचाने के लिए विशाल भक्ति साहित्य की रचना की। इन संतों-आचार्यों के सेव्य विग्रह आज भी श्रीवृन्दावन की दिव्य सम्पदा हैं। श्रीवृन्दावन में आज भी अनेक शान्त एवं एकान्त स्थल हैं (कृष्णरसिक संतजनों की भजन व समाधि स्थलियां, वन-उपवन जहां युगल सरकार की चिन्मयी लीलाएं हुईं, यमुनाजी का पावन पुलिन, आदि) जहां जाकर आज भी मन किसी अलौकिक सुख में डूब जाता है।कई बार मन में ऐसा भाव उठता है, बुद्धि कहती है कि वृन्दावन अब कहां?, गोविन्द, उनका वेणुवादन, कदम्ब-तमाल-करील के सघन कुंज अब कहां? अब तो वृन्दावन कंक्रीट का जंगल है, शानदार आश्रम हैं, डूपलेक्स फ्लैट्स हैं, हर स्थान पर अधिकार की लड़ाई है, देवदूत होने की भयंकर प्रतिस्पर्धा है। अब व्रज ‘व्रज’ नहीं रहा। परन्तु दूसरी ओर व्रजवासियों का अखण्ड विश्वास है–’लाला (श्रीकृष्ण) अभी भी यहीं है, लाली (श्रीराधा) ही श्रीवृन्दावन की धरती बन गयी है, लाला इस धरती को छोड़कर जायेंगे कहां? अक्रूर के साथ जो गये थे वे विष्णु के वैभवशाली चतुर्भुजरूप थे। वह किशोर चपल बालक तो श्रीवृन्दावन में ही रह गया। वह तो वृन्दावन के कण-कण में रचा-बसा है, बस जरूरत है उन चर्मचक्षुओं की जो उन्हें ढूंढ़ सकें।’श्रीकृष्ण ने भी वृन्दावन की प्रशंसा करते हुए कहा है–’मैं गोलोक छोड़कर ब्रज-गोपियों के अनन्य प्रेम के कारण इस क्षेत्र में अवतरित हुआ हूँ। ऐसा दिव्यप्रेम संसार में अन्यत्र कहीं नहीं दिखायी देता।’ वृन्दावन को छोड़कर श्रीकृष्ण एक पग भी बाहर नहीं जाते। ‘वृन्दावनं परितज्य पादमेकं न गच्छति।’ श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में रास के प्रसंग में यह सिद्धान्त स्पष्ट है जब श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो जाते हैं तब गोपियां असहाय होकर उन्हें पुकारती हैं तो उनके प्राणधन श्रीकृष्ण वहीं प्रकट हो गये और कहने लगे–मेरी प्रेयसी गोपियों, मैं कहीं गया नहीं था, यहीं तुम्हारे मध्य ही था। बस, अदृश्य हो गया था।’ श्रीकृष्ण आज भी वहीं हैं बस, अदृश्य हैं। रोकर अनन्यता से पुकारो तो आज भी प्रकट हैं–सोई लीला श्रीहरि करत आजहू नित्य।भागवान कोई पुरख निरख होत कृतकृत्य।।श्रीगर्ग संहिता के अनुसार पूर्वकाल में शंखासुर दैत्य नैमित्तिक प्रलय के समय सोते हुए ब्रह्मा के पास से वेदों की पोथी चुराकर समुद्र में जा घुसा तब भगवान श्रीहरि ने मत्स्य रूप धारणकर शंखासुर का वध किया। फिर देवताओं के साथ प्रयाग आकर श्रीहरि ने चारों वेद ब्रह्माजी को दिए और प्रयाग को ‘तीर्थराज’ पद पर अभिषिक्त कर दिया। जम्बूद्वीप के सारे तीर्थों ने तीर्थराज प्रयाग की पूजा की। तब नारदजी तीर्थराज प्रयाग के पास जाकर बोले–’तुम्हें सभी मुख्य-मुख्य तीर्थों ने यहां आकर भेंट दी है पर व्रज के वृन्दावनादि तीर्थ यहां नहीं आये हैं, उन्होंने तुम्हारा तिरस्कार किया है।’ तब तीर्थराज प्रयाग भगवान के पास गये और उनसे कहा कि आपने तो मुझे तीर्थराज बनाया पर व्रज के प्रमादी तीर्थों ने मेरा तिरस्कार किया है।भगवान ने कहा–’मैंने तुम्हें धरती के सब तीर्थों का राजा अवश्य बनाया है; किन्तु अपने घर का राजा भी तुम्हें बना दिया हो, ऐसी बात तो नहीं है। फिर तुम तो मेरे घर पर भी अधिकार जमाने की इच्छा रखते हो। मथुरामण्डल मेरा साक्षात् परात्पर धाम है, त्रिलोकी से परे है। उस दिव्यधाम का प्रलयकाल में भी संहार नहीं होता।’ यह सुनकर तीर्थराज प्रयाग का सारा अभिमान गल गया। उन्होंने मथुरा के व्रजमण्डल का पूजन व परिक्रमा की।वृंदावन एक पलक जो रहिये।जन्म जन्म के पाप कटत हैं कृष्ण कृष्ण मुख कहिये।।महाप्रसाद और जल यमुना को तनक तनक भर लइये।सूरदास वैकुंठ मधुपुरी भाग्य बिना कहां पइये।।

