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भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर सम्मान क्यों मिला था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भीष्म पिता ने 18 दिन के बाद अपने प्राण त्यागे जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे तब सब आए उनसे मिलने फिर श्रीकृष्ण भी आए तो भीष्म पिता ने श्री कृष्ण से पूछा आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लियाअभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण …और पीड़ा लेकर आता है।कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। …एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला “राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।”भीष्म ने कहा ” एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।”सैनिक ने वैसा ही किया।…उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।… कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।… 18 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?कृष्ण: तात श्री! हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में …किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।… ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।…. आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।#बाल_वनिता _महिला_आश्रममोरल- जाने अंजाने में भी किया गया कर्म का जिम्मेदार भी हम आत्मा ही है क्यों बोला गया कि कर्म बहुत सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि व्यवहार में आने से पहले मन फिर वचन फिर कर्म में आता है तो आपने किसी के प्रति गलत सोचा तो वो आपका कर्म बन गया।

भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर सम्मान क्यों मिला था? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भीष्म पिता ने 18 दिन के बाद अपने प्राण त्यागे जब वह बाणों की शैया पर लेटे हुए थे तब सब आए उनसे मिलने फिर श्रीकृष्ण भी आए तो भीष्म पिता ने श्री कृष्ण से पूछा आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला? कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते। भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लिया अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण …और पीड़ा लेकर आता है। कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा। भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। …एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे। एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला “राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।” ...

. ॥हरि ॐ तत्सत्॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब श्रीमद्भागवत-कथा श्रीमद्भागवत-महापुराण पोस्ट - 256 स्कन्ध - 10 अध्याय - 49इस अध्याय में:- अक्रूरजी का हस्तिनापुर जाना श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! भगवान के आज्ञानुसार अक्रूरजी हस्तिनापुर गये। वहाँ की एक-एक वस्तु पर पुरुवंशी नरपतियों की अमरकीर्ति की छाप लग रही है। वे वहाँ पहले धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, कुन्ती, बाह्लीक और उनके पुत्र सोमदत्त, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डव तथा अन्यान्य इष्ट-मित्रों से मिले। जब गान्दिनीनन्दन अक्रूरजी सब इष्ट-मित्रों और सम्बन्धियों से भलीभाँति मिल चुके, तब उनसे उन लोगों ने अपने मथुरावासी स्वजन-सम्बन्धियों की कुशल-क्षेम पूछी। उनका उत्तर देकर अक्रूर जी ने भी हस्तिनापुरवासियों के कुशल-मंगल के सम्बन्ध में पूछताछ की। परीक्षित! अक्रूर जी यह जानने कल लिये कि धृतराष्ट्र पाण्डवों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, कुछ महीनों तक वहीं रहे। सच पूछो तो, धृतराष्ट्र में अपने दुष्ट पुत्रों की इच्छा के विपरीत कुछ करने का साहस न था। वे शकुनि आदि दुष्टों की सलाह के अनुसार ही काम करते थे। अक्रूर जी को कुन्ती और विदुर ने यह बतलाया कि धृतराष्ट्र के लड़के दुर्योधन आदि पाण्डवों के प्रभाव, शस्त्रकौशल, बल, वीरता तथा विनय आदि सद्गुण देख-देखकर उनसे जलते-रहते हैं। जब वे यह देखते हैं कि प्रजा पाण्डवों से ही विशेष प्रेम रखती है, तब तो वे और भी चिढ़ जाते हैं और पाण्डवों का अनिष्ट करने पर उतारू हो जाते हैं। तब तक दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र के पुत्रों ने पाण्डवों पर कई बार विषदान आदि बहुत-से अत्याचार किया हैं और आगे भी बहुत कुछ करना चाहते हैं । जब अक्रूर जी कुन्ती के गहर आये, तब वह अपने भाई के पास जा बैठीं। अक्रूर जी को देखकर कुन्ती के मन में मायके की स्मृति जग गयी और नेत्रों में आँसू भर आये। उन्होंने कहा - ‘प्यारे भाई! क्या कभी मेरे माँ-बाप, भाई-बहिन, भतीजे, कुल की स्त्रियाँ और सखी-सहेलियाँ मेरी याद करती हैं? मैंने सुना है कि हमारे भतीजे भगवान श्रीकृष्ण और कमलनयन बलराम बड़े ही भक्तवत्सल और शरणागत-रक्षक हैं। क्या वे कभी अपने फुफेरे भाइयों को भी याद करते हैं? मैं शत्रुओं के बीच घिरकर शोकाकुल हो रही हूँ। मेरी वही दशा है, जैसे कोई हिरनी भेड़ियों के बीच में पड़ गयी हो। मेरे बच्चे बिना बाप के हो गये हैं। क्या हमारे श्रीकृष्ण कभी यहाँ आकर मुझको और इन अनाथ बालकों को सान्त्वना देंगे? (श्रीकृष्ण को अपने सामने समझकर कुन्ती कहने लगीं) - ‘सचिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण! तुम महायोगी हो, विश्वात्मा हो और तुम सारे विश्व के जीवन दाता हो। गोविन्द! मैं अपने बच्चों के साथ दुःख-पर-दुःख भोग रही हूँ। तुम्हारी शरण मन आयी हूँ। मेरी रक्षा करो। मेरे बच्चों को बचाओ। मेरे श्रीकृष्ण! यह संसार मृत्युमय है और तुम्हारे चरण मोक्ष देने वाले हैं। मैं देखती हूँ कि जो लोग इस संसार से डरे हुए हैं, उसके लिये तुम्हारे चरणकमलों के अतिरिक्त और कोई शरण, और कोई सहारा नहीं है। श्रीकृष्ण! तुम माया के लेश से रहित परम शुद्ध हो। तुम स्वयं परब्रह्म परमात्मा हो। समस्त साधनों, योगों और उपायों के स्वामी हो तथा स्वयं योग भी हो। श्रीकृष्ण! मैं तुम्हारी शरण में आयी हूँ। तुम मेरी रक्षा करो।' श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! तुम्हारी परदादी कुन्ती इस प्रकार अपने सगे-सम्बन्धियों और अन्त में जगदीश्वर भगवान श्रीकृष्ण को स्मरण करके अत्यन्त दुःखित हो गयीं और फफक-फफककर रोने लगीं। अक्रूर जी और विदुर जी दोनों ही सुख और दुःख को समान दृष्टि से देखते थे। दोनों यशस्वी महात्माओं ने कुन्ती को उसके पुत्रों के जन्मदाता धर्म, वायु आदि देवताओं की याद दिलायी और यह कह-कर कि तुम्हारे पुत्र अधर्म का नाश करने के लिये ही पैदा हुए हैं, बहुत कुछ समझाया-बुझाया और सान्त्वना दी। अक्रूर जी जब मथुरा जाने लगे, तब राजा धृतराष्ट्र के पास आये। अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि राजा अपने पुत्रों का पक्षपात करते हैं और भतीजों के साथ अपने पुत्रों का-सा बर्ताव नहीं करते। अब अक्रूर जी ने कौरवों की भरी सभा में श्रीकृष्ण और बलरामजी आदि का हितैषिता से भरा सन्देश कह सुनाया। अक्रूर जी ने कहा - महाराज धृतराष्ट्र जी! आप कुरुवंशियों की उज्ज्वल कीर्ति को और भी बढ़ाइये। आपको यह काम विशेष रूप से इसलिये भी करना चाहिये कि अपने भाई पाण्डु के परलोक सिधार जाने पर अब आप राज्यसिंहासन के अधिकारी हुए हैं। आप धर्म से पृथ्वी का पालन कीजिये। अपने सद् व्यवहार से प्रजा को प्रसन्न रखिये और अपने स्वजनों के साथ समान बर्ताव कीजिये। ऐसा करने से ही आपको लोक में यश और परलोक में सद्गति प्राप्त होगी। यदि आप इसके विपरीत आचरण करेंगे तो इस लोक में आपकी निन्दा होगी और मरने के बाद आपको नरक में जाना पड़ेगा। इसलिये अपने पुत्रों और पाण्डवों के साथ समानता का बर्ताव कीजिये। आप जानते ही हैं कि इस संसार में कभी कहीं कोई किसी के साथ सदा नहीं रह सकता। जिनसे जुड़े हुए हैं, उनसे एक दिन बिछुड़ना पड़ेगा ही। राजन! यह बात अपने शरीर के लिए भी सोलहों आने सत्य है। फिर स्त्री, पुत्र, धन आदि को छोड़कर जाना पड़ेगा, इसके विषय में तो कहना ही क्या है। जीव अकेला ही पैदा होता है और अकेला ही मरकर जाता है। अपनी करनी-धरनी का, पाप-पुण्य का फल भी अकेला ही भुगतता है। जिन स्त्री-पुत्रों को हम अपना समझते हैं, वे तो ‘हम तुम्हारे अपने हैं, हमारा भरण-पोषण करना तुम्हारा धर्म है’ - इस प्रकार की बातें बनाकर मूर्ख प्राणी के अधर्म से इकट्ठे किये हुए धन को लूट लेते हैं, जैसे जल में रहने वाले जन्तुओं के सर्वस्व जल को उन्हीं के सम्बन्धी चाट जाते हैं। यह मूर्ख जीव जिन्हें अपना समझकर अधर्म करके भी पालता-पोसता है, वे ही प्राण, धन और पुत्र आदि इस जीव को असंतुष्ट छोड़कर ही चले जाते हैं। जो अपने धर्म से विमुख है - सच पूछिये, तो वह अपना लौकिक स्वार्थ भी नहीं जानता। जिनके लिये वह अधर्म करता है, वे तो उसे छोड़ ही देंगे; उसे कभी सन्तोष का अनुभव न होगा और वह अपने पापों की गठरी सिर पर लादकर स्वयं घोर नरक मन जायगा। इसलिये महाराज! यह बात समझ लीजिये कि यह दुनिया चार दिन की चाँदनी है, सपने का खिलवाड़ है, जादू का तमाशा है और है मनोराज्यमात्र! आप अपने प्रयत्न से, अपनी शक्ति से चित्त को रोकिये; ममतावश पक्षपात न कीजिये। आप समर्थ हैं, समत्व में स्थित हो जाइये और इस संसार की ओर से उपराम-शान्त हो जाइये। राजा धृतराष्ट्र ने कहा - दानपते अक्रूर जी! आप मेरे कल्याण की, भले की बात कह रहे हैं, जैसे मरने वाले को अमृत मिल जाय तो वह कभी उससे तृप्त नहीं हो सकता, वैसे ही मैं भी आपकी इन बातों से तृप्त नहीं हो रहा हूँ। फिर भी हमारे हितैषी अक्रूर जी! मेरे चंचल चित्त में आपकी यह प्रिय शिक्षा तनिक भी नहीं ठहर रही है; क्योंकि मेरा हृदय पुत्रों की ममता के कारण अत्यन्त विषम हो गया है। जैसे स्फटिक पर्वत के शिखर पर एक बार बिजली कौंधती है और दूसरे ही क्षण अन्तर्धान हो जाती है, वही दशा आपके उपदेशों की है। अक्रूर जी! सुना है कि सर्वशक्तिमान भगवान पृथ्वी का भार उतारने के लिये यदुकुल में अवतीर्ण हुए हैं। ऐसा कौन पुरुष है, जो उनके विधान में उलट-फेर कर सके। उनकी जैसी इच्छा होगी, वही होगा। भगवान की माया का मार्ग अचिन्त्य है। उसी माया के द्वारा इस संसार की सृष्टि करके वे इसमें प्रवेश करते हैं और कर्म तथा कर्मफलों का विभाजन कर देते हैं। इस संसार-चक्र की बरोक-टोक चाल में उनकी अचिन्त्य लीला-शक्ति के अतिरिक्त और कोई कारण नहीं है। मैं उन्हीं परमैश्वर्य शक्तिशाली प्रभु को नमस्कार करता हूँ। श्री शुकदेव जी कहते हैं - इस प्रकार अक्रूर जी महाराज धृतराष्ट्र का अभिप्राय जानकर और कुरुवंशी स्वजन-सम्बन्धियों से प्रेमपूर्वक अनुमति लेकर मथुरा लौट आये। परीक्षित! उन्होंने वहाँ भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी के सामने धृतराष्ट्र का वह सारा व्यवहार-बर्ताव, जो वे पाण्डवों के साथ करते थे, कह सुनाया, क्योंकि उनको हस्तिनापुर भेजने का वास्तव में उद्देश्य भी यही था। ~~~०~~~ श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय॥ "जय जय श्री हरि"******************************************** "बाल वनिता महिला आश्रम की सेवा" की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें👇बाल वनिता महिला आश्रम