,। 🌹राधे राधे जी🌹ऐसी कृपा करो किशोरीतोहे एक पल भी ना बिस्राऊऐसी मत्ती बना दो मोरीरूठने मनाने मेंबेकार कही आने और जाने मेंमेरा एक क्षण भी व्यर्थ ना जाएमुझे हर स्वांस स्वांस में एक तेरा नाम“श्री राधा ” ही याद आएफिर चाहे जिस पल भी मेरे तन सेप्राण ही क्यू ना निकल जाए By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब❤जय श्री राधे राधे❤*︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗︗**╭•🌀🧚🏻‍♀♥राधेय्य्य्य्य्♥🧚🏻‍♀🌀•╯* ︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘︘*

, कृष्णा की वैजयंती माला कैसी थी, जानिए 5 रहस्य वैजयंती माला के 👍👌वैजयंती के वृक्ष पर बहुत ही सुंदर फूल उगते हैं। इसके फूल बहुत ही सुगंधित और सुंदर होते हैं। इसके बीजों की माला बनाई जाती है। वैजयंती माला यानी विजय दिलाने वाली माला वैजयंती के फूल भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को बहुत ही प्रिय है। श्रीकृष्ण को यह माला अत्यन्त प्रिय है। भगवान श्रीकृष्ण हमेशा अपने गले में इसे धारण करते थे। 1. कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने जब पहली बार राधा और उनकी सखियों के साथ रासलीला खेली थी, तब राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनाई थी। वैजयंती एक फूल का पौधा है जिसमें लाल तथा पीले फूल निकलते हैं।इस फूल के कड़े दाने कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं और हमेशा चमकदार बने रहते हैं। इसका अर्थ यह है कि जब तक जीवन है, तब तक ऐसे ही बने रहो। दूसरा यह माला एक बीज है। बीच सदैव भूमि से जुड़कर ही खुद को विस्तारित करता है। इसका अर्थ यह है कि कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ हमेशा अपनी भूमि से जुड़े रहो। 2. कहते हैं कि श्रीकृष्‍ण वैजयंती माला दो कारणों से पहनते थे। पहला कारण यह कि वैजयन्ती माला में शोभा, सौन्दर्य और माधुर्य की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी जी छिपी रहती हैं क्योंकि भगवान श्री कृष्ण के हृदय में श्रीराधा के चरण विराजमान रहते हैं इसलिए लक्ष्मी जी ने वैजयन्ती माला को अपना निवास बनाया जो हर समय भगवान के वक्ष स्थल पर रहती है। दूसरा कारण यह कि श्रीकृष्ण को यह माला निरंतर राधा की याद दिलाती रहती थी जिसे पहले मथुरा का एक माली बनाकर लाता था। 3. कुछ विद्वानों का कहना है कि इस वैजयन्ती माला में पांच प्रकार की मणियों को गूंथा जाता है जो पंचमहाभूतों की प्रतीक हैं। इन मणियों के नाम है :-इन्द्रनीलमणि (पृथ्वी), मोती (जल), पद्मरागमणि (अग्नि), पुष्पराग (वायुतत्त्व) वज्रमणि अर्थात हीरा (आकाश)। 4. वैजयंती माला का महत्व : एक कथा के अनुसार इन्द्र ने अंहकार वश वैजयंतीमाला का अपमान किया था, परिणाम स्वरूप महालक्ष्मी उनसे रुष्ट हो गईं और उन्हें दर-दर भटकना पड़ा था। देवराज इन्द्र अपने हाथी ऐरावत पर भ्रमण कर रहे थे। मार्ग में उनकी भेंट महर्षि दुर्वासा से हुई। उन्होंने इन्द्र को अपने गले से पुष्प माला उतारकर भेंट स्वरूप दे दी। इन्द्र ने अभिमान वश उस पुष्प माला को ऐरावत के गले में डाल दिया और ऐरावत ने उसे गले से उतारकर अपने पैरों तले रौंद डाला। अपने द्वारा दी हुई भेंट का अपमान देखकर महर्षि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया। उन्होंने इन्द्र को लक्ष्मी हीन होने का श्राप दे दिया। 5. वैजयंती के लाभ : वैजयंती के फूल और माला अति शुभ और पवित्र है। वैजयंती फूलों का बहुत ही सौभाग्यशाली वृक्ष होता है। इसकी माला पहनने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस माला को किसी भी सोमवार अथवा शुक्रवार को गंगा जल या शुद्ध ताजे जल से धोकर धारण करना चाहिए। वैजयंती के बीजों की माला से भगवान विष्णु या सूर्यदेव की उपासना करने से ग्रह नक्षत्रों का प्रभाव खत्म हो जाता है। खासकर शनि का दोष समाप्त हो जाता है। इस माला को धारण करने से देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है। इसको धारण करने या प्रतिदिन इस माला से अपने ईष्ट का जप करने से नई शक्ति का संचार तथा आत्म-विश्वास में वृद्धि होती है। इस माला को धारण करने से मान सम्मान में वृद्धि होती है। मानसिक शांति प्राप्त होती है जिससे व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में मन लगाकर कार्य करता है। मान्यता है कि पुष्य नक्षत्र में वैजयंती के बीजों की माला धारण करना बहुत ही शुभ फलदायक है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब यह सभी तरह की मनोकामना पूर्ण करता है। वैजयंती माला से 'ऊं नमः भगवते वासुदेवाय' का मन्त्र नित्य जापने से विवाह में आ रही हर प्रकार की बाधा दूर हो जाती है। जप के बाद केले के पेड़ की पूजा करना चाहिए।

, जय श्री शनिदेव श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं।इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा।जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों(फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूछा-नारद- बालक तुम कौन हो ?बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ ।तब नारद ने ध्यान धर देखा।नारद ने आश्चर्यचकित हो बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?नारद- शनिदेव की महादशा।इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी।ब्रह्मा जी से वर मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया। शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर्य मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे-1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया। तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया । जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे।अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है। आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है.... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब.जय श्री शनिदेव

🥦🌹जय श्री राधे कृष्णा🌹🥦

🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀 #🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹 . बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀 . उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे। . एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲 . लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है,  . अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀 . तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता।  . यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु। . बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀 . मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उ...