. ॥हरि ॐ तत्सत्॥ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब                              श्रीमद्भागवत-कथा                          श्रीमद्भागवत-महापुराण                                  पोस्ट - 256                                   स्कन्ध - 10                                  अध्याय - 49 इस अध्याय में:- अक्रूरजी का हस्तिनापुर जाना           श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! भगवान के आज्ञानुसार अक्रूरजी हस्तिनापुर गये। वहाँ की एक-एक वस्तु पर पुरुवंशी नरपतियों की अमरकीर्ति की छाप लग रही है। वे वहाँ पहले धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, कुन्ती, बाह्लीक और उनके पुत्...

कैसे बन गए भगवान कृष्ण लड्डू गोपाल? जानिए इसके पीछे का रहस्य By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पास भगवान श्रीकृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा उनकी पूजा में ही लीन रहते थे। वह अपने प्रभु को कभी भी कहीं छोड़कर नहीं जाते थे।एक बार कुंभनदास के लिए वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने उस भागवत में जाने से मना कर दिया। परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे। इसके बाद वह भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह उनकी पूजा का नियम नहीं टूटेगा। कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझा दिया कि मैंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए भोग तैयार कर दिया है। तुम बस ठाकुर जी को भोग लगा देना और इतना कहकर वह चले गए।कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे विनती की कि वह आएं और भोग लगाएं। रघुनंदन मन ही मन ये सोच रहा था कि ठाकुरजी आएंगे और अपने हाथों से खाएंगे जैसे सभी मनुष्य खाते हैं। कुंभनदास के बेटे ने कई बार भगवान श्रीकृष्ण से आकर खाने के लिए कहा, लेकिन भोजन को उसी प्रकार से देखर वह निराश हो गया और रोने लगा। उसने रोते-रोते भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि भगवान आकर भोग लगाइए। उसकी पुकार सुनकर ठाकुर जी ने एक बालक का रूप रखा और भोजन करने के लिए बैठ गए। जिसके बाद रघुनंदन के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। वृंदावन से भागवत करके जब कुंभनदास घर लौटा तो उसने अपने बेटे से प्रसाद के बारे में पूछा। रघुनंदन ने अपने पिता से कहा ठाकुरजी ने सारा भोजन खा लिया है। कुंभनदास ने सोचा कि अभी रघुनंदन नादान है। उसने सारा प्रसाद खा लिया होगा और डांट की वजह से झूठ बोल रहा है। अब रोज कुंभनदास भागवत के लिए जाते और शाम तक सारा प्रसाद खत्म हो जाता था।कुंभनदास को लगा कि अब उनका पुत्र कुछ ज्यादा ही झूठ बोलने लगा है, लेकिन उनका पुत्र ऐसा क्यों कर रहा है? यह देखने के लिए कुंभनदास ने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रख दिए और दूर से छिपकर देखने लगे। रघुनंदन ने रोज की तरह ठाकुर जी को आवाज दी और ठाकुर जी एक बालक के रूप में कुंभनदास के बेटे के सामने प्रकट हुए। रघुनंदन ने ठाकुरजी से फिर से खाने के लिए आग्रह किया। जिसके बाद ठाकुर जी लड्डू खाने लगे। बाल वनिता महिला आश्रमकुंभनदास जो दूर से इस घटना को देख रहे थे, वह तुरंत ही आकर ठाकुर जी के चरणों में गिर गए। ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू और दूसरे हाथ का लड्डू मुख में जाने वाला ही था, लेकिन ठाकुर जी उस समय वहीं पर स्थिर हो गए।. तभी से लड्डू गोपाल के इस रूप की पूजा की जाने लगी और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाए जाने लगे.

कैसे बन गए भगवान कृष्ण लड्डू गोपाल? जानिए इसके पीछे का रहस्य By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त कुंभनदास थे। उनका एक बेटा था रघुनंदन। कुंभनदास के पास भगवान श्रीकृष्ण का एक चित्र था जिसमें वह बांसुरी बजा रहे थे। कुंभनदास हमेशा उनकी पूजा में ही लीन रहते थे। वह अपने प्रभु को कभी भी कहीं छोड़कर नहीं जाते थे। एक बार कुंभनदास के लिए वृंदावन से भागवत कथा के लिए बुलावा आया। पहले तो कुंभनदास ने उस भागवत में जाने से मना कर दिया। परंतु लोगों के आग्रह करने पर वे जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि पहले वे भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे। इसके बाद वह भागवत कथा करके अपने घर वापस लौट आएंगे। इस तरह उनकी पूजा का नियम नहीं टूटेगा। कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझा दिया कि मैंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए भोग तैयार कर दिया है। तुम बस ठाकुर जी को भोग लगा देना और इतना कहकर वह चले गए। कुंभनदास के बेटे ने भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे विनती की कि वह आएं और भोग लगाएं। रघुनंदन मन ही मन ये सोच रहा था कि ठाकुरजी आएंगे और अपने हाथों से खाएंगे जैसे सभी मन...

*श्रीमद्भागवत कथा* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक संत की कथा में एक बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसके कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था।किसी ने संतश्री से कहाः"बाबा जी !वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।"बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं।बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोजएकदम समय पर पहुँच जाता है।चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है,घंटों बैठा रहता है।"बाबाजी सोचने लगे,"बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !''बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः "कथा सुनाई पड़ती है ?" उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?"बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैंजो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ?"उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?" बाबाजी समझ गये कि यह नितांत बहरा है।बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा।वृद्ध ने कहाः "मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं। मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ।" कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया।"फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ?""बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं।संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती है लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर आती हैं।मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसके आंदोलन मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं।दूसरी बात,आपकी अमृतवाणी सुनने के लिएजो पुण्यात्मा लोग आते हैं उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।"बाल वनिता महिला आश्रमबाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं। उन्होंने कहाः " दो बार हँसना, आपको अधिकार है किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं, ऐसा क्यों ?""मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ, बड़े जैसा करते हैं।वैसा ही छोटे भी करते हैं। मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा। शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे लेआता था। मैं उसे ले आया तो वहअपनी पत्नी को यहाँ ले आया,पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा, कुटुम्ब को संस्कार मिल गये।"ब्रह्मचर्चा, आत्मज्ञान का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में नहीं आये तो क्या, सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल होने मात्र से कल्याण हो जाता है।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*श्रीमद्भागवत कथा* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक संत की कथा में एक बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसके कान तो थे पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा,  एक शब्द भी सुन नहीं सकता था। किसी ने संतश्री से कहाः"बाबा जी !वे जो वृद्ध बैठे हैं, वे कथा सुनते सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।" बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं। बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोजएकदम समय पर पहुँच जाता है।चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है,घंटों बैठा रहता है। "बाबाजी सोचने लगे, "बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए, उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !'' बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः "कथा सुनाई पड़ती है ?" उसने कहाः "क्या बोले महाराज ? "बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैंजो कहता हूँ, क्या वह सु...