🌹🥦जय श्री राधे कृष्णा🌹🥦

🥀🌹 जय श्री 🥀🌹राधे कृष्णा 🥀🌹जी🥀🌹🌿🥀🌹🌿🥀🌹🌿🥀🌹   🌹🙏🌹जय श्री राधे 🌹🙏🌹 🌹🌹🌹मीरा चरित (61)🌹🌹🌹 🌹🙏क्रमशः से आगे ...............🌹🙏 मीरा के आने से मेड़ते में भक्ति की भागीरथी उमड़ पड़ी ।मीरा के दर्शन -सत्संग के लिए चित्तौड़ गये संत- महात्मा लौटकर मेड़ता आने लगे ।श्याम कुन्ज की रौनक देखते ही बनती थी ।।मेड़ते से एक वर्ष के पश्चात मीरा ने चित्तौड़ पधारने के लिए प्रस्थान किया ।🌿🥀   चित्तौड़ की सीमा पर मीरा को दिखाई दिए उजड़े हुए गाँव जले हुए खेत , उजड़े हुये खेत और सताये हुये मनुष्य और पशु । ऊपर से सैनिक उन्हें कर के लिए और परेशान कर रहे थे ।चारों ओर अराजकता देख मीरा को बहुत दुख हुआ ।उसने प्रजा को यूँ विवश और दुखी देख अपने और दासियों के गहने उतरवा कर सैनिकों के दे दिये ।मीरा के चित्तौड़ पहुँचते ही क्रोधित होकर राणा उनके महल में पहुँच बरस पड़ा -" आज अर्ज कर रहा हूँ कि मुझे मेरा काम करने दें ।अब कभी बीच में न पड़ियेगा ।नहीं तो मुझसे बुरा कोई न होगा ।चारों ओर बदनामी हो रही है कि मेवाड़ की कुवंरानी बाबाओं की भीड़ में नाचती है ।सुन सुन कर ह...

🥦🌹🌹जय श्री राधे कृष्ण🌹🙏🙏🌹🥦

   ☘️🥀🌺जय श्री कृष्णा जी🌺🥀 ☘️🌴🥀मेरो राधा रमण गिरधारी 🥀🌴🌺🌳🌺गिरधारी श्याम बनवारी 🌺🌳 🌹By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🌹 🌲🌹मेरो राधा रमण गिरधारी 🌹🌲🌿🌺🌿गिरधारी श्याम बनवारी🌿🌺 *तुलसी विलम्ब ना कीजिए , भजिए नाम सुजान।।* 🌷 *जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान...॥* 🙏🏻 तुलसीदास जी ने भी कहा है कि हे मनुष्य ! तू बिना विलम्ब किए प्रभु के लिए काम कर । फिर संसार मे कोई ऐसी वस्तु नही है जो तेरे पास ना हो सके । यदि इंसान मजदूर को काम करने के बदले उसकी मजदूरी देता है, तो क्या भगवान नही देगा ? जो लोग परहित मे लगे रहते है उनकी मजदूरी भी परमात्मा अवश्य देता है । 🌷 कहते हैं कि धर्म और सेवा भाव तो दुसरी जन्म में भी आपके साथ चलेगा l इसलिए अपनी नेक कमाई मे से कुछ हिस्सा परहित के लिए जरूर निकालें । यदि हम सब लोग मिलझुल कर सहयोग और समर्पण भाव में रहकर अनाशक्ति व त्याग की भावना से कर्म करेंगे तो समाज दारिद्य और दुखों से मुक्त हो जाएगा। मनुष्य को स्वेछा से जिंदगी जीने का हक है परन्तु जब मनुष्य स्वार्थी हो जाता है तो वह जीवन में सम्रद्धि पाने की ...

🌷🌷जय श्री राधे कृष्ण🌷🌷🙏🙏🌷🌷

🥀🌱जय श्री राधे रानी जी 🥀🌱🥀 🌱🌺जय श्री राधे राधे जी🌺🌱 ☘️🌲 जय श्री राधे कृष्णा जी ☘️🌲 🌺🌱जय श्री राधे सरकार की 🌲☘️ 🌹जय बोलो वृंदावन बिहारी लाल की 🌹 🌲☘️जय बोलो मदन गोपाल की🌲☘️ *🌴🌺"स्त्री" क्यों पूजनीय है ?*🌺🌴 *==🌴===🌴====🌴===🌴==*🌴 *एक बार सत्यभामाजी ने श्रीकृष्ण से पूछा, "मैं आप को कैसी लगती हूँ ?*☘️🌺 *" श्रीकृष्ण ने कहा, "तुम मुझे नमक जैसी लगती हो ।"*👏🙏🌴🌺 *सत्यभामाजी इस तुलना को सुन कर क्रुद्ध हो गयी, तुलना भी की तो किस से । आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला।*🌴 *श्रीकृष्ण ने उस वक़्त तो किसी तरह सत्यभामाजी को मना लिया और उनका गुस्सा शांत कर दिया ।*🥀🌳 *कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई।*🙏🌺🌿🌵☘️ *सर्वप्रथम सत्यभामाजी से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया श्रीकृष्ण ने ।*☘️ *सत्यभामाजी ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या - सब्जी में नमक ही नहीं था । कौर को मुँह से निकाल दिया ।*🌿🌺 *फिर दूसरा कौर माव...

🌹🌳जय श्री राधे कृष्णा जी 🌹by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌳शुभ संध्या वंदना जी🌹🌳🥀🌲🥀🌲🥀#🌲🥀🙏_बिहारी_जी_का_आसन_"🙏🏻🌹.बहुत समय पहले कि बात है बिहारी जी का एक परम प्रिय भक्त था। वह नित्य प्रति बिहारी जी का भजन-कीर्तन करता था।🌳🌲🥀.उसके ह्रदय का ऐसा भाव था कि बिहारी जी नित्य उसके भजन-कीर्तन को सुनने आते थे।.एक दिन स्वप्न में बिहारी जी ने उससे शिकायत करते हुए कहा, तुम नित्य प्रति भजन-कीर्तन करते हो और मैं नित्य उसे सुनने आता भी हूं... 🌹🌳🌲.लेकिन आसन ना होने के कारण मुझे कीर्तन में खड़े रहना पड़ता है, जिस कारण मेरे पांव दुख जाते है, .अब तू ही मुझे मेरे योग्य कोई आसन दे जिस पर बैठ मैं तेरा भजन-कीर्तन सुन सकू।🌲🥀.तब भक्त ने कहा, प्रभु ! स्वर्ण सिंहासन पर मैं आपको बैठा सकूं इतना मुझमें सार्मथ्य नहीं और भूमि पर आपको बैठने के लिए कह नहीं सकता। .यदि कोई ऐसा आसन है जो आपके योग्य है तो वो है मेरे ह्रदय का आसन आप वहीं बैठा किजिये प्रभु।.बिहारी जी ने हंसते हुए कहा, वाह ! मान गया तेरी बुद्धिमत्ता को... 🌲🥀.मैं तुझे ये वचन देता हूं जो भी प्रेम भाव से मेरा भजन-कीर्तन करेगा मैं उसके ह्रदय में विराजित हो जाऊंगा।🌳🌲🥀.ये सत्य भी है और बिहारी जी का कथन भी। .वह ना बैकुंठ में रहते है ना योगियों के योग में और ना ध्यानियों के ध्यान में, वह तो प्रेम भाव से भजन-कीर्तन करने वाले के ह्रदय में रहते है।।🌳.बोलिए श्री बांके बिहारी लाल की जय....🙌🌺

#🌸 बोलो राधे राधे #🌸 जय श्री कृष्ण वनिता पंजाब❤️शुभकामना सन्देश,।

Good morning*हे मेरे श्याम..**मेरी हर अर्जी को तू ने मंजूर किया है,**बिन मांगे ही श्याम मुझे तूने भरपूर दिया है..**इसी तरह मेरा जीवन खुशहाल बनाए रखना, जीता हूँ तेरा नाम लेकर बस कृपा बनाए रखना..!!* *🎠🎠🎠जय श्री श्याम*🎠🎠🎠