श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया।कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं।कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब कृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रयत्न करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे।दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में कृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें और तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप ना हो।बाल वनिता महिला आश्रमपूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं होने के कारण कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर किया। इस तरह दानवीर कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए।〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️🌼 जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया। कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं। कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब कृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रयत्न करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे। दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में कृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें और तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप ना हो। बाल वनिता महिला आश्रम पूर...

🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿 👏अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब करने वाले शनि देव ने हनुमान को भी दिया था एक वरदान।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है. शनि ‘शन (shun)’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘उपेक्षित’ या ‘ध्यान से हटना’. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को मारक माना जाता है. शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं. इसलिए शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके. पर शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. क्यों? हम बता रहे हैं.।#हनुमान और #शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं : शास्त्रों के अनुसार शनि की क्रूर दृष्टि हनुमान पर होने के कारण शनिदेव और हनुमान का रंग समान है.-शास्त्रों में शनि द्वारा तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का उल्लेख मिलता है.-हनुमान संकटमोचन, शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देने वाले.~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~-शनिदेव सूर्य-पुत्र हैं और हनुमान सूर्य उपासक (सूर्य के परम भक्त). शनि की अपने अपने पिता सूर्य से नहीं बनती थी. कहते हैं शनि ने सूर्य से युद्ध भी किया जबकि हनुमान पर सूर्य की असीम कृपा मानी जाती है. माना जाता है कि सूर्य ने हनुमान को शक्तियां देकर महावीर हनुमान बनाया.शनि का जन्म अग्नि (आग) से हुआ है जबकि हनुमान का जन्म पवन (हवा) से.-शनिवार के तेल बेचना अशुभ जबकि हनुमान जी को तेल चढ़ाना शुभ माना जाता है.#शिव की उपासना करने वाले शनि के कोप से हमेशा बचे रहते हैं, हनुमान के भक्तों पर भी शनि की कुदृष्टि कभी नहीं पड़ती. इसके पीछे एक धार्मिक पौराणिक कथा है. रावण एक बहुत बड़ा ज्योतिषी भी था. एक बार सभी देवों को हराकर उसने सभी नौ ग्रहों को अपने अधिकार में लिया लिया. सभी ग्रहों को जमीन पर मुंह के बल लिटाकर ग्रहों को वह अपने पैरों के नीचे रखता था. उसका पुत्र पैदा होने के समय सभी ग्रहों को उसने शुभ स्थिति में रख दिया. देवताओं को डर भी था कि इस प्रकार रावण का पुत्र इंद्रजीत अजेय हो जाएगा लेकिन ग्रह भी रावण के पैरों के नीचे दबे होने के कारण कुछ नहीं कर सकते थे.शनि अपनी दृष्टि से रावण की शुभ स्थति को खराब कर सकने में सक्षम थे पर जमीन के बल होने के कारण वह कुछ नहीं कर सकते थे. तब नारद मुनि लंका आए और ग्रहों को जीतने के लिए रावण की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा अपनी इस जीत को इन ग्रहों को उन्हें दिखाना चाहिए जो कि जमीन के बल लेटे होने के कारण वे नहीं देख सकते थे. रावण ने नारद की बात मान ली और ग्रहों का मुंह आसमान की ओर कर दिया. तब शनि ने अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब कर दी. रावण को बात समझ आई और उसने शनि को कारागृह में डाल दिया और वह भाग न सकें इसलिए जेल के द्वार पर इस प्रकार शिवलिंग लगा दी कि उस पर पांव रखे बिना शनिदेव भाग न सकें. तब हनुमान ने लंका आकर शनिदेव को अपने सिर पर बिठाकर मुक्त कराया.शनि के सिर पर बैठने से हनुमान कई बुरे चक्रों में पड़ सकते थे यह जानकर उन्होंने ऐसा किया. तब शनि ने प्रसन्न होकर हनुमान को अपने मारक कोप से हमेशा मुक्त रहने का आशीर्वाद दिया और एक वर मांगने को कहा. हनुमान ने अपने भक्तों को हमेशा शनि के कोप से मुक्त रहने का आशीर्वाद मांगा. इसलिए कहते हैं कि जो भी हनुमान की उपासना करता है उस पर शनि की दृष्टि कभी नहीं पड़ती. 👏 जय श्री हनुमान जी 🙏 जय श्री शनि देव जी 👏🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷 🌿 🌷

🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿  👏अपनी मारक दृष्टि से रावण की दशा खराब करने वाले शनि देव ने हनुमान को भी दिया था एक वरदान। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷 शनिवार का दिन कई प्रकार से खास होता है. शनि ‘शन (shun)’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘उपेक्षित’ या ‘ध्यान से हटना’. ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को मारक माना जाता है. शनिदेव इसके स्वामी हैं जो इंसान के बुरे कर्मों के अनुसार उन्हें दंडित करते हैं. इसलिए शनिवार के दिन विशेष रूप से शनिदेव की पूजा की जाती है ताकि शनि के कोप से बचा जा सके. पर शनिवार के दिन संकटमोचन हनुमानजी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है. क्यों? हम बता रहे हैं.। #हनुमान और #शनि एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं लेकिन बहुत रूपों में समान हैं :  शास्त्रों के अनुसार शनि की क्रूर दृष्टि हनुमान पर होने के कारण शनिदेव और हनुमान का रंग समान है. -शास्त्रों में शनि द्वारा तपस्या कर शिव को प्रसन्न कर उनकी कृपा पाने का उल्लेख मिलता है. -हनुमान संकटमोचन, शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देने वाले. ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ -शनिदेव सूर्य-पुत्र हैं ...

🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿 👌 *🔥सबसे ऊँची प्रार्थना🔥* 👏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿#एक व्यक्ति जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताया कि, *"जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे ।* उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया । अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया । वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, *इस बीच वह प्रार्थना भूल गया!* जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि *"अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी ।"* उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया ।अब वह लोगों से पूँछने लगा । पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं! पड़ोसी ने कहा, "हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे मालूम है, *"ईश्वर मेरी मदद करो ।"* उसने सुना और उसे लगा की ये वे शब्द नहीं थे, कुछ अलग थे । कुछ सुना होता है तो हमें जाना-पहचाना सा लगता है । फिर भी उसने वह शब्द बहुत बार दोहराए, लेकिन चाँदी के सिक्के नहीं बढ़े तो वह बहुत दुःखी हुआ । #फिर ........एक फादर से मिला, उन्होंने बताया कि *"ईश्वर तुम महान हो"* ये चार शब्दों की प्रार्थना हो सकती है, मगर इसके दोहराने से भी थैला नहीं भरा । वह एक नेता से मिला, उसने कहा *"ईश्वर को वोट दो"* यह प्रार्थना भी कारगर साबित नहीं हुई । वह बहुत उदास हुआ उसने सभी से मिलकर देखा मगर उसे वह प्रार्थना नहीं मिली, जो पिताजी ने बताई थी ।वह उदास होकर घर में बैठा हुआ था तब एक भिखारी उसके दरवाजे पर आया । उसने कहा, "सुबह से कुछ नहीं खाया, खाने के लिए कुछ हो तो दो ।" उस लड़के ने बचा हुआ खाना भिखारी को दे दिया । उस भिखारी ने खाना खाकर बर्तन वापस लौटाया और ईश्वर से प्रार्थना की कि ......... 👌 * " हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद । " * 👏 ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~अचानक वह चौंक पड़ा और चिल्लाया कि *"अरे! यही तो वह चार शब्द थे!* उसने वे शब्द दोहराने शुरू किये कि, *"हे ईश्वर तुम्हारा धन्यवाद"........और उसके सिक्के बढ़ते गए... बढ़ते गए... इस तरह उसका पूरा थैला भर गया!*हम भी इससे समझें कि, *जब उसने किसी की मदद की तब उसे वह मंत्र फिर से मिल गया!* *"हे ईश्वर ! तुम्हारा धन्यवाद ।"* #यही उच्च प्रार्थना है क्योंकि *जिस चीज के प्रति हम धन्यवाद देते हैं, वह चीज बढ़ती है!* अगर पैसे के लिए धन्यवाद देते हैं तो पैसा बढ़ता है, प्रेम के लिए धन्यवाद देते हैं तो प्रेम बढ़ता है । जब गुरू महाराजजी के प्रति *धन्यवाद* के भाव निकलते हैं कि, *हमें उनसे ऐसा ज्ञान मिला - सहज रूप मे उनको सुनने का मोका मिल रहा है! तथा किसी प्रयास से यह ज्ञान हमारे जीवन में उतर रहा है वर्ना ऐसे अनेक लोग हैं, जो झूठी मान्यताओं में जीते हैं और उन्हीं मान्यताओं में ही मरते हैं । मरते वक्त भी उन्हें सत्य का पता नहीं चलता । उसी अंधेरे में जीते हैं, मरते हैं!*बाल वनिता महिला आश्रमइस कहानी से समझें कि *उस बनाने वाले के प्रति धन्यवादी होना, उस ज्ञान दाता के प्रति आभार प्रकट करना कितना आनन्ददायी होता है!**इसलिय इस अनमोल ज्ञान और गुरु जी को दिल से रोज धन्यवाद कहें! ताकि हमारा आनन्द का थैला भी हमको सदा भरा हुआ मिलेगा!* 🙏 जय श्री कृष्णम वंन्दे जगत गुरु 🙏 🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿

🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿                 👌 *🔥सबसे ऊँची प्रार्थना🔥* 👏  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿 #एक व्यक्ति जो मृत्यु के करीब था, मृत्यु से पहले अपने बेटे को चाँदी के सिक्कों से भरा थैला देता है और बताया कि, *"जब भी इस थैले से चाँदी के सिक्के खत्म हो जाएँ तो मैं तुम्हें एक प्रार्थना बताता हूँ, उसे दोहराने से चाँदी के सिक्के फिर से भरने लग जाएँगे ।*  उसने बेटे के कान में चार शब्दों की प्रार्थना कही और वह मर गया ।  अब बेटा चाँदी के सिक्कों से भरा थैला पाकर आनंदित हो उठा और उसे खर्च करने में लग गया । वह थैला इतना बड़ा था की उसे खर्च करने में कई साल बीत गए, *इस बीच वह प्रार्थना भूल गया!*  जब थैला खत्म होने को आया तब उसे याद आया कि *"अरे! वह चार शब्दों की प्रार्थना क्या थी ।"* उसने बहुत याद किया, उसे याद ही नहीं आया ।अब वह लोगों से पूँछने लगा । पहले पड़ोसी से पूछता है की "ऐसी कोई प्रार्थना तुम जानते हो क्या, जिसमें चार शब्द हैं!  पड़ोसी ने कहा, "हाँ, एक चार शब्दों की प्रार्थना मुझे...

राधा अलबेली सरकार By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 💦🌺💦🌺💦🌺💦अब कोई ना मन भाये , तुम्हे देखने के बाद ।तेरी हर पल याद आये , तुम्हे देखने के बाद ।।💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚क्या सुन्दर छटा है ऐसी ,तुम्हे देखता ही जाए ,देखा है जिसने तुमको ,फिर कोई ना मन को भाए ।अब तो कही ना जाएँ , तुम्हे देखने के बाद ।💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜अब कोई ना मन को भाए ,तुम्हे देखने के बाद ।तेरी हर पल याद आए ,तुम्हे देखने के बाद ।।🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤हे मेरे श्याम सुन्दर, मै हूँ तुम्हारी दासी ।दिल को चुराने वाले ,दर्श दो अविनाशी ।।मन पागल हुआ जाए ,तुम्हे देखने के बाद ।💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛कोई दवा ना मन को भाए, तुम्हे देखने के बाद ।।तेरी हर पल याद आए ,तुम्हे देखने के बाद ।।🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡अब कोई ना मन भाए, तुम्हे देखने के बाद ।।Jai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 ji

राधा अलबेली सरकार  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब        💦🌺💦🌺💦🌺💦 अब कोई ना मन भाये , तुम्हे देखने के बाद । तेरी हर पल याद आये , तुम्हे देखने के बाद ।। 💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚 क्या सुन्दर छटा है ऐसी ,तुम्हे देखता ही जाए , देखा है जिसने तुमको ,फिर कोई ना मन को भाए । अब तो कही ना जाएँ , तुम्हे देखने के बाद । 💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜 अब कोई ना मन को भाए ,तुम्हे देखने के बाद । तेरी हर पल याद आए ,तुम्हे देखने के बाद ।। 🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤 हे मेरे श्याम सुन्दर, मै हूँ तुम्हारी दासी । दिल को चुराने वाले ,दर्श दो अविनाशी ।। मन पागल हुआ जाए ,तुम्हे देखने के बाद । 💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛 कोई दवा ना मन को भाए, तुम्हे देखने के बाद ।। तेरी हर पल याद आए ,तुम्हे देखने के बाद ।। 🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡🧡 अब कोई ना मन भाए, तुम्हे देखने के बाद ।। Jai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏 jiJai shiree radhe 💞 krishna 🚩🌹🙏🙏...

*श्री राधे राधे जी,*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*ऐसे काम करें कि हमारे बांके बिहारी जी प्रसन्न हो जाएं....* *ऐसी वाणी बोलिए श्री बांके बिहारी जी प्रसन्न हो जाएं....* *ऐसी बातें श्रवण करें कि ह्रदय में बैठे श्री बांके बिहारी जी नर्तन करने लगें....।**नित्य प्रति अपनी इंद्रियों से पूछिए....**हे मुख ! तूने आज कुछ ठाकुर जी के विषय में कहा है....?* *हे नेत्र ! तुमने क्या ठाकुर जी का दर्शन किया है..... ?* *हे हस्त कमल ! किसी भी रुप में ठाकुर जी की सेवा में काम आए हो....?* *यह चरण ! क्या ठाकुर जी की प्रदक्षिणा की है....? क्या यह चरण मंदिर की ओर बढ़े हैं....?* *अपनी सांसों से पूछिए क्या इस पर राधा राधा नाम हर-एक सांस पर चला है....?**यह सब चेक कर लो रात को सोने से पहले। जो चीज ठाकुर जी के प्रयोग में नहीं आई वह आपके जीवन में व्यर्थ ही है।* बाल वनिता महिला आश्रम*अगर आपने ठाकुर जी के इत्र की सुगंध नहीं सुंघी तो यह नासिका का होना भी व्यर्थ ही है....अगर आपने ठाकुर जी की कथा नहीं सुनी तो यह कान व्यर्थ है....अगर ठाकुर जी के लिए....उनके भक्त लोगों के लिए कुछ अच्छा नहीं बोला या किसी के लिए कुछ बुरी बात बोली तो इस मुँह का क्या काम.... इन आँखों का क्या काम अगर श्री बिहारी जी का दर्शन ना कर सके...।* *।।जय जय श्री राधे।।**हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।**वनिता*

*श्री राधे राधे जी,* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *ऐसे काम करें कि हमारे बांके बिहारी जी प्रसन्न हो जाएं....*  *ऐसी वाणी बोलिए श्री बांके बिहारी जी प्रसन्न हो जाएं....*  *ऐसी बातें श्रवण करें कि ह्रदय में बैठे श्री बांके बिहारी जी नर्तन करने लगें....।* *नित्य प्रति अपनी इंद्रियों से पूछिए....* *हे मुख ! तूने आज कुछ ठाकुर जी के विषय में कहा है....?*  *हे नेत्र ! तुमने क्या ठाकुर जी का दर्शन किया है..... ?*  *हे हस्त कमल ! किसी भी रुप में ठाकुर जी की सेवा में काम आए हो....?*  *यह चरण ! क्या ठाकुर जी की प्रदक्षिणा की है....? क्या यह चरण मंदिर की ओर बढ़े हैं....?*  *अपनी सांसों से पूछिए क्या इस पर राधा राधा नाम हर-एक सांस पर चला है....?* *यह सब चेक कर लो रात को सोने से पहले। जो चीज ठाकुर जी के प्रयोग में नहीं आई वह आपके जीवन में व्यर्थ ही है।*  बाल वनिता महिला आश्रम *अगर आपने ठाकुर जी के इत्र की सुगंध नहीं सुंघी तो यह नासिका का होना भी व्यर्थ ही है....अगर आपने ठाकुर जी की कथा नहीं सुनी तो यह कान व्यर्थ है....अगर ठाकुर जी के लिए....उनके भक्त...

ॐ श्री परमात्मने नम: श्री गणेशाय नम: राधे कृष्ण ।। अथ दशमोऽध्याय: ।।By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब गत अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गुप्त राजविद्या का विस्तार से वर्णन किया, जो निश्चित ही कल्याण करती है। इस अध्याय में उनका कथन है- महाबाहु अर्जुन! मेरे परम रहस्य युक्त वचन को फिर सुन। यहाॅं उसी को दूसरी बार कहने की आवश्यकता क्या है? वस्तुत: साधक को पूर्तिपर्यन्त खतरा है। ज्यों-ज्यों वह रूप में ढलता जाता है, प्रकृति के आवरण सूक्ष्म होते जाते हैं, नये-नये दृष्य आते हैं। उसकी जानकारी महापुरुष ही देते रहते हैं, एक श्रेणी तक पहुॅंचने से पहले साधक नहीं जानता अथवा समझता। यदि वे मार्गदर्शन करना बन्द कर दें तो साधक स्वरूप की उपलब्धि से वंचित रह जाएगा। जब तक वह स्वरूप से दूर है, तब तक सिद्ध है कि प्रकृति का कोई न कोई आवरण बना है। फिसलने-लड़खड़ाने की सम्भावना बनी रहती है। अर्जुन शरणागत शिष्य है। उसने कहा 'शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।'- भगवन् मैं आपका शिष्य हूॅं, आपके शरणागत हूॅं, मुझे सॅंभालिये। अतः उसके हित की कामना से योगेश्वर श्रीकृष्ण पुनः बोले-( भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल) श्रीभगवानुवाचभूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः।यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया॥न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः।अहमादिर्हि देवानां महर्षीणां च सर्वशः॥. ( श्रीमद्भागवत गीता अ० १०/१,२)हिन्दी अनुवाद:- श्री भगवान्‌ बोले- हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभावयुक्त वचन को सुन, जिसे मैं तुझे अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा। मेरी उत्पत्ति को अर्थात्‌ लीला से प्रकट होने को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिजन ही जानते हैं, क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षियों का भी आदिकारण हूँ।व्याख्या:- महाबाहु अर्जुन! मेरे परम प्रभावयुक्त वचन को पुनः सुन, जो मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के हित की इच्छा से कहूॅंगा। अर्जुन! मेरी उत्पत्ति को न देवता लोग जानते हैं और न महर्षिगण ही जानते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा था, 'जन्म कर्म च मे दिव्यम्'- मेरा वह जन्म और कर्म अलौकिक है, इन चर्मचक्षुओं से नहीं देखा जा सकता। इसलिये मेरे उस प्रकट होने को देव स्तर तक पहुॅंचे हुए लोग भी नहीं जानते। मैं सब प्रकार से देवताओं और महर्षियों का आदि कारण हूॅं। शेष अगले सत्र में अगले श्लोक के साथ मित्रों-हरि ॐ तत्सत हरि:ॐ गुं गुरुवे नम:राधे राधे राधे, बरसाने वाली राधे, तेरी सदा हि जय हो माते |शुभ हों दिन रात सभी के |

. ॐ श्री परमात्मने नम:                         श्री गणेशाय नम:                             राधे कृष्ण                    ।। अथ दशमोऽध्याय: ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब                      गत अध्याय में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गुप्त राजविद्या का विस्तार से वर्णन किया, जो निश्चित ही कल्याण करती है। इस अध्याय में उनका कथन है- महाबाहु अर्जुन! मेरे परम रहस्य युक्त वचन को फिर सुन। यहाॅं उसी को दूसरी बार कहने की आवश्यकता क्या है? वस्तुत: साधक को पूर्तिपर्यन्त खतरा है। ज्यों-ज्यों वह रूप में ढलता जाता है, प्रकृति के आवरण सूक्ष्म होते जाते हैं, नये-नये दृष्य आते हैं। उसकी जानकारी महापुरुष ही देते रहते हैं, एक श्रेणी तक पहुॅंचने से पहले साधक नहीं जानता अथवा समझता। यदि वे मार्गदर्शन करना बन्द कर दें तो साधक स्वरूप की उपलब्धि से वंचित रह जाएगा।...

. "मैया, मोहे बहुरिया ला दे"By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब नन्हे कान्हा ने ब्याह करने की हठ पकड़ ली है। अब उन्हें संसार की अन्य कोई वस्तु नहीं चाहिये, उनकी तो बस अब बहुरिया(दुल्हन) की ही माँग है।"मैया मोहि बहुरिया ला दे, तेरी सौं मेरी सुनि मैया, अबहिं ब्याहन जैहौं" मैया यशोदा के मुख पर लावण्यमयी मुस्कराहट के साथ साथ झुंझलाहट का भाव भी है। नंदराय जी, रोहिणी जी, बलराम जी सब हँस हँस कर यशोदा जी से कह रहे हैं-- "नंद रानी, तुम्हीं ने तो प्रस्ताव रखा है इसके समक्ष, अब लाओ इसके लिये इक नन्ही सी बहुरिया"। यशोदा जी अवाक ! किंकर्तव्यविमूढ़-सी बैठी हैं अपने प्राण-धन लाड़ले की बाल-हठ सुन कर। कुछ क्षण पूर्व मैया को अपना लाडला लला सम्भालना दूभर हो रहा था, एक दूसरी हठ के कारण। जब से नन्हे कान्हा ने आकाश मंडल में चंद्रमा को उदित होते देखा, चंद्र-खिलौना लेने की हठ पकड़ ली। जमीन पर लोट लोट कर- "चंद्र खिलौना लैहौं, मैं तो चंद्र खिलौना लैहौं" सारा घर आसमान पर उठा रखा था। किसी के भी बहलाने से न मानें, हठ अधिक अधिक और अधिक बढ़ती ही जा रही थी- "चंद्र खिलौना नहीं दोगी तो सुरभि गैया का पय पान न करिहौं, तेरी गोद न ऐहौं, बेनी सिर न गुथैहौं, तेरौ और नंदबाबा का सुत न कहेहौं" ऐसी-ऐसी प्रतिज्ञाऐं मैया यशोदा तो चकरा ही गईं, कैसे मनाऊँ अपने लाडले को ? सैकड़ों लालच दिये, किन्तु बाल हठ न छुटी। जब किसी भी प्रकार मैया का लाडला प्राण-धन न माना, तब अंततः मैया यशोदा ने एक उपाय किया। मैया ने लला के कान में हँस कर धीरे से फुसफुसाते हुये कहा- "मेरे लाडले, यदि तुम चंद्र खिलौना लेने की अपनी हठ छोड़ दोगे तो मैं तुम्हारा ब्याह करा दूँगी, यह बात अभी मैंने बस तुम्हें ही बताई है और किसी को नहीं, क्योंकि मैं केवल तुम्हारा ही ब्याह कराऊँगी बलराम का नहीं।" मैया की बात सुन कर,अब नन्हे कान्हा को चंद्र खिलौने का स्मरण ही न रहा, अब तो उन्हें बस ब्याह करने की धुन लग गई है-- "तेरी सौगंध मैया, अभी इसी समय ब्याहने चल दूँगा, चल मैया चल, मैं तो अभी बहुरिया लाऊँगौ" मैया हतप्रभ एक हठ छूटी तो दूसरी पकड़ ली। क्या करे मैया, कहाँ से लाकर दे हठीले को इसी समय बहुरिया। अतुल अप्रतिम सौंदर्ययुक्त दुर्लभ अविस्मरणीय दृश्य है, नन्हे कान्हा पूर्णत बाल हठ पकड़े हुये हैं- "चल मैया ब्याहने चल" घर के सब छोटे बड़े स्नेही जन हँस-हँस कर दोहरे हुये जा रहे हैं, और मैया यशोदा की तो मति ही चकरा रही है कि कैसे मनाऊँ अपने इस लाडले प्राण धन को ? ----------:::×:::--------- "जय जय श्री राधे"******************************************* "बाल वनिता महिला आश्रम" की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें👇बाल वनिता महिला आश्रम

.                     "मैया, मोहे बहुरिया ला दे" By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब           नन्हे कान्हा ने ब्याह करने की हठ पकड़ ली है। अब उन्हें संसार की अन्य कोई वस्तु नहीं चाहिये, उनकी तो बस अब बहुरिया(दुल्हन) की ही माँग है। "मैया मोहि बहुरिया ला दे, तेरी सौं मेरी सुनि मैया, अबहिं ब्याहन जैहौं"             मैया यशोदा के मुख पर लावण्यमयी मुस्कराहट के साथ साथ झुंझलाहट का भाव भी है। नंदराय जी, रोहिणी जी, बलराम जी सब हँस हँस कर यशोदा जी से कह रहे हैं-- "नंद रानी, तुम्हीं ने तो प्रस्ताव रखा है इसके समक्ष, अब लाओ इसके लिये इक नन्ही सी बहुरिया"। यशोदा जी अवाक ! किंकर्तव्यविमूढ़-सी बैठी हैं अपने प्राण-धन लाड़ले की बाल-हठ सुन कर।            कुछ क्षण पूर्व मैया को अपना लाडला लला सम्भालना दूभर हो रहा था, एक दूसरी हठ के कारण। जब से नन्हे कान्हा ने आकाश मंडल में चंद्रमा को उदित होते देखा, चंद्र-खिलौना लेने की हठ पकड़ ली। जमीन पर लोट लोट कर-     ...

🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺 💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖 🌹❤!!#शुभ_संध्या ‎#वंदन_जी!!❤🌹💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺 🌲🌹🌷࿗ ‎#जय_श्री_राधे_कृष्णा ࿗🌷🌹🌲~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ‏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹!!श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा!!🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🥀By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🥀🙏🙏🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀!🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!फूलों में सज रहे हैं, ‏श्री वृन्दावन बिहारी।!**!!और संग में सज रही है वृषभानु की दुलारी॥* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!टेडा सा मुकुट सर पर रखा है किस अदा से,!!*!!करुना बरस रही है, ‏करुना भरी निगाह से।!**!!बिन मोल बिक गयी हूँ, ‏जब से छबि निहारी॥* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!बहिया गले में डाले जब दोनों मुस्कुराते,!!**!!सब को ही प्यारे लगते, ‏सब के ही मन को भाते।!**!!इन दोनों पे मैं सदके, ‏इन दोनों पे मैं वारी॥* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!श्रृंगार तेरा प्यारे, ‏शोभा कहूँ क्या उसकी,!!**!!इत पे गुलाबी पटका, ‏उत पे गुलाबी साडी॥* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!नीलम से सोहे मोहन, ‏स्वर्णिम सी सोहे राधा।!**!!इत नन्द का है छोरा, ‏उत भानु की दुलारी॥* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿*!!चुन चुन के कालिया जिसने बंगला तेरा बनाया,!!**!!दिव्या आभूषणों से जिसने तुझे सजाया,!!* ‏🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿 ‎*!! ‏फूलों में सज रहे हैं, ‏श्री वृन्दावन बिहारी।!* *!!और संग में सज रही है वृषभानु की दुलारी!!* ‏🌿🌿🌿🌼🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌼🌿🌿 ‎*!! ‏हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे ‎!!* *!!हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे ‎!!* ❤️🌹🌹🌼🌼🌹🌹🌼🌼🌹🌹❤️ ‎*आंसू पोंछ कर मेरे* * ‏मेरे कृष्ण ने हँसाया है मुझे ‎*🙏 ‎*मेरी हर गलती पर भी मेरे ‎* *ठाकुर ने सीने से लगाया है मुझे** ‏विश्वास क्यों न हो मुझे अपने बंसी वाले पर । ‎* *उसने हर हाल में ‎................*💓 ‎* ‏जीना सिखाया है मुझे ‎"!!*🙏 🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿 ‎❤राधे राधे❤ ‏🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿 ‎* ‏जिसकी नजरो में है श्याम प्यारे,* *वो तो रहते हैं जग से न्यारे।* * ‏जिसकी नज़रों में मोहन समाये,* *वो नज़र फिर तरसती नहीं है॥* ‏🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹 ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ 🌿🌿🌹🌹🌸🌸❤️❤️🌸🌸🌹🌹🌿🌿*🙏🏼#अलबेली_सरकार ‎#करदो_करदो_बेडा_पार 🌸 🌹🙏जय जय श्री राधे राधे जी🙏🌹💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖💙💖🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺🌼🌺💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖💖 🌹🌹‼️ ‎#बाल_वनीता_महील ‎_आश्रम‼️🌹🌹🌷🎊#राधे_माला_कीर्तन_पोस्ट🎊🌷🌺*""*•.¸जय श्री राधे ‎¸.•*""*🌺🍒👣#श्री_राधेकृष्णमयी_सुप्रभात👣🍒By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️✍️ ‎#आया ‎#सावन बड़ा मन भावन रिम ‎- ‏झिम की✨ ✨🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️✨✨पड़े फुहार राधा झूला झूल रहीं कान्हा संग में💃✨🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️🙏 ‎#सुंदर 👌#भजन 💃सावन का पहला राधा रानी ‎✨✨✨✨✨✨✨ ‏जूं कान्हा के नाम💃 👇👍🙏श्री हरि सखी री...🙌✍️#श्रंगारित राधे हुई, ‏कृष्ण करें श्रंगार ‎✨✨✨✨✨✨✨✨✨तीनों ‎#लोक निहारिए, ‏कहां है ऐसा प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨रंग देख राधे का बोले, ‏हर्षित कृष्ण मुरार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨शरद ‎#पूर्णिमा चाँद हो, ‏अमृत की हो बहार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨मंद मंद मुस्काए राधे, ‏देख कृष्ण का प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨हृदय करें आलिंगन ले लूं, ‏लौटाने को प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨मुरली धरी हाथ के नीचे, ‏करने को आभार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨हे कान्हा सावन है आयो, ‏सुनने राग मल्हार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨"विकुश" ‏हृदय विचलित रहता है, ‏दर्शन को हर बार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨🙏आन बसों नयनन् में मेरे, ‏हे मेरी सरकार🙏 ‎✨✨✨✨🙇👁️‍🗨️🙇✨✨✨✨🙋🏼‍♂️जय जय श्री राधे👣😔✨✨✨✨✨✨शुभ मंगल प्रभात जी🙏💖➖🔶आप सभी का दिन शुभ हो जी🔶➖💖 ‎❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार_कर के सभी भक्तो को मेरा ‎#प्रणाम🙏🙏 ‎❤❤❤❤❤❤❤❤*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार ‎#करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸🌼🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀 ‎#सुप्रभात,,,राधे राधे जी 🍀🌷*🙏🙏🙏🙏बाल वनिता महिला आश्रम🌺🌿 🌿🌿🌿🌿🌷🌷 🌿🌿🌿🌿🌿🌺*💐#राधे_माला# #कीर्तन_पोस्ट*💐 ‎#बाल_वनिता_महिला_आश्रम🌸 🌾 ‎#श्री_राधेकृष्णमयी ‎#शुभ_प्रभात ‎#स्नेह_वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐भक्ति रस भक्ति मय पावन अलबेली सरकार✨✨✨✨✨✨✨✨✨🌹प्रिय भक्तों आप सभी लोगों को जय श्री राधे कृष्णा जी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹किशोरी मेरी कुसुम कली🌼मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚कान्हा मेरो नन्द जू को छोना, ‏श्री राधे वृषभान लली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, ‏किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜कान्हा भावे माखन-लोना, ‏राधे भावे मिसरी की डली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, ‏किशोरी मेरी कुसुम कली🌼💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛कान्हा खेले नन्द जू के अँगना, ‏राधे खेले रंगीली गली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, ‏किशोरी मेरी कुसुम कली🌼🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ‎⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️ ना दिन का पता ना रात का । एक जवाब दे शयाम मेरी बात का ।। कितने दिन बीत गये तुझसे बिछड़े हुये ।ये बता दे कौन सा दिन रखा हैं हमारी मुलाकात का ।। 🌹जय श्री कृष्णा🌹 🌼श्री राधें राधें🌼 ‎❄️🙏❄️👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार_करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸*🌞🌞सुप्रभात 🌞🌞* *🙏🙏जय श्री कृष्णा 🙏🙏**।। आपका दिन शुभ और मंगलमय हो ।।*🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀 सुप्रभात,,,राधे राधे जी 🍀🌷* #वनिता ‎#कासनियां ‎#पंजाब🙏🙏🙏🙏*💐#राधे_माला ‎#कीर्तन_पोस्ट*💐 🌸 🌾 ‎#श्री_राधे ‎#कृष्णमयी ‎*🙏🌷#सुप्रभात🌷🙏*#स्नेह_ #वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐¸.•*""*•¸ ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸ ‏🌺🌻🌹🌷🌼🌸💐🍄🌲🌳 ‎#बाल_वनिता_महिला_आश्रम 🌾🌷#अलबेली_दरबार के सभी परम भक्तों प्रभु प्रेमियों को ‎*#दिल_से ‎*#राधे_राधे जी* ‏👐👐राधे माला ‎#कीर्तन🌺 में आपका ‎#हार्दिक_अभिनंदन जी🌷🌺🍀🌻चलो भक्तो👏🌿💕🌷💐 ‎#राधे_माला_कीर्तन में चलते हैं.....और ‎#प्रभु_चरणों 🐾में अपनी-अपनी ‎#हाजरी लगाते हैं❤❤❤❤❤❤❤❤मृदुल भाषिणी राधा । राधा ॥सौंदर्य राषिणी राधा । राधा ॥परम् पुनीता राधा । राधा ॥नित्य नव नीता राधा । राधा ॥रास विला सिनी राधा । राधा ॥दिव्य सु वा सिनी राधा । राधा ॥नवल किशोरी राधा । राधा ॥अति ही भोरी राधा । राधा ॥कंचन वर्णी राधा । राधा ॥नित्य सुख करणी राधा । राधा ॥सुभग भा मिनी राधा । राधा ॥जगत स्वा मिनी राधा । राधा ॥कृष्ण आन न्दिनी राधा । राधा ॥आनंद कन्दि नी राधा । राधा ॥ प्रेम मूर्ति राधा । राधा ॥रस आपूर्ति राधा । राधा ॥नवल ब्रजेश्वरी राधा राधा ॥नित्य रासेश्वरी राधा राधा ॥कोमल अंगि नी राधा । राधा ॥कृष्ण संगिनी राधा । राधा ॥कृपा वर्षि णी राधा । राधा ॥परम् हर्षि णी राधा । राधा ॥सिंधु स्वरूपा राधा । राधा ॥परम् अनूपा राधा । राधा ॥परम् हितकारी राधा । राधा ॥कृष्ण सुखकारी राधा । राधा ॥निकुंज स्वामिनी राधा । राधा ॥नवल भामिनी राधा । राधा ॥रास रासे श्वरी राधा । राधा ॥स्वयम् परमेश ्वरी राधा । राधा ॥सकल गुणीता ‎#राधा । राधा ॥रसि किनी पुनीता राधा । राधा ॥कर जोरि वन्दन करूँ मैंनित नित करूँ प्रणामरसना से गाती रहूँश्री राधा राधा नामजय श्री कृष्ण जी*🙏🏼🌸🌼#अलबेली ‎#सरकार_करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸🌼🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀,,,राधे राधे जी 🍀🌷*🙏🙏🙏🙏*💐#राधे_माला_कीर्तन_पोस्ट*💐 🌸 🌾 ‎#श्री_राधेकृष्णमयी ‎#शुभ_प्रभात ‎#स्नेह_वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐¸.•*""*•¸ ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸ ‏🌺🌻🌹🌷🌼🌸💐🍄🌲🌳 🌾🌷#अलबेली_दरबार के सभी परम भक्तों प्रभु प्रेमियों को ‎*#दिल_से ‎*#राधे_राधे जी* ‏👐👐राधे माला ‎#कीर्तन🌺 में आपका ‎#हार्दिक_अभिनंदन जी🌷🌺🍀🌻चलो भक्तो👏🌿💕🌷💐 ‎#राधे_माला_कीर्तन में चलते हैं.....और ‎#प्रभु_चरणों 🐾में अपनी-अपनी ‎#हाजरी लगाते हैं👏👏👏👏👏👏👏: ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸ ‏🌺🌻🌹🌷🌼🌸💐🍄🌲🌳राधे राधे💐🌹जय श्री कृष्ण🌹🚩जय राधे कृष्ण🌻 🙏🙏 💗❤️💚हे कृष्णा! ! ‏तेरे आने की जब ख़बर महके,तेरे खुश्बू से सारा घर महके,शाम महके तेरे तसव्वुर से,शाम के बाद फिर सहर महके,रात भर सोचता रहा तुझ को,ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर महके,याद आए तो दिल मुनव्वर हो,दीद हो जाए तो नज़र महके,वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे,वो ज़मीं महके वो आसमान महके,💗❤️💚ٰ ‏🌷 🌷🌹🌷 🌷🌹🌹🌷 🌷🌹🙏🏻🌹🌷 🌷🌹 ‎*हरे...* ‏🌹🌷 🌷🌹 ‎*कृष्ण...*🌹🌷 🌷🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌷 🌷🌹🌷🌹🌷 🌿🌷🌹🌷🌿 🌿🌷🌿 🌿 🌿 🌿 🌿🌿 🌿 🌿🌿🌿 🌿 🌿🌿🌿🌿 🌿 🌿🌿🌿🌿 🌿 🌿🌿🌿🌿 🌿 🌿🌿🌿 🌿 🌿 🌿!! ‏हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ‎!! ‏हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ‎!!💐🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌸🌹🌷📿🌸🌹🌷🌷🌹🌸राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌷🌹🌸राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌷🌹🌸राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌷🌹🌸राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌹🌷🌸राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌸🌹🌷राधे राधेराधे राधे🌷🌹🌸🌸🌹🌷राधे राधे🌷🌹🌸📿🌷🌹🌸 बाल वनिता महिला आश्रम❤❤❤❤❤❤❤❤*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार_करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸🌼🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀 सुप्रभात,,,राधे राधे जी 🍀🌷*🙏🙏🙏🙏

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🌷🎊#राधे_माला_कीर्तन_पोस्ट🎊🌷🌺*""*•.¸जय श्री राधे ¸.•*""*🌺🍒👣#श्री_राधेकृष्णमयी_सुप्रभात👣🍒By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️✍️ #आया #सावन बड़ा मन भावन रिम - झिम की✨ ✨🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️✨✨पड़े फुहार राधा झूला झूल रहीं कान्हा संग में💃✨🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️🙏 #सुंदर 👌#भजन 💃सावन का पहला राधा रानी ✨✨✨✨✨✨✨ जूं कान्हा के नाम💃 👇👍🙏श्री हरि सखी री...🙌✍️#श्रंगारित राधे हुई, कृष्ण करें श्रंगार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨तीनों #लोक निहारिए, कहां है ऐसा प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨रंग देख राधे का बोले, हर्षित कृष्ण मुरार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨शरद #पूर्णिमा चाँद हो, अमृत की हो बहार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨मंद मंद मुस्काए राधे, देख कृष्ण का प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨हृदय करें आलिंगन ले लूं, लौटाने को प्यार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨मुरली धरी हाथ के नीचे, करने को आभार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨हे कान्हा सावन है आयो, सुनने राग मल्हार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨"विकुश" हृदय विचलित रहता है, दर्शन को हर बार✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨🙏आन बसों नयनन् में मेरे, हे मेरी सरकार🙏 ✨✨✨✨🙇👁️‍🗨️🙇✨✨✨✨🙋🏼‍♂️जय जय श्री राधे👣😔✨✨✨✨✨✨शुभ मंगल प्रभात जी🙏💖➖🔶आप सभी का दिन शुभ हो जी🔶➖💖 ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार_कर के सभी भक्तो को मेरा #प्रणाम🙏🙏 ❤❤❤❤❤❤❤❤*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार #करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸🌼🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀 #सुप्रभात,,,राधे राधे जी 🍀🌷*🙏🙏🙏🙏बाल वनिता महिला आश्रम🌺🌿 🌿🌿🌿🌿🌷🌷 🌿🌿🌿🌿🌿🌺

🌷🎊#राधे_माला_कीर्तन_पोस्ट🎊🌷 🌺*""*•.¸जय श्री राधे ¸.•*""*🌺 🍒👣#श्री_राधेकृष्णमयी_सुप्रभात👣🍒 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️ ✍️ #आया #सावन बड़ा मन भावन रिम - झिम की✨   ✨🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️🔶🏵️✨ ✨पड़े फुहार राधा झूला झूल रहीं कान्हा संग में💃✨ 🏵️🧡🏵️🧡🏵️🧡💃🧘💃🧡🏵️🧡🏵️🧡🏵️ 🙏 #सुंदर 👌#भजन 💃सावन का पहला राधा रानी  ✨✨✨✨✨✨✨ जूं कान्हा के नाम💃 👇👍 🙏श्री हरि सखी री...🙌 ✍️#श्रंगारित राधे हुई, कृष्ण करें श्रंगार      ✨✨✨✨✨✨✨✨✨ तीनों #लोक निहारिए, कहां है ऐसा प्यार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ रंग देख राधे का बोले, हर्षित कृष्ण मुरार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ शरद #पूर्णिमा चाँद हो, अमृत की हो बहार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ मंद मंद मुस्काए राधे, देख कृष्ण का प्यार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ हृदय करें आलिंगन ले लूं, लौटाने को प्यार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ मुरली धरी हाथ के नीचे, करने को आभार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ हे कान्हा सावन है आयो, सुनने राग मल्हार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ "विकुश" हृदय विचलित रहता है, दर्शन को हर बार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ 🙏आन बसों नयनन् में मेरे, हे मेरी सरकार🙏      ✨✨✨...

*💐#राधे_माला# #कीर्तन_पोस्ट*💐 #बाल_वनिता_महिला_आश्रम🌸 🌾 #श्री_राधेकृष्णमयी #शुभ_प्रभात #स्नेह_वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐भक्ति रस भक्ति मय पावन अलबेली सरकार✨✨✨✨✨✨✨✨✨🌹प्रिय भक्तों आप सभी लोगों को जय श्री राधे कृष्णा जी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹किशोरी मेरी कुसुम कली🌼मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚कान्हा मेरो नन्द जू को छोना, श्री राधे वृषभान लली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜कान्हा भावे माखन-लोना, राधे भावे मिसरी की डली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛कान्हा खेले नन्द जू के अँगना, राधे खेले रंगीली गली,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼,मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️ ना दिन का पता ना रात का । एक जवाब दे शयाम मेरी बात का ।। कितने दिन बीत गये तुझसे बिछड़े हुये ।ये बता दे कौन सा दिन रखा हैं हमारी मुलाकात का ।। 🌹जय श्री कृष्णा🌹 🌼श्री राधें राधें🌼 ❄️🙏❄️👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏*🙏🏼🌸🌼#अलबेली_सरकार_करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸*🌞🌞सुप्रभात 🌞🌞* *🙏🙏जय श्री कृष्णा 🙏🙏**।। आपका दिन शुभ और मंगलमय हो ।।*🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀 सुप्रभात,,,राधे राधे जी 🍀🌷* #वनिता #कासनियां #पंजाब🙏🙏🙏🙏

*💐#राधे_माला# #कीर्तन_पोस्ट*💐  #बाल_वनिता_महिला_आश्रम 🌸 🌾 #श्री_राधेकृष्णमयी #शुभ_प्रभात #स्नेह_वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐 भक्ति रस भक्ति मय  पावन अलबेली सरकार ✨✨✨✨✨✨✨✨✨🌹 प्रिय भक्तों आप सभी लोगों को जय श्री राधे कृष्णा जी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹 किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚💚 कान्हा मेरो नन्द जू को छोना, श्री राधे वृषभान लली, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼, मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,  किशोरी मेरी कुसुम कली🌼  💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜💜 कान्हा भावे माखन-लोना, राधे भावे मिसरी की डली, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼, मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,  किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛💛 कान्हा खेले नन्द जू के अँगना, राधे खेले रंगीली गली, किशोरी मेरी कुसुम कली🌼, मेरो कान्हा गुलाब को फूल🌹,  किशोरी मेरी कुसुम कली🌼 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏             ⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️⚡️           ...

*💐#राधे_माला #कीर्तन_पोस्ट*💐 🌸 🌾 #श्री_राधे #कृष्णमयी *🙏🌷#सुप्रभात🌷🙏*#स्नेह_ #वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐¸.•*""*•¸ ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸ 🌺🌻🌹🌷🌼🌸💐🍄🌲🌳 #बाल_वनिता_महिला_आश्रम 🌾🌷#अलबेली_दरबार के सभी परम भक्तों प्रभु प्रेमियों को *#दिल_से *#राधे_राधे जी* 👐👐राधे माला #कीर्तन🌺 में आपका #हार्दिक_अभिनंदन जी🌷🌺🍀🌻चलो भक्तो👏🌿💕🌷💐 #राधे_माला_कीर्तन में चलते हैं.....और #प्रभु_चरणों 🐾में अपनी-अपनी #हाजरी लगाते हैं❤❤❤❤❤❤❤❤मृदुल भाषिणी राधा । राधा ॥सौंदर्य राषिणी राधा । राधा ॥परम् पुनीता राधा । राधा ॥नित्य नव नीता राधा । राधा ॥रास विला सिनी राधा । राधा ॥दिव्य सु वा सिनी राधा । राधा ॥नवल किशोरी राधा । राधा ॥अति ही भोरी राधा । राधा ॥कंचन वर्णी राधा । राधा ॥नित्य सुख करणी राधा । राधा ॥सुभग भा मिनी राधा । राधा ॥जगत स्वा मिनी राधा । राधा ॥कृष्ण आन न्दिनी राधा । राधा ॥आनंद कन्दि नी राधा । राधा ॥ प्रेम मूर्ति राधा । राधा ॥रस आपूर्ति राधा । राधा ॥नवल ब्रजेश्वरी राधा राधा ॥नित्य रासेश्वरी राधा राधा ॥कोमल अंगि नी राधा । राधा ॥कृष्ण संगिनी राधा । राधा ॥कृपा वर्षि णी राधा । राधा ॥परम् हर्षि णी राधा । राधा ॥सिंधु स्वरूपा राधा । राधा ॥परम् अनूपा राधा । राधा ॥परम् हितकारी राधा । राधा ॥कृष्ण सुखकारी राधा । राधा ॥निकुंज स्वामिनी राधा । राधा ॥नवल भामिनी राधा । राधा ॥रास रासे श्वरी राधा । राधा ॥स्वयम् परमेश ्वरी राधा । राधा ॥सकल गुणीता #राधा । राधा ॥रसि किनी पुनीता राधा । राधा ॥कर जोरि वन्दन करूँ मैंनित नित करूँ प्रणामरसना से गाती रहूँश्री राधा राधा नामजय श्री कृष्ण जी*🙏🏼🌸🌼#अलबेली #सरकार_करदो_करदो_बेडा_पार🙏🏼🌸🌼🌿🌿🌿🌿🌹🌿🌿🌿🌿*🌷🍀,,,राधे राधे जी 🍀🌷*🙏🙏🙏🙏

*💐#राधे_माला #कीर्तन_पोस्ट*💐  🌸 🌾 #श्री_राधे #कृष्णमयी *🙏🌷#सुप्रभात🌷🙏*#स्नेह_ #वंदन 🌾 🌸👐#राधे_राधे_जी👐 ¸.•*""*•¸ ¸.•*""*•.¸ ¸.•*""*•.¸  🌺🌻🌹🌷🌼🌸💐🍄🌲🌳       #बाल_वनिता_महिला_आश्रम     🌾🌷#अलबेली_दरबार के सभी परम भक्तों प्रभु प्रेमियों को *#दिल_से *#राधे_राधे जी* 👐👐राधे माला #कीर्तन🌺 में आपका #हार्दिक_अभिनंदन जी 🌷🌺🍀🌻चलो भक्तो👏🌿💕🌷💐 #राधे_माला_कीर्तन में चलते हैं.....और #प्रभु_चरणों 🐾में अपनी-अपनी #हाजरी लगाते हैं ❤❤❤❤❤❤❤❤ मृदुल भाषिणी राधा । राधा ॥ सौंदर्य राषिणी राधा । राधा ॥ परम् पुनीता राधा । राधा ॥ नित्य नव नीता राधा । राधा ॥ रास विला सिनी राधा । राधा ॥ दिव्य सु वा सिनी राधा । राधा ॥ नवल किशोरी राधा । राधा ॥ अति ही भोरी राधा । राधा ॥ कंचन वर्णी राधा । राधा ॥ नित्य सुख करणी राधा । राधा ॥ सुभग भा मिनी राधा । राधा ॥ जगत स्वा मिनी राधा । राधा ॥ कृष्ण आन न्दिनी राधा । राधा ॥ आनंद कन्दि नी राधा । राधा ॥    प्रेम मूर्ति राधा । राधा ॥ रस आपूर्ति राधा । राधा ॥ नवल ब्रजेश्वरी राधा राधा ॥ नित्य रासेश्वरी राधा राध...

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श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️अध्याय 5 (भाग 1)॥श्रीभगवत्यै नमः ॥बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। शोक और मोह- ये शरीर के गुण हैं। मैं इनकी चिन्ता में क्यों उलझँ। मैं शरीर नहीं हूँ और न मेरा इससे कोई स्थायी सम्बन्ध ही है। मेरा स्वरूप अखण्ड आनन्दमय है। प्रकृति और विकृति मेरे इस आनन्दमय स्वरूप से पृथक् हैं। फिर मेरा कभी भी दुःख से क्या सम्बन्ध है।' देवराज! तुम सच्चे मन से इस रहस्य को भलीभाँति समझकर ममता रहित हो जाओ। शतक्रतो! तुम्हारे दुःख के अभाव का सर्वप्रथम उपाय यही है। ममता ही परम दुःख है और निर्ममत्व - ममता का अभाव हो जाना परम सुख का साधन है। शचीपते! कोई सुखी होना चाहे तो संतोष का आश्रय ले। संतोष के अतिरिक्त सुख का स्थान और कोई नहीं है। * अथवा देवराज! यदि तुम्हारे पास ममता दूर करने वाले ज्ञान का नितान्त अभाव हो तो प्रारब्ध के विषय में विवेक का आश्रय लेना परम आवश्यक है। प्रारब्ध कर्मों का अभाव बिना भोगे नहीं हो सकता - यह स्पष्ट है। आर्य! सम्पूर्ण देवता तुम्हारे सहायक हैं। तुम स्वयं भी बुद्धिमान् हो। फिर भी जो होनी है, वह होकर ही रहेगी। तुम उसे टाल नहीं सकते। ऐसी स्थिति में सुख और दुःख की चिन्ता में नहीं पड़ना चाहिये। महाभाग ! सुख और दुःख – ये दोनों क्रमश: पुण्य एवं पाप के क्षय के सूचक हैं। अतएव विद्वान् पुरुषों को चाहिये कि सुख के अभाव में भी सर्वथा आनन्द का ही अनुभव । अतएव महाराज! इस अवसर पर सुयोग्य करें। मन्त्रियों से परामर्श लेकर विधिपूर्वक यत्न करने में कटिबद्ध हो जाओ। यत्न करने पर भी, जो होनहार होगा, वह तो सामने आयेगा ही।बाल वनिता महिला आश्रमक्रमश...शेष अगले अंक मेंजय माता जी की〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

श्रीमद्देवीभागवत (पाँचवा स्कन्ध)   By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 〰️〰️🌼〰️🌼🌼〰️🌼〰️〰️ अध्याय 5 (भाग 1) ॥श्रीभगवत्यै नमः ॥ बृहस्पतिजी का इन्द्र के प्रति उपदेश, इन्द्र का भगवान् ब्रह्मा, शंकर तथा विष्णु के पास जाना... 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ बृहस्पति जी आगे बोले- हर्ष और शोक शत्रुतुल्य हैं। इन्हें अपने आत्मा को न सौंपे। विवेकी पुरुषों को चाहिये कि इनके उपस्थित होने पर धैर्य का ही अनुसरण करें। अधीर हो जाने पर दुःख का जैसा भयंकर रूप सामने दिखायी पड़ता है, वैसा धैर्य धारण करने पर नहीं दीखता। परंतु दुःख और सुख के सामने आने पर सहनशील बने रहना अवश्य ही दुर्लभ है। जो पुरुष हर्ष और शोक की अवस्था में अपनी सद्बुद्धि से निश्चय करके उनके प्रभाव से प्रभावित नहीं होता, उसके लिये कैसा सुख और कैसा दुःख। वैसी परिस्थिति में वह यह सोचे कि 'मैं निर्गुण हूँ', मेरा कभी नाश नहीं हो सकता। मैं इन चौबीस गुणों से पृथक् हूँ। फिर मुझे दुःख और सुख से क्या प्रयोजन ? भूख और प्यास का प्राण से, शोक और मोह का मन से तथा जरा और मृत्यु का शरीर से सम्बन्ध है । मैं इन छहों ऊर्मियों से रहित कल्याण स्वरूप हूँ। श...

Jai Rukmini Vitthal!!बाल वनिता महिला आश्रम 🙏🙏Dear friends,This is my first post in this space.And in this post I would like to share you some tips and tricks to increase your bhakti towards Lord Krishna. You can apply the same principles to increase bhakti for other gods too. I got these ideas after watching youtube videos of Swami Mukunanda and other devotees of Lord and after listening some stories on Youtube. I would suggest you all to watch these videos. If you prefer reading then I am sharing some tips here:First of all we need to use all our senses for the service of Lord Krishna.We must use our mind to always meditate on Lord Krishna, think about his pastimes, his forms his virtues.We must use our tounge to sing the pastimes of Lord and glorify him.We must use our ears to listen to Krishna kathas, pastimes, songs, bhajans etc.We must see Krishna in everyone and everything.That’s how we can use our senses for the service of Lord Krishna.Now, Lord Krishna says in the Bhagavad Gita that we should dedicate all our karmas to him and fully surrender to him.We should do our duties, but not with the intention of our personal sense gratification, but for the pleasure of the Lord.For example- Arjuna was a great archer in the Mahabharata. But he used his archery skills to serve Lord Krishna by fighting the battle of Mahabharta.Similarly we too should use our skills/perform our duties for the pleasure of Lord Krishna. In this manner all our karmas will get purified. We should also offer food to Lord Krishna before eating. That is called prasadam.And most importantly we should have love and attachment for Lord Krishna instead of having attachment towards material things. This can be achieved by chanting Krishna’s name or meditating on him and serving him wholeheartedly with pure love and affection.The above principals can be applied for increasing bhakti towards any other gods too who are your ishta devta/devi.Hope this post is helpful for all. :)If you have any queries feel free to ask me. I’ll try to clear all your doubts based on my knowledge. And if at all I am wrong. Then you can correct me too. :)Jai Rukmini Vitthal!!🙏🙏By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

Jai Rukmini Vitthal!! बाल वनिता महिला आश्रम 🙏🙏 Dear friends, This is my first post in this space. And in this post I would like to share you some tips and tricks to increase your bhakti towards Lord Krishna. You can apply the same principles to increase bhakti for other gods too. I got these ideas after watching youtube videos of Swami Mukunanda and other devotees of Lord and after listening some stories on Youtube. I would suggest you all to watch these videos. If you prefer reading then I am sharing some tips here: First of all we need to use all our senses for the service of Lord Krishna. We must use our mind to always meditate on Lord Krishna, think about his pastimes, his forms his virtues. We must use our tounge to sing the pastimes of Lord and glorify him. We must use our ears to listen to Krishna kathas, pastimes, songs, bhajans etc. We must see Krishna in everyone and everything. That’s how we can use our senses for the service of Lord Krishna. Now, Lord Krishna says in the ...

---* Story of a devotee *---By philanthropist Vanitha Kasniya PunjabThere was a great devotee of Bihari ji in Vrindavan, he was a shopkeeper by profession.He used to go to Bihari ji's temple every morning and then devote time to cow service.

---* एक भक्त की कथा *-- - By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब वृन्दावन में एक बिहारी जी का परम् भक्त था, पेशे से वह एक दूकानदार था ।  वह रोज प्रातः बिहारी जी के मंदिर जाता था और फिर गो सेवा में समय देता और गरीब, बीमार और असहाय लोगों के उपचार, भोजन और दवा का प्रबन्ध करता । वह बिहारी जी के मंदिर जाता न तो कोई दीपक जलाता न कोई माला न फूल न कोई प्रसाद। उसे अपने पिता की कही एक बात जो उसने बचपन से अपनेपिता से ग्रहण करी थी और जीवन मन्त्र बना ली ।  उसके पिता ने कहा था बिहारी जी की सेवा तो भाव से होती है। जो उनके हर जीव की, पशु पक्षियों की सेवा करता है वह उन्हें प्रिय है। देखो उन्होंने भी तो गौ सेवा की थी ।  लेकिन एक बात थी मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, जबकि मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते वाह ! आज बिहारी जी का श्रंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी, तो वह भक्त सोचता…  बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है । हर दिन ऐसा होता ।  एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है की आप सबको तो दर्शन दे